“शंखनाद” मुंशी प्रेमचंद की एक प्रेरक कहानी है जो एक आलसी युवक गुमान के जीवन में आए अचानक परिवर्तन की कहानी कहती है। जब उसका बेटा धान मिठाई न मिलने पर रोता है और उसकी माँ उसे डाँट देती है, तो गुमान को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है। यह घटना उसके लिए जीवन का शंखनाद (जागृति का संकेत) बन जाती है। कहानी में पारिवारिक कलह, सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण है।
“शंखनाद” – मुंशी प्रेमचंद | कहानी का सारांश
मुंशी प्रेमचंद की कहानी “शंखनाद” एक मध्यवर्गीय परिवार के आंतरिक संघर्ष, अहंकार और अचानक आई जागृति की मार्मिक गाथा है। कहानी का केंद्रीय पात्र गुमान चौधरी है, जिसका आलसी और मस्तमौला स्वभाव पूरे परिवार के तनाव का कारण बनता है।
भानु चौधरी गाँव के प्रतिष्ठित मुखिया हैं, जिनके तीन पुत्र हैं—बितान (कानूनविद्), शान (किसान) और गुमान (आलसी व रसिक)। गुमान कामचोर है और परिवार के सदस्यों, विशेषकर भाइयों की पत्नियों के तानों का शिकार होता है। एक दिन, जब गुमान के बेटे धान को मिठाई न मिलने पर वह रोता है और उसकी माँ उसे डाँटती है, तो गुमान को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है। यह घटना उसके लिए “शंखनाद” (जागृति का संकेत) बन जाती है, और वह परिवार की जिम्मेदारी उठाने का संकल्प लेता है।
प्रमुख घटनाएँ और विस्तृत कथानक
1. भानु चौधरी का परिवार और उनका प्रभुत्व
- भानु चौधरी गाँव के सम्मानित मुखिया हैं, जिनके फैसले गाँव में अंतिम माने जाते हैं।
- उनके तीन पुत्र हैं:
- बितान: कानूनविद्, घमंडी और धनलोलुप। वह अपनी पत्नी के प्रभाव में रहता है।
- शान: मेहनती किसान, लेकिन सीधा-सादा और कम बुद्धिमान। उसकी पत्नी भी उसे नियंत्रित करती है।
- गुमान: आलसी, संगीतप्रेमी और निठल्ला युवक, जिसे परिवार में कोई महत्व नहीं दिया जाता।
2. गुमान की उपेक्षा और पारिवारिक कलह
- गुमान के भाइयों की पत्नियाँ (भावजें) उसकी आलसी प्रवृत्ति पर लगातार ताने मारती हैं।
- एक बार बितान की पत्नी गुमान के नए कपड़ों को जला देती है, क्योंकि वह उसके फिजूलखर्ची से नाराज़ है।
- भानु चौधरी परिवार को समझाते हैं, लेकिन बितान और शान की पत्नियाँ परिवार का बँटवारा चाहती हैं।
3. गुमान के बेटे धान की मिठाई की इच्छा और माँ का क्रोध
- गाँव में मिठाई वाला गुरदीन आता है। सभी बच्चे मिठाई खरीदते हैं, लेकिन गुमान के बेटे धान के पास पैसे नहीं होते।
- धान रोता है और जिद करता है, लेकिन उसकी माँ (गुमान की पत्नी) के पास पैसे नहीं होते। वह धान को डाँट देती है और थप्पड़ मारती है।
- यह दृश्य देखकर गुमान के मन में एक क्रांति होती है। उसे एहसास होता है कि उसकी लापरवाही के कारण उसके बच्चे को अपमान सहना पड़ रहा है।
4. गुमान की जागृति (“शंखनाद”)
- गुमान अपनी पत्नी से कहता है:“तुमने आज मुझे सदा के लिए जगा दिया, मानो मेरे कानों में शंखनाद कर दिया हो!”
- वह अपनी जिम्मेदारी समझता है और संकल्प लेता है कि अब वह परिवार की उपेक्षा नहीं करेगा।
कहानी का सार
यह कहानी एक आलसी व्यक्ति के आत्मसुधार की कहानी है। गुमान जो पूरी जिंदगी मस्ती में बिता रहा था, उसके बेटे के रोने की घटना उसके लिए जीवन बदलने वाला पल बन जाती है। प्रेमचंद यहाँ यह संदेश देते हैं कि मनुष्य को बदलने के लिए कभी-कभी एक छोटी सी घटना भी काफी होती है।
“शंखनाद” | कहानी – मुंशी प्रेमचंद
भानु चौधरी अपने गाँव के मुखिया थे। गाँव में उनका बड़ा मान था। दारोगा जी उन्हें टाट बिना जमीन पर न बैठने देते। मुखिया साहब की ऐसी धाक बँधी हुई थी कि उनकी मरजी बिना गाँव में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था। कोई घटना, चाहे वह सास-बहू का विवाद हो, चाहे मेंड़ या खेत का झगड़ा, चौधरी साहब के शासनाधिकार को पूर्णरूप से सचेत करने के लिए काफी थी, वह तुरंत घटनास्थल पर जा पहुँचते, तहकीकात होने लगती, गवाह और सबूत के सिवा किसी अभियोग को सफलता सहित चलाने में जिन बातों की जरूरत होती है, उन सब पर विचार होता और चौधरी जी के दरबार से फैसला हो जाता।
किसी को अदालत जाने की जरूरत न पड़ती। हाँ, इस कष्ट के लिए चौधरी साहब कुछ फीस जरूर लेते थे। यदि किसी अवसर पर फीस मिलने में असुविधा के कारण उन्हें धीरज से काम लेना पड़ता तो गाँव में आफत मच जाती थी; क्योंकि उनके धीरज और दारोगा जी के क्रोध में कोई घनिष्ठ संबंध था। सारांश यह कि चौधरी से उनके दोस्त-दुश्मन सभी चौकन्ने रहते थे।
चौधरी महाशय के तीन सुयोग्य पुत्र थे। बड़े लड़के बितान एक सुशिक्षित मनुष्य थे। डाकिये के रजिस्टर पर दस्तखत कर लेते थे। बड़े अनुभवी, बड़े मर्मज्ञ, बड़े नीति-कुशल। मिर्जई की जगह कमीज पहनते, कभी-कभी सिगरेट भी पीते, जिससे उनका गौरव बढ़ता था। यद्यपि उनके ये दुर्व्यसन बूढ़े चौधरी को नापसंद थे, पर बेचारे विवश थे; क्योंकि अदालत और कानून के मामले बितान के हाथों में थे। वह कानून का पुतला था। कानून की दफाएँ उसकी जबान पर रखी रहती थीं। गवाह गढ़ने में वह पूरा उस्ताद था।
मझले लड़के शान चौधरी कृषि-विभाग के अधिकारी थे। बु़द्धि के मंद; लेकिन शरीर से बड़े परिश्रमी। जहाँ घास न जमती हो, वहाँ केसर जमा दें। तीसरे लड़के का नाम गुमान था। वह बड़ा रसिक, साथ ही उद्दंड भी था। मुहर्रम में ढोल इतने जोरों से बजाता कि कान के पर्दे फट जाते। मछली फँसाने का बड़ा शौकीन था। बड़ा रँगीला जवान था। खँजड़ी बजा-बजाकर जब वह मीठे स्वर से ख्याल गाता, तो रंग जम जाता। उसे दंगल का ऐसा शौक था कि कोसों तक धावा मारता; पर घरवाले कुछ ऐसे शुष्क थे कि उसके इन व्यसनों से तनिक भी सहानुभूति न रखते थे।
पिता और भाइयों ने तो उसे ऊसर खेत समझ रखा था। घुड़की-धमकी, शिक्षा और उपदेश, स्नेह और विनय, किसी का उस पर कुछ भी असर न हुआ। हाँ, भावजें अभी तक उसकी ओर से निराश न हुई थीं। वे अभी तक उसे कड़वी दवाइयाँ पिलाये जाती थीं; पर आलस्य वह राज रोग है जिसका रोगी कभी नहीं सँभलता। ऐसा कोई बिरला ही दिन जाता होगा कि बाँके गुमान को भावजों के कटु वाक्य न सुनने पड़ते हों। ये विषैले शर कभी-कभी उसके कठोर हृदय में चुभ जाते; किन्तु यह घाव रात भर से अधिक न रहता। भोर होते ही थकान के साथ ही यह पीड़ा भी शांत हो जाती।
तड़का हुआ, उसने हाथ-मुँह धोया, बंशी उठायी और तालाब की ओर चल खड़ा हुआ। भावजें फूलों की वर्षा किया करतीं; बूढ़े चौधरी पैंतरे बदलते रहते और भाई लोग तीखी निगाह से देखा करते, पर अपनी धुन का पूरा बाँका गुमान उन लोगों के बीच से इस तह अकड़ता चला जाता, जैसे कोई मस्त हाथी कुत्तों के बीच से निकल जाता है।
उसे सुमार्ग पर लाने के लिए क्या-क्या उपाय नहीं किये गये। बाप समझाता-बेटा ऐसी राह चलो जिसमें तुम्हें भी पैसे मिलें और गृहस्थी का भी निर्वाह हो। भाइयों के भरोसे कब तक रहोगे ? मैं पका आम हूँ-आज टपक पड़ा या कल। फिर तुम्हारा निबाह कैसे होगा ? भाई बात भी न पूछेंगे; भावजों का रंग देख ही रहे हो। तुम्हारे भी लड़के-बाले हैं, उनका भार कैसे सँभालोगे ? खेती में जी न लगे, कहो कांस्टिबली में भरती करा दूँ ? बाँका गुमान खड़ा-खड़ा यह सब सुनता, लेकिन पत्थर का देवता था, कभी न पसीजता।
इन महाशय के अत्याचार का दंड उनकी स्त्री बेचारी को भोगना पड़ता था। मेहनत के घर के जितने काम होते, वे उसी के सिर थोपे जाते। उपले पाथती, कुएँ से पानी लाती, आटा पीसती और तिस पर भी जेठानियाँ सीधे मुँह बात न करतीं, वाक्य-बाणों से छेदा करतीं। एक बार जब वह पति से कई दिन रूठी रही, तो बाँके गुमान कुछ नर्म हुए। बाप से जा कर बोले-मुझे कोई दूकान खोलवा दीजिए।
चौधरी ने परमात्मा को धन्यवाद दिया। फूले न समाये। कई सौ रुपये लगा कर कपड़े की दूकान खुलवा दी। गुमान के भाग जगे। तनजेब के चुन्नटदार कुरते बनवाये, मलमल का साफा धानी रंग में रँगवाया। सौदा बिके या न बिके, उसे लाभ ही होना था ! दूकान खुली हुई है, दस-पाँच गाढ़े मित्र जमे हुए हैं, चरस की दम और ख्याल की तानें उड़ रही हैं-
चल झटपट री, जमुना-तट री, खड़ो नटखट री।
इस तरह तीन महीने चैन से कटे। बाँके गुमान ने खूब दिल खोल कर अरमान निकाले, यहाँ तक कि सारी लागत लाभ हो गयी। टाट के टुकडे़ के सिवा और कुछ न बचा। बूढ़े चौधरी कुएँ में गिरने चले, भावजों ने घोर आन्दोलन मचाया-अरे राम ! हमारे बच्चे और हम चीथड़ों को तरसें, गाढे़ का एक कुरता भी नसीब न हो, और इतनी बड़ी दूकान इस निखट्टू का कफन बन गयी। अब कौन मुँह दिखायेगा ? कौन मुँह ले कर घर में पैर रखेगा ? किंतु बाँके गुमान के तेवर जरा भी मैले न हुए। वही मुँह लिये वह फिर घर आया और फिर वही पुरानी चाल चलने लगा।
कानूनदाँ बितान उनके ये ठाट-बाट देख कर जल जाता। मैं सारे दिन पसीना बहाऊँ, मुझे नैनसुख का कुरता भी न मिले, यह अपाहिज सारे दिन चारपाई तोड़े और यों बन-ठन कर निकले ? ऐसे वस्त्र तो शायद मुझे अपने ब्याह में भी न मिले होंगे। मीठे शान के हृदय में भी कुछ ऐसे ही विचार उठते थे। अंत में यह जलन न सही गयी, और अग्नि भड़की, तो एक दिन कानूनदाँ बितान की पत्नी गुमान के सारे कपड़े उठा लायी और उन पर मिट्टी का तेल उँड़ेल कर आग लगा दी।
ज्वाला उठी, सारे कपड़े देखते-देखते जल कर राख हो गये। गुमान रोते थे। दोनों भाई खड़े तमाशा देखते थे। बूढ़े चौधरी ने यह दृश्य देखा, और सिर पीट लिया। यह द्वेषाग्नि है। घर को जला कर तब बुझेगी।
यह ज्वाला तो थोड़ी देर में शांत हो गयी, परंतु हृदय की आग ज्यों की त्यों दहकती रही। अंत में एक दिन बूढ़े चौधरी ने घर के सब मेम्बरों को एकत्र किया और इस गूढ़ विषय पर विचार करने लगे कि बेड़ा कैसे पार हो। बितान से बोले-बेटा, तुमने आज देखा कि बात की बात में सैकड़ों रुपयों पर पानी फिर गया। अब इस तरह निर्वाह होना असम्भव है। तुम समझदार हो, मुकदमे-मामले करते हो, कोई ऐसी राह निकालो कि घर डूबने से बचे। मैं तो यह चाहता था कि जब तक चोला रहे, सबको समेटे रहूँ, मगर भगवान् के मन में कुछ और ही है।
बितान की नीतिकुशलता अपनी चतुर सहगामिनी के सामने लुप्त हो जाती थी। वह अभी उसका उत्तर सोच ही रहे थे कि श्रीमती जी बोल उठीं-दादा जी ! अब समुझाने-बुझाने से काम न चलेगा, सहते-सहते हमारा कलेजा पक गया। बेटे की जितनी पीर बाप को होगी, भाइयों को उतनी क्या, उसकी आधी भी नहीं हो सकती। मैं तो साफ कहती हूँ-गुमान का तुम्हारी कमाई में हक है, उन्हें कंचन के कौर खिलाओ और चाँदी के हिंडोले में झुलाओ। हममें न इतना बूता है, न इतना कलेजा। हम अपनी झोंपड़ी अलग बना लेंगे। हाँ, जो कुछ हमारा हो, वह हमको मिलना चाहिए। बाँट-बखरा कर दीजिए। बला से चार आदमी हँसेंगे, अब कहाँ तक दुनिया की लाज ढोवें ?
नीतिज्ञ बितान पर इस प्रबल वक्तृता का जो असर हुआ वह उनके विकसित और प्रमुदित चेहरे से झलक रहा था। उनमें स्वयं इतना साहस न था कि इस प्रस्ताव को इतनी स्पष्टता से व्यक्त कर सकते। नीतिज्ञ महाशय गंभीरता से बोले-जायदाद मुश्तरका, मन्कूला या गैरमन्कूला, आपके हीन-हयात तकसीम की जा सकती है, इसकी नजीरें मौजूद हैं। जमींदार को साकितुलमिल्कियत करने का कोई इस्तहक़ाक़ नहीं है।
अब मंदबुद्धि शान की बारी आयी, पर बेचारा किसान, बैलों के पीछे आँखें बंद करके चलनेवाला, ऐसे गूढ़ विषय पर कैसे मुँह खोलता। दुविधा में पड़ा हुआ था। तब उसकी सत्यवक्ता धर्मपत्नी ने अपनी जेठानी का अनुसरण कर यह कठिन कार्य सम्पन्न किया। बोली-बड़ी बहन ने जो कुछ कहा, उसके सिवा और दूसरा उपाय नहीं। कोई तो कलेजा तोड़-तोड़ कर कमाये मगर पैसे-पैसे को तरसे, तन ढाँकने को वस्त्र तक न मिले, और कोई सुख की नींद सोये, हाथ बढ़ा-बढ़ा के खाय ! ऐसी अंधेर नगरी में अब हमारा निबाह न होगा।
शान चौधरी ने भी इस प्रस्ताव का मुक्तकंठ से अनुमोदन किया। अब बूढ़े चौधरी गुमान से बोले-क्यों बेटा, तुम्हें भी यही मंजूर है ? अभी कुछ नहीं बिगड़ा। यह आग अब भी बुझ सकती है। काम सबको प्यारा है, चाम किसी को नहीं। बोलो, क्या कहते हो ? कुछ काम-धंधा करोगे या अभी आँखें नहीं खुलीं ?
गुमान में धैर्य की कमी न थी। बातों को इस कान से सुन कर उस कान से उड़ा देना उसका नित्य-कर्म था। किंतु भाइयों की इस जन-मुरीदी पर उसे क्रोध आ गया। बोला-भाइयों की जो इच्छा है, वही मेरे मन में भी लगी हुई है। मैं भी इस जंजाल से भागना चाहता हूँ। मुझसे न मजूरी हुई, न होगी। जिसके भाग्य में चक्की पीसना बदा हो, वह पीसे ! मेरे भाग्य में चैन करना लिखा है, मैं क्यों अपना सिर ओखली में दूँ ? मैं तो किसी से काम करने को नहीं कहता। आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़े हुए हैं। अपनी-अपनी फिक्र कीजिए। मुझे आध सेर आटे की कमी नहीं है।
इस तरह की सभाएँ कितनी ही बार हो चुकी थीं, परंतु इस देश की सामाजिक और राजनीतिक सभाओं की तरह इसमें भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता था। दो-तीन दिन गुमान ने घर पर खाना नहीं खाया। जतनसिंह ठाकुर शौकीन आदमी थे, उन्हीं की चौपाल में पड़ा रहता। अंत में बूढे़ चौधरी गये और मना के लाये। अब फिर वह पुरानी गाड़ी अड़ती, मचलती, हिलती चलने लगी।
पांडे के घर के चूहों की तरह, चौधरी के घर में बच्चे भी सयाने थे। उनके लिए घोड़े मिट्टी के घोड़े और नावें कागज की नावें थीं। फलों के विषय में उनका ज्ञान असीम था, गूलर और जंगली बेर के सिवा कोई ऐसा फल न था, जिसे वे बीमारियों का घर न समझते हों, लेकिन गुरदीन के खोंचे में ऐसा प्रबल आकर्षण था कि उसकी ललकार सुनते ही उनका सारा ज्ञान व्यर्थ हो जाता था। साधारण बच्चों की तरह यदि सोते भी हों, तो चौंक पड़ते थे।
गुरदीन उस गाँव में साप्ताहिक फेरे लगाता था। उसके शुभागमन की प्रतीक्षा और आकांक्षा में कितने ही बालकों को बिना किंडरगार्टन की रंगीन गोलियों के ही, संख्याएँ और दिनों के नाम याद हो गये थे। गुरदीन बूढ़ा-सा, मैला-कुचैला आदमी था; किंतु आस-पास में उसका नाम उपद्रवी लड़कों के लिए हनुमान-मंत्र से कम न था। उसकी आवाज सुनते ही उसके खोंचे पर लड़कों का ऐसा धावा होता कि मक्खियों की असंख्य सेना को भी रण-स्थल से भागना पड़ता था। और जहाँ बच्चों के लिए मिठाइयाँ थीं, वहाँ गुरदीन के पास माताओं के लिए इससे भी ज्यादा मीठी बातें थीं।
माँ कितना ही मना करती रहे, बार-बार पैसा न रहने का बहाना करे पर गुरदीन चटपट मिठाइयों का दोना बच्चों के हाथ में रख ही देता और स्नेहपूर्ण भाव से कहता-बहू जी, पैसों की कोई चिन्ता न करो, फिर मिलते रहेंगे, कहीं भागे थोडे़ ही जाते हैं। नारायण ने तुमको बच्चे दिये हैं, तो मुझे भी उनकी न्योछावर मिल जाती है, उन्हीं की बदौलत मेरे बाल-बच्चे भी जीते हैं। अभी क्या, ईश्वर इनका मौर तो दिखावे, फिर देखना कैसा ठनगन करता हूँ।
गुरदीन का यह व्यवहार चाहे वाणिज्य-नियमों के प्रतिकूल ही क्यों न हो, चाहे ‘नौ नगद सही, तेरह उधार नहीं’ वाली कहावत अनुभवसिद्ध ही क्यों न हो, किंतु मिष्टभाषी गुरदीन को कभी अपने इस व्यवहार पर पछताने या उसमें संशोधन करने की जरूरत नहीं हुई।
मंगल का शुभ दिन था। बच्चे बड़ी बेचैनी से अपने दरवाजों पर खड़े गुरदीन की राह देख रहे थे। कई उत्साही लड़के पेड़ों पर चढ़ गये और कोई-कोई अनुराग से विवश हो कर गाँव के बाहर निकल गये थे। सूर्य भगवान् अपना सुनहला थाल लिए पूरब से पश्चिम जा पहुँचे थे, इतने में ही गुरदीन आता हुआ दिखायी दिया। लड़कों ने दौड़कर उसका दामन पकड़ा और आपस में खींचातानी होने लगी। कोई कहता था मेरे घर चलो; कोई अपने घर का न्योता देता था।
सबसे पहले भानु चौधरी का मकान पड़ा। गुरदीन ने अपना खोंचा उतार दिया। मिठाइयों की लूट शुरू हो गयी। बालकों और स्त्रियों का ठट्ठ लग गया। हर्ष और विषाद, संतोष और लोभ, ईर्ष्या और क्षोभ, द्वेष और जलन की नाट्यशाला सज गयी। कानूनदाँ बितान की पत्नी अपने तीनों लड़कों को लिये हुए निकली। शान की पत्नी भी अपने दोनों लड़कों के साथ उपस्थित हुई। गुरदीन ने मीठी बातें करनी शुरू कीं। पैसे झोली में रखे, धेले की मिठाई दी और धेले का आशीर्वाद। लड़के दोने लिए उछलते-कूदते घर में दाखिल हुए। अगर सारे गाँव में कोई ऐसा बालक था जिसने गुरदीन की उदारता से लाभ उठाया हो, तो वह बाँके गुमान का लड़का धान था।
यह कठिन था कि बालक धान अपने भाइयों-बहनों को हँस-हँस और उछल-उछल कर मिठाइयाँ खाते देख कर सब्र कर जाय ! उस पर तुर्रा यह कि वे उसे मिठाइयाँ दिखा-दिखा कर ललचाते और चिढ़ाते थे। बेचारा धान चीखता और अपनी माता का आँचल पकड़-पकड़ कर दरवाजे की तरफ खींचता था; पर वह अबला क्या करे। उसका हृदय बच्चे के लिए ऐंठ-ऐंठ कर रह जाता था। उसके पास एक पैसा भी नहीं था। अपने दुर्भाग्य पर, जेठानियों की निष्ठुरता पर और सबसे ज्यादा अपने पति के निखट्टूपन पर कुढ़-कुढ़ कर रह जाती थी।
अपना आदमी ऐसा निकम्मा न होता, तो क्यों दूसरों का मुँह देखना पड़ता, क्यों दूसरों के धक्के खाने पड़ते ? उसने धान को गोद में उठा लिया और प्यार से दिलासा देने लगी-बेटा, रोओ मत, अबकी गुरदीन आवेगा तो तुम्हें बहुत-सी मिठाई ले दूँगी, मैं इससे अच्छी मिठाई बाजार से मँगवा दूँगी, तुम कितनी मिठाई खाओगे ! यह कहते-कहते उसकी आँखे भर आयीं। आह ! यह मनहूस मंगल आज ही फिर आवेगा, और फिर ये ही बहाने करने पड़ेंगे ! हाय, अपना प्यारा बच्चा धेले की मिठाई को तरसे और घर में किसी का पत्थर-सा कलेजा न पसीजे ! वह बेचारी तो इन चिंताओं में डूबी हुई थी और धान किसी तरह चुप ही न होता था।
जब कुछ वश न चला, तो माँ की गोद से जमीन पर उतर कर लोटने लगा और रो-रो कर दुनिया सिर पर उठा ली। माँ ने बहुत बहलाया, फुसलाया, यहाँ तक कि उसे बच्चे के इस हठ पर क्रोध भी आ गया। मानव हृदय के रहस्य कभी समझ में नहीं आते। कहाँ तो बच्चे को प्यार से चिपटाती थी, ऐसी झल्लायी कि उसे दो-तीन थप्पड़ जोर से लगाये और घुड़क कर बोली-चुप रह अभागे ! तेरा ही मुँह मिठाई खाने का है ? अपने दिन को नहीं रोता, मिठाई खाने चला है ?
बाँका गुमान अपनी कोठरी के द्वार पर बैठा हुआ यह कौतुक बड़े ध्यान से देख रहा था। वह इस बच्चे को बहुत चाहता था। इस वक्त के थप्पड़ उसके हृदय में तेज भाले के समान लगे और चुभ गये। शायद उनका अभिप्राय भी यही था। धुनिया रुई को धुनने के लिए ताँत पर चोट लगाता है।जिस तरह पत्थर और पानी में आग छिपी रहती है, उसी तरह मनुष्य के हृदय में भी, चाहे वह कैसा ही क्रूर और कठोर क्यों न हो, उत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं।
गुमान की आँखें भर आयीं। आँसू की बूँदें बहुधा हमारे हृदय की मलिनता को उज्ज्वल कर देती हैं। गुमान सचेत हो गया। उसने जा कर बच्चे को गोद में उठा लिया और अपनी पत्नी से करुणोत्पादक स्वर में बोला-बच्चे पर इतना क्रोध क्यों करती हो ? तुम्हारा दोषी मैं हूँ, मुझको जो दंड चाहो, दो। परमात्मा ने चाहा तो कल से लोग इस घर में मेरा और मेरे बाल-बच्चों का भी आदर करेंगे। तुमने आज मुझे सदा के लिए इस तरह जगा दिया, मानो मेरे कानों में शंखनाद कर मुझे कर्म-पथ में प्रवेश का उपदेश दिया हो।
“शंखनाद” – मुंशी प्रेमचंद | कहानी की विस्तृत समीक्षा
मुंशी प्रेमचंद की कहानी “शंखनाद” एक ऐसी रचना है जो सामाजिक यथार्थ, मानवीय संवेदनाओं और चरित्र के आंतरिक परिवर्तन को बेहद प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है। यह कहानी न केवल एक व्यक्ति के आत्मसुधार की गाथा है, बल्कि पारिवारिक जटिलताओं, सामाजिक विषमताओं और मनोवैज्ञानिक गहराई को भी उजागर करती है।
1. यथार्थवादी चित्रण
प्रेमचंद ने इस कहानी में ग्रामीण समाज की सच्चाई को बड़े ही सटीक ढंग से चित्रित किया है। भानु चौधरी का परिवार एक ऐसा परिवार है जहाँ बाहरी तौर पर सम्मान है, लेकिन अंदरूनी तौर पर कलह और असंतोष व्याप्त है। गुमान की उपेक्षा, भाइयों की पत्नियों के ताने और पारिवारिक संपत्ति के बँटवारे की चाहत सभी आधुनिक समाज में भी देखने को मिलते हैं। प्रेमचंद ने इन स्थितियों को इतने सहज ढंग से प्रस्तुत किया है कि पाठक स्वयं को कहानी के पात्रों से जुड़ा हुआ महसूस करता है।
2. चरित्र-चित्रण की गहराई
कहानी का मुख्य पात्र गुमान एक ऐसा चरित्र है जो शुरू में आलसी और निठल्ला दिखाई देता है, लेकिन अंत में उसके हृदय में आए परिवर्तन से पाठक हैरान रह जाता है। उसका चरित्र परिवर्तन कोई अचानक नहीं, बल्कि उसके मन में छिपी संवेदनशीलता का परिणाम है। जब वह अपने बेटे धान को मिठाई के लिए रोते हुए देखता है और उसकी माँ उसे डाँट देती है, तो गुमान के भीतर एक जिम्मेदार पिता और पति जाग उठता है। यह परिवर्तन प्रेमचंद के कुशल लेखन का उदाहरण है, जो पात्रों के मनोभावों को गहराई से समझता है।
3. सामाजिक आलोचना
प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से समाज की कई कुरीतियों पर प्रहार किया है। जहाँ एक ओर बितान और शान जैसे पात्र अपनी पत्नियों के इशारों पर चलते हैं, वहीं दूसरी ओर गुमान की पत्नी को उसकी गरीबी और लाचारी के कारण ताने सहने पड़ते हैं। कहानी में स्त्रियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, जो परिवार के निर्णयों को प्रभावित करती हैं। प्रेमचंद ने इन पात्रों के माध्यम से यह दिखाया है कि समाज में धन और सत्ता का कितना प्रभाव है, और गरीबी के कारण व्यक्ति को कितना अपमान सहना पड़ता है।
4. भाषा और शैली
प्रेमचंद की भाषा सरल, सहज और प्रभावी है। वे हिंदी-उर्दू के मिश्रित शब्दों का प्रयोग करके ग्रामीण जीवन की वास्तविकता को उकेरते हैं। संवादों में व्यंग्य और मार्मिकता का अनूठा समन्वय है, जो पाठकों को कहानी से जोड़े रखता है। जैसे—
“तुमने आज मुझे सदा के लिए जगा दिया, मानो मेरे कानों में शंखनाद कर दिया हो!”
यह संवाद न केवल गुमान के मनोभावों को व्यक्त करता है, बल्कि कहानी के केंद्रीय भाव को भी स्पष्ट करता है।
5. नैतिक संदेश
कहानी का मुख्य संदेश यह है कि जीवन में बदलाव के लिए कभी देर नहीं होती। गुमान जैसा आलसी व्यक्ति भी जब अपनी जिम्मेदारियों को समझता है, तो वह एक नए जीवन की शुरुआत करता है। प्रेमचंद यहाँ यह भी दिखाते हैं कि मनुष्य के हृदय में छिपी संवेदनशीलता किसी भी समय जाग सकती है, बशर्ते उसे सही प्रेरणा मिले।
“शंखनाद” एक ऐसी कहानी है जो पाठकों के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। यह न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण भी प्रदान करती है। प्रेमचंद के कुशल लेखन और यथार्थवादी चित्रण के कारण यह कहानी आज भी प्रासंगिक है। गुमान का चरित्र परिवर्तन पाठकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि हर व्यक्ति के भीतर एक अच्छा इंसान छिपा होता है, बस उसे जगाने की जरूरत होती है।
इस प्रकार, “शंखनाद” न केवल प्रेमचंद की एक उत्कृष्ट रचना है, बल्कि हिंदी साहित्य की एक अमर कहानी भी है, जो पाठकों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।
“शंखनाद” – मुंशी प्रेमचंद | कहानी का पात्र-परिचय एवं चरित्र चित्रण
भानु चौधरी
- परिचय: गाँव के सम्मानित मुखिया और परिवार के मुखिया
- चरित्र विशेषताएँ:
- गाँव में प्रतिष्ठित और अधिकार सम्पन्न व्यक्ति
- न्यायप्रिय लेकिन परिवार पर पूर्ण नियंत्रण न रख पाने वाले
- तीन पुत्रों में गुमान के प्रति विशेष सहानुभूति रखते हैं
- परिवार की एकता बनाए रखने की चिंता सताती रहती है
- भूमिका: कहानी में वे परिवार के संघर्षों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करते दिखाई देते हैं
2. बितान चौधरी
- परिचय: भानु चौधरी का बड़ा पुत्र और कानूनविद्
- चरित्र विशेषताएँ:
- शिक्षित और कानून का ज्ञाता होने का घमंड
- धनलोलुप और स्वार्थी प्रवृत्ति का
- अपनी पत्नी के प्रभाव में अधिक रहने वाला
- गुमान के प्रति तिरस्कार भाव रखता है
- भूमिका: परिवार के बँटवारे का प्रमुख समर्थक और गुमान के विरोधी के रूप में
3. शान चौधरी
- परिचय: भानु चौधरी का मझला पुत्र और किसान
- चरित्र विशेषताएँ:
- मेहनती लेकिन बुद्धिमानी में कमजोर
- सीधा-सादा और भोला स्वभाव
- अपनी पत्नी के निर्देशों पर चलने वाला
- गुमान के प्रति उदासीन भाव
- भूमिका: परिवार में निष्क्रिय सदस्य के रूप में
4. गुमान चौधरी
- परिचय: भानु चौधरी का सबसे छोटा पुत्र
- चरित्र विशेषताएँ:
- आलसी और मस्तमौला प्रवृत्ति का
- संगीत और मनोरंजन में रुचि रखने वाला
- परिवार द्वारा उपेक्षित और तिरस्कृत
- संवेदनशील हृदय लेकिन उदासीन स्वभाव
- बेटे धान के प्रति गहरा स्नेह
- भूमिका: कहानी का केंद्रीय पात्र जिसमें अंत में आमूलचूल परिवर्तन आता है
5. धान
- परिचय: गुमान का छोटा बेटा
- चरित्र विशेषताएँ:
- मासूम और भोला बालक
- मिठाई के लिए ललक रखने वाला
- अपने पिता से विशेष लगाव
- भूमिका: गुमान के जीवन में परिवर्तन लाने वाली घटना का केन्द्रबिंदु
6. गुमान की पत्नी
- परिचय: गुमान की धर्मपत्नी
- चरित्र विशेषताएँ:
- परिवार में उपेक्षित और अपमानित
- कष्ट सहने की आदी
- पति के आलस्य से दुखी
- बेटे से गहरा प्रेम
- भूमिका: गुमान के परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका
7. बितान की पत्नी
- परिचय: बितान की धर्मपत्नी
- चरित्र विशेषताएँ:
- प्रभावशाली और निरंकुश
- गुमान और उसके परिवार के प्रति तिरस्कार भाव
- धन और सत्ता की इच्छुक
- भूमिका: परिवार में कलह की प्रमुख उत्प्रेरक
8. शान की पत्नी
- परिचय: शान की धर्मपत्नी
- चरित्र विशेषताएँ:
- जेठानी के प्रभाव में रहने वाली
- गुमान के परिवार के प्रति उपेक्षा भाव
- स्वार्थी प्रवृत्ति की
- भूमिका: परिवार के बँटवारे की समर्थक
9. गुरदीन
- परिचय: गाँव का मिठाई विक्रेता
- चरित्र विशेषताएँ:
- चतुर और मिष्टभाषी
- बच्चों को लुभाने में माहिर
- उधार देने की आदत
- भूमिका: कहानी की निर्णायक घटना का सूत्रधार
पात्रों का सामूहिक विश्लेषण
प्रेमचंद ने इस कहानी में पात्रों के माध्यम से ग्रामीण समाज की जटिल सामाजिक संरचना को उजागर किया है। प्रत्येक पात्र अपने विशिष्ट चरित्र लक्षणों के साथ कहानी को गति प्रदान करता है। गुमान का चरित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय है जो कहानी के अंत में एक नाटकीय परिवर्तन से गुजरता है। पात्रों के बीच का संघर्ष और संवाद कहानी को यथार्थवादी बनाते हैं।
“शंखनाद” – मुंशी प्रेमचंद | कहानी का उद्देश्य
- पारिवारिक एकता: परिवार में आपसी सहयोग और समझदारी की आवश्यकता को रेखांकित करना।
- जिम्मेदारी का बोध: गुमान का चरित्र दिखाता है कि मनुष्य किसी भी पल अपनी गलतियों को सुधार सकता है।
- सामाजिक आलोचना: धन-लोलुपता, अहंकार और परिश्रम से भागने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य।
- संवेदनशीलता: एक बच्चे का दुख भी व्यक्ति को बदलने की शक्ति रखता है।
“शंखनाद” – मुंशी प्रेमचंद | कहानी की विशेषताएँ
- यथार्थवादी चित्रण: ग्रामीण परिवार के झगड़े, स्त्रियों का प्रभुत्व और पुरुषों की अकर्मण्यता का सटीक वर्णन।
- मनोवैज्ञानिक गहराई: गुमान के मन में उठते भावों का सूक्ष्म विश्लेषण।
- नैतिक संदेश: आलस्य और गैर-जिम्मेदारी का परिणाम दिखाकर पाठकों को सचेत करना।
- भाषा-शैली: सरल हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा और प्रभावी संवाद।
“शंखनाद” – मुंशी प्रेमचंद | कहानी का उपसंहार (Conclusion)
प्रेमचंद की “शंखनाद” कहानी एक साधारण घटना के माध्यम से मनुष्य के अंतर्मन में छिपी संवेदनशीलता और परिवर्तन की शक्ति को उजागर करती है। गुमान जैसा आलसी और निठल्ला व्यक्ति भी जब अपने बेटे के आँसू देखता है, तो उसके भीतर एक जिम्मेदार पिता और गृहस्थ का जन्म होता है।
इस कहानी का संदेश स्पष्ट है:
- जीवन में बदलाव के लिए कभी देर नहीं होती।
- छोटी-सी घटना भी व्यक्ति को नई दिशा दे सकती है।
- पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागने के बजाय उन्हें स्वीकार करना ही वास्तविक पुरुषार्थ है।
प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से यह दिखाया है कि मनुष्य का हृदय कितना कोमल होता है, बस उसे सही समय पर “शंखनाद” (जागृत करने वाली प्रेरणा) की आवश्यकता होती है। गुमान का चरित्र-परिवर्तन पाठकों के मन में आशा और उत्साह का संचार करता है।
“कभी-कभी एक आँसू, एक चीख, या एक थप्पड़… जीवन बदलने के लिए काफी होता है।”
इस प्रकार, “शंखनाद” न केवल एक कहानी है, बल्कि जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण है जो पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है।
निष्कर्ष
“शंखनाद” एक ऐसी कहानी है जो पारिवारिक समस्याओं, व्यक्तिगत उदासीनता और अचानक आई जागृति को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। गुमान का चरित्र परिवर्तन पाठकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन में बदलाव के लिए कभी देर नहीं होती।
“शंखनाद” एक साधारण घटना के माध्यम से गहरी मानवीय संवेदना और सामाजिक मूल्यों को उजागर करती है। गुमान का परिवर्तन आशावादी संदेश देता है कि “जागृति कभी भी आ सकती है, बस मौके को पहचानने की आवश्यकता है।”
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इन्हें भी देखें –
- मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, रचनाएं एवं भाषा शैली
- मुंशी प्रेमचंद जी और उनकी रचनाएँ
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