भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन | संरचना, विकास और विशेषताएं

भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन की शुरुआत 1667 में चेन्नई से मानी जाती है। यह प्रशासनिक व्यवस्था समय के साथ विकसित हुई और 1992 में 74वें संविधान संशोधन द्वारा इसे संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। इस लेख में भारतीय नगरीय प्रशासन के संवैधानिक प्रावधानों, संरचना, और विभिन्न अनुच्छेदों पर विस्तृत रूप से चर्चा किया गया है।

स्थानीय नगरीय प्रशासन को संवैधानिक दर्जा और 74वां संविधान संशोधन

74वें संविधान संशोधन, 1992 ने स्थानीय नगरीय प्रशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इस संशोधन ने नगरीय प्रशासन को सुदृढ़ और संगठित बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए। इसके तहत नगरीय शासन की त्रिस्तरीय व्यवस्था, निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति, राज्य वित्त आयोग का गठन, और महिलाओं तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था शामिल है।

प्रमुख अनुच्छेद और प्रावधान

अनुच्छेद 243(S): वार्ड समितियों का गठन

यह अनुच्छेद वार्ड समितियों के गठन का प्रावधान करता है। वार्ड समितियाँ स्थानीय प्रशासन का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं जो नागरिकों की समस्याओं और उनके समाधान के लिए कार्य करती हैं।

अनुच्छेद 243(R): त्रिस्तरीय नगरीय शासन की व्यवस्था

यह अनुच्छेद त्रिस्तरीय नगरीय शासन की व्यवस्था को परिभाषित करता है, जिसमें नगरपालिकाएं, नगर परिषद और नगर निगम शामिल हैं।

  • नगरपालिका: यह नगरीय प्रशासन की सबसे नीचली इकाई है और छोटे नगरों और कस्बों के लिए जिम्मेदार होती है।
  • नगर परिषद: यह मध्यम आकार के नगरों के लिए होती है और नगरपालिका से उच्च स्तर पर कार्य करती है।
  • नगर निगम: यह बड़े नगरों और महानगरों के लिए होती है और सबसे उच्च स्तर पर प्रशासनिक कार्य करती है।

अनुच्छेद 243(Z-A): निर्वाचन आयुक्त का प्रावधान

इस अनुच्छेद के तहत राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, और विघटन की स्थिति में 6 माह के भीतर चुनाव कराना आवश्यक होता है।

भारत के पहले निर्वाचन आयुक्त अमर सिंह राठौड़ थे, जिन्होंने इस प्रणाली को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अनुच्छेद 243(T): आरक्षण का प्रावधान

इस अनुच्छेद के तहत महिलाओं को 1/3 आरक्षण और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि नगरीय प्रशासन में सभी वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व हो।

अनुच्छेद 243(Y): राज्य वित्त आयोग का प्रावधान

इस अनुच्छेद के तहत राज्य वित्त आयोग का प्रावधान किया गया है, जो विभिन्न स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों के वित्तीय संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करता है।

स्थानीय नगरीय प्रशासन की संरचना

74वें संविधान संशोधन ने भारतीय नगरीय प्रशासन को एक स्पष्ट और संगठित संरचना प्रदान की है। इस संरचना में तीन प्रमुख इकाइयाँ शामिल हैं:

  1. नगरपालिका (Municipality): छोटे नगरों और कस्बों के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होती है। यह स्थानीय प्रशासन की सबसे नीचली इकाई है और नगर के विकास और रखरखाव के लिए कार्य करती है।
  2. नगर परिषद (Municipal Council): मध्यम आकार के नगरों के लिए होती है और नगरपालिका से उच्च स्तर पर कार्य करती है। यह नगर के विकास, योजना निर्माण और नागरिक सुविधाओं के संचालन के लिए जिम्मेदार होती है।
  3. नगर निगम (Municipal Corporation): बड़े नगरों और महानगरों के लिए होती है और सबसे उच्च स्तर पर प्रशासनिक कार्य करती है। नगर निगम बड़े पैमाने पर नगर के विकास, योजना, और नागरिक सुविधाओं का संचालन करती है।

नगरपालिका (Municipality)

नगरपालिका छोटे नगरों और कस्बों के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होती है। यह स्थानीय प्रशासन की सबसे नीचली इकाई है, जो नगर के विकास और रखरखाव के लिए कार्य करती है। नगरपालिका का प्रमुख उद्देश्य स्थानीय लोगों की समस्याओं का समाधान करना और उन्हें मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना होता है। इसमें सड़कों की मरम्मत, साफ-सफाई, जल आपूर्ति, कचरा प्रबंधन, पार्कों का रखरखाव, स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंध और प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में योगदान शामिल है।

नगरपालिका में एक चुनी हुई परिषद होती है, जिसमें अध्यक्ष (चेयरमैन) और अन्य सदस्य होते हैं। इनका चुनाव स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष का कार्यकाल आमतौर पर पांच साल का होता है। नगरपालिका की आय का मुख्य स्रोत स्थानीय कर होते हैं, जैसे कि संपत्ति कर, जल कर, और दुकानों एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर लगाए गए कर। इसके अलावा, राज्य और केंद्र सरकार से अनुदान भी प्राप्त होता है।

नगर परिषद (Municipal Council)

नगर परिषद मध्यम आकार के नगरों के प्रशासन के लिए होती है और यह नगरपालिका से उच्च स्तर पर कार्य करती है। नगर परिषद का प्रमुख कार्य नगर के विकास, योजना निर्माण और नागरिक सुविधाओं का संचालन होता है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति, स्वच्छता, सड़क निर्माण, परिवहन, और नगर की संरचना में सुधार जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करती है।

नगर परिषद में एक अध्यक्ष (प्रमुख) और अन्य सदस्य होते हैं, जिनका चुनाव स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष का कार्यकाल भी आमतौर पर पांच साल का होता है। नगर परिषद की आय के मुख्य स्रोत स्थानीय कर, राज्य और केंद्र सरकार के अनुदान, और विभिन्न योजनाओं के तहत प्राप्त धन होते हैं। यह संस्था विभिन्न विकास योजनाओं को लागू करने और नगर के समग्र विकास को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

नगर निगम (Municipal Corporation)

नगर निगम बड़े नगरों और महानगरों के प्रशासन के लिए होती है और यह स्थानीय प्रशासन की सबसे उच्च इकाई होती है। नगर निगम बड़े पैमाने पर नगर के विकास, योजना, और नागरिक सुविधाओं का संचालन करती है। इसमें बुनियादी ढांचे का विकास, ट्रांसपोर्ट सिस्टम, जल प्रबंधन, सीवेज सिस्टम, ठोस कचरा प्रबंधन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य शामिल हैं।

नगर निगम का नेतृत्व मेयर (महापौर) करते हैं, जिनका चुनाव स्थानीय जनता द्वारा किया जाता है। नगर निगम में एक कार्यकारी समिति होती है, जिसमें विभिन्न विभागों के प्रमुख और अन्य सदस्य शामिल होते हैं। नगर निगम की आय का मुख्य स्रोत विभिन्न प्रकार के कर, जैसे संपत्ति कर, जल कर, मनोरंजन कर, और व्यावसायिक कर होते हैं। इसके अलावा, राज्य और केंद्र सरकार से अनुदान और विभिन्न योजनाओं के तहत धन भी प्राप्त होता है।

नगर निगम बड़े शहरों की जटिल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाए गए हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी नागरिकों को उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएं प्रदान की जा सकें। इसके साथ ही, नगर निगम शहर के समग्र विकास और योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे शहर की संरचना और जीवन स्तर में सुधार होता है।

स्थानीय प्रशासन की ये तीन प्रमुख इकाइयाँ – नगरपालिका, नगर परिषद, और नगर निगम – अपने-अपने स्तर पर नगरों और शहरों के विकास और रखरखाव के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये संस्थाएँ सुनिश्चित करती हैं कि स्थानीय लोगों को मूलभूत सुविधाएं और सेवाएं प्रदान की जाएं, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर हो और उनका क्षेत्र विकास की दिशा में अग्रसर हो। प्रत्येक इकाई की संरचना, कार्य और जिम्मेदारियाँ उनके आकार और महत्व के अनुसार निर्धारित होती हैं, जिससे स्थानीय प्रशासनिक प्रणाली प्रभावी और कारगर होती है।

निर्वाचन प्रक्रिया और कार्यकाल

स्थानीय नगरीय प्रशासन में पदों की निर्वाचन प्रक्रिया और कार्यकाल भी महत्वपूर्ण है।

  • निर्वाचन:
    • सरपंच और वार्ड पंच: व्यस्क मताधिकार द्वारा चुने जाते हैं और उपसरपंच का चयन बहुमत से होता है।
    • प्रधान और उपप्रधान: प्रधान व पंचायत समिति सदस्यों का चुनाव व्यस्क मताधिकार द्वारा होता है तथा उपप्रधान का चयन बहुमत से होता है।
    • जिला प्रमुख और उपजिला प्रमुख: जिला परिषद के सदस्यों का चुनाव व्यस्क मताधिकार द्वारा होता है और प्रमुख तथा उपप्रमुख का चयन बहुमत से होता है।
  • कार्यकाल: सभी पदों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। यदि किसी कारण से पद का विघटन होता है, तो 6 माह के भीतर पुनः चुनाव कराया जाता है।

राज्य वित्त आयोग

राज्य वित्त आयोग का गठन स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों के वित्तीय संसाधनों के वितरण को सुनिश्चित करता है। यह आयोग स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों की वित्तीय आवश्यकताओं का आकलन करता है और उनके लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों का वितरण सुनिश्चित करता है।

आरक्षण और प्रतिनिधित्व

नगरीय प्रशासन में महिलाओं और अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। महिलाओं को 1/3 आरक्षण और अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाता है। यह प्रावधान नगरीय प्रशासन में सभी वर्गों के उचित प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करता है।

वार्ड समितियाँ और उनका महत्व

वार्ड समितियाँ नगरीय प्रशासन का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं। ये समितियाँ नागरिकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए कार्य करती हैं और स्थानीय प्रशासन को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वार्ड समितियों का गठन अनुच्छेद 243(S) के तहत किया जाता है।

स्थानीय नगरीय प्रशासन का उद्देश्य

स्थानीय नगरीय प्रशासन का उद्देश्य नगरों और शहरों में स्वशासन को प्रोत्साहित करना और स्थानीय विकास को सुनिश्चित करना है। यह प्रणाली नागरिकों को अपनी स्थानीय समस्याओं के समाधान में सीधे तौर पर भाग लेने का अवसर प्रदान करती है और नगरों के समुचित विकास को सुनिश्चित करती है।

भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन की शुरुआत से लेकर 74वें संविधान संशोधन तक, इस प्रणाली ने एक लंबा सफर तय किया है। इस संशोधन ने नगरीय प्रशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और इसे अधिक संगठित और प्रभावी बनाया। विभिन्न अनुच्छेदों और प्रावधानों के माध्यम से नगरीय प्रशासन को सुदृढ़ और लोकतांत्रिक बनाया गया है, जिससे नागरिकों को बेहतर प्रशासनिक सेवाएँ और सुविधाएँ प्राप्त हो सकें।

स्थानीय नगरीय प्रशासन भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो नागरिकों के दैनिक जीवन को सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से नागरिकों की समस्याओं का समाधान किया जाता है और नगरों का विकास सुनिश्चित किया जाता है। 74वें संविधान संशोधन ने इस प्रणाली को एक मजबूत आधार प्रदान किया है, जिससे स्थानीय प्रशासन अधिक प्रभावी और उत्तरदायी बना है।

Polity – KnowledgeSthali


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