भारत में वरिष्ठ नागरिकों पर राष्ट्रीय नीति | National Policy on Senior Citizens

भारत एक युवा देश है, लेकिन साथ ही यह तथ्य भी तेजी से उभर रहा है कि यहाँ की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अब वृद्धावस्था की ओर अग्रसर हो रहा है। जैसे-जैसे जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो रही है और स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर होती जा रही हैं, भारत में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। इसी जनसांख्यिकीय बदलाव को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए एक नई राष्ट्रीय नीति (National Policy on Senior Citizens) का मसौदा तैयार कर रही है।

यह नीति सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा तैयार की जा रही है, जिसका उद्देश्य वृद्धजन समुदाय की सुरक्षा, सम्मान और सशक्तिकरण सुनिश्चित करना है। इस लेख में हम भारत में वरिष्ठ नागरिकों की स्थिति, वर्तमान संवैधानिक और कानूनी ढांचे, नीतिगत पहलों और भावी रणनीतियों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

भारत में वरिष्ठ नागरिकों की जनसांख्यिकीय स्थिति

जनसंख्या आँकड़े और अनुमान

  • जनगणना 2011 के अनुसार भारत में लगभग 10.3 करोड़ वरिष्ठ नागरिक थे, जो कि कुल जनसंख्या का 8.6% हिस्सा थे।
  • भारत सरकार के अनुसार, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्ति “वरिष्ठ नागरिक” (Senior Citizens) की श्रेणी में आते हैं।
  • 2026 तक यह संख्या बढ़कर 12.16% तक पहुँचने का अनुमान है।
  • 2047 तक, जब भारत स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 20% तक हो सकती है।

वृद्धि के कारण

भारत में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या में वृद्धि के मुख्य कारणों में शामिल हैं:

  • जीवन प्रत्याशा में वृद्धि
  • बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता
  • जीवनरक्षक दवाओं की पहुंच और उपयोग
  • जनसंख्या नियंत्रण और पारिवारिक संरचना में परिवर्तन

इस बढ़ती आबादी को यदि अनदेखा किया गया तो आने वाले वर्षों में यह सामाजिक और आर्थिक रूप से एक बड़ी चुनौती बन सकती है। इसलिए समय रहते ठोस और समावेशी नीतिगत हस्तक्षेप अत्यावश्यक हैं।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए संवैधानिक और कानूनी ढांचा

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 41 भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि राज्य वृद्धावस्था में नागरिकों को सार्वजनिक सहायता प्रदान करने के लिए प्रभावी कदम उठाएगा। यह अनुच्छेद एक नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी का आधार प्रदान करता है।

कानूनी प्रावधान

  1. वरिष्ठ नागरिकों और माता-पिता का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007
    • यह अधिनियम संतानों और कानूनी उत्तराधिकारियों को अपने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए बाध्य करता है।
    • वरिष्ठ नागरिक Maintenance Tribunal के माध्यम से भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं।
    • इस कानून के अंतर्गत राज्य सरकारों को वृद्धाश्रम स्थापित करने की भी बाध्यता है।
  2. अन्य सहायक प्रावधान
    • व्यक्तिगत कानूनों में भी वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था की गई है।
    • आयकर में वरिष्ठ नागरिकों को विशेष छूट दी जाती है, जिससे उन्हें आर्थिक राहत मिलती है।
    • परिवहन रियायतें, जैसे रेल और बस यात्रा में छूट, उनकी सुविधा के लिए उपलब्ध हैं।

इन कानूनी उपायों का उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाना और उनके जीवन को गरिमापूर्ण बनाना है।

भारत में वरिष्ठ नागरिकों के लिए नीतिगत पहलें

राष्ट्रीय वृद्धजन नीति (NPOP), 1999

  • यह नीति वरिष्ठ नागरिकों के समग्र कल्याण के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है।
  • इसमें स्वास्थ्य, आवास, सामाजिक सुरक्षा, और सशक्तिकरण जैसे विषयों को प्राथमिकता दी गई थी।
  • इसका उद्देश्य था कि वरिष्ठ नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से समर्थ बनाया जाए।

2011 का संशोधित मसौदा

  • बदलती परिस्थितियों के अनुरूप 1999 की नीति में संशोधन का प्रयास किया गया।
  • इसमें बुजुर्गों की देखभाल के लिए Elder Care System को मजबूत करने पर बल दिया गया।

वर्तमान नीति निर्माण की आवश्यकता

आज के परिदृश्य में, जब:

  • वरिष्ठ नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है,
  • परिवार प्रणाली में परिवर्तन हो रहा है,
  • एकाकी जीवन और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उभर रही हैं,

तो यह आवश्यक हो गया है कि एक नई और समावेशी नीति तैयार की जाए, जो न केवल वर्तमान समस्याओं का समाधान करे, बल्कि भविष्य की चुनौतियों को भी ध्यान में रखे।

वर्तमान चुनौतियाँ

भारत में वृद्धजन समुदाय को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है:

  1. आर्थिक निर्भरता:
    बहुत से वरिष्ठ नागरिकों के पास नियमित आय का कोई स्रोत नहीं है। वे पूरी तरह से अपने बच्चों या पेंशन पर निर्भर होते हैं।
  2. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी:
    ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों के लिए समर्पित स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है। शहरी क्षेत्रों में भी geriatric healthcare सेवाएँ सीमित हैं।
  3. सामाजिक अलगाव और मानसिक स्वास्थ्य:
    एकल परिवारों और तेजी से बदलते सामाजिक ढांचे ने बुजुर्गों को अलगाव और अकेलेपन की स्थिति में डाल दिया है। इससे डिप्रेशन, अल्जाइमर, और अन्य मानसिक बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
  4. शारीरिक असुरक्षा:
    वरिष्ठ नागरिक अपराधों के शिकार भी बनते हैं। घरेलू हिंसा और उपेक्षा जैसे मुद्दे आम हैं।

आगे की राह (Way Forward)

1. आर्थिक सुरक्षा का विस्तार

  • पेंशन योजनाओं को अधिक व्यापक बनाया जाना चाहिए, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए।
  • वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना जैसी योजनाओं की पहुँच और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

2. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार

  • जेरियाट्रिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार आवश्यक है।
  • मुफ्त या रियायती जांच, टेलीमेडिसिन, और चलित स्वास्थ्य इकाइयाँ ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में लागू की जानी चाहिए।

3. सामाजिक समावेशन

  • सामुदायिक केंद्र, डे-केयर सेंटर, और सांस्कृतिक गतिविधियाँ वृद्धजनों के लिए जीवन में खुशहाली लाने के साधन हो सकते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, हेल्पलाइन और परिवार परामर्श केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए।

4. डिजिटल साक्षरता और भागीदारी

  • वरिष्ठ नागरिकों को डिजिटल दुनिया से जोड़ने के प्रयास होने चाहिए ताकि वे बैंकिंग, सोशल मीडिया, और टेली-हेल्थ सेवाओं का उपयोग कर सकें।
  • डिजिटल वॉलंटियर प्रोग्राम के माध्यम से युवाओं को उनसे जोड़ा जा सकता है।

5. नीति में भागीदारी

  • वरिष्ठ नागरिकों की राय और अनुभव को नीति निर्माण में शामिल किया जाना चाहिए।
  • एक राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक आयोग की स्थापना की जानी चाहिए जो विभिन्न क्षेत्रों की निगरानी करे।

भारत में वरिष्ठ नागरिकों की बढ़ती संख्या एक ओर सामाजिक अनुभव और ज्ञान का भंडार है, तो दूसरी ओर नीतिगत योजना और सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से एक चुनौती भी। सरकार की अब तक की पहलों ने निश्चित रूप से सकारात्मक प्रभाव डाला है, लेकिन मौजूदा जनसांख्यिकीय परिदृश्य को देखते हुए एक नई, समावेशी और दूरदर्शी नीति की सख्त आवश्यकता है।

ऐसी नीति जो आर्थिक, स्वास्थ्य, सामाजिक और मानसिक सभी पहलुओं को समाहित करे, जिससे वरिष्ठ नागरिकों का जीवन सम्मानजनक, सुरक्षित और सक्रिय बना रहे। यही न केवल उनका अधिकार है, बल्कि समाज की नैतिक जिम्मेदारी भी।

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