हिंदी साहित्य का संसार विविध विधाओं से भरा हुआ है — कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज आदि। इन सबके बीच संस्मरण एक ऐसी विधा है जो लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों, स्मृतियों और भावनाओं का दस्तावेज होती है। संस्मरण न केवल लेखक की निजी स्मृति को स्वर देता है, बल्कि उस समय, समाज और परिवेश का भी चित्र उपस्थित करता है जिसमें लेखक ने जीवन जिया है।
संस्मरण साहित्य पाठक को लेखक की दृष्टि से अतीत के जीवंत चित्र देखने का अवसर देता है, मानो समय पीछे लौट आया हो और घटनाएँ आंखों के सामने घट रही हों।
संस्मरण की परिभाषा और अर्थ
संस्मरण शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के स्मृ धातु से हुई है, जिसमें सम् उपसर्ग और ल्युट् (अन) प्रत्यय जुड़कर ‘संस्मरण’ बना है।
व्युत्पत्तिपरक अर्थ है — सम्यक् स्मरण यानी पूर्ण एवं गहन स्मरण।
सरल शब्दों में —
किसी घटना, व्यक्ति, दृश्य या अनुभव का आत्मीय और सजीव स्मरण, जिसमें लेखक अपने भाव, विचार और अनुभूतियों को शब्दों में व्यक्त करता है, संस्मरण कहलाता है।
अंग्रेज़ी में Memoir शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ है – स्मरण, चरित्र-वृत्त, घटनावृत्त, अनुसंधान लेख आदि।
महादेवी वर्मा के शब्दों में:
“संस्मरण लेखक की स्मृति से सम्बन्ध रखता है और स्मृति में वही अंकित रह जाता है जिसने उसके भाव या बोध को कभी गहराई में उद्वेलित किया हो।”
हिंदी का प्रथम संस्मरण : विवाद और स्पष्ट निष्कर्ष
हिंदी साहित्य में प्रथम संस्मरण को लेकर साहित्येतिहास में कुछ मतभेद देखने को मिलते हैं। विभिन्न स्रोतों और विद्वानों के मतों के आधार पर इसके आरंभिक स्वरूप से जुड़े दो प्रमुख नाम सामने आते हैं—बालमुकुंद गुप्त और पद्मसिंह शर्मा।
1. बालमुकुंद गुप्त और प्रतापनारायण मिश्र पर संस्मरण (1907)
सन् 1907 में प्रसिद्ध पत्रकार, साहित्यकार और राष्ट्रीय चेतना के प्रवक्ता बालमुकुंद गुप्त ने प्रतापनारायण मिश्र पर एक संस्मरण लिखा। यह रचना प्रतापनारायण मिश्र के जीवन, व्यक्तित्व, साहित्यिक योगदान और लेखक के साथ उनके संबंधों का आत्मीय एवं सजीव चित्र प्रस्तुत करती है। साहित्येतिहासकारों का एक बड़ा वर्ग इस रचना को हिंदी का पहला संस्मरण मानता है।
2. ‘हरिऔध जी का संस्मरण’ — पहली पुस्तकाकार संस्मरण कृति
प्रतापनारायण मिश्र पर संस्मरण लिखने के बाद, 1907 ई. में ही बालमुकुंद गुप्त ने सुप्रसिद्ध कवि हरिऔध (श्यामसुंदर दास ‘हरिऔध’) को केंद्र में रखकर पंद्रह संस्मरणों की एक श्रृंखला रची। इन संस्मरणों को बाद में ‘हरिऔध जी का संस्मरण’ शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया। इसमें हरिऔध के जीवन, साहित्यिक योगदान और मानवीय पक्ष का गहन और आत्मीय चित्रण मिलता है। यह पुस्तक हिंदी संस्मरण साहित्य की प्रथम महत्वपूर्ण और सुव्यवस्थित कृति मानी जाती है।
3. पद्मसिंह शर्मा और ‘पद्मपराग’ (1929)
संस्मरण को गद्य की स्वतंत्र और विशिष्ट विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने में पद्मसिंह शर्मा (1876–1932) का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनकी कृतियाँ प्रबंध मंजरी और पद्मपराग (1929) इस विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली रचनाएँ हैं। कुछ साहित्येतिहासकार ‘पद्मपराग’ को हिंदी का प्रथम संस्मरण मानते हैं, किंतु यह मत सर्वसम्मत नहीं है, क्योंकि इससे पहले बालमुकुंद गुप्त के संस्मरण प्रकाशित हो चुके थे।
‘पद्म-पराग’ में संस्मरण और रेखाचित्र — दोनों की विशेषताओं का समावेश है। इसमें चित्रात्मकता, संक्षिप्तता और भावनात्मक निकटता के साथ-साथ संस्मरण की आत्मीयता और यथार्थपरकता भी दिखाई देती है, जिसके कारण ‘पद्म-पराग’ को संस्मरणात्मक-रेखाचित्र भी कहा जाता है।
निष्कर्ष:
प्रामाणिक साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि—
- हिंदी का पहला (प्रथम) संस्मरण : बालमुकुंद गुप्त द्वारा प्रतापनारायण मिश्र पर लिखा गया संस्मरण (1907)।
- पहली पुस्तकाकार संस्मरण कृति : बालमुकुंद गुप्त की ‘हरिऔध जी का संस्मरण’, जिसमें पंद्रह संस्मरण संकलित हैं।
- पद्मसिंह शर्मा की “पद्मपराग” (1929) को भी संस्मरण साहित्य के प्रारंभिक महत्वपूर्ण प्रयासों में गिना जाता है।
इस प्रकार, हिंदी संस्मरण साहित्य की नींव बालमुकुंद गुप्त ने रखी और आगे इसके साहित्यिक विकास में पद्मसिंह शर्मा जैसे लेखकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। संस्मरण विधा समय-समय पर जीवनी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज और निबंध के अंतर्गत भी परिगणित की गई है, लेकिन इसकी अपनी स्वतंत्र पहचान बनी।
संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर
संस्मरण और रेखाचित्र में कई समानताएँ हैं, परंतु सूक्ष्म अंतर भी है।
- संस्मरण अधिकतर विवरणात्मक होते हैं — घटनाओं और अनुभवों का क्रमबद्ध वर्णन।
- रेखाचित्र अधिक रेखात्मक होते हैं — किसी व्यक्ति या घटना के मुख्य गुणों का रेखांकन, संक्षिप्त और सघन रूप में।
पद्मसिंह शर्मा का कहना है:
“प्रायः प्रत्येक संस्मरण लेखक रेखाचित्र लेखक भी है और प्रत्येक रेखाचित्र लेखक संस्मरण लेखक भी।”
संस्मरण साहित्य की विशेषताएँ
हिंदी संस्मरण साहित्य को समझने के लिए इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- व्यक्तिगत दृष्टि – घटनाएँ लेखक के निजी अनुभवों से छनकर आती हैं।
- भावनात्मक गहराई – केवल तथ्य नहीं, बल्कि भावनाओं का भी समावेश होता है।
- सजीव चित्रण – व्यक्ति, स्थान, समय और परिस्थितियों का ऐसा चित्रण कि पाठक को प्रत्यक्ष अनुभव हो।
- साहित्यिकता – भाषा में साहित्यिक सौंदर्य, शैली में प्रवाह और आत्मीयता।
- इतिहास और समाज का दस्तावेज़ – संस्मरण केवल निजी नहीं होते, वे अपने समय के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास के भी साक्ष्य होते हैं।
हिंदी संस्मरण साहित्य का विकास क्रम
हिंदी में संस्मरण लेखन का सुव्यवस्थित आरंभ 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में देखने को मिलता है। यद्यपि इसके पूर्व भी पत्रों, आत्मकथात्मक टिप्पणियों और जीवनी-सदृश लेखों में संस्मरण के बीज मौजूद थे, किंतु स्वतंत्र विधा के रूप में इसका स्वरूप इसी काल में स्पष्ट हुआ। प्रारंभिक दौर में संस्मरण मुख्यतः लेखकों, कवियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत अनुभवों, साहित्यिक जीवन की झलकियों तथा अपने समय के महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्वों से हुए साक्षात्कारों पर आधारित होते थे।
स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में संस्मरण लेखन को नई ऊर्जा मिली। उस समय के लेखक और स्वतंत्रता सेनानी अपने संघर्ष, जेल-यात्रा, आंदोलन के नेताओं से भेंट और देश के बदलते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को सजीव रूप में प्रस्तुत करने लगे। इन संस्मरणों में केवल व्यक्तिगत अनुभव ही नहीं, बल्कि उस दौर की सामूहिक चेतना और राष्ट्रीय भावनाओं का भी सशक्त चित्रण हुआ।
इसके समानांतर, साहित्यिक आंदोलनों और सांस्कृतिक पुनर्जागरण ने भी इस विधा को समृद्ध किया। हिंदी साहित्य सम्मेलन, छायावाद, प्रगतिवाद और अन्य साहित्यिक धाराओं से जुड़े रचनाकारों ने अपने संस्मरणों में समकालीन साहित्यिक जगत, रचनात्मक बहसों, मित्रता और मतभेदों, तथा साहित्यिक यात्राओं का रोचक और अंतरंग विवरण प्रस्तुत किया।
20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्मरण लेखन का दायरा और व्यापक हो गया। इसमें केवल साहित्यकार ही नहीं, बल्कि राजनीति, पत्रकारिता, शिक्षा, रंगमंच, संगीत और सिनेमा से जुड़े लोग भी सक्रिय हुए। उनकी स्मृतियों में उस समय के सामाजिक जीवन, सांस्कृतिक गतिविधियों, लोकाचार, रीति-रिवाज और बदलते मूल्य-बोध का प्रतिबिंब दिखाई देता है।
इस प्रकार हिंदी संस्मरण साहित्य न केवल व्यक्तिगत स्मृतियों का संग्रह है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसमें लेखक का व्यक्तित्व और युग का सामूहिक स्वर दोनों समान रूप से अभिव्यक्त होते हैं।
प्रमुख हिंदी संस्मरण और उनके संस्मरणकार (लेखक)
नीचे कालक्रमानुसार हिंदी के प्रमुख संस्मरण और संस्मरणकार का उल्लेख है:
क्रम | संस्मरण | संस्मरणकार |
---|---|---|
1 | हरिऔध जी का संस्मरण (1907) | बालमुकुंद गुप्त |
2 | अनुमोदन का अंत (1905), सभा की सभ्यता (1907) | महावीर प्रसाद द्विवेदी |
3 | शिकार (1936), बोलती प्रतिमा (1937), भाई जगन्नाथ, प्राणों का सौदा (1939), जंगल के जीव (1949) | श्रीराम शर्मा |
4 | लाल तारा (1938), माटी की मूरतें (1946), गेहूँ और गुलाब (1950), जंजीर और दीवारें (1955), मील के पत्थर (1957) | रामवृक्ष बेनीपुरी |
5 | अतीत के चलचित्र (1941), स्मृति की रेखाएँ (1947), पथ के साथी (1956), क्षणदा (1957), स्मारिका (1971) | महादेवी वर्मा |
6 | तीस दिन : मालवीय जी के साथ (1942) | रामनरेश त्रिपाठी |
7 | हमारे आराध्य (1952) | बनारसीदास चतुर्वेदी |
8 | जिंदगी मुस्कराई (1953), दीप जले शंख बजे (1959), माटी हो गई सोना (1959) | कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ |
9 | ये और वे (1954) | जैनेंद्र |
10 | बचपन की स्मृतियाँ (1955), असहयोग के मेरे साथी (1956), जिनका मैं कृतज्ञ (1957) | राहुल सांकृत्यायन |
11 | मंटो : मेरा दुश्मन (1956), ज्यादा अपनी कम परायी (1959) | अश्क |
12 | वट-पीपल (1961) | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ |
13 | समय के पाँव (1962) | माखन लाल चतुर्वेदी |
14 | नए-पुराने झरोखे (1962) | हरिवंश राय ‘बच्चन’ |
15 | दस तस्वीरें (1963), जिन्होंने जीना जाना (1971) | जगदीश चंद्र माथुर |
16 | वे दिन वे लोग (1965) | शिवपूजन सहाय |
17 | कुछ शब्द : कुछ रेखाएँ (1965) | विष्णु प्रभाकर |
18 | चेतना के बिंब (1967) | नगेंद्र |
19 | जिनके साथ जिया (1973) | अमृत लाल नागर |
20 | स्मृतिलेखा (1982) | अज्ञेय |
प्रमुख संस्मरणकारों की शैलीगत विशेषताएँ
अब हम कुछ प्रमुख संस्मरणकारों के लेखन की विशेषताओं को संक्षेप में समझें:
(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी
- हिंदी गद्य को सुसंस्कृत रूप देने में योगदान।
- संस्मरणों में गंभीरता और सामाजिक सुधार की दृष्टि।
(ख) बालमुकुंद गुप्त
- व्यंग्य और चुटीलेपन के साथ आत्मीयता।
- “हरिऔध जी का संस्मरण” में साहित्यकार का मानवीय पक्ष उजागर।
(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी
- ग्रामीण परिवेश, स्वतंत्रता आंदोलन और मानवीय संघर्ष का जीवंत चित्रण।
- भाषा सरल, किंतु संवेदनाओं से परिपूर्ण।
(घ) महादेवी वर्मा
- भावुकता, कोमलता और गहन आत्मविश्लेषण।
- “अतीत के चलचित्र” में आत्मकथात्मक गहराई।
(ङ) राहुल सांकृत्यायन
- यात्राओं और आंदोलनों से जुड़े अनुभवों का समृद्ध संग्रह।
- तथ्यात्मकता के साथ साहित्यिक रोचकता।
संस्मरण साहित्य का महत्व
- साहित्यिक मूल्य – यह लेखक की स्मृति और अनुभव को कलात्मक रूप में संरक्षित करता है।
- ऐतिहासिक महत्व – संस्मरण में समय का सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य दर्ज होता है।
- व्यक्तित्व अध्ययन – महान व्यक्तियों के संस्मरण उनके व्यक्तित्व के अज्ञात पहलुओं को उजागर करते हैं।
- सांस्कृतिक दस्तावेज़ – इनसे संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज का ज्ञान होता है।
वर्तमान संदर्भ में संस्मरण
आज के डिजिटल युग में ब्लॉग, सोशल मीडिया और ऑनलाइन पत्रिकाओं ने संस्मरण लेखन को नया मंच दिया है। अब संस्मरण केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं, बल्कि ऑडियो-वीडियो रूप में भी सामने आ रहे हैं। व्यक्तिगत डायरी और आत्मकथात्मक निबंध भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
प्रमुख हिंदी संस्मरणकार और उनकी रचनाएँ (संस्मरण)
हिंदी साहित्य में संस्मरण लेखन की परंपरा में अनेक रचनाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्तियों, घटनाओं और युग-परिस्थितियों का सजीव चित्रण किया है। नीचे हिन्दी के प्रमुख संस्मरणकार और उनकी चर्चित संस्मरण कृतियों (रचनाओं) का कालानुक्रमिक विवरण प्रस्तुत है—
क्रम | संस्मरणकार (लेखक) | संस्मरण (कृतियाँ) |
---|---|---|
1 | महावीरप्रसाद द्विवेदी | अनुमोदन का अन्त |
अतीत स्मृति (1905) | ||
सभा की सभ्यता (1907) | ||
2 | वृन्दालाल वर्मा | कुछ संस्मरण (1921) |
3 | पद्मसिंह शर्मा | पद्मपराग (1929) |
प्रबंध मंजरी | ||
4 | इलाचन्द्र जोशी | मेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियां (1921) |
गोर्की के संस्मरण (1942) | ||
5 | मन्मथनाथ गुप्त | क्रान्तियुग के संस्मरण (1937) |
6 | श्रीराम शर्मा | बोलती प्रतिमा (1937) |
7 | ज्योतिलाल भार्गव | साहित्यिकों के संस्मरण (हंस के प्रेमचन्द स्मृति अंक 1937, सं. पराड़कर) |
8 | राजा राधिकारमण प्रसाद सिंहसंस्मरण पुस्तकें | टूटा तारा (स्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा, 1940) |
9 | रामनरेश त्रिपाठी | तीस दिन मालवीय जी के साथ (1942 |
10 | शांतिप्रसाद द्विवेदी | पंच चिह्न (1946) |
स्मृतियां और कृतियां (1966) | ||
11 | शिवपूजन सहाय | वे दिन वे लोग (1946) |
12 | प्रकाशचन्द्र गुप्त | पुरानी स्मृतियां और नए स्केच (1947) |
मिट्टी के पुतले (1947) | ||
13 | महादेवी वर्मा | स्मृति की रेखाएं (1947) |
स्मारिका (1971) | ||
14 | श्रीराम शर्मा | सन् बयालीस के संस्मरण (1948) |
वे जीते कैसे हैं (1957) | ||
15 | उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ | ज़्यादा अपनी, कम पराई (1949) |
16 | बनारसीदास चतुर्वेदी | हमारे आराध्य |
संस्मरण (1952) | ||
17 | जैनेन्द्र | गांधी कुछ स्मृतियां (1954) |
ये और वे (1954) | ||
18 | रामवृक्ष बेनीपुरी | मुझे याद है (1955) |
19 | संस्मरण पुस्तकें | मील के पत्थर (1956) |
जंजीरें और दीवारें (1957) | ||
कुछ मैं कुछ वे (1959) | ||
20 | राहुल सांकृत्यायन | बचपन की स्मृतियां (1955) |
जिनका मैं कृतज्ञ | ||
मेरे असहयोग के साथी (1956) | ||
21 | उपेन्द्रनाथ अश्क | मंटो मेरा दुश्मन (1956) |
ज्यादा अपनी कम परायी (1959) | ||
22 | सेठ गोविन्ददास | स्मृति-कण (1959) |
23 | विनोद शंकर व्यास | प्रसाद और उनके समकालीन (1960) |
24 | अमृता प्रीतम | अतीत की परछाइयां (1962) |
25 | सम्पूर्णानन्द | कुछ स्मृतियां और स्फुट विचार (1962) |
26 | विष्णु प्रभाकर | जाने-अनजाने (1962) |
कुछ शब्द : कुछ रेखाएं (1965) | ||
यादों की तीर्थयात्रा (1981) | ||
मेरे अग्रज : मेरे मीत (1983) | ||
सृजन के सेतु (1990) | ||
27 | हरिवंशराय ‘बच्चन’ | नए-पुराने झरोखे (1962) |
28 | माखनलाल चतुर्वेदी | समय के पांव (1962) |
29 | जगदीशचन्द्र माथुर | दस तस्वीरें 1963) |
30 | सुमित्रानन्दन पन्त | साठ वर्ष : एक रेखांकन 1963) |
31 | रायकृष्ण दास | जवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता (1965) |
32 | हरिभाऊ उपाध्याय | मेरे हृदय देव (1965) |
33 | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ | लोकदेव नेहरू (1965) |
संस्मरण और श्रद्धांजलियां (1969) | ||
34 | शिवपूजन सहाय | वे दिन वे लोग (1965) |
35 | सेठ गोविन्ददास | चेहरे जाने-पहचाने (1966) |
36 | नगेन्द्र | चेतना के बिम्ब (1967) |
37 | काका साहेब कालेलकर | गांधी संस्मरण और विचार (1968) |
38 | हरगुलाल | घेरे के भीतर और बाहर (1968) |
39 | अजित कुमार एवं ओंकारनाथ श्रीवास्तव | बच्चन निकट से (1968) |
40 | जानकीवल्लभ शास्त्री | स्मृति के वातायन (1968) |
41 | पद्मिनी मेनन | चांद (1969) |
42 | जगदीशचन्द्र माथुर | जिन्होंने जीना जाना (1971) |
43 | पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी | अन्तिम अध्याय (1972) |
44 | अमृतलाल नागर | जिनके साथ जिया (1973) |
45 | लक्ष्मीशंकर व्यास | स्मृति की त्रिवेणिका (1974) |
46 | कमलेश्वर | मेरा हमदम मेरा दोस्त (1975) |
47 | क्षेमचन्द्र सुमन | रेखाएं और संस्मरण (1975) |
48 | अनीता राकेश | चन्द सतरें और (1975) |
संतरे और संतरे | ||
अंतिम संतरे | ||
अतिरिक्त सतरें | ||
49 | रामनाथ सुमन | मैंने स्मृति के दीप जलाए (1976) |
50 | भगत सिंह | मेरे क्रान्तिकारी साथी (1977) |
51 | कृष्णा सोबती | हम हशमत- 1 (1977) |
हम हशमत- 2 (1998) | ||
शब्दों के आलोक में | ||
सोबती एक सोहबत | ||
हम हशमत- 3 (2012) | ||
हम हशमत- 4 | ||
मार्फ़त दिल्ली | ||
52 | शंकर दयाल सिंह | कुछ ख़्वाबों में कुछ ख़यालों में (1978) |
53 | विष्णुकान्त शास्त्री | संस्मरण को पाथेय बनने दो (1978) |
54 | भगवतीचरण वर्मा | अतीत के गर्त से (1979) |
55 | रांगेय राघव | पुनः (1979) |
56 | मैथिलीशरण गुप्त | श्रद्धांजलि संस्मरण (1979) |
57 | भारतभूषण अग्रवाल | लीक-अलीक (1980) |
58 | राजेन्द्र यादव | औरों के बहाने (1981) |
वे देवता नहीं हैं (2000) | ||
59 | अमृतलाल नागर | जिनके साथ जिया (1981) |
60 | प्रतिभा अग्रवाल | सृजन का सुख-दुख (1981) |
61 | रामकुमार वर्मा | संस्मरणों के सुमन (1982) |
62 | अज्ञेय | स्मृति-लेखा (1982) |
63 | भीमसेन त्यागी | आदमी से आदमी तक (1982) |
64 | रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ | युगपुरुष (1983) |
65 | फणीश्वरनाथ रेणु | बन तुलसी की गन्ध (1984) |
समय की शिला पर | ||
66 | पद्मा सचदेव | दीवान ख़ाना (1984) |
मितवा घर (1995) | ||
अमराई (2000) | ||
67 | भगवतीशरण उपाध्याय | रस गगन गुफा में (1986) |
68 | कमल किशोर गोयनका | हज़ारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण (1988) |
69 | बिन्दु अग्रवाल | भारत भूषण अग्रवाल : कुछ यादें, कुछ चर्चाएं (1989) |
70 | अमृत राय | जिनकी याद हमेशा रहेगी (1992) |
71 | अजित कुमार | निकट मन में (1992) |
कविवर बच्चन के साथ (2009) | ||
अंधेरे में जुगनू (2010) | ||
गुरुवर बच्चन से दूर | ||
72 | काशीनाथ सिंह | याद हो कि न याद हो (1992) |
काशी का अस्सी (2002) | ||
आछे दिन पाछे गए (2004) | ||
घर का जोगी जोगड़ा (2006) | ||
73 | विष्णुकान्त शास्त्री | सुधियां उस चन्दन के वन की (1992) |
74 | गिरिराज किशोर | सप्तवर्णी (1994) |
75 | दूधनाथ सिंह | लौट आ ओ धार (1995) |
एक शमशेर भी है | ||
76 | रामदरश मिश्र | स्मृतियों के छंद (1995) |
अपने-अपने रास्ते (2001) | ||
एक दुनिया अपनी (2007) | ||
77 | विष्णुचन्द्र शर्मा | अभिन्न (1996) |
78 | रवीन्द्र कालिया | सृजन के सहयात्री (1996) |
79 | बिन्दु अग्रवाल | यादें और बातें (1998) |
80 | मोहनकिशोर दीवान | नेपथ्य नायक लक्ष्मीचन्द्र जैन (2000) |
81 | रमानाथ अवस्थी | याद आते हैं (2000) |
82 | देवेन्द्र सत्यार्थी | यादों के काफिले (2000) |
83 | पुरुषोत्तमदास मोदी | अंतरंग संस्मरणों में प्रसाद (2001) |
84 | विश्वनाथप्रसाद तिवारी | एक नाव के यात्री (2001) |
85 | नरेश मेहता | प्रदक्षिणा अपने समय की (2001) |
86 | कृष्णविहारी मिश्र | नेह के नाते अनेक (2002) |
87 | मनोहर श्याम जोशी | लखनऊ मेरा लखनऊ (2002) |
रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक संस्मरण (2003) | ||
बातों बातों में | ||
88 | रामकमल राय | स्मृतियों का शुक्ल पक्ष (2002) |
89 | विद्यानिवास मिश्र | चिडि़या रैन बसेरा (2002) |
90 | कान्तिकुमार जैन | लौट कर आना नहीं होगा (2002) |
तुम्हारा परसाई (2004) | ||
जो कहूंगा सच कहूंगा (2006) | ||
अब तो बात फैल गई (2007) | ||
बैकुंठ में बचपन (2010) | ||
91 | विवेकी राय | आंगन के वंदनवार (2003) |
मेरे सुहृद : मेरे श्रद्धेय (2005) | ||
92 | विष्णुकान्त शास्त्री | पर साथ-साथ चली रही याद (2004) |
93 | विश्वनाथ त्रिपाठी | नंगा तलाई का गांव (2004) |
व्योमकेश दरवेश | ||
गंगा स्नान करने चलोगे (2012) | ||
गुरुजी की खेती-बारी | ||
94 | लक्ष्मीधर मालवीय | लाई हयात आए (2004) |
95 | केशवचन्द्र वर्मा | सुमिरन को बहानो (2005) |
ताकि सनद रहे | ||
निज नैनहिं देखी | ||
परिमल: स्मृतियाँ और दस्तावेज | ||
96 | मधुरेश | ये जो आईना है (2006) |
आलोचक का आकाश (2012) | ||
97 | ममता कालिया | कितने शहरों में कितनी बार (2009) |
कल परसों बरसों (2011) | ||
98 | अमरकान्त | कुछ यादें : कुछ बातें (2009) |
99 | निर्मला जैन | दिल्ली शहर दर शहर (2009) |
100 | चन्द्रकान्ता | मेरे भोजपत्र (2009) |
हाशिए की इबारतें (2009) | ||
101 | वीरेन्द्र सक्सेना | अ से लेकर ह तक, यानी अज्ञेय से लेकर हृदयेश तक (2010) |
102 | सुमन केशरी (सं.) | जे.एन.यू. में नामवर सिंह (2010) |
103 | गोविन्द प्रसाद | अलाप और अंतरता |
104 | नीलाभ अश्क | ज्ञानरंजन के बहाने |
105 | नन्द चतुर्वेदी | अतीत राग (2011) |
106 | शेखर जोशी | स्मृति में रहेंगे वे (2011) |
107 | ओम थानवी | अपने-अपने अज्ञेय (दो खंड, 2012) |
108 | बलराम | माफ़ करना यार (2012) |
109 | प्रकाश मनु | यादों का सफ़र (2012) |
110 | नरेन्द्र कोहली | स्मृतियों के गलियारे से (2012) |
111 | देवेंद्र मेवाड़ी | मेरी यादों का पहाड़ (2013) |
112 | मार्कंडेय | पत्थर और परछाइयाँ |
चक्रधर की साहित्य धारा | ||
113 | मैत्रीयी पुष्पा | वह सफ़र था की मुकाम था |
114 | मोहनलाल भास्कर | मैं पाकिस्तान में जासूस था |
115 | हरिशंकर परसाई | जाने पहचाने लोग |
हम एक उम्र से वाकिफ हैं | ||
116 | शिवप्रसाद सिंह | खलिस मौज में |
117 | शिवानी | एक थी रामरती |
काल के हस्ताक्षर | ||
सुनहु तात यह अकथ कहानी | ||
वातायन | ||
118 | गुलजार | पिछले पन्ने |
119 | माखनलाल चतुर्वेदी | समय के पाँव |
120 | पुष्पा भारती | प्रेम पियाला जिन पिया |
121 | कृष्णबिहारी मिश्र | नेह के नाते अनेक |
निष्कर्ष
संस्मरण साहित्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण और जीवंत विधा है। यह लेखक के निजी अनुभवों का दस्तावेज़ होने के साथ-साथ समय का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक साक्ष्य भी है। महावीर प्रसाद द्विवेदी से लेकर अज्ञेय तक, अनेक साहित्यकारों ने इस विधा को समृद्ध किया है। आज भी संस्मरण लेखन न केवल पाठकों के लिए रोचक है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य विरासत के रूप में संरक्षित हो रहा है।
इन्हें भी देखें –
- संस्मरण – अर्थ, परिभाषा, विकास, विशेषताएँ एवं हिंदी साहित्य में योगदान
- हिन्दी की जीवनी और जीवनीकार : लेखक और रचनाएँ
- जीवनी – परिभाषा, स्वरूप, भेद, साहित्यिक महत्व और उदाहरण
- हिंदी की आत्मकथा और आत्मकथाकार : लेखक और रचनाएँ
- आत्मकथा – अर्थ, विशेषताएँ, भेद, अंतर और उदाहरण
- हिंदी वर्णमाला- स्वर और व्यंजन | Hindi Alphabet
- संधि – परिभाषा एवं उसके भेद | Joining
- हिंदी भाषा का इतिहास
- भाषा एवं उसके विभिन्न रूप