विश्व शरणार्थी दिवस 2025 | इतिहास, महत्व और आज की प्रासंगिकता

20 जून को हर साल विश्व शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर के उन लाखों लोगों को समर्पित है, जिन्हें संघर्ष, उत्पीड़न, राजनीतिक हिंसा, धार्मिक असहिष्णुता या प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपना घर, गांव, शहर या देश छोड़कर जबरन विस्थापन का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2025 में यह दिवस “शरणार्थियों के साथ एकजुटता” (Solidarity with Refugees) की थीम के तहत मनाया जा रहा है, जो समानता, समावेशन और सशक्तिकरण जैसे मूल्यों को केंद्र में रखता है।

इस लेख में हम इस दिवस के इतिहास, उद्देश्य, 2025 की थीम, वैश्विक व भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसके महत्व और आज की दुनिया में इसकी जरूरत को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे।

क्या है शरणार्थी?

शरणार्थी (Refugee) वह व्यक्ति होता है जिसे अपने देश में उत्पीड़न, युद्ध, हिंसा या किसी अन्य संकट के कारण सुरक्षित जीवन जीने की संभावना नहीं दिखती, और इसीलिए वह किसी अन्य देश में शरण लेने को मजबूर होता है।

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी UNHCR (United Nations High Commissioner for Refugees) के अनुसार, शरणार्थियों को अंतरराष्ट्रीय संरक्षण की आवश्यकता होती है, क्योंकि उनका अपना देश उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में अक्षम होता है।

विश्व शरणार्थी दिवस का इतिहास

विश्व शरणार्थी दिवस की शुरुआत वर्ष 2001 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य 1951 की “शरणार्थी संधि” (Refugee Convention) की 50वीं वर्षगांठ को चिह्नित करना था। इससे पहले यह दिन “अफ्रीका शरणार्थी दिवस” (Africa Refugee Day) के नाम से जाना जाता था, जिसे अफ्रीकी देशों द्वारा मनाया जाता था।

प्रमुख तथ्य:

  • 📅 तारीख: प्रतिवर्ष 20 जून
  • 🏛 घोषणा: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा
  • 📍 प्रथम वैश्विक आयोजन: 2001
  • 📜 समर्पण: 1951 की शरणार्थी संधि की स्मृति में
  • 🌍 मूल नाम: अफ्रीका शरणार्थी दिवस

1951 की शरणार्थी संधि क्या है?

1951 की शरणार्थी संधि, जिसे “Refugee Convention” के नाम से जाना जाता है, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शरणार्थियों की स्थिति को परिभाषित करने और उनके अधिकारों की रक्षा हेतु बनाई गई थी। इसमें शामिल देशों को यह दायित्व दिया गया कि वे अपने क्षेत्र में आने वाले शरणार्थियों को सुरक्षा, अधिकार और गरिमामय जीवन प्रदान करें।

वर्ष 2025 की थीम: “शरणार्थियों के साथ एकजुटता”

2025 में विश्व शरणार्थी दिवस की थीम “शरणार्थियों के साथ एकजुटता” (Solidarity with Refugees) रखी गई है। यह थीम कई मायनों में प्रासंगिक है, क्योंकि आज जब दुनिया एक के बाद एक मानवीय संकटों का सामना कर रही है — यूक्रेन युद्ध, सूडान संकट, गाजा पट्टी में हिंसा, अफगानिस्तान की स्थिति, और जलवायु परिवर्तनजन्य आपदाएं — तब जबरन विस्थापित लोगों की संख्या ऐतिहासिक स्तर पर पहुँच गई है।

थीम के प्रमुख संदेश:

2025 में यह दिन क्यों चर्चा में है?

वर्ष 2025 में यह दिवस इसलिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि UNHCR के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, विश्वभर में जबरन विस्थापित लोगों की संख्या 12 करोड़ (120 मिलियन) के पार पहुंच चुकी है। यह संख्या अब तक की सबसे अधिक है। इसमें शरणार्थी, आंतरिक रूप से विस्थापित (IDPs), शरण चाहने वाले (Asylum seekers) और राज्यहीन व्यक्ति शामिल हैं।

इस बढ़ती समस्या के कारण, विश्व शरणार्थी दिवस अब सिर्फ एक प्रतीकात्मक दिन नहीं रहा, बल्कि यह एक वैश्विक कार्रवाई की पुकार बन गया है।

वर्तमान वैश्विक संकट

1. युद्ध और संघर्ष

  • यूक्रेन-रूस युद्ध ने यूरोप में शरणार्थी संकट को विकराल बना दिया है।
  • म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का उत्पीड़न लाखों लोगों को बांग्लादेश और अन्य देशों में शरण लेने पर मजबूर कर चुका है।
  • सूडान, सीरिया, अफगानिस्तान, यमन और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे देशों में आंतरिक संघर्ष शरणार्थियों की संख्या बढ़ा रहे हैं।

2. जलवायु परिवर्तन

  • बढ़ते समुद्री स्तर, बाढ़, सूखा, और जंगलों की आग जैसे प्राकृतिक संकट लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर रहे हैं।
  • “क्लाइमेट रिफ्यूजी” एक नई श्रेणी बन रही है, जिसे अभी तक अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है।

3. भेदभाव और ज़ेनोफोबिया

  • कई देशों में शरणार्थियों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव, नस्लवाद, और नफ़रत का माहौल गहराता जा रहा है।
  • यह ज़रूरी हो गया है कि वैश्विक एकता और सहानुभूति के ज़रिए इन चुनौतियों से निपटा जाए।

भारत में शरणार्थियों की स्थिति

भारत ने 1951 की शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से भारत ने हमेशा शरणार्थियों को आश्रय दिया है:

  • तिब्बती शरणार्थी: 1959 में दलाई लामा के साथ भारत आए और धर्मशाला में बसे।
  • श्रीलंकाई तमिल: 1983 के दंगों के बाद तमिलनाडु में बड़ी संख्या में शरणार्थी आए।
  • चाकमा और हाजोंग: बांग्लादेश से विस्थापित होकर अरुणाचल प्रदेश में बसे।
  • अफगान, रोहिंग्या और अन्य: शरणार्थियों की एक विविध जनसंख्या दिल्ली, जम्मू और अन्य राज्यों में निवास कर रही है।

भारत में शरणार्थियों को नागरिक अधिकार तो नहीं मिलते, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और कुछ रोजगार तक सीमित पहुंच दी जाती है।

कार्यक्रम और आयोजन (2025 में)

वर्ष 2025 में भारत, यमन, यूरोप और अफ्रीका समेत कई देशों में विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए:

  • यमन के एडन में स्वागत समारोह: UNHCR और शरणार्थियों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित।
  • रैलियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम: भारत, केन्या, जर्मनी और कनाडा में जनजागरूकता के लिए रैलियाँ और फिल्म स्क्रीनिंग।
  • ट्रेड यूनियन की भागीदारी: यूनियनों ने गरिमापूर्ण कार्य, मजदूरी अधिकार और निष्पक्ष व्यवहार की माँग को उजागर किया।
  • शैक्षिक और कला प्रदर्शनियाँ: बच्चों, युवाओं और कलाकारों ने शरणार्थियों की कहानियाँ रचनात्मक रूप में प्रस्तुत कीं।

विश्व शरणार्थी दिवस का उद्देश्य

विश्व शरणार्थी दिवस के पीछे कई उद्देश्य हैं:

  1. शरणार्थियों की स्थिति और अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना
  2. सुरक्षित आवास, न्यायपूर्ण रोजगार, और सामाजिक समावेश की माँग करना
  3. सरकारों और नियोक्ताओं को शरणार्थियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हेतु प्रोत्साहित करना
  4. नीति-निर्माण, समुदाय और मीडिया में शरणार्थियों की सकारात्मक भूमिका को उजागर करना

वैश्विक अपील और कार्रवाई की ज़रूरत

  1. अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन: शरणार्थियों को गैर-कानूनी ढंग से वापस उनके देश भेजना (Refoulement) रोकना होगा।
  2. सशक्तिकरण की नीति: उन्हें सिर्फ मदद की वस्तु न मानते हुए आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करना।
  3. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ: बच्चों की पढ़ाई और महिलाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान।
  4. वैश्विक सहयोग: संकट का बोझ केवल सीमावर्ती देशों पर न डालते हुए सभी राष्ट्रों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
  5. समाजिक संवाद में भागीदारी: शरणार्थियों को नीति-निर्माण, ट्रेड यूनियन और मीडिया में आवाज़ दी जाए।

विश्व शरणार्थी दिवस केवल एक कैलेंडर की तारीख नहीं है, बल्कि यह दिन इंसानियत, समानता और करुणा का प्रतीक है। जब तक दुनिया में युद्ध, उत्पीड़न और पर्यावरणीय संकट बने रहेंगे, तब तक शरणार्थी हमारे युग की वास्तविकता बने रहेंगे।

हमें यह समझना होगा कि शरणार्थी समस्या नहीं, समाधान का हिस्सा हैं। वे हमारे समाज को समृद्ध बनाने में सक्षम हैं, यदि हम उन्हें अवसर दें। वर्ष 2025 की थीम “शरणार्थियों के साथ एकजुटता” केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक नैतिक और मानवीय जिम्मेदारी है, जिसे हर देश, संस्था और नागरिक को निभाना होगा।

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