हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध, बहुआयामी और बहुपरतीय है। इसकी जड़ें भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषिक परंपराओं में गहराई से समाई हुई हैं। परंतु जब बात आती है हिन्दी साहित्य के प्रथम कवि की पहचान की, तो यह प्रश्न एक विमर्श का विषय बन जाता है। साहित्येतिहास के अनेक विद्वानों ने अपने-अपने शोध और दृष्टिकोण के आधार पर भिन्न-भिन्न कवियों को ‘हिन्दी साहित्य का प्रथम कवि’ माना है।
यह लेख हिन्दी साहित्य के प्रारंभिक काल की पड़ताल करते हुए विभिन्न साहित्यकारों के विचारों की विवेचना करता है और यह समझने की कोशिश करता है कि इस प्रश्न का कोई एक निश्चित उत्तर क्यों नहीं है।
हिन्दी साहित्य का प्रथम कवि
हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध, बहुआयामी और दीर्घकालिक विकास यात्रा का द्योतक है। यद्यपि आज हिन्दी को विश्व की प्रमुख भाषाओं में स्थान प्राप्त है, परंतु यह भाषा एक दीर्घ विकास प्रक्रिया से होकर गुज़री है — प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी, और अंततः आधुनिक हिन्दी।
इस व्यापक परंपरा में एक प्रश्न अक्सर साहित्य-प्रेमियों और शोधार्थियों के मन में उठता है:
“हिन्दी साहित्य का प्रथम कवि कौन था?”
यह प्रश्न सरल प्रतीत होता है, किंतु इसका उत्तर उतना ही जटिल है, क्योंकि हिन्दी की ‘शुरुआत’ को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। इस लेख में हम हिन्दी साहित्य के पहले कवि को लेकर विभिन्न विद्वानों के मतों का विश्लेषण करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या किसी एक निष्कर्ष पर पहुँचना संभव है।
हिन्दी साहित्य का प्रारंभिक काल
हिन्दी साहित्य को आम तौर पर चार प्रमुख कालों में विभाजित किया गया है:
- आदिकाल (1000–1350 ई.)
- भक्तिकाल (1350–1650 ई.)
- रीतिकाल (1650–1850 ई.)
- आधुनिक काल (1850 ई. के बाद)
इनमें आदिकाल को हिन्दी साहित्य का प्रारंभिक चरण माना जाता है। यही वह काल है जहाँ से हिन्दी साहित्य की लिखित परंपरा का प्रारंभ माना जाता है। परन्तु उससे पहले भी कुछ ऐसे कवियों का उल्लेख मिलता है जो अपभ्रंश, प्राकृत या प्रारंभिक हिन्दी के स्वरूप में काव्य-रचना कर रहे थे। यही कारण है कि हिन्दी साहित्य के ‘पहले कवि’ को लेकर विद्वानों में एकमत नहीं है।
विभिन्न विद्वानों के अनुसार हिन्दी साहित्य के पहले कवि
नीचे हम विभिन्न साहित्येतिहासकारों और आलोचकों द्वारा प्रस्तुत विचारों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करेंगे:
1. रामकुमार वर्मा के अनुसार — स्वयंभू (693 ई.)
डॉ. रामकुमार वर्मा ने ‘स्वयंभू’ नामक कवि को हिन्दी साहित्य का आदिकालीन कवि माना है। स्वयंभू ने अपभ्रंश में काव्य-रचना की थी, जो प्राचीन हिन्दी की पूर्ववर्ती भाषा मानी जाती है। उनका काल 693 ई. के लगभग माना जाता है।
विश्लेषण:
स्वयंभू के काव्य में धार्मिकता, नैतिकता और जीवन-दर्शन की झलक मिलती है। हालांकि यह रचनाएँ शुद्ध हिन्दी में नहीं हैं, परंतु उनकी भाषा और विषयवस्तु हिन्दी साहित्य की जड़ों को स्पष्ट करती हैं।
महत्त्व: भाषा की दृष्टि से हिन्दी का प्राचीनतम रूप
2. राहुल सांकृत्यायन के अनुसार — सरहपा (769 ई.)
राहुल सांकृत्यायन ने ‘सरहपा’ को हिन्दी साहित्य का पहला कवि माना है। सरहपा बौद्ध सिद्धाचार्य थे जिन्होंने सिद्ध साहित्य की परंपरा को जन्म दिया। उन्होंने अपभ्रंश में पदों की रचना की।
विशेषताएँ:
- सरहपा का काव्य विद्रोही, क्रांतिकारी और अनुभववादी था।
- वह धर्म और सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करते हैं।
- भाषा: उनकी भाषा सरल, सहज और बोलचाल (सिद्ध अपभ्रंश) की थी।
- विषय: सामाजिक विद्रोह, रहस्यवाद, योग
महत्व:
सरहपा के पदों को हिन्दी काव्य की शुरुआती अभिव्यक्ति माना जा सकता है। उनके काव्य में रहस्यवाद और निर्गुण भक्ति के बीज दिखाई देते हैं।
3. शिवसिंह सेंगर के अनुसार — पुष्पदन्त या पुण्ड (10वीं शताब्दी)
शिवसिंह सेंगर का मत है कि 10वीं शताब्दी में पुष्पदन्त या पुण्ड नामक कवि हिन्दी साहित्य के प्रारंभिक कवियों में से एक थे। पुष्पदन्त जैन परंपरा से जुड़े थे और उन्होंने कई कथाओं की रचना की।
विश्लेषण:
इन कवियों की रचनाएँ भी अपभ्रंश या प्राचीन हिन्दी में थीं, जो धार्मिक और नैतिक शिक्षा से परिपूर्ण थीं।
- संबंध: जैन परंपरा से
- भाषा: अपभ्रंश और प्राकृत मिश्रण
4. चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के अनुसार — राजा मुंज (993 ई.)
गुलेरी जी ने मालवा के राजा मुंज को हिन्दी साहित्य का पहला कवि बताया। राजा मुंज एक विद्वान राजा थे, जिनकी काव्य रुचि के प्रमाण मिलते हैं।
रचनाएँ:
उनकी रचनाओं का स्पष्ट प्रमाण नहीं है, परन्तु कुछ साहित्यिक ग्रंथों में उनके श्लोक उद्धृत हुए हैं। भाषा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के समीप है।
विश्लेषण:
यदि राजा मुंज की रचनाओं को हिन्दी साहित्य की परंपरा में रखा जाए, तो यह इस बात की ओर संकेत करता है कि हिन्दी का विकास राजदरबारों से भी हुआ।
- भाषा: संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश
- महत्त्व: दरबारी काव्य परंपरा का आरंभ
5. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार — राजा मुंज और भोज (993 ई.)
हिन्दी साहित्य के प्रख्यात इतिहासकार डॉ. रामचंद्र शुक्ल का मानना था कि राजा मुंज और उनके उत्तराधिकारी भोज हिन्दी साहित्य के प्रवर्तक कवि थे। उन्होंने अपभ्रंश और प्राचीन हिन्दी में रचनाएँ कीं।
भोज का साहित्यिक योगदान:
- राजा भोज न केवल कवि थे, बल्कि आलोचक और नाटककार भी थे।
- उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की।
- भाषा: मिश्रित रूप
- रचनाएँ: नीति, दर्शन, भक्ति विषयक
महत्व:
शुक्ल जी के अनुसार, इन राजाओं की रचनाएँ साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और हिन्दी साहित्य की विकास-यात्रा के आरंभिक चरण को दर्शाती हैं।
6. गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार — शालिभद्र सूरि (1184 ई.)
गणपति चंद्र गुप्त ने शालिभद्र सूरि को हिन्दी साहित्य का प्रारंभिक कवि माना है। वे जैन आचार्य थे और उन्होंने काव्य-रचनाएँ कीं जो शिक्षाप्रद और नैतिकता से युक्त थीं।
विशेषताएँ:
- विषयवस्तु में लोकनीति, धर्म और आध्यात्मिकता के तत्व प्रमुख थे।
- भाषा: अपभ्रंश और प्राकृत के बीच की थी।
- मुख्य विषय: नीति, धर्म
7. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार — अब्दुल रहमान (13वीं शताब्दी)
हिन्दी साहित्य के एक अन्य महान आलोचक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अब्दुल रहमान को हिन्दी का पहला कवि माना है। अब्दुल रहमान के कुछ पद आज भी जनश्रुति में प्रचलित हैं।
महत्त्व:
- उन्होंने हिन्दवी (प्रारंभिक हिन्दी) में प्रेम, भक्ति और नीति विषयक पदों की रचना की।
- भाषा: हिन्दवी (प्रारंभिक हिन्दी) भाषा सरल, लयबद्ध और गेय थी।
- विशेषता: लोकभाषा की सहजता
8. बच्चन सिंह के अनुसार — विद्यापति (15वीं शताब्दी)
डॉ. बच्चन सिंह ने मैथिली के प्रसिद्ध कवि विद्यापति को हिन्दी का प्रथम कवि कहा है। विद्यापति ने मैथिली और हिन्दी मिश्रित भाषा में प्रेम और भक्ति काव्य की रचना की।
महत्त्व:
- विद्यापति का काव्य ब्रजभाषा, मैथिली और लोकभाषा के समन्वय से बना है।
- राधा-कृष्ण के प्रेम की सूक्ष्म अभिव्यक्ति और भक्ति का गहन भाव उनके काव्य की विशेषता है।
- भाषा: मैथिली-हिन्दी मिश्रित
- विषय: राधा-कृष्ण प्रेम, भक्ति
निष्कर्ष: क्या कोई एक निश्चित “पहला कवि” है?
हिन्दी साहित्य का इतिहास बहुध्रुवीय और बहुपरतीय है। उपर्युक्त सभी विचारकों ने अपने-अपने शोध और दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दी का पहला कवि निर्धारित किया है। यह विविधता स्वयं हिन्दी साहित्य की व्यापकता और विविध परंपराओं का प्रतीक है।
यदि हम ‘हिन्दी’ को केवल ब्रजभाषा, खड़ी बोली या अवधी जैसी आधुनिक भाषाओं के रूप में देखें, तो विद्यापति, कबीर और अमीर खुसरो जैसे कवियों को आरंभिक माना जा सकता है। परंतु यदि हम हिन्दी की उत्पत्ति को अपभ्रंश और प्राकृत से जोड़कर देखें, तो सरहपा, स्वयंभू और राजा मुंज जैसे कवि हिन्दी साहित्य के पहले कवि माने जा सकते हैं।
समग्र विश्लेषण
क्रम | विद्वान | पहला कवि | अनुमानित काल |
---|---|---|---|
1 | रामकुमार वर्मा | स्वयंभू | 693 ई. |
2 | राहुल सांकृत्यायन | सरहपा | 769 ई. |
3 | शिवसिंह सेंगर | पुष्पदन्त / पुण्ड | 10वीं शताब्दी |
4 | चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ | राजा मुंज | 993 ई. |
5 | रामचंद्र शुक्ल | राजा मुंज व भोज | 993 ई. |
6 | गणपति चंद्र गुप्त | शालिभद्र सूरि | 1184 ई. |
7 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | अब्दुल रहमान | 13वीं शताब्दी |
8 | बच्चन सिंह | विद्यापति | 15वीं शताब्दी |
अंतिम शब्द
हिन्दी साहित्य के ‘प्रथम कवि’ को लेकर कोई एकमत नहीं है, और यही इस भाषा की सजीवता और समृद्ध विरासत का परिचायक है। हर युग, हर परंपरा और हर विचारधारा ने हिन्दी साहित्य को एक नया रूप दिया है। इसलिए, ‘कौन था पहला कवि?’ का उत्तर निर्भर करता है कि हम ‘हिन्दी’ को किस संदर्भ में परिभाषित करते हैं — क्या भाषा की दृष्टि से, शैली की दृष्टि से, या काव्य परंपरा की दृष्टि से।
अतः हिन्दी साहित्य का पहला कवि कोई एक नहीं, बल्कि वह एक यात्रा है जो स्वयंभू से लेकर विद्यापति तक फैली हुई है।
कालक्रम (chronology) के अनुसार हिन्दी साहित्य के प्रथम कवि का विश्लेषण
कालक्रम (chronology) के अनुसार हिन्दी साहित्य के प्रथम कवि कौन थे?” — इस दृष्टिकोण से यदि हम निष्कर्ष निकालने का प्रयास करें, तो यह निश्चित रूप से कुछ हद तक संभव है, लेकिन पूरी तरह निष्पक्ष या सर्वमान्य नहीं कहा जा सकता। आइए इस पर विस्तार से विचार करते हैं:
कालक्रम (chronology) के अनुसार संभावित निष्कर्ष
हिन्दी साहित्य की बहुध्रुवीय परंपरा को देखते हुए, यदि हम केवल कालक्रम (chronology) के आधार पर हिन्दी साहित्य के “प्रथम कवि” की पहचान करने का प्रयास करें, तो हम निम्न प्रकार की रूपरेखा बना सकते हैं:
काल | कवि का नाम | भाषिक स्वरूप | प्रमुख विद्वान |
---|---|---|---|
7वीं शताब्दी | स्वयंभू | अपभ्रंश/पूर्व हिन्दी | रामकुमार वर्मा |
8वीं शताब्दी | सरहपा | सिद्ध अपभ्रंश (सन्ध्या भाषा) | राहुल सांकृत्यायन |
10वीं शताब्दी | पुष्पदन्त / राजा मुंज | अपभ्रंश / प्राकृत मिश्रित | शिवसिंह सेंगर, गुलेरी |
11वीं-12वीं श. | राजा भोज / शालिभद्र सूरि | प्राचीन हिन्दी / अपभ्रंश | रामचंद्र शुक्ल, गणपति चंद्र |
13वीं शताब्दी | अब्दुल रहमान | हिन्दवी (प्रारंभिक हिन्दी) | हजारी प्रसाद द्विवेदी |
15वीं शताब्दी | विद्यापति | मैथिली-हिन्दी मिश्रित | बच्चन सिंह |
क्या कालक्रम (chronology) के आधार पर निष्कर्ष निकालना उचित होगा?
✔ हाँ, यदि आप “हिन्दी की उत्पत्ति और क्रमिक विकास” को मानते हैं
- यदि हम हिन्दी को अपभ्रंश से विकसित भाषा मानते हैं (जो अधिकांश भाषावैज्ञानिक मानते हैं), तो हम यह कह सकते हैं कि: हिन्दी साहित्य का सबसे प्राचीन कवि ‘स्वयंभू’ (693 ई.) थे, क्योंकि उनकी भाषा हिन्दी की पूर्वज अपभ्रंश थी, और वह सबसे पुराने कवियों में से एक हैं जिनके काव्य-नमूने उपलब्ध हैं।
- इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि: सरहपा (769 ई.) हिन्दी काव्य परंपरा के पहले प्रयोगवादी और अनुभूति-प्रधान कवि थे, जो बाद में निर्गुण भक्ति की धारा में विकसित हुआ।
❌ नहीं, यदि आप हिन्दी को “ब्रज, अवधी या खड़ी बोली” तक सीमित करते हैं
- यदि आपकी परिभाषा में केवल आधुनिक या मध्यकालीन हिन्दी (जैसे ब्रज, अवधी) को ही हिन्दी माना जाए, तो: विद्यापति या कबीर जैसे कवियों को ही प्रारंभिक हिन्दी साहित्य का प्रतिनिधि कवि कहा जा सकता है।
- ऐसी स्थिति में सरहपा या स्वयंभू को “हिन्दी कवि” कहना ऐतिहासिक दृष्टि से भ्रामक हो सकता है, यद्यपि उनकी भाषा हिन्दी की पूर्वज थी।
📌 तो निष्कर्ष क्या हो सकता है?
🟢 यदि हम “समय” को आधार बनाएं और “हिन्दी” की भाषा-परंपरा को एक सतत विकासशील प्रक्रिया मानें,
तो एक संतुलित निष्कर्ष इस प्रकार हो सकता है:
“स्वयंभू हिन्दी साहित्य परंपरा के सबसे प्राचीन कवि माने जा सकते हैं (7वीं शताब्दी), जिनकी भाषा अपभ्रंश थी।
सरहपा हिन्दी के पहले अनुभूति-कवि थे (8वीं शताब्दी)।
और यदि केवल ब्रज या अवधी को हिन्दी मानें, तो विद्यापति (15वीं शताब्दी) पहले प्रतिष्ठित कवि कहे जा सकते हैं।”
निष्कर्ष की विश्वसनीयता का मूल्यांकन
आधार | निष्कर्ष की प्रामाणिकता | सीमाएँ |
---|---|---|
समय (कालक्रम) | ऐतिहासिक दृष्टि से मजबूत | भाषा की परिभाषा विवादास्पद |
भाषा | साहित्यिक परंपरा की दृष्टि से उपयुक्त | ऐतिहासिक प्रमाण सीमित |
काव्य शैली | विधागत विश्लेषण संभव | स्पष्ट प्रमाण अक्सर अनुपलब्ध |
इसलिए यह कहना समीचीन होगा:
“हिन्दी साहित्य का पहला कवि कौन है — यह इस पर निर्भर करता है कि हम ‘हिन्दी’ को कैसे परिभाषित करते हैं: भाषिक विकास की दृष्टि से या साहित्यिक परंपरा के आधार पर।”
अंतिम विचार
हिन्दी साहित्य के पहले कवि की खोज अपने-आप में एक रोमांचक यात्रा है। यह कोई एक नाम नहीं, बल्कि एक क्रम है — जिसमें स्वयंभू से लेकर विद्यापति तक, सिद्धों से लेकर संतों तक, और दरबारी कवियों से लेकर लोककवियों तक सभी ने योगदान दिया है।
हिन्दी साहित्य एक प्रवाह है — जिसमें कोई एक शुरुआत नहीं, बल्कि कई धाराएँ एक साथ चलकर उसे जन्म देती हैं।
इन्हें भी देखें –
- हिंदी साहित्य का आदिकाल (वीरगाथा काल 1000 -1350 ई०) | स्वरूप, प्रवृत्तियाँ और प्रमुख रचनाएँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा: अवधारणा, प्रवृत्तियाँ, प्रमुख कवि और साहित्यिक विशेषताएँ
- संत काव्य धारा: निर्गुण भक्ति की ज्ञानाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली
- पूर्व मध्यकाल (भक्ति काल 1350 ई. – 1650 ई.) – हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग
- हिंदी के प्रमुख एकांकीकार एवं एकांकी | लेखक और रचनाएँ
- हिन्दी एकांकी: इतिहास, कालक्रम, विकास, स्वरुप और प्रमुख एकांकीकार
- हार की जीत | कहानी – मुंशी प्रेमचंद
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