संस्मरण और संस्मरणकार : प्रमुख लेखक और रचनाएँ

हिंदी साहित्य का संसार विविध विधाओं से भरा हुआ है — कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज आदि। इन सबके बीच संस्मरण एक ऐसी विधा है जो लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों, स्मृतियों और भावनाओं का दस्तावेज होती है। संस्मरण न केवल लेखक की निजी स्मृति को स्वर देता है, बल्कि उस समय, समाज और परिवेश का भी चित्र उपस्थित करता है जिसमें लेखक ने जीवन जिया है।
संस्मरण साहित्य पाठक को लेखक की दृष्टि से अतीत के जीवंत चित्र देखने का अवसर देता है, मानो समय पीछे लौट आया हो और घटनाएँ आंखों के सामने घट रही हों।

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संस्मरण की परिभाषा और अर्थ

संस्मरण शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के स्मृ धातु से हुई है, जिसमें सम् उपसर्ग और ल्युट् (अन) प्रत्यय जुड़कर ‘संस्मरण’ बना है।
व्युत्पत्तिपरक अर्थ है — सम्यक् स्मरण यानी पूर्ण एवं गहन स्मरण।

सरल शब्दों में —

किसी घटना, व्यक्ति, दृश्य या अनुभव का आत्मीय और सजीव स्मरण, जिसमें लेखक अपने भाव, विचार और अनुभूतियों को शब्दों में व्यक्त करता है, संस्मरण कहलाता है।

अंग्रेज़ी में Memoir शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ है – स्मरण, चरित्र-वृत्त, घटनावृत्त, अनुसंधान लेख आदि।

महादेवी वर्मा के शब्दों में:

“संस्मरण लेखक की स्मृति से सम्बन्ध रखता है और स्मृति में वही अंकित रह जाता है जिसने उसके भाव या बोध को कभी गहराई में उद्वेलित किया हो।”

हिंदी का प्रथम संस्मरण : विवाद और स्पष्ट निष्कर्ष

हिंदी साहित्य में प्रथम संस्मरण को लेकर साहित्येतिहास में कुछ मतभेद देखने को मिलते हैं। विभिन्न स्रोतों और विद्वानों के मतों के आधार पर इसके आरंभिक स्वरूप से जुड़े दो प्रमुख नाम सामने आते हैं—बालमुकुंद गुप्त और पद्मसिंह शर्मा

1. बालमुकुंद गुप्त और प्रतापनारायण मिश्र पर संस्मरण (1907)

सन् 1907 में प्रसिद्ध पत्रकार, साहित्यकार और राष्ट्रीय चेतना के प्रवक्ता बालमुकुंद गुप्त ने प्रतापनारायण मिश्र पर एक संस्मरण लिखा। यह रचना प्रतापनारायण मिश्र के जीवन, व्यक्तित्व, साहित्यिक योगदान और लेखक के साथ उनके संबंधों का आत्मीय एवं सजीव चित्र प्रस्तुत करती है। साहित्येतिहासकारों का एक बड़ा वर्ग इस रचना को हिंदी का पहला संस्मरण मानता है।

2. ‘हरिऔध जी का संस्मरण’ — पहली पुस्तकाकार संस्मरण कृति

प्रतापनारायण मिश्र पर संस्मरण लिखने के बाद, 1907 ई. में ही बालमुकुंद गुप्त ने सुप्रसिद्ध कवि हरिऔध (श्यामसुंदर दास ‘हरिऔध’) को केंद्र में रखकर पंद्रह संस्मरणों की एक श्रृंखला रची। इन संस्मरणों को बाद में ‘हरिऔध जी का संस्मरण’ शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया। इसमें हरिऔध के जीवन, साहित्यिक योगदान और मानवीय पक्ष का गहन और आत्मीय चित्रण मिलता है। यह पुस्तक हिंदी संस्मरण साहित्य की प्रथम महत्वपूर्ण और सुव्यवस्थित कृति मानी जाती है।

3. पद्मसिंह शर्मा और ‘पद्मपराग’ (1929)

संस्मरण को गद्य की स्वतंत्र और विशिष्ट विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने में पद्मसिंह शर्मा (1876–1932) का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनकी कृतियाँ प्रबंध मंजरी और पद्मपराग (1929) इस विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली रचनाएँ हैं। कुछ साहित्येतिहासकार ‘पद्मपराग’ को हिंदी का प्रथम संस्मरण मानते हैं, किंतु यह मत सर्वसम्मत नहीं है, क्योंकि इससे पहले बालमुकुंद गुप्त के संस्मरण प्रकाशित हो चुके थे।

‘पद्म-पराग’ में संस्मरण और रेखाचित्र — दोनों की विशेषताओं का समावेश है। इसमें चित्रात्मकता, संक्षिप्तता और भावनात्मक निकटता के साथ-साथ संस्मरण की आत्मीयता और यथार्थपरकता भी दिखाई देती है, जिसके कारण ‘पद्म-पराग’ को संस्मरणात्मक-रेखाचित्र भी कहा जाता है।

निष्कर्ष:

प्रामाणिक साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि—

  • हिंदी का पहला (प्रथम) संस्मरण : बालमुकुंद गुप्त द्वारा प्रतापनारायण मिश्र पर लिखा गया संस्मरण (1907)।
  • पहली पुस्तकाकार संस्मरण कृति : बालमुकुंद गुप्त की ‘हरिऔध जी का संस्मरण’, जिसमें पंद्रह संस्मरण संकलित हैं।
  • पद्मसिंह शर्मा की “पद्मपराग” (1929) को भी संस्मरण साहित्य के प्रारंभिक महत्वपूर्ण प्रयासों में गिना जाता है।

इस प्रकार, हिंदी संस्मरण साहित्य की नींव बालमुकुंद गुप्त ने रखी और आगे इसके साहित्यिक विकास में पद्मसिंह शर्मा जैसे लेखकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। संस्मरण विधा समय-समय पर जीवनी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज और निबंध के अंतर्गत भी परिगणित की गई है, लेकिन इसकी अपनी स्वतंत्र पहचान बनी।

संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर

संस्मरण और रेखाचित्र में कई समानताएँ हैं, परंतु सूक्ष्म अंतर भी है।

  • संस्मरण अधिकतर विवरणात्मक होते हैं — घटनाओं और अनुभवों का क्रमबद्ध वर्णन।
  • रेखाचित्र अधिक रेखात्मक होते हैं — किसी व्यक्ति या घटना के मुख्य गुणों का रेखांकन, संक्षिप्त और सघन रूप में।

पद्मसिंह शर्मा का कहना है:

“प्रायः प्रत्येक संस्मरण लेखक रेखाचित्र लेखक भी है और प्रत्येक रेखाचित्र लेखक संस्मरण लेखक भी।”

संस्मरण साहित्य की विशेषताएँ

हिंदी संस्मरण साहित्य को समझने के लिए इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं:

  1. व्यक्तिगत दृष्टि – घटनाएँ लेखक के निजी अनुभवों से छनकर आती हैं।
  2. भावनात्मक गहराई – केवल तथ्य नहीं, बल्कि भावनाओं का भी समावेश होता है।
  3. सजीव चित्रण – व्यक्ति, स्थान, समय और परिस्थितियों का ऐसा चित्रण कि पाठक को प्रत्यक्ष अनुभव हो।
  4. साहित्यिकता – भाषा में साहित्यिक सौंदर्य, शैली में प्रवाह और आत्मीयता।
  5. इतिहास और समाज का दस्तावेज़ – संस्मरण केवल निजी नहीं होते, वे अपने समय के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास के भी साक्ष्य होते हैं।

हिंदी संस्मरण साहित्य का विकास क्रम

हिंदी में संस्मरण लेखन का सुव्यवस्थित आरंभ 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में देखने को मिलता है। यद्यपि इसके पूर्व भी पत्रों, आत्मकथात्मक टिप्पणियों और जीवनी-सदृश लेखों में संस्मरण के बीज मौजूद थे, किंतु स्वतंत्र विधा के रूप में इसका स्वरूप इसी काल में स्पष्ट हुआ। प्रारंभिक दौर में संस्मरण मुख्यतः लेखकों, कवियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत अनुभवों, साहित्यिक जीवन की झलकियों तथा अपने समय के महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्वों से हुए साक्षात्कारों पर आधारित होते थे।

स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में संस्मरण लेखन को नई ऊर्जा मिली। उस समय के लेखक और स्वतंत्रता सेनानी अपने संघर्ष, जेल-यात्रा, आंदोलन के नेताओं से भेंट और देश के बदलते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को सजीव रूप में प्रस्तुत करने लगे। इन संस्मरणों में केवल व्यक्तिगत अनुभव ही नहीं, बल्कि उस दौर की सामूहिक चेतना और राष्ट्रीय भावनाओं का भी सशक्त चित्रण हुआ।

इसके समानांतर, साहित्यिक आंदोलनों और सांस्कृतिक पुनर्जागरण ने भी इस विधा को समृद्ध किया। हिंदी साहित्य सम्मेलन, छायावाद, प्रगतिवाद और अन्य साहित्यिक धाराओं से जुड़े रचनाकारों ने अपने संस्मरणों में समकालीन साहित्यिक जगत, रचनात्मक बहसों, मित्रता और मतभेदों, तथा साहित्यिक यात्राओं का रोचक और अंतरंग विवरण प्रस्तुत किया।

20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्मरण लेखन का दायरा और व्यापक हो गया। इसमें केवल साहित्यकार ही नहीं, बल्कि राजनीति, पत्रकारिता, शिक्षा, रंगमंच, संगीत और सिनेमा से जुड़े लोग भी सक्रिय हुए। उनकी स्मृतियों में उस समय के सामाजिक जीवन, सांस्कृतिक गतिविधियों, लोकाचार, रीति-रिवाज और बदलते मूल्य-बोध का प्रतिबिंब दिखाई देता है।

इस प्रकार हिंदी संस्मरण साहित्य न केवल व्यक्तिगत स्मृतियों का संग्रह है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसमें लेखक का व्यक्तित्व और युग का सामूहिक स्वर दोनों समान रूप से अभिव्यक्त होते हैं।

प्रमुख हिंदी संस्मरण और उनके संस्मरणकार (लेखक)

नीचे कालक्रमानुसार हिंदी के प्रमुख संस्मरण और संस्मरणकार का उल्लेख है:

क्रमसंस्मरणसंस्मरणकार
1हरिऔध जी का संस्मरण (1907)बालमुकुंद गुप्त
2अनुमोदन का अंत (1905), सभा की सभ्यता (1907)महावीर प्रसाद द्विवेदी
3शिकार (1936), बोलती प्रतिमा (1937), भाई जगन्नाथ, प्राणों का सौदा (1939), जंगल के जीव (1949)श्रीराम शर्मा
4लाल तारा (1938), माटी की मूरतें (1946), गेहूँ और गुलाब (1950), जंजीर और दीवारें (1955), मील के पत्थर (1957)रामवृक्ष बेनीपुरी
5अतीत के चलचित्र (1941), स्मृति की रेखाएँ (1947), पथ के साथी (1956), क्षणदा (1957), स्मारिका (1971)महादेवी वर्मा
6तीस दिन : मालवीय जी के साथ (1942)रामनरेश त्रिपाठी
7हमारे आराध्य (1952)बनारसीदास चतुर्वेदी
8जिंदगी मुस्कराई (1953), दीप जले शंख बजे (1959), माटी हो गई सोना (1959)कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
9ये और वे (1954)जैनेंद्र
10बचपन की स्मृतियाँ (1955), असहयोग के मेरे साथी (1956), जिनका मैं कृतज्ञ (1957)राहुल सांकृत्यायन
11मंटो : मेरा दुश्मन (1956), ज्यादा अपनी कम परायी (1959)अश्क
12वट-पीपल (1961)रामधारी सिंह ‘दिनकर’
13समय के पाँव (1962)माखन लाल चतुर्वेदी
14नए-पुराने झरोखे (1962)हरिवंश राय ‘बच्चन’
15दस तस्वीरें (1963), जिन्होंने जीना जाना (1971)जगदीश चंद्र माथुर
16वे दिन वे लोग (1965)शिवपूजन सहाय
17कुछ शब्द : कुछ रेखाएँ (1965)विष्णु प्रभाकर
18चेतना के बिंब (1967)नगेंद्र
19जिनके साथ जिया (1973)अमृत लाल नागर
20स्मृतिलेखा (1982)अज्ञेय

प्रमुख संस्मरणकारों की शैलीगत विशेषताएँ

अब हम कुछ प्रमुख संस्मरणकारों के लेखन की विशेषताओं को संक्षेप में समझें:

(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी

  • हिंदी गद्य को सुसंस्कृत रूप देने में योगदान।
  • संस्मरणों में गंभीरता और सामाजिक सुधार की दृष्टि।

(ख) बालमुकुंद गुप्त

  • व्यंग्य और चुटीलेपन के साथ आत्मीयता।
  • “हरिऔध जी का संस्मरण” में साहित्यकार का मानवीय पक्ष उजागर।

(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी

  • ग्रामीण परिवेश, स्वतंत्रता आंदोलन और मानवीय संघर्ष का जीवंत चित्रण।
  • भाषा सरल, किंतु संवेदनाओं से परिपूर्ण।

(घ) महादेवी वर्मा

  • भावुकता, कोमलता और गहन आत्मविश्लेषण।
  • “अतीत के चलचित्र” में आत्मकथात्मक गहराई।

(ङ) राहुल सांकृत्यायन

  • यात्राओं और आंदोलनों से जुड़े अनुभवों का समृद्ध संग्रह।
  • तथ्यात्मकता के साथ साहित्यिक रोचकता।

संस्मरण साहित्य का महत्व

  1. साहित्यिक मूल्य – यह लेखक की स्मृति और अनुभव को कलात्मक रूप में संरक्षित करता है।
  2. ऐतिहासिक महत्व – संस्मरण में समय का सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य दर्ज होता है।
  3. व्यक्तित्व अध्ययन – महान व्यक्तियों के संस्मरण उनके व्यक्तित्व के अज्ञात पहलुओं को उजागर करते हैं।
  4. सांस्कृतिक दस्तावेज़ – इनसे संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज का ज्ञान होता है।

वर्तमान संदर्भ में संस्मरण

आज के डिजिटल युग में ब्लॉग, सोशल मीडिया और ऑनलाइन पत्रिकाओं ने संस्मरण लेखन को नया मंच दिया है। अब संस्मरण केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं, बल्कि ऑडियो-वीडियो रूप में भी सामने आ रहे हैं। व्यक्तिगत डायरी और आत्मकथात्मक निबंध भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

प्रमुख हिंदी संस्मरणकार और उनकी रचनाएँ (संस्मरण)

हिंदी साहित्य में संस्मरण लेखन की परंपरा में अनेक रचनाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्तियों, घटनाओं और युग-परिस्थितियों का सजीव चित्रण किया है। नीचे हिन्दी के प्रमुख संस्मरणकार और उनकी चर्चित संस्मरण कृतियों (रचनाओं) का कालानुक्रमिक विवरण प्रस्तुत है—

क्रमसंस्मरणकार (लेखक)संस्मरण (कृतियाँ)
1महावीरप्रसाद द्विवेदीअनुमोदन का अन्त
अतीत स्मृति (1905)
सभा की सभ्यता (1907)
2वृन्दालाल वर्माकुछ संस्मरण (1921)
3पद्मसिंह शर्मापद्मपराग (1929)
प्रबंध मंजरी
4इलाचन्द्र जोशीमेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियां (1921)
गोर्की के संस्मरण (1942)
5मन्मथनाथ गुप्तक्रान्तियुग के संस्मरण (1937)
6श्रीराम शर्माबोलती प्रतिमा (1937)
7ज्योतिलाल भार्गवसाहित्यिकों के संस्मरण
(हंस के प्रेमचन्द स्मृति अंक 1937, सं. पराड़कर)
8राजा राधिकारमण प्रसाद सिंहसंस्मरण पुस्तकेंटूटा तारा (स्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा, 1940)
9रामनरेश त्रिपाठीतीस दिन मालवीय जी के साथ (1942
10शांतिप्रसाद द्विवेदीपंच चिह्न (1946)
स्मृतियां और कृतियां (1966)
11शिवपूजन सहायवे दिन वे लोग (1946)
12प्रकाशचन्द्र गुप्तपुरानी स्मृतियां और नए स्केच (1947)
मिट्टी के पुतले (1947)
13महादेवी वर्मास्मृति की रेखाएं (1947)
स्मारिका (1971)
14श्रीराम शर्मासन् बयालीस के संस्मरण (1948)
वे जीते कैसे हैं (1957)
15उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ज़्यादा अपनी, कम पराई (1949)
16बनारसीदास चतुर्वेदीहमारे आराध्य
संस्मरण (1952)
17जैनेन्द्रगांधी कुछ स्मृतियां (1954)
ये और वे (1954)
18रामवृक्ष बेनीपुरीमुझे याद है (1955)
19संस्मरण पुस्तकेंमील के पत्थर (1956)
जंजीरें और दीवारें (1957)
कुछ मैं कुछ वे (1959)
20राहुल सांकृत्यायनबचपन की स्मृतियां (1955)
जिनका मैं कृतज्ञ
मेरे असहयोग के साथी (1956)
21उपेन्द्रनाथ अश्कमंटो मेरा दुश्मन (1956)
ज्यादा अपनी कम परायी (1959)
22सेठ गोविन्ददासस्मृति-कण (1959)
23विनोद शंकर व्यासप्रसाद और उनके समकालीन (1960)
24अमृता प्रीतमअतीत की परछाइयां (1962)
25सम्पूर्णानन्दकुछ स्मृतियां और स्फुट विचार (1962)
26विष्णु प्रभाकरजाने-अनजाने (1962)
कुछ शब्द : कुछ रेखाएं (1965)
यादों की तीर्थयात्रा (1981)
मेरे अग्रज : मेरे मीत (1983)
सृजन के सेतु (1990)
27हरिवंशराय ‘बच्चन’नए-पुराने झरोखे (1962)
28माखनलाल चतुर्वेदीसमय के पांव (1962)
29जगदीशचन्द्र माथुरदस तस्वीरें 1963)
30सुमित्रानन्दन पन्तसाठ वर्ष : एक रेखांकन 1963)
31रायकृष्ण दासजवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता (1965)
32हरिभाऊ उपाध्यायमेरे हृदय देव (1965)
33रामधारी सिंह ‘दिनकर’लोकदेव नेहरू (1965)
संस्मरण और श्रद्धांजलियां (1969)
34शिवपूजन सहायवे दिन वे लोग (1965)
35सेठ गोविन्ददासचेहरे जाने-पहचाने (1966)
36नगेन्द्रचेतना के बिम्ब (1967)
37काका साहेब कालेलकरगांधी संस्मरण और विचार (1968)
38हरगुलालघेरे के भीतर और बाहर (1968)
39अजित कुमार एवं ओंकारनाथ श्रीवास्तवबच्चन निकट से (1968)
40जानकीवल्लभ शास्त्रीस्मृति के वातायन (1968)
41पद्मिनी मेननचांद (1969)
42जगदीशचन्द्र माथुरजिन्होंने जीना जाना (1971)
43पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शीअन्तिम अध्याय (1972)
44अमृतलाल नागरजिनके साथ जिया (1973)
45लक्ष्मीशंकर व्यासस्मृति की त्रिवेणिका (1974)
46कमलेश्वरमेरा हमदम मेरा दोस्त (1975)
47क्षेमचन्द्र सुमनरेखाएं और संस्मरण (1975)
48अनीता राकेशचन्द सतरें और (1975)
संतरे और संतरे
अंतिम संतरे
अतिरिक्त सतरें
49रामनाथ सुमनमैंने स्मृति के दीप जलाए (1976)
50भगत सिंहमेरे क्रान्तिकारी साथी (1977)
51कृष्णा सोबती हम हशमत- 1 (1977)
हम हशमत- 2 (1998)
शब्दों के आलोक में
सोबती एक सोहबत
हम हशमत- 3 (2012)
हम हशमत- 4
मार्फ़त दिल्ली
52शंकर दयाल सिंहकुछ ख़्वाबों में कुछ ख़यालों में (1978)
53विष्णुकान्त शास्त्रीसंस्मरण को पाथेय बनने दो (1978)
54भगवतीचरण वर्माअतीत के गर्त से (1979)
55रांगेय राघवपुनः (1979)
56मैथिलीशरण गुप्तश्रद्धांजलि संस्मरण (1979)
57भारतभूषण अग्रवाललीक-अलीक (1980)
58राजेन्द्र यादवऔरों के बहाने (1981)
वे देवता नहीं हैं (2000)
59अमृतलाल नागरजिनके साथ जिया (1981)
60प्रतिभा अग्रवालसृजन का सुख-दुख (1981)
61रामकुमार वर्मासंस्मरणों के सुमन (1982)
62अज्ञेयस्मृति-लेखा (1982)
63भीमसेन त्यागीआदमी से आदमी तक (1982)
64रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’युगपुरुष (1983)
65फणीश्वरनाथ रेणुबन तुलसी की गन्ध (1984)
समय की शिला पर
66पद्मा सचदेवदीवान ख़ाना (1984)
मितवा घर (1995)
अमराई (2000)
67भगवतीशरण उपाध्यायरस गगन गुफा में (1986)
68कमल किशोर गोयनकाहज़ारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण (1988)
69बिन्दु अग्रवालभारत भूषण अग्रवाल : कुछ यादें, कुछ चर्चाएं (1989)
70अमृत रायजिनकी याद हमेशा रहेगी (1992)
71अजित कुमारनिकट मन में (1992)
कविवर बच्चन के साथ (2009)
अंधेरे में जुगनू (2010)
गुरुवर बच्चन से दूर
72काशीनाथ सिंहयाद हो कि न याद हो (1992)
काशी का अस्सी (2002)
आछे दिन पाछे गए (2004)
घर का जोगी जोगड़ा (2006)
73विष्णुकान्त शास्त्रीसुधियां उस चन्दन के वन की (1992)
74गिरिराज किशोरसप्तवर्णी (1994)
75दूधनाथ सिंहलौट आ ओ धार (1995)
एक शमशेर भी है
76रामदरश मिश्रस्मृतियों के छंद (1995)
अपने-अपने रास्ते (2001)
एक दुनिया अपनी (2007)
77विष्णुचन्द्र शर्माअभिन्न (1996)
78रवीन्द्र कालियासृजन के सहयात्री (1996)
79बिन्दु अग्रवालयादें और बातें (1998)
80मोहनकिशोर दीवाननेपथ्य नायक लक्ष्मीचन्द्र जैन (2000)
81रमानाथ अवस्थीयाद आते हैं (2000)
82देवेन्द्र सत्यार्थीयादों के काफिले (2000)
83पुरुषोत्तमदास मोदीअंतरंग संस्मरणों में प्रसाद (2001)
84विश्वनाथप्रसाद तिवारीएक नाव के यात्री (2001)
85नरेश मेहताप्रदक्षिणा अपने समय की (2001)
86कृष्णविहारी मिश्रनेह के नाते अनेक (2002)
87मनोहर श्याम जोशीलखनऊ मेरा लखनऊ (2002)
रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक संस्मरण (2003)
बातों बातों में
88रामकमल रायस्मृतियों का शुक्ल पक्ष (2002)
89विद्यानिवास मिश्रचिडि़या रैन बसेरा (2002)
90कान्तिकुमार जैनलौट कर आना नहीं होगा (2002)
तुम्हारा परसाई (2004)
जो कहूंगा सच कहूंगा (2006)
अब तो बात फैल गई (2007)
बैकुंठ में बचपन (2010)
91विवेकी रायआंगन के वंदनवार (2003)
मेरे सुहृद : मेरे श्रद्धेय (2005)
92विष्णुकान्त शास्त्रीपर साथ-साथ चली रही याद (2004)
93विश्वनाथ त्रिपाठीनंगा तलाई का गांव (2004)
व्योमकेश दरवेश
गंगा स्नान करने चलोगे (2012)
गुरुजी की खेती-बारी
94लक्ष्मीधर मालवीयलाई हयात आए (2004)
95केशवचन्द्र वर्मासुमिरन को बहानो (2005)
ताकि सनद रहे
निज नैनहिं देखी
परिमल: स्मृतियाँ और दस्तावेज
96मधुरेशये जो आईना है (2006)
आलोचक का आकाश (2012)
97ममता कालियाकितने शहरों में कितनी बार (2009)
कल परसों बरसों (2011)
98अमरकान्तकुछ यादें : कुछ बातें (2009)
99निर्मला जैनदिल्ली शहर दर शहर (2009)
100चन्द्रकान्तामेरे भोजपत्र (2009)
हाशिए की इबारतें (2009)
101वीरेन्द्र सक्सेनाअ से लेकर ह तक, यानी अज्ञेय से लेकर हृदयेश तक (2010)
102सुमन केशरी (सं.)जे.एन.यू. में नामवर सिंह (2010)
103गोविन्द प्रसादअलाप और अंतरता
104नीलाभ अश्कज्ञानरंजन के बहाने
105नन्द चतुर्वेदीअतीत राग (2011)
106शेखर जोशीस्मृति में रहेंगे वे (2011)
107ओम थानवी अपने-अपने अज्ञेय (दो खंड, 2012)
108बलराममाफ़ करना यार (2012)
109प्रकाश मनुयादों का सफ़र (2012)
110नरेन्द्र कोहलीस्मृतियों के गलियारे से (2012)
111देवेंद्र मेवाड़ीमेरी यादों का पहाड़ (2013)
112मार्कंडेयपत्थर और परछाइयाँ
चक्रधर की साहित्य धारा
113मैत्रीयी पुष्पावह सफ़र था की मुकाम था
114मोहनलाल भास्करमैं पाकिस्तान में जासूस था
115हरिशंकर परसाईजाने पहचाने लोग
हम एक उम्र से वाकिफ हैं
116शिवप्रसाद सिंहखलिस मौज में
117शिवानीएक थी रामरती
काल के हस्ताक्षर
सुनहु तात यह अकथ कहानी
वातायन
118गुलजारपिछले पन्ने
119माखनलाल चतुर्वेदीसमय के पाँव
120पुष्पा भारतीप्रेम पियाला जिन पिया
121कृष्णबिहारी मिश्रनेह के नाते अनेक

निष्कर्ष

संस्मरण साहित्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण और जीवंत विधा है। यह लेखक के निजी अनुभवों का दस्तावेज़ होने के साथ-साथ समय का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक साक्ष्य भी है। महावीर प्रसाद द्विवेदी से लेकर अज्ञेय तक, अनेक साहित्यकारों ने इस विधा को समृद्ध किया है। आज भी संस्मरण लेखन न केवल पाठकों के लिए रोचक है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य विरासत के रूप में संरक्षित हो रहा है।


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