भारतीय राजनीति में उपराष्ट्रपति का पद अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक पद माना जाता है। यह न केवल संसद की कार्यवाही का संचालन करने का दायित्व निभाता है, बल्कि आपात परिस्थितियों में राष्ट्रपति की भूमिका भी संभाल सकता है। ऐसे में जब मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक 21 जुलाई 2025 को इस्तीफा दे दिया, तो पूरे देश का ध्यान नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की ओर चला गया। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करके राजनीतिक परिदृश्य को नई दिशा दे दी है।
भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुई संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद यह घोषणा की। उन्होंने बताया कि सर्वसम्मति से लिए गए इस निर्णय के तहत राधाकृष्णन 20 अगस्त को नामांकन दाखिल करेंगे। चुनाव की प्रक्रिया के अनुसार, मतदान और मतगणना 9 सितंबर 2025 को होगी। नामांकन की आखिरी तारीख 21 अगस्त और उम्मीदवारी वापस लेने की अंतिम तिथि 25 अगस्त तय की गई है।
सी. पी. राधाकृष्णन कौन हैं?
चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन (जन्म : 4 मई 1957) तमिलनाडु की धरती से आने वाले एक वरिष्ठ और अनुभवी राजनेता हैं। वे भारतीय जनता पार्टी से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और संगठनात्मक क्षमता, राजनीतिक परिपक्वता तथा प्रशासनिक अनुभव के लिए व्यापक रूप से पहचाने जाते हैं। वर्तमान में वे महाराष्ट्र के 24वें राज्यपाल के रूप में कार्यरत हैं। इससे पहले वे फरवरी 2023 में झारखंड के 10वें राज्यपाल नियुक्त किए गए थे।
उनका राजनीतिक जीवन चार दशकों से अधिक का रहा है, जिसमें वे दो बार कोयंबटूर से लोकसभा सांसद रह चुके हैं, तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके हैं और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी योगदान दे चुके हैं।
प्रारंभिक जीवन और संगठन से जुड़ाव
सी. पी. राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु में हुआ। वे 16 साल की उम्र से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनसंघ से जुड़े रहे। संगठनात्मक गतिविधियों में उनकी गहरी भागीदारी ने उन्हें जमीनी स्तर पर मजबूत पहचान दिलाई। लगभग 48 वर्षों से वे लगातार सक्रिय राजनीति और संगठनात्मक कार्यों में लगे हुए हैं।
2012 में उन्होंने मेट्टुपालयम में एक आरएसएस कार्यकर्ता पर हमले के विरोध में गिरफ्तारी दी थी, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि वे संगठन के प्रति कितने समर्पित हैं। उनके जीवन का यह पहलू बताता है कि वे केवल चुनावी राजनीति तक सीमित नहीं रहे, बल्कि वैचारिक रूप से भी अपनी पार्टी और संगठन के साथ जुड़े रहे।
राजनीतिक करियर की शुरुआत और सफलता
राधाकृष्णन की राजनीतिक यात्रा की बड़ी सफलता 1998 और 1999 के आम चुनावों में दिखाई दी। यह समय तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुए बम धमाकों के बाद का था। ऐसे कठिन माहौल में भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया और उन्होंने प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की।
- 1998 के चुनाव में उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी को 1.5 लाख से अधिक मतों से हराया।
- 1999 में भी उन्होंने 55 हजार से अधिक मतों के अंतर से विजय प्राप्त की।
उनकी जीत ने भाजपा को दक्षिण भारत में मजबूत आधार दिलाने में मदद की। 2004 में जब एनडीए से द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) अलग हुआ, तो उन्होंने अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) से संबंध मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व
राधाकृष्णन केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सक्रिय रहे हैं। 2004 में वे संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बने। वे ताइवान जाने वाले पहले भारतीय संसदीय दल के सदस्य भी रहे। यह उनकी कूटनीतिक समझ और वैश्विक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
चुनौतियाँ और तमिलनाडु की राजनीति
तमिलनाडु भाजपा के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण राज्य रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में, जब भाजपा का डीएमके और एआईएडीएमके से गठबंधन नहीं था, तब भी राधाकृष्णन ने 3.89 लाख से अधिक वोट हासिल किए और दूसरे स्थान पर रहे। यह राज्य में भाजपा के लिए ऐतिहासिक प्रदर्शन था क्योंकि वे सबसे कम अंतर से चुनाव हारे।
2019 में उन्हें एक बार फिर कोयंबटूर से उम्मीदवार बनाया गया। यद्यपि वे जीत नहीं पाए, लेकिन उनका प्रदर्शन भाजपा के लिए उम्मीद जगाने वाला रहा।
संगठनात्मक भूमिकाएँ और प्रशासनिक अनुभव
- वे तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे।
- पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सक्रिय सदस्य रहे।
- उन्हें केरल भाजपा प्रभारी की जिम्मेदारी भी दी गई।
- 2016 से 2019 तक वे लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम मंत्रालय (MSME) के अधीन अखिल भारतीय कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष रहे।
इन भूमिकाओं ने उन्हें प्रशासनिक अनुभव और संगठनात्मक दक्षता दोनों ही प्रदान कीं।
राज्यपाल के रूप में कार्यकाल
18 फरवरी 2023 को राधाकृष्णन को झारखंड का 10वां राज्यपाल नियुक्त किया गया। उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच सेतु का काम किया। 2024 में उन्हें महाराष्ट्र का 24वां राज्यपाल बनाया गया। यहाँ उनकी प्रशासनिक शैली और अनुभव की व्यापक चर्चा हुई। राज्यपाल के रूप में उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था से जुड़े कई पहलुओं पर सक्रिय भूमिका निभाई।
उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी का महत्व
सी. पी. राधाकृष्णन की उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके पीछे कई कारण हैं:
- दक्षिण भारत में भाजपा की मजबूती – राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं। भाजपा की रणनीति हमेशा से दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने की रही है। उनकी उम्मीदवारी से यह संदेश जाएगा कि भाजपा तमिलनाडु और दक्षिण भारत को राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी हिस्सेदारी दे रही है।
- अनुभव और संगठनात्मक क्षमता – उनका लंबा राजनीतिक अनुभव, संगठनात्मक नेतृत्व और प्रशासनिक दक्षता एनडीए के लिए संतुलित उम्मीदवार की छवि प्रस्तुत करता है।
- राष्ट्रीय पहचान – सांसद, प्रदेश अध्यक्ष, राज्यपाल और अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने जो छाप छोड़ी है, उससे उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत हुई है।
भारत में उपराष्ट्रपति पद का महत्व
भारत का उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है। इसकी भूमिका केवल औपचारिक नहीं होती, बल्कि संसद की कार्यप्रणाली और संवैधानिक व्यवस्था में इसका गहरा महत्व है।
उपराष्ट्रपति के अधिकार और जिम्मेदारियाँ:
- राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं।
- राष्ट्रपति के पद रिक्त होने की स्थिति में कार्यकारी राष्ट्रपति का दायित्व निभाते हैं (अधिकतम 6 महीने तक)।
- संसदीय कार्यवाही की निष्पक्षता और अनुशासन बनाए रखना उनकी प्राथमिक भूमिका होती है।
कार्यकाल और पद से हटाने की प्रक्रिया:
- कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- उपराष्ट्रपति को राज्यसभा में प्रभावी बहुमत और लोकसभा में साधारण बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।
- वे पुनः चुने जाने के पात्र भी होते हैं।
उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित तथा मनोनीत सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- चुनाव प्रोपोर्शनल रिप्रजेंटेशन सिस्टम और सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होता है।
- मतदान गुप्त मतपत्र से कराया जाता है।
- विवाद होने पर सर्वोच्च न्यायालय अंतिम निर्णय देता है।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में अंतर:
- राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों के साथ राज्य विधानसभाओं के विधायक भी मतदान करते हैं।
- उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल सांसद (निर्वाचित व मनोनीत) मतदान करते हैं।
निष्कर्ष
सी. पी. राधाकृष्णन की उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी भाजपा और एनडीए की दक्षिण भारत में राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। उनका संगठनात्मक अनुभव, दो बार का सांसद होना, राज्यपाल के रूप में भूमिका और लंबे राजनीतिक जीवन ने उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बना दिया है।
राजनीतिक दृष्टि से उनकी उम्मीदवारी एनडीए के आत्मविश्वास और विपक्ष के लिए चुनौती दोनों का प्रतीक है। यद्यपि विपक्ष भी अपना उम्मीदवार उतार सकता है, लेकिन संसद में एनडीए की मजबूत स्थिति को देखते हुए उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है।
इस प्रकार, सी. पी. राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति पद की ओर बढ़ना भारतीय राजनीति के इतिहास में एक नई दिशा और अवसर प्रस्तुत करता है, जहाँ संगठन, अनुभव और क्षेत्रीय संतुलन – तीनों का संगम दिखाई देता है। का संगम दिखाई देता है।
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