‘एकांकी’ हिन्दी साहित्य की एक विशिष्ट और प्रभावशाली विधा है, जो कम समय में अधिक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता रखती है। यद्यपि ‘एकांकी’ शब्द अंग्रेजी के ‘वन-ऐक्ट प्ले’ से लिया गया है, लेकिन इसका स्वरूप भारतीय साहित्यिक परंपरा से पूर्णतः अपरिचित नहीं रहा है।
भारतीय नाट्य परंपरा में भी एक दृश्यीय, संवाद प्रधान और जीवन की किसी एक समस्या या पक्ष को केंद्र में रखकर प्रस्तुत करने वाली कृतियाँ मिलती रही हैं। अतः यह कहना उचित नहीं होगा कि हिन्दी एकांकी पूरी तरह से अंग्रेज़ी प्रभाव का परिणाम है।
प्रो. अमरनाथ का यह मत कि “एकांकी नाटक हिन्दी में सर्वथा नवीनतम कृति है”, आंशिक रूप से सही माना जा सकता है, किंतु डॉ. सरनाम सिंह ने इसका खंडन करते हुए कहा कि “यह मानना कितना भ्रामक होगा कि हिन्दी एकांकी के सामने कोई भारतीय आदर्श ही न था।” इससे यह स्पष्ट होता है कि हिन्दी एकांकी का विकास एक ओर जहाँ पश्चिमी साहित्यिक प्रभाव से हुआ, वहीं दूसरी ओर इसकी संस्कृति और जड़ें भारतीय लोक साहित्य में भी मौजूद थीं।
इस लेख में हम हिन्दी एकांकी के स्वरूप, विशेषताओं, विकास यात्रा और प्रमुख एकांकीकारों पर विस्तृत चर्चा करेंगे, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि यह विधा न केवल हिन्दी नाटक की एक स्वतंत्र शाखा है, बल्कि इसमें सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक चेतना के अनेक आयाम उजागर होते हैं।
एकांकी का अर्थ
हिंदी साहित्य में एकांकी एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली विधा है, जो नाट्य विधा की ही एक संक्षिप्त, परंतु सशक्त शाखा मानी जाती है। “एकांकी” का अर्थ है – ऐसा नाटक जो एक ही अंक में सम्पूर्ण हो। इसमें पात्रों की संख्या सीमित होती है और मंचन की दृष्टि से यह सरल तथा प्रभावशाली होता है।
एकांकी की परिभाषा
एकांकी एक ऐसा लघु नाटक होता है, जिसमें किसी एक विचार, एक घटना, एक स्थान, एक समय और सीमित पात्रों के माध्यम से किसी सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, या नैतिक समस्या को प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य सीमित समय में प्रभावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से दर्शकों या पाठकों को प्रभावित करना होता है।
एकांकी का मूल स्वरूप
‘एकांकी’ एक प्रकार का लघु नाटक है जो एक ही दृश्य, एक ही कृत्य और सीमित पात्रों में किसी महत्वपूर्ण विचार, समस्या या भाव को केंद्र में रखकर प्रस्तुत किया जाता है। यह संक्षिप्त किंतु प्रभावशाली होता है और इसमें आरंभ से लेकर अंत तक एक ही विचारधारा प्रवाहित होती है।
प्रो. अमरनाथ ने कहा था— “एकांकी नाटक हिन्दी में सर्वथा नवीनतम कृति है, इसका जन्म हिन्दी साहित्य में अंग्रेजी के प्रभाव के कुछ वर्ष पूर्व ही हुआ है।” इस कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि एकांकी का उद्भव हिन्दी में पूर्णतः अंग्रेजी साहित्य के संपर्क से हुआ, किंतु डॉ. सरनाम सिंह ने इस मत का खंडन करते हुए कहा कि यह मानना भ्रामक होगा कि हिन्दी एकांकी के सामने कोई भारतीय आदर्श नहीं था।
वास्तव में, एकांकी नाटक की नींव भारतीय शास्त्रीय परंपरा में भी कहीं न कहीं मौजूद थी। प्राचीन संस्कृत नाटकों में भी एक-दृश्यीय लघु प्रस्तुतियाँ मिलती हैं। लोकनाट्य और लोकगीतों में जीवन के किसी एक पक्ष को केंद्र में रखकर लघु नाट्य का रूप देखने को मिलता है। अतः यह कहना अनुचित नहीं होगा कि हिन्दी एकांकी की अवधारणा का बीज भारतीय नाट्य परंपरा में पहले से ही अंकित था, जिसे आधुनिक साहित्य में नवजीवन मिला।
हिन्दी एकांकी का उद्भव और ऐतिहासिक विकास
हिन्दी एकांकी का आरंभ बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में माना जाता है। इसका विकास मुख्यतः पश्चिमी साहित्य, विशेषकर ब्रिटिश थिएटर के प्रभाव से हुआ, जहां ‘कर्टेन रेज़र’ के रूप में लघु नाटकों की परंपरा विकसित हुई थी।
भारत में इस प्रभाव के परिणामस्वरूप हिन्दी एकांकी का जन्म हुआ। हिन्दी के पहले आधुनिक एकांकी के रूप में जय शंकर प्रसाद की ‘एक घूंट’ को स्वीकार किया जाता है। यह रचना न केवल हिन्दी एकांकी की दिशा निर्धारित करती है, बल्कि इस विधा को एक सशक्त साहित्यिक रूप में स्थापित भी करती है। इसके बाद अनेक रचनाकारों ने इस विधा में सशक्त रचनाएं प्रस्तुत कीं और इसे हिन्दी साहित्य की एक प्रतिष्ठित विधा का स्थान दिलाया।
हिंदी साहित्य की पहली एकांकी
हिंदी साहित्य में एकांकी विधा का प्रारंभ 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में हुआ। एकांकी को नाटक की ही एक संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली रूप माना जाता है, जो केवल एक अंक में किसी कथा, भाव या घटना को प्रस्तुत करता है। इस विधा ने हिंदी नाटक को संक्षिप्तता, तीव्रता और सघनता प्रदान की।
हिंदी की पहली एकांकी को लेकर विद्वानों के मत भिन्न हैं, किंतु अधिकांश साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित “एक घूँट” (1929) को ही हिंदी की पहली प्रामाणिक एकांकी मानते हैं। यह एकांकी अपनी भाषा, भावबोध, संवेदनशीलता और नाटकीयता के कारण एक मील का पत्थर मानी जाती है। इसमें एक साधारण से क्षण को भावनात्मक गहराई और जीवन-दर्शन के साथ प्रस्तुत किया गया है, जो उस समय की पारंपरिक लेखन शैली से एकदम भिन्न था।
हालाँकि, कुछ विद्वान जैसे हरिचंद्र वर्मा, रामकुमार वर्मा की एकांकी “बादल की मृत्यु” (1930) को भी हिंदी की पहली एकांकी मानते हैं। यह एकांकी भी तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों को आधार बनाकर लिखी गई थी और एकांकी विधा को व्यापक पहचान देने में सहायक बनी।
इन दोनों रचनाओं ने हिंदी में एकांकी लेखन की नींव रखी और आने वाले समय में अनेक साहित्यकारों ने इस विधा में लेखन कर इसे समृद्ध किया। विशेषकर भुवनेश्वर, मोहन राकेश, विष्णु प्रभाकर, रामकुमार वर्मा जैसे रचनाकारों ने एकांकी को विषय-वस्तु, भाषा, शिल्प और शैली की दृष्टि से विविधता प्रदान की।
निष्कर्ष : इस प्रकार, “एक घूँट” को हिंदी साहित्य की पहली मान्यता प्राप्त एकांकी कहा जा सकता है, जिसने नाट्य साहित्य की इस विधा को गंभीरता, गरिमा और कलात्मकता प्रदान की। यह एकांकी हिंदी रंगमंच और साहित्य में एक नए युग की शुरुआत मानी जाती है।
एकांकी का स्वरूप
एकांकी नाटक अपने स्वरूप में संक्षिप्त, सघन और प्रभावपूर्ण होता है। इसके स्वरुप को निम्नलिखित प्रमुख विन्दुओं में समझा जा सकता हैं:
1. एक विचार का आधिक्य
एकांकी का केन्द्र बिंदु एक मुख्य विचार होता है। यह विचार ही पूरे कथानक का आधार बनता है। किसी एक भाव, समस्या या पक्ष को गहराई से चित्रित करना ही एकांकी की पहचान है।
2. स्थान, काल और कृत्य की एकता
संकलनत्रय अर्थात् स्थान, काल और कृत्य की एकता एकांकी की मूल विशेषताओं में शामिल है। सेठ गोविंददास ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा था— “वही संकलनत्रय कुछ फेरबदल के साथ एकांकी नाटक के लिए जरूरी चीज है।”
3. संक्षिप्तता
एकांकी संक्षिप्त होता है। इसकी अवधि सामान्यतः 35-40 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए। लंबे एकांकी अपनी प्रभावशीलता खो सकते हैं।
4. कथानक की गतिशीलता
कथानक में गति और प्रवाह आवश्यक है। इसकी संरचना ऐसी होनी चाहिए कि वह आरंभ से चरम तक स्वाभाविक रूप से पहुँचे।
5. आश्चर्य और कौतूहल
प्रत्येक एकांकी में जिज्ञासा, कौतूहल और आश्चर्य की स्थिति होना आवश्यक है ताकि पाठक या दर्शक की रुचि अंत तक बनी रहे।
6. सीमित पात्र संख्या
पात्रों की संख्या कम होनी चाहिए, लेकिन वे पात्र प्रभावशाली होने चाहिए। उनकी भूमिका कथानक को आगे बढ़ाने में सहायक होनी चाहिए।
7. सशक्त संवाद
संवाद छोटे, सटीक, और कथावस्तु को गति देने वाले होने चाहिए। संवादों से ही पात्रों का चरित्र, उनकी मनोवृत्ति और भावनाएँ स्पष्ट होती हैं।
8. प्रभावशाली अभिनय
अभिनय एकांकी का प्राणतत्व है। सीमित समय में चरित्र की गहराई को उजागर करने के लिए कलाकार का अभिनय दक्ष होना आवश्यक है।
संकलनत्रय और एकांकी
नाट्यकला में ‘संकलनत्रय’ की अवधारणा का बहुत महत्व है, जो कि ‘स्थान, काल और कृत्य’ की एकता को दर्शाती है। एकांकी में यह एकता अनिवार्य रूप से होनी चाहिए।
सेठ गोविन्ददास लिखते हैं— “वही संकलनत्रय कुछ फेरफार के साथ एकांकी नाटक के लिए जरूरी चीज है।” इसमें भी संकलन ऐक्य अर्थात् नाटक का केवल एक ही समय, स्थान और कृत्य में सीमित रहना आवश्यक है। इससे नाटक की एकाग्रता और प्रभावशीलता बनी रहती है।
हिन्दी के प्रमुख एकांकीकार
हिन्दी एकांकी साहित्य में कई ऐसे रचनाकार हुए हैं जिन्होंने इस विधा को न केवल समृद्ध किया बल्कि उसकी सीमाओं का विस्तार भी किया।
1. जय शंकर प्रसाद
आधुनिक हिन्दी एकांकी के जन्मदाता माने जाते हैं। उनकी रचना ‘एक घूंट’ हिन्दी साहित्य में एकांकी की पहली सशक्त कृति मानी जाती है। उन्होंने एकांकी के माध्यम से मानसिक और सामाजिक द्वंद्व को प्रस्तुत किया।
2. राम कुमार वर्मा
हिन्दी एकांकी को गंभीरता और गहराई देने वाले रचनाकारों में उनका नाम अग्रणी है। उनकी रचनाएं ‘रेशमी टाई’ और ‘चारुमित्रा’ में मनोवैज्ञानिक तत्वों की प्रमुखता है।
3. भुवनेश्वर
उनकी रचना ‘तांबे के कीड़े’ एक प्रयोगवादी और व्यंग्यात्मक एकांकी है। उन्होंने सामाजिक विद्रूपताओं को तीखे ढंग से प्रस्तुत किया।
4. उपेन्द्र नाथ अश्क
वे मध्यवर्गीय जीवन के व्यंग्यात्मक चित्रण में निपुण थे। उनकी रचना ‘साह को जुकाम है’ इस बात का स्पष्ट उदाहरण है।
5. उदय शंकर भट्ट
उनकी एकांकी ‘पर्दे के पीछे’ में नारी मनोविज्ञान का अत्यंत सूक्ष्म चित्रण मिलता है।
6. सेठ गोविन्ददास
वे एकांकी के सिद्धांतकार भी थे। उन्होंने एकांकी की संरचना, तत्वों और स्वरूप पर विस्तृत लेखन किया और कई प्रभावशाली एकांकियों की रचना भी की।
7. अन्य प्रमुख रचनाकार
हरिकृष्ण प्रेमी, विष्णु प्रभाकर, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, और प्रभाकर माचवे जैसे लेखक भी इस विधा में उल्लेखनीय योगदान दे चुके हैं। उन्होंने एकांकी को आधुनिक संदर्भों से जोड़ा और सामाजिक यथार्थ को रचनाओं का हिस्सा बनाया।
एकांकी का सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान
हिन्दी एकांकी केवल साहित्यिक विधा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन का एक उपकरण भी है। इसके माध्यम से लेखक सामाजिक विसंगतियों, राजनीतिक विडंबनाओं, पारिवारिक समस्याओं, और मानव मूल्यों पर गहन विचार प्रस्तुत करते हैं।
एकांकी के लघु और सघन रूप के कारण यह विद्यालयों, कॉलेजों, थियेटर, और रेडियो नाटकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यह विधा पाठकों और दर्शकों पर तेज़ प्रभाव डालती है क्योंकि इसमें विलंब, विस्तार या अनावश्यक घटनाओं के लिए स्थान नहीं होता।
आधुनिक युग में एकांकी की प्रासंगिकता
वर्तमान युग तीव्र गति और व्यस्तता का युग है। ऐसे में लघु विधाएं, विशेषकर एकांकी, अधिक उपयुक्त सिद्ध हो रही हैं। इसमें जीवन की वास्तविकता को संक्षिप्त और मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
आज जब मंच पर समय और संसाधनों की सीमा होती है, एकांकी न केवल साहित्यिक समाधान, बल्कि एक नाट्य विकल्प के रूप में भी उभर कर सामने आया है।
प्रमुख हिन्दी एकांकीकार और उनकी उल्लेखनीय एकांकियाँ
हिन्दी साहित्य में एकांकी विधा को समृद्ध करने वाले अनेक रचनाकारों ने सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विषयों को केंद्र में रखकर प्रभावशाली एकांकियाँ लिखी हैं। नीचे प्रमुख एकांकीकारों और उनकी रचनाओं की सूची दी गई है:
1. राधाचरण गोस्वामी
- तन-मन-धन गुसाँई जी के अर्पण
2. बालकृष्ण भट्ट
- शिक्षादान
3. देवकीनंदन खत्री
- जनेऊ का खेल
4. ‘उग्र’
- चार बेचारे, अफजल बध, भाई मियाँ
5. सुदर्शन
- आनरेरी मजिस्ट्रेट,
- राजपूत की हार,
- प्रताप प्रतिज्ञा
6. जयशंकर प्रसाद
- एक घूँट
7. डॉ. रामकुमार वर्मा
- रेशमी टाई,
- चारुमित्रा,
- विभूति,
- सप्तकिरण,
- औरंगजेब की आखिरी रात,
- पृथ्वीराज की आँखें,
- एक तोले अफीम की कीमत,
- दीपदान,
- दस मिनट,
- चंगेज खाँ,
- कौमुदी महोत्सव,
- मयूरपंख,
- जूही के फूल,
- 18 जुलाई की शाम,
- एक्ट्रेस
8. भुवनेश्वर
- ताँबे के कीड़े,
- आजादी की नींद,
- सिकंदर,
- एक साम्यहीन साम्यवादी,
- प्रतिभा का विवाह,
- स्ट्राइक,
- बाजीराव की तस्वीर,
- फोटोग्राफर के सामने,
- लाटरी,
- श्यामा
9. उदयशंकर भट्ट
- आत्मदान,
- दस हजार,
- एक ही कब्र में विस्फोट,
- समस्या का अंत,
- निर्दोष की रक्षा,
- बीमार का इलाज
10. उपेन्द्रनाथ अश्क
- लक्ष्मी का स्वागत,
- जोंक,
- अधिकार का रक्षक,
- अंधी गली,
- अंजो दीदी,
- सूखी डाली,
- स्वर्ग की झलक,
- भंवर,
- मोहब्बत,
- आपस का समझौता,
- छः एकांकी,
- साहब को जुकाम है,
- विवाह के दिन,
- देवताओं की छाया में
हिन्दी एकांकी साहित्य के प्रमुख रचनाकार: संक्षिप्त सारांशात्मक तालिका
हिन्दी साहित्य में एकांकी विधा ने 20वीं शताब्दी में एक स्वतंत्र और प्रभावशाली नाट्य रूप के रूप में अपनी पहचान स्थापित की। यह विधा अपनी संक्षिप्तता, तीव्रता और विषय की स्पष्टता के लिए जानी जाती है। विभिन्न साहित्यिक युगों में अनेक रचनाकारों ने एकांकी विधा में ऐतिहासिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक विषयों को केंद्र में रखकर रचनाएँ कीं।
नीचे दी गई तालिका में हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय, उनकी प्रमुख रचनाएँ, रचनाओं की मुख्य विशेषताएँ, तथा उनका साहित्यिक काल/युग को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह तालिका हिन्दी एकांकी के विकास क्रम, विषय विस्तार और शिल्प विविधता को समझने में सहायक सिद्ध होगी।
क्रम | एकांकीकार का नाम | प्रमुख एकांकियाँ | विशेषताएँ | काल / साहित्यिक युग |
---|---|---|---|---|
1 | राधाचरण गोस्वामी | तन-मन-धन गुसाँई जी के अर्पण | धार्मिक व सामाजिक चेतना | 19वीं शताब्दी उत्तरार्ध |
2 | बालकृष्ण भट्ट | शिक्षादान | समाज सुधारक दृष्टिकोण, शिक्षामूलक | नवजागरण युग (19वीं शताब्दी) |
3 | देवकीनंदन खत्री | जनेऊ का खेल | हास्य-व्यंग्य, परंपरा पर चोट | 19वीं शताब्दी अंत |
4 | ‘उग्र’ | चार वेचारे, अफजल बध, भाई मियाँ | सामाजिक विद्रूपताओं का चित्रण, तीव्र व्यंग्य | छायावादोत्तर काल |
5 | सुदर्शन | आनरेरी मजिस्ट्रेट, राजपूत की हार, प्रताप प्रतिज्ञा | ऐतिहासिकता, राष्ट्रप्रेम, नारी चित्रण | 20वीं शताब्दी प्रारंभ |
6 | जयशंकर प्रसाद | एक घूँट | एकांकी विधा का प्रारंभ, मनोवैज्ञानिक गहराई | छायावाद युग (1920 के दशक) |
7 | डॉ. रामकुमार वर्मा | रेशमी टाई, चारुमित्रा, विभूति, सप्तकिरण, औरंगजेब की आखिरी रात, पृथ्वीराज की आँखें, एक तोले अफीम की कीमत, दीपदान, दस मिनट, चंगेज खाँ, कौमुदी महोत्सव, मयूरपंख, जूही के फूल, 18 जुलाई की शाम, एक्ट्रेस | ऐतिहासिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक विविधता | 1930–1960 |
8 | भुवनेश्वर | ताँबे के कीड़े, आजादी की नींद, सिकंदर, एक साम्यहीन साम्यवादी, प्रतिभा का विवाह, स्ट्राइक, बाजीराव की तस्वीर, फोटोग्राफर के सामने, लाटरी, श्यामा | तीव्र व्यंग्य, प्रयोगशीलता, सामाजिक यथार्थ | प्रगतिशील युग (1936–1950) |
9 | उदयशंकर भट्ट | आत्मदान, दस हजार, एक ही कब्र में विस्फोट, समस्या का अंत, निर्दोष की रक्षा, बीमार का इलाज | मानवता, आदर्श, तर्कप्रधान दृष्टिकोण | 1940–1960 |
10 | उपेन्द्रनाथ अश्क | लक्ष्मी का स्वागत, जोंक, अधिकार का रक्षक, अंधी गली, अंजो दीदी, सूखी डाली, स्वर्ग की झलक, भंवर, मोहब्बत, आपस का समझौता, छः एकांकी, साहब को जुकाम है, विवाह के दिन, देवताओं की छाया में | यथार्थवाद, मध्यवर्गीय जीवन, व्यंग्य | 1940–1970 |
निष्कर्ष
हिन्दी एकांकी साहित्य की एक ऐसी विधा है, जो न केवल कला और रचनात्मकता का संगम है, बल्कि यह समाज की धड़कनों को भी स्वर देती है।
इसके संक्षिप्त रूप में व्यापक प्रभाव, विचार की स्पष्टता, संवादों की तीव्रता और संवेदना की गहराई न केवल पाठकों और दर्शकों को प्रभावित करती है, बल्कि उन्हें आत्मचिंतन और सामाजिक विश्लेषण के लिए भी प्रेरित करती है।
आधुनिक हिन्दी साहित्य में एकांकी एक सशक्त विधा के रूप में स्थापित हो चुका है और आने वाले समय में इसके रचनात्मक और प्रयोगात्मक आयामों में और भी विकास और विस्तार की संभावनाएं मौजूद हैं।
इन्हें भी देखें –
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