इज़रायल द्वारा सोमालीलैंड को मान्यता: हॉर्न ऑफ अफ्रीका की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़

26 दिसंबर 2025 को अंतरराष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में एक ऐसा घटनाक्रम घटित हुआ, जिसने अफ्रीका के हॉर्न क्षेत्र, मध्य-पूर्व की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून—तीनों को एक साथ प्रभावित किया। इज़रायल ने अफ्रीका के स्व-घोषित अलग क्षेत्र ‘सोमालीलैंड’ (Somaliland) को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में औपचारिक मान्यता प्रदान कर दी। इस निर्णय के साथ ही इज़रायल ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश और पहला संयुक्त राष्ट्र (UN) सदस्य बन गया।

यह मान्यता केवल एक द्विपक्षीय कूटनीतिक कदम नहीं है, बल्कि यह संप्रभुता बनाम आत्मनिर्णय, क्षेत्रीय अखंडता, अलगाववादी आंदोलनों, और भू-राजनीतिक संतुलन जैसे गहरे प्रश्नों को जन्म देती है। सोमालीलैंड, जो पिछले तीन दशकों से वास्तविक रूप से एक स्वतंत्र राज्य की तरह कार्य कर रहा था, अब पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर औपचारिक पहचान की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।

Table of Contents

सोमालीलैंड: भौगोलिक स्थिति और मूल परिचय

सोमालीलैंड, जिसे आधिकारिक रूप से ‘सोमालीलैंड गणराज्य’ कहा जाता है, अफ्रीका के हॉर्न ऑफ अफ्रीका (Horn of Africa) क्षेत्र में स्थित एक स्व-घोषित स्वतंत्र भू-भाग है।

भौगोलिक सीमाएँ

  • उत्तर में: अदन की खाड़ी (Gulf of Aden)
  • उत्तर-पश्चिम में: जिबूती
  • दक्षिण और पश्चिम में: इथियोपिया
  • पूर्व में: सोमालिया का पुंटलैंड क्षेत्र

यह क्षेत्र लाल सागर और अदन की खाड़ी के संगम के निकट स्थित है, जो इसे वैश्विक समुद्री व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।

राजधानी और प्रमुख नगर

  • राजधानी: हर्गेइसा (Hargeisa)
  • प्रमुख बंदरगाह: बरबेरा (Berbera)

बरबेरा बंदरगाह न केवल सोमालीलैंड, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक रणनीतिक समुद्री प्रवेश द्वार के रूप में उभर रहा है।

क्षेत्रफल और जनसंख्या

  • क्षेत्रफल: लगभग 1,76,120 वर्ग किलोमीटर
  • जनसंख्या (2024 अनुमान): लगभग 62 लाख

सोमालीलैंड की अर्थव्यवस्था

सोमालीलैंड की अर्थव्यवस्था सीमित संसाधनों के बावजूद स्थिर बनी हुई है।

प्रमुख आर्थिक आधार

  1. पशुधन निर्यात (Livestock Export)
    • खाड़ी देशों को ऊँट, भेड़ और बकरियों का निर्यात
  2. प्रवासी धन (Remittances)
    • विदेशों में बसे सोमाली नागरिकों द्वारा भेजा गया धन
  3. दूरसंचार और सेवाएँ
    • अपेक्षाकृत उन्नत टेलीकॉम नेटवर्क

हालाँकि अंतरराष्ट्रीय मान्यता के अभाव में विदेशी निवेश और वित्तीय संस्थानों तक इसकी पहुँच सीमित रही है, लेकिन इज़रायल की मान्यता इस स्थिति को बदल सकती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: औपनिवेशिक काल से अलगाव तक

सोमालीलैंड का इतिहास केवल एक क्षेत्रीय विभाजन की कथा नहीं है, बल्कि यह औपनिवेशिक विरासत, असफल राष्ट्र-निर्माण, जातीय असंतुलन और राजनीतिक दमन का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसके वर्तमान स्वरूप को समझने के लिए इसके औपनिवेशिक अतीत से लेकर 1991 में हुई स्वतंत्रता घोषणा तक की घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन आवश्यक है।

1. ब्रिटिश सोमालीलैंड: औपनिवेशिक शासन की पृष्ठभूमि

सोमालीलैंड का अधिकांश भाग उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गया था। इसे आधिकारिक रूप से “ब्रिटिश सोमालीलैंड प्रोटेक्टोरेट” कहा जाता था।

ब्रिटिश शासन की विशेषताएँ

  • ब्रिटिश प्रशासन का उद्देश्य मुख्यतः:
    • अदन (Aden) में स्थित अपने नौसैनिक अड्डों के लिए
      पशुधन और रसद आपूर्ति सुनिश्चित करना
  • यहाँ प्रत्यक्ष शासन अपेक्षाकृत सीमित था
  • पारंपरिक कबीलाई संरचनाओं को largely बनाए रखा गया
  • प्रशासनिक हस्तक्षेप इतालवी सोमालिया की तुलना में कम था

इस अलग औपनिवेशिक अनुभव ने ब्रिटिश सोमालीलैंड की राजनीतिक चेतना और प्रशासनिक संस्कृति को अलग दिशा दी।

2. 26 जून 1960: स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय मान्यता

औपनिवेशिक व्यवस्था के अंत के साथ—

  • 26 जून 1960 को ब्रिटिश सोमालीलैंड को स्वतंत्रता प्राप्त हुई
  • यह स्वतंत्रता केवल औपचारिक नहीं थी, बल्कि इसे:
    • इज़रायल सहित 35 देशों द्वारा मान्यता भी प्राप्त हुई

यह तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि:

  • यह दर्शाता है कि सोमालीलैंड पहले से ही
    अंतरराष्ट्रीय कानून की दृष्टि में एक स्वतंत्र इकाई रह चुका है
  • वर्तमान मान्यता संबंधी बहस में यही बिंदु
    सोमालीलैंड का सबसे मजबूत ऐतिहासिक आधार माना जाता है

हालाँकि, यह स्वतंत्र अस्तित्व बहुत अल्पकालिक रहा।

3. सोमाली गणराज्य का गठन: एक राजनीतिक प्रयोग

1 जुलाई 1960: विलय का निर्णय

केवल पाँच दिन बाद, 1 जुलाई 1960 को—

  • ब्रिटिश सोमालीलैंड
  • और इतालवी सोमालिया

का विलय कर “सोमाली गणराज्य” (Somali Republic) का गठन किया गया।

यह विलय क्यों हुआ?

  • “ग्रेटर सोमालिया” की राष्ट्रवादी भावना
  • सभी सोमाली भाषी क्षेत्रों को एक राष्ट्र में जोड़ने का सपना
  • पैन-सोमाली राष्ट्रवाद (Pan-Somalism)

लेकिन यह एक जोखिमपूर्ण प्रयोग था

यह विलय वास्तव में—

  • दो भिन्न औपनिवेशिक व्यवस्थाओं को एक राजनीतिक इकाई में जोड़ने का प्रयास था:
    • ब्रिटिश मॉडल → सीमित प्रशासन, कबीलाई स्वायत्तता
    • इतालवी मॉडल → केंद्रीकृत, नौकरशाही नियंत्रण

परिणामस्वरूप:

  • प्रशासनिक असंतुलन
  • शक्ति का दक्षिण (मोगादिशु) में केंद्रीकरण
  • उत्तर (सोमालीलैंड क्षेत्र) की उपेक्षा

यहीं से असंतोष के बीज बोए गए।

4. सियाद बर्रे का शासन (1969–1991): दमन और उत्पीड़न

सत्ता में आगमन

  • 1969 में जनरल सियाद बर्रे ने सैन्य तख्तापलट के माध्यम से सत्ता संभाली
  • उन्होंने “वैज्ञानिक समाजवाद” (Scientific Socialism) की नीति अपनाई
  • वास्तविकता में यह शासन:
    • कठोर सैन्य तानाशाही में बदल गया

इसहाक कबीले के साथ भेदभाव

सोमालीलैंड का प्रमुख समुदाय इसहाक कबीला (Isaaq clan) था। सियाद बर्रे शासन में—

  • इस कबीले को:
    • राजनीतिक रूप से हाशिए पर रखा गया
    • सरकारी पदों और संसाधनों से वंचित किया गया

दमन की चरम सीमा

1980 के दशक में स्थिति और भयावह हो गई—

  • सोमाली नेशनल मूवमेंट (SNM) के उदय के बाद
  • सरकार ने पूरे क्षेत्र को “विद्रोही क्षेत्र” घोषित कर दिया

परिणामस्वरूप:

  • हर्गेइसा और बुराओ जैसे शहरों पर हवाई बमबारी
  • हजारों नागरिकों की हत्या
  • सामूहिक कब्रें
  • मानवाधिकार संगठनों के अनुसार:
    • इसहाक समुदाय के विरुद्ध नरसंहार (genocide-like crimes)

यह अनुभव सोमालीलैंड की सामूहिक स्मृति में गहराई से अंकित हो गया।

5. सियाद बर्रे का पतन और गृहयुद्ध

  • 1991 में सियाद बर्रे शासन का पतन हुआ
  • पूरे सोमालिया में:
    • गृहयुद्ध
    • अराजकता
    • केंद्रीय सत्ता का पूर्ण विघटन

मोगादिशु सहित अधिकांश क्षेत्र:

  • युद्धरत गुटों में बँट गए
  • “Failed State” की स्थिति उत्पन्न हो गई

6. 1991: सोमालीलैंड की एकतरफा स्वतंत्रता घोषणा

ऐतिहासिक निर्णय

इसी अराजक वातावरण में—

  • 1991 में सोमालीलैंड ने एकतरफा स्वतंत्रता की घोषणा कर दी
  • यह घोषणा:
    • 1960 से पूर्व की सीमाओं के आधार पर की गई
    • किसी नए क्षेत्रीय विस्तार की मांग नहीं थी

स्वतंत्रता के पीछे तर्क

  • लंबे समय तक हुआ दमन
  • केंद्रीय राज्य की पूर्ण विफलता
  • सुरक्षा, स्थिरता और आत्मनिर्णय की आवश्यकता

इसके बाद क्या हुआ?

सोमालीलैंड ने:

  • शांति प्रक्रिया चलाई
  • कबीलाई सुलह के माध्यम से स्थिर शासन स्थापित किया
  • संविधान, चुनाव और संस्थाओं का निर्माण किया

जबकि सोमालिया दशकों तक अराजकता में डूबा रहा।

समग्र विश्लेषण

सोमालीलैंड का अलगाव—

  • अचानक लिया गया निर्णय नहीं था
  • बल्कि यह:
    • औपनिवेशिक विरासत
    • असफल विलय
    • राज्य-प्रायोजित दमन
    • और आत्मरक्षा की आवश्यकता

का परिणाम था।

यही ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आज सोमालीलैंड के अंतरराष्ट्रीय मान्यता के दावे को नैतिक और राजनीतिक बल प्रदान करती है।

सोमालीलैंड की वर्तमान राजनीतिक स्थिति

हालाँकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं थी, लेकिन सोमालीलैंड ने:

  • चुनी हुई सरकार
  • लिखित संविधान
  • स्वतंत्र न्यायपालिका
  • सुरक्षा बल और सेना
  • अपनी मुद्रा – सोमालीलैंड शिलिंग

जैसी सभी आवश्यक संस्थाएँ विकसित कर ली थीं।

यही कारण है कि इसे अक्सर “de facto state” कहा जाता है।

इज़रायल द्वारा मान्यता: घटनाक्रम और समझौते

औपचारिक घोषणा

  • 26 दिसंबर 2025
  • इज़रायल और सोमालीलैंड के बीच संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर
  • इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस निर्णय की घोषणा की

प्रमुख बिंदु

  • इज़रायल ने सोमालीलैंड को स्वतंत्र और संप्रभु राज्य माना
  • सहयोग के क्षेत्र:
    • कृषि
    • स्वास्थ्य
    • तकनीक
    • आर्थिक विकास
  • सोमालीलैंड के राष्ट्रपति अब्दिरहमान मोहम्मद अब्दुल्लाही ने:
    • इस कदम का स्वागत किया
    • अब्राहम समझौते के ढांचे में शामिल होने की इच्छा जताई

अब्राहम समझौते और इज़रायल की रणनीति

इज़रायल इस कदम को अब्राहम समझौते की भावना के अनुरूप बताता है।

इज़रायल के उद्देश्य

  • अफ्रीका में राजनयिक विस्तार
  • लाल सागर क्षेत्र में रणनीतिक उपस्थिति
  • कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों (जैसे अल-शबाब) का विरोध
  • चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना

सोमालीलैंड का भू-राजनीतिक महत्व

1. लाल सागर का प्रवेश द्वार

  • बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य के निकट
  • वैश्विक तेल और व्यापार मार्गों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण

2. बरबेरा बंदरगाह

  • इथियोपिया जैसे भू-आबद्ध देशों के लिए समुद्री मार्ग
  • जनवरी 2024 में इथियोपिया-सोमालीलैंड समझौता

3. सुरक्षा साझेदारी

  • अल-शबाब के विरुद्ध सहयोग
  • पश्चिमी और इज़रायली हितों के अनुकूल क्षेत्र

सोमालिया की प्रतिक्रिया

सोमालिया ने इज़रायल के फैसले की कड़ी निंदा की।

प्रमुख आपत्तियाँ

  • इसे “गैरकानूनी कदम” बताया
  • अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन
  • अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत:
    • राजनयिक
    • राजनीतिक
    • कानूनी कदम उठाने की चेतावनी

क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

अफ्रीकी संघ (AU)

  • मान्यता को अस्वीकार
  • सोमालिया की एकता के समर्थन की पुनः पुष्टि

मिस्र, तुर्की और जिबूती

  • चेतावनी:
    • क्षेत्रीय शांति को खतरा
    • अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा

अंतरराष्ट्रीय कानून का प्रश्न: आत्मनिर्णय बनाम क्षेत्रीय अखंडता

यह मामला दो सिद्धांतों के टकराव को उजागर करता है:

1. आत्मनिर्णय का अधिकार

  • सोमालीलैंड की जनता ने अलग पहचान चुनी
  • स्थिर शासन और संस्थागत ढांचा मौजूद

2. क्षेत्रीय अखंडता

  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय सामान्यतः मौजूदा सीमाओं का सम्मान करता है
  • अफ्रीका में सीमा परिवर्तन को लेकर संवेदनशीलता

इस कदम का महत्व और संभावित प्रभाव

सोमालीलैंड के लिए

  • अंतरराष्ट्रीय वैधता
  • विदेशी निवेश की संभावना
  • वैश्विक बाजारों तक पहुँच

क्षेत्रीय राजनीति के लिए

  • हॉर्न ऑफ अफ्रीका की शक्ति-संतुलन में बदलाव
  • नए गठबंधन

वैश्विक स्तर पर

  • अलगाववादी आंदोलनों के लिए उदाहरण
  • अंतरराष्ट्रीय मान्यता की प्रक्रिया पर पुनर्विचार

प्रमुख हाइलाइट्स (Key Highlights)

  • इज़रायल सोमालीलैंड को मान्यता देने वाला पहला देश
  • सोमालीलैंड ने 1991 में स्वतंत्रता की घोषणा की थी
  • सोमालिया, अफ्रीकी संघ और मिस्र ने विरोध किया
  • मामला अब्राहम समझौते से जुड़ा
  • संप्रभुता बनाम आत्मनिर्णय की बहस पुनर्जीवित

निष्कर्ष

इज़रायल द्वारा सोमालीलैंड को दी गई मान्यता केवल एक कूटनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि 21वीं सदी की भू-राजनीति में एक निर्णायक मोड़ है। यह कदम अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की जड़ मान्यताओं को चुनौती देता है और यह प्रश्न उठाता है कि क्या स्थिरता, लोकतंत्र और प्रभावी शासन—मान्यता से अधिक महत्वपूर्ण हैं।

आने वाले वर्षों में यह देखा जाना शेष है कि क्या अन्य देश इज़रायल के पदचिह्नों पर चलेंगे या यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक अपवाद बनकर रह जाएगा। किंतु इतना निश्चित है कि सोमालीलैंड अब वैश्विक विमर्श के केंद्र में आ चुका है।


इन्हें भी देखें –

Leave a Comment

Table of Contents

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.