21वीं सदी की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहुपक्षीय संगठन अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनमें से एक प्रमुख संगठन है शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation – SCO), जो न केवल एशिया की भू-राजनीति को आकार देने में सहायक है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी प्रभावित करता है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीन यात्रा और SCO के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भागीदारी इस संगठन की सामयिक प्रासंगिकता को और भी अधिक उजागर करती है। यह यात्रा क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग और सैन्य विश्वास निर्माण की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है।
SCO का उद्भव: ‘शंघाई फाइव’ से वैश्विक संगठन तक
SCO की उत्पत्ति 1996 में ‘शंघाई फाइव’ (Shanghai Five) नामक एक समूह से हुई थी। इसका गठन चीन, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, रूस और ताजिकिस्तान द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य सीमाओं के निर्धारण, सीमा पर सैन्य बलों में कटौती, और आपसी विश्वास को बढ़ावा देना था। शीत युद्ध के पश्चात नई बनती विश्व व्यवस्था में इन देशों के लिए यह आवश्यक था कि वे आपसी समझ-बूझ से सुरक्षा चुनौतियों का समाधान खोजें।
वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के इस समूह में शामिल होने के बाद इसका नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) रख दिया गया। यह संगठन धीरे-धीरे मध्य एशिया के सबसे प्रभावशाली बहुपक्षीय मंच के रूप में उभरने लगा।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का उद्देश्य
SCO का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया और उससे सटे क्षेत्रों में स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देना है। इसका प्रमुख ध्यान निम्नलिखित क्षेत्रों में केंद्रित है:
- आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद पर रोक लगाना।
- आर्थिक, सांस्कृतिक और सैन्य सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- सीमा पार अपराधों, ड्रग तस्करी और साइबर अपराध पर नियंत्रण।
- सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और अच्छे संबंधों को मजबूत करना।
इन उद्देश्यों के माध्यम से शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक ऐसा मंच बन चुका है जो सुरक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति सभी क्षेत्रों में बहुपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देश
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) वर्तमान में एक विस्तारित संगठन है, जिसमें 9 स्थायी सदस्य देश हैं:
- चीन
- रूस
- भारत (वर्ष 2017 में सदस्यता प्राप्त)
- पाकिस्तान (भारत के साथ 2017 में शामिल हुआ)
- ईरान (हाल ही में पूर्ण सदस्य बना)
- बेलारूस (2024-25 के बीच पूर्ण सदस्य बनने की प्रक्रिया पूर्ण की गई)
- कज़ाखस्तान
- किर्गिज़स्तान
- ताजिकिस्तान
- उज़्बेकिस्तान
इसके अलावा, दो पर्यवेक्षक देश हैं:
- अफगानिस्तान
- मंगोलिया
पर्यवेक्षक देशों को संगठन की बैठकों में भाग लेने और अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार होता है, लेकिन वे निर्णय प्रक्रिया में भाग नहीं लेते।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की संरचना और कार्यप्रणाली
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की निर्णय प्रक्रिया बहुस्तरीय है और इसमें अनेक संस्थागत ढांचे कार्यरत हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
1. राज्य प्रमुखों की परिषद (Council of Heads of States – CHS):
यह संगठन की सर्वोच्च नीति निर्धारण संस्था है। इसमें सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं। इसकी बैठक वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है।
2. सरकार प्रमुखों की परिषद (Council of Heads of Governments – CHG):
यह संस्था बजटीय, व्यापारिक और आर्थिक मामलों से जुड़ी होती है। इसकी बैठक भी सालाना होती है।
3. विदेश मंत्रियों की परिषद:
संगठन के राजनीतिक समन्वय और विदेश नीति के मुद्दों को सुलझाने के लिए यह परिषद कार्य करती है।
4. स्थायी सचिवालय (Secretariat):
यह बीजिंग में स्थित है और SCO के सभी कार्यक्रमों के संचालन तथा प्रशासनिक गतिविधियों की देखरेख करता है।
5. क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure – RATS):
यह ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में स्थित है। RATS का कार्य आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान करना, संयुक्त अभ्यास आयोजित करना, और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है।
भारत और SCO: एक महत्वपूर्ण सदस्य
भारत को वर्ष 2017 में SCO की पूर्ण सदस्यता प्राप्त हुई। यह भारत के लिए रणनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। भारत के लिए SCO एक ऐसा मंच है जहाँ वह:
- मध्य एशिया के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को पुनर्जीवित कर सकता है।
- ऊर्जा सहयोग, विशेषकर तेल और गैस के क्षेत्र में लाभ उठा सकता है।
- आतंकवाद रोधी रणनीतियों में सक्रिय भागीदारी निभा सकता है।
- सड़क और रेल संपर्क परियोजनाओं, जैसे कि इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) को बढ़ावा दे सकता है।
भारत SCO में वसुधैव कुटुम्बकम्, अनेकता में एकता और सार्वभौमिक शांति जैसे मूल्यों को प्रस्तुत करता है।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और क्षेत्रीय सुरक्षा
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना का प्रमुख कारण था — क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों का मिलकर सामना करना। मध्य एशिया लंबे समय से आतंकवाद, चरमपंथ, और ड्रग तस्करी जैसे खतरे झेलता रहा है। SCO इन खतरों से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाता है:
- साझा सैन्य अभ्यास: SCO नियमित रूप से बहुपक्षीय सैन्य अभ्यास करता है, जैसे कि ‘पीस मिशन’, जिसमें आतंकवाद-रोधी परिदृश्य को आधार बनाकर ऑपरेशंस का अभ्यास किया जाता है।
- RATS के माध्यम से सूचना साझा करना: आतंकवादियों की सूची, उनके नेटवर्क, फंडिंग स्रोत और रणनीतियों पर डेटा साझा किया जाता है।
- सीमा सुरक्षा के लिए सहयोग: सदस्य देश सीमा सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करने हेतु आपसी समर्थन करते हैं।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और आर्थिक सहयोग
हालांकि शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का प्राथमिक उद्देश्य सुरक्षा रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसका ध्यान आर्थिक सहयोग पर भी केंद्रित हुआ है:
- वाणिज्यिक गलियारों का विकास जैसे कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)।
- ऊर्जा सहयोग, विशेषकर कज़ाखस्तान और रूस से तेल और गैस की आपूर्ति।
- डिजिटल कनेक्टिविटी, बैंकिंग नेटवर्क, और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में तालमेल।
- संयुक्त व्यापारिक मंच और बिजनेस काउंसिल के माध्यम से निवेश को बढ़ावा।
भारत ने SCO मंच पर ‘एकीकृत, संतुलित और समावेशी विकास’ की बात कही है, जिससे सदस्य देश परस्पर लाभ उठा सकें।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की चुनौतियाँ
हालांकि शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक सशक्त संगठन बनकर उभरा है, फिर भी इसके सामने कुछ बड़ी चुनौतियाँ हैं:
- भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव: दोनों देशों के आपसी मतभेद संगठन की एकता में बाधा डाल सकते हैं।
- अर्थव्यवस्थाओं का असंतुलन: चीन और रूस के मुकाबले अन्य सदस्य देशों की आर्थिक स्थिति कमजोर है।
- अलग-अलग विदेश नीति प्राथमिकताएँ: सदस्य देशों की भिन्न-भिन्न रणनीतियाँ और अंतरराष्ट्रीय नीतियाँ सहयोग में बाधा डाल सकती हैं।
- संगठन की स्पष्ट नीति का अभाव: अभी तक SCO ने अपने आर्थिक मॉडल या सुरक्षा रणनीतियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया है।
भविष्य की संभावनाएँ
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का भविष्य काफी हद तक इस पर निर्भर करता है कि यह संगठन अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कितनी एकजुटता और दृढ़ता दिखा सकता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की सक्रियता इसे एक संतुलित मंच बना सकती है।
- ग्रीन एनर्जी, AI और साइबर सुरक्षा जैसे उभरते क्षेत्रों में सहयोग की संभावना।
- भविष्य में अन्य देशों की सदस्यता, जैसे कि तुर्की, अज़रबैजान, और सीरिया की संभावित भागीदारी।
- SCO विश्वविद्यालय या युवा विनिमय कार्यक्रम जैसे सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रयास।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) आज के विश्व में एक ऐसा मंच बन चुका है, जो एशिया की सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत की इसमें भागीदारी न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश की वैश्विक कूटनीतिक भूमिका को भी मज़बूत करती है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीन यात्रा और SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत की भागीदारी यह दर्शाती है कि भारत क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर सक्रिय, सजग और उत्तरदायी शक्ति के रूप में उभरना चाहता है। SCO की सफलता इसी में है कि वह अपने विविध सदस्य देशों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए सुरक्षा, आर्थिक विकास और आपसी सहयोग के पथ पर अग्रसर हो।
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