हिन्दू धर्म भारत का सर्वप्रमुख धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण ‘सनातन धर्म’ भी कहा जाता है। ‘सनातन’ का अर्थ है – ‘सदा बना रहने वाला या शाश्वत। अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये।
हिन्दू धर्म, प्राचीन भारतीय धरोहर का एक अद्भुत संग्रह है। इसमें आध्यात्मिकता, धार्मिकता, रिति-रिवाज, त्योहार और संस्कृति का समृद्ध विकास है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश को त्रिमूर्ति माना जाता है। हिन्दू धर्म के धर्मशास्त्रों में मोक्ष को जीवन का मुख्य उद्देश्य माना जाता है।
हिन्दू धर्म, भारतीय सभ्यता का मूलभूत धार्मिक पथ है। जो पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष), कर्म, ध्यान, योग, आध्यात्मिकता, धर्मचर्या, रीति-रिवाज, रेवरेंस गुरु के प्रति, जीवन-मृत्यु का चक्र, पुनर्जन्म, भक्ति, ईश्वर पूजा, मंदिर, वेद, उपनिषद, कर्मकांड, संस्कार, वाणी, संयम, अहिंसा, धर्मयुद्ध, संसार-मोक्ष, विभिन्न देवताओं की उपासना पर आधारित है।
वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्राम देवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है। यह सनातन धर्म लघु एवं महान् परम्पराओं का उत्तम समन्वय दर्शाता है। एक ओर इसमें वैदिक तथा पुराणकालीन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती है, तो दूसरी ओर कापलिक और अवधूतों द्वारा भी अत्यंत भयावह कर्मकांडीय आराधना की जाती है।
एक ओर भक्ति रस से सराबोर भक्त हैं, तो दूसरी ओर अनीश्वर-अनात्मवादी और यहाँ तक कि नास्तिक भी दिखाई पड़ जाते हैं। देखा जाय, तो सनातन हिन्दू धर्म सर्वथा विरोधी सिद्धान्तों का भी उत्तम एवं सहज समन्वय है। यह हिन्दू धर्मावलम्बियों की उदारता, सर्वधर्मसमभाव, समन्वयशीलता तथा धार्मिक सहिष्णुता की श्रेष्ठ भावना का ही परिणाम और परिचायक है।
सनातन धर्म और हिन्दू धर्म में सम्बन्ध
सनातन हिन्दू धर्म एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पदार्थबोध को संकलित करने वाला हिंदू धर्म का पर्यायवाची शब्द है। यह विश्वास करता है कि जीवन का उद्देश्य मोक्ष है और धर्म, कर्म, दान, योग और ज्ञान के माध्यम से उसे प्राप्त किया जा सकता है। इसकी बुनियादी शिक्षाओं में संसार-चक्र, कर्म-सिद्धांत, धर्म-मोक्ष और आत्मा-ब्रह्म के संबंधों का अध्ययन शामिल होता है। सनातन हिन्दू धर्म को अनादि, अनंत और अविकारी माना जाता है जो जीवन के सभी क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति और जीवनशैली को प्रभावित करता है।
सनातन हिन्दू धर्म एक अन्यमिति और जीवन दर्शन है, जो भारतीय सभ्यता और आदिकाल से सम्बद्ध है। इसका मतलब है “अद्वितीय और अविनाशी धर्म”। यह विश्वास करता है कि ब्रह्मांड का निर्माण और नष्ट होता रहता है, परंतु परमात्मा अविनाशी है। यह एकत्व, कर्म, धर्म, मोक्ष और पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर आधारित है। सनातन हिन्दू धर्म में भक्ति, योग, तपस्या, सेवा और न्याय के महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। यह धर्म विविधता को स्वीकार करता है और समाज की एकता और सहयोग को प्रमुखता देता है।
हिन्दू धर्म के स्रोत
हिन्दू धर्म की परम्पराओं का अध्ययन करने हेतु हज़ारों वर्ष पीछे वैदिक काल पर दृष्टिपात करना होगा। हिन्दू धर्म की परम्पराओं का मूल वेद ही हैं। वैदिक धर्म प्रकृति-पूजक, बहुदेववादी तथा अनुष्ठानपरक धर्म था। यद्यपि उस काल में प्रत्येक भौतिक तत्त्व का अपना विशेष अधिष्ठातृ देवता या देवी की मान्यता प्रचलित थी, परन्तु देवताओं में वरुण, पूषा, मित्र, सविता, सूर्य, अश्विन, उषा, इन्द्र, रुद्र, पर्जन्य, अग्नि, वृहस्पति, सोम आदि प्रमुख थे।
इन देवताओं की आराधना यज्ञ तथा मंत्रोच्चारण के माध्यम से की जाती थी। मंदिर तथा मूर्ति पूजा का अभाव था। उपनिषद काल में हिन्दू धर्म के दार्शनिक पक्ष का विकास हुआ। साथ ही एकेश्वरवाद की अवधारणा बलवती हुई। ईश्वर को अजर-अमर, अनादि, सर्वत्रव्यापी कहा गया। इसी समय योग, सांख्य, वेदांत आदि षड दर्शनों का विकास हुआ। निर्गुण तथा सगुण की भी अवधारणाएं उत्पन्न हुई। नौंवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य विभिन्न पुराणों की रचना हुई। पुराणों में पाँच विषयों (पंच लक्षण) का वर्णन है-
- सर्ग (जगत की सृष्टि),
- प्रतिसर्ग (सृष्टि का विस्तार, लोप एवं पुन: सृष्टि),
- वंश (राजाओं की वंशावली),
- मन्वंतर (भिन्न-भिन्न मनुओं के काल की प्रमुख घटनाएँ) तथा
- वंशानुचरित (अन्य गौरवपूर्ण राजवंशों का विस्तृत विवरण)।
सर्ग (जगत की सृष्टि)
हिन्दू धर्म में, सर्ग एक महत्वपूर्ण बिंदु है जो जगत की सृष्टि को दर्शाता है। इसके अनुसार, ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का आरंभ होता है और विष्णु द्वारा उसकी संरक्षा और पालन की जाती है। सृष्टि के चक्र में अनेक ब्रह्मांड, ग्रह, तारे, प्राणियों और मनुष्यों की उत्पत्ति शामिल होती है।
सर्ग, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘जगत की सृष्टि’। हिन्दू धर्म में, सर्ग शब्द का प्रयोग विश्व की सृष्टि और उसके प्रतिष्ठान के लिए किया जाता है। इसका मतलब होता है कि सर्ग सृष्टि की उत्पत्ति और विकास को संकेत करता है।
सर्ग के अनुसार, ब्रह्मा द्वारा निर्मित ब्रह्माण्डिक वस्तुएं, जीव, प्राणी, पौधे, भूत, मनुष्य, देवता और अन्य तत्वों की सृष्टि होती है। इस प्रकार, जगत की विविधता और विस्तार के लिए सर्ग का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
सर्ग की प्रक्रिया में, ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की शक्ति व्यक्त होती है और सृष्टि के विभिन्न पहलुओं का आरंभ होता है। यह प्रक्रिया ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसके आदि स्थिति को दर्शाती है।
सर्ग की विविध अवधारणाओं में एक महत्वपूर्ण अंश है प्रलय, जब ब्रह्माण्ड में संपूर्णता का लोप होता है और उसका पुनर्निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में सृष्टि का नाश और नवीन सृष्टि की पुनर्मान्यता होती है।
सर्ग अनंत चक्र का एक तत्त्व है जो सृष्टि के चरम पहलू के रूप में जाना जाता है। इससे सृष्टि का संचालन और विकास समझा जा सकता है, जो हिन्दू धर्म में सृष्टि की मूल अवधारणा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
प्रतिसर्ग (सृष्टि का विस्तार, लोप एवं पुन: सृष्टि)
प्रतिसर्ग विशेषण है जो सृष्टि के विस्तार, संक्षेप, लोप और पुनर्सृष्टि की प्रक्रिया को वर्णित करता है। इसके अंतर्गत, ब्रह्मांड के विकास, संहार, प्रलय, विभिन्न युगों के आविर्भाव और महाप्रलय शामिल होते हैं।
प्रतिसर्ग, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘सृष्टि का विस्तार, लोप और पुनर्सृष्टि’। हिन्दू धर्म में, प्रतिसर्ग का उल्लेख भगवान विष्णु के एक महत्वपूर्ण अस्तित्व के साथ जोड़ा जाता है। प्रतिसर्ग के अनुसार, ब्रह्मा द्वारा आदि रूप में सृष्टि की जाती है, जबकि विष्णु द्वारा उसका पालन और संरक्षण किया जाता है, और शिव द्वारा उसका संहार होता है। इस प्रकार, प्रतिसर्ग श्रृष्टि की अवधारणा को संपूर्णता के साथ प्रकट करता है।
प्रतिसर्ग के अनुसार, ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की प्रारंभिक घटना होती है, जिसमें विभिन्न ब्रह्माण्डिक वस्तुएं, जीवों, प्राणियों, पौधों, भूतों, मनुष्यों, देवताओं, देवीदेवताओं और अन्य तत्वों का सृजन होता है। यह सृष्टि का विस्तार होता है।
जब सृष्टि का समय समाप्त होता है और उसका संरक्षण और स्थितिकरण समाप्त होता है, तब शिव के माध्यम से सृष्टि का संहार होता है। इस प्रक्रिया में विभिन्न ब्रह्माण्डिक तत्वों का लोप होता है और सृष्टि की सामान्यतः अवधारणा के अनुसार सब कुछ विलयित हो जाता है।
इसके बाद, एक नयी सृष्टि की पुनर्मान्यता होती है, जिसे प्रतिसर्ग के रूप में जाना जाता है। यह पुनर्सृष्टि के रूप में ज्ञात होती है और ब्रह्मा, विष्णु और शिव के द्वारा फिर से नियंत्रित की जाती है। यह प्रक्रिया अनंत चक्र रूप में चलती रहती है, जहां सृष्टि, संरक्षण, लोप और पुनर्सृष्टि का समावेश होता है।
प्रतिसर्ग विश्व के नियमित विकास और संरचना को प्रतिष्ठापित करता है और इसलिए हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्याख्यानिक तत्त्व है। इसका महत्वपूर्ण उदाहरण हमें ब्रह्मांड की चक्रवाती गति, जन्म-मृत्यु के चक्र, युगों का चक्र आदि में देखने को मिलता है।
वंश (राजाओं की वंशावली)
वंश एक महत्वपूर्ण बिंदु है जो राजाओं की वंशावली को संदर्भित करता है। हिन्दू धर्म में, वंशावली राजघरानों के इतिहास, कर्तव्य, योग्यता और धर्मपरायणता के संकेत के रूप में महत्वपूर्ण है। इसमें सूर्यवंश, चंद्रवंश और राजा राम जैसे प्रमुख वंशों का वर्णन होता है।
वंश, एक संगठित परिवार या गोत्र की वंशावली को संकेत करता है। हिन्दू धर्म में, वंश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जहां यह एक राजा या साम्राज्य के अधीन सभी प्रजाओं की वंशावली को दर्शाता है। यह वंशावली राजा के बाल्यावस्था से लेकर उसके पीछे छठी-सत्तावन नंबर की पीढ़ी तक की विविध पीढ़ियों को शामिल करती है।
वंशावली में हर एक पीढ़ी के बारे में विवरण दिया जाता है, जैसे उनके नाम, पत्नीयों का वर्णन, पुत्रों और पोत्रों की संख्या, उनकी कार्यक्षेत्र, योगदान, युद्धों में उनकी भूमिका, और उनके शासनकाल की अवधि। यह वंशावली उनके उपदेश, नीति, धर्म और समाज के प्रति उनकी दायित्वपूर्ण भूमिका को भी दर्शाती है।
वंशावली में राजगुरु, धर्मगुरु और समाज के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों की भूमिका भी उल्लेखित की जाती है, जो राजा को उच्चतम नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यह वंशावली वंश के सदस्यों को उनकी भूमिका, जिम्मेदारी, आदर्श, और नीति पर ध्यान देने का मार्गदर्शन करती है।
वंशावली में राजाओं के बदलते समय और परिस्थितियों के साथ वंश की सत्ता, प्रभाव, और भूमिका में भी परिवर्तन होता है। यह उनके शासनकाल की सीमा, समृद्धि, क्षय, और विपत्तियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
वंशावली में राजाओं के साम्राज्य का विस्तार, उनके सम्राटों, महाराजाओं, राजा, और उपनेताओं की यात्रा भी उल्लेखित होती है। इससे उनके साम्राज्य की सीमा, विस्तृति, और प्रभाव का पता चलता है।
वंशावली राजसत्ता के आदान-प्रदान, धर्म, नीति, राज्य प्रशासन, समाज सेवा, और राष्ट्रीय उन्नति के माध्यम से संचालित होती है। इसे एक मार्गदर्शक और नैतिक नियम के रूप में भी माना जाता है जो एक शासक को उन्नति, संरक्षण, और सामरिक जीवन की सफलता के मार्ग पर ले जाता है।
मन्वंतर (भिन्न-भिन्न मनुओं के काल की प्रमुख घटनाएं)
मन्वंतर एक अवधि को दर्शाता है जिसमें एक मनु राज्य का अधिपति होता है और उसके काल में धर्म और संस्कृति की विकास की घटनाएं घटित होती हैं। हिन्दू धर्म में 14 मन्वंतर वर्षों का वर्णन है, जहां प्रत्येक मन्वंतर काल में मनु, सप्तर्षि, देवताओं का आविर्भाव और महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख होता है।
मन्वंतर, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘मनु के जीवन का अवधि’। हिन्दू धर्म में, मन्वंतर के अनुसार विभिन्न मनुओं के काल के दौरान पृथ्वी पर घटित प्रमुख घटनाएं और घटित युगों की संख्या का वर्णन होता है। इसका उद्देश्य है ब्रह्मांडिक समय की मापन और धार्मिक इतिहास के व्यवस्थित संचालन का सुनिश्चित करना।
हिन्दू धर्म में, चार युगों (युग) की संख्या मन्वंतरों के द्वारा प्रतिष्ठित की जाती है। प्रत्येक मन्वंतर में एक ईश्वरीय मनु के नेतृत्व में ब्रह्मा की उत्पत्ति, जगत का सृजन, देवताओं की उत्पत्ति, ऋषियों की सृष्टि, धर्म के निर्माण, मानव सभ्यता का विकास और धर्म का प्रचार आदि कार्य होते हैं।
वर्तमान कलयुग में हमारे पास विशेष जानकारी उपलब्ध है जो चौथे मन्वंतर में प्रारंभ हुआ था। इस मन्वंतर के अंतर्गत कई प्रमुख घटनाएं हुईं, जैसे रामायण और महाभारत की घटनाएं, भगवान श्रीकृष्ण का अवतार, वेद, उपनिषद, पुराण और स्मृतियों की रचना, महर्षि व्यास का जन्म आदि।
मन्वंतर व्यवस्था हिन्दू धर्म के भागीदार और इतिहास में महत्वपूर्ण है। यह सामयिक घटनाओं को सांचों में बांधने और धर्मिक संस्कृति की प्रगति को दर्शाने का एक उपाय है।
वंशानुचरित (अन्य गौरवपूर्ण राजवंशों का विस्तृत विवरण)
वंशानुचरित एक विशेष बिंदु है जहां अन्य महत्वपूर्ण राजवंशों के विस्तृत वर्णन की प्रदान किया जाता है। इसमें भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध राजवंशों जैसे मौर्य वंश, गुप्त वंश, चोल वंश, मराठा वंश, मुग़ल वंश और राजपूत वंश का वर्णन होता है।
इस प्रकार पुराणों में मध्य युगीन धर्म, ज्ञान-विज्ञान तथा इतिहास का वर्णन मिलता है। पुराणों ने ही हिन्दू धर्म में अवतारवाद की अवधारणा का सूत्रपात किया। इसके अलावा मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा, व्रत आदि इसी काल के देन हैं। पुराणों के पश्चात् भक्तिकाल का आगमन होता है, जिसमें विभिन्न संतों एवं भक्तों ने साकार ईश्वर की आराधना पर ज़ोर दिया तथा जनसेवा, परोपकार और प्राणी मात्र की समानता एवं सेवा को ईश्वर आराधना का ही रूप बताया।
फलस्वरूप प्राचीन दुरूह कर्मकांडों के बंधन कुछ ढीले पड़ गये। दक्षिण भारत के अलवार संतों, गुजरात में नरसी मेहता, महाराष्ट्र में तुकाराम, पश्चिम बंगाल में चैतन्य महाप्रभु, उत्तर भारत में तुलसी, कबीर, सूर और गुरु नानक के भक्ति भाव से ओत-प्रोत भजनों ने जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
हिन्दू धर्म कितना पुराना है?
हिन्दू धर्म की उत्पत्ति का यथार्थिक इतिहास नहीं है, क्योंकि यह सनातन धर्म है जिसकी प्रारंभिक शुरुआत कोई निश्चित तिथि परिभाषित नहीं करती है। हिन्दू धर्म को सदियों से पदार्थवादी, आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धांतों का संग्रह माना जाता है। इसलिए, इसकी अत्याधुनिक शुरुआत की तिथि निश्चित नहीं की जा सकती है।
हिन्दू धर्म की अवधि को विशिष्ट रूप से युगों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग कहा जाता है। पुराणों और वेदों में उल्लेखित है कि हिन्दू धर्म का सबसे पुराना प्रमुख ग्रंथ ऋग्वेद है, जो करीबन 1500 ईसा पूर्व के लगभग लिखित हुआ था। उसके बाद आये वेदों में अन्य ग्रंथों की व्याख्या और संग्रह की गई।
इस प्रकार, हिन्दू धर्म ने कई हजार वर्षों तक विकास किया है और अपनी पौराणिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं को बनाए रखा है। इसके संग्रह में वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता आदि ग्रंथ शामिल हैं। हिन्दू धर्म का विस्तारशील और अनवरत विकास उसके अस्तित्व के साथ जुड़ा हुआ है, और यह भारतीय सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हालाँकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म को 90,000 वर्ष पुराना माना जाता है। इसमें कई युगों, मन्वंतरों और अवतारों की गणना की जाती है। सबसे पहले युग के रूप में कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग होते हैं। हर युग की अवधि में विभिन्न मनुओं का जन्म होता है, जिन्हें उस युग के मनु के रूप में माना जाता है। स्वायंभुव मनु को कृतयुग का मनु, वैवस्वत मनु को त्रेतायुग का मनु माना जाता है।
इसके अलावा, हिन्दू धर्म में भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व माना जाता है और उन्हें साक्षात् विष्णु का अवतार माना जाता है। उनकी कथा, लीलाएं और उपदेश भगवान राम के चरित्र और मानवीय गुणों के उदाहरण के रूप में प्रमुख हैं।
श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व माना जाता है और उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान कृष्ण की कथाएं, विचार, गीता के उपदेश और विभिन्न लीलाएं हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण पाठशाला हैं।
ये तिथियाँ और व्यक्तित्व हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं और ग्रंथों पर आधारित हैं और इस धर्म के प्रमुख आधारभूत अवतारों को प्रस्तुत करती हैं।
हिन्दू धर्म की उत्पत्ति
हिन्दू धर्म की उत्पत्ति और विकास एक लंबे समयावधि में हुए विभिन्न आधारों पर हुई है। इसका मूल अधार वेदों में पाया जाता है। वेद भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम लिखित प्रशस्ति हैं जिन्हें आर्य जनजाति लेखन साहित्य मानती है। वेदों के चार प्रमुख संहिताओं, यानी ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद, में ज्ञान, यज्ञ, अनुष्ठान, मन्त्रों, रीति-रिवाज़, उपासना और दान-धर्म आदि के बारे में विविध विचार व्यक्त हुए हैं।
हिन्दू धर्म की उत्पत्ति को भारतीय उपमहाद्वीप में दिन-प्रतिदिन के जीवन, सभ्यता, आध्यात्मिकता और सामाजिक संरचना के विभिन्न पहलुओं से जोड़ा जा सकता है। हिन्दू धर्म विविध संप्रदायों, आचार्यों, संतों और धार्मिक आंदोलनों के माध्यम से विकसित हुआ है। इसमें विविध देवताओं की पूजा-अर्चना, योग, मेधा-ज्ञान, धर्मशास्त्र, तपस्या, आचार-व्यवहार, धार्मिक कथाएं, जन्माष्टमी, दीपावली, होली आदि महत्वपूर्ण त्योहारों का महत्वपूर्ण योगदान है। हिन्दू धर्म में प्राचीन और समकालीन धार्मिक साहित्य, उपनिषद, पुराण, स्मृति, गीता और धर्मशास्त्रों के रूप में विभिन्न ग्रंथ भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इस प्रकार, हिन्दू धर्म अपनी समृद्ध और विविध धार्मिक परंपरा के माध्यम से विकसित हुआ है और उसकी उत्पत्ति वेदों तक जाती है।
पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म कौन सा है?
पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म हिन्दू धर्म है। यह एक प्राचीन धर्म है जिसे भारत, नेपाल, मॉरिशस, सूरीनाम, फिजी और अन्य कई देशों में मान्यता प्राप्त है। इसे “वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से पहले से ही हुई है।
हिन्दू धर्म की विशेषताएं इसके आदिकाल से जुड़ी हैं। इसमें प्रमुखतः चार वेद (रिग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद), उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक, और उपासना प्रश्निकाएं शामिल हैं। हिन्दू धर्म में आर्य संस्कृति, वर्णाश्रम व्यवस्था, धर्मशास्त्र, योग, ध्यान, तपस्या, पूजा, पुनर्जन्म की मान्यता, कर्म की महत्वपूर्ण भूमिका और मोक्ष की प्राप्ति के लिए साधना के अनेक रूप शामिल हैं। हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं, अवतारों, मंदिरों, तीर्थस्थलों, और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। धार्मिक ग्रंथों में रामायण और महाभारत, जिसमें भगवान राम और भगवान कृष्ण के कथावस्तु शामिल हैं, महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हिन्दू धर्म में धर्मिक त्योहारों, संस्कारों, और यज्ञों का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
हिन्दू धर्म एक व्यापक और सभ्यतावादी धर्म है जिसमें जीवन के हर पहलू को सम्मान और संतुष्टि के साथ जीने का धर्मीय दृष्टिकोण है। यह आध्यात्मिकता, नैतिकता, धार्मिकता, योग्य जीवन और समाज के हित में लगातार प्रयास करने की शिक्षा देता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ ‘वेद’
‘वेद’ हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक है और इसे ‘अपौरुषेय’ (मनुष्यों द्वारा नहीं रचित) माना जाता है। इन ग्रंथों को प्राचीनतम संग्रह और आध्यात्मिक ज्ञान की श्रेणी में माना जाता है। वेदों में ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद आदि अनुभाग होते हैं। यह ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं और संस्कृत में सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ माने जाते हैं।
वेदों का महत्वपूर्ण उद्देश्य मानव जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना है। इनमें भगवान की पूजा, यज्ञ, ध्यान, तपस्या, आध्यात्मिक ज्ञान, मानवीय नैतिकता, राजनीति, सामाजिक व्यवस्था, विज्ञान, और जीवन के विभिन्न पहलुओं के विवरण मिलते हैं।
वेदों के चार प्रमुख संहिताएं हैं:
- ऋग्वेद: यह सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण संहिता है जिसमें मंत्रों का संग्रह है। यह ब्राह्मण, आरण्यक, और उपनिषद भागों के साथ आती है।
- यजुर्वेद: इसमें यज्ञों की विधियाँ, ब्राह्मण, आरण्यक, और उपनिषद भाग होते हैं। यह मंत्रों के साथ यज्ञ के प्रयोगों की विधियाँ भी संकलित करती है।
- सामवेद: यह मंत्रों का संग्रह है जिन्हें गाया जाता है। यह रचनात्मक संगीत की एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- अथर्ववेद: इसमें आयुर्वेद, ज्योतिष, भूत-प्रेत, मंत्रों, यन्त्रों, और विभिन्न आपदाओं से सम्बंधित मंत्र होते हैं। इसे ब्राह्मण, आरण्यक, और उपनिषद भागों के साथ आती है।
वेदों की व्याख्या और उनका अध्ययन वेदांत के अन्तर्गत आने वाले उपनिषदों द्वारा किया जाता है। उपनिषदों में मानव जीवन, आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष, और ध्यान के विषय में गहराई से चर्चा होती है। ये ग्रंथ हिन्दू धर्म की आध्यात्मिकता के मूलभूत सिद्धांतों को समझाने और प्रकट करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
गुरुकुल कांगड़ी विवि के श्रद्धानंद वैदिक शोध संस्थान में व्याख्यान-माला आयोजित हुई। वेद विभाग के वरिष्ठ प्रो. मनुदेव बंधु ने ऋग्वेद पर बोलते हुए कहा कि सृष्टि के प्रारंभ में ईश्वर ने संसार के कल्याण के लिए चार वेदों का ज्ञान दिया।
उन्होंने कहा कि अग्नि ऋषि को ऋग्वेद का, वायु ऋषि को यजुर्वेद का, आदित्य ऋषि को सामवेद का और अंगिरा ऋषि को अथर्व वेद का ज्ञान दिया गया। ये चारों ऋषि ईश्वर की दृष्टि में योग्य थे। उन्हें आदेश दिया गया कि तुम सब आने वाली पीढ़ी को इस विद्या का उपदेश दो। तब यह वेद श्रुति नाम से प्रचलित हुआ। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती के शब्दों में हम कह सकते हैं ‘वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना सनाना सब आर्यों का परम धर्म है’।
हिन्दू धर्म के सिद्धांत
सनातन हिन्दू धर्म एक आदर्शवादी धर्म है, जिसमें विभिन्न मुख्य सिद्धान्तों का समावेश है। यह धर्म शिक्षा देता है कि ईश्वर एक है और उसके अनेक नाम हैं। इसके अलावा, धर्म में यह बताया गया है कि ब्रह्म या परम तत्त्व सबके अंदर सर्वव्यापी है। हमें ईश्वर से डरने की बजाय प्रेम करना और उससे प्रेरणा लेना चाहिए। हिन्दूत्व का लक्ष्य स्वर्ग और नरक से परे होता है और इसका मूल मंत्र है ‘वासुदैव कुटुम्बकम्’, अर्थात् सभी मनुष्यों को एक परिवार मानना चाहिए।
इस धर्म के अनुसार, हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है, बल्क ईश्वर धर्म की रक्षा के लिए बार-बार पैदा होते हैं। हिन्दू धर्म में परोपकार को पुण्य माना जाता है और दूसरों को कष्ट देना को पाप। इसके साथ ही, इस धर्म में जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है और स्त्री को आदरणीय माना जाता है। इसके अलावा, हिन्दू धर्म में पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता दी जाती है और यह धर्म समतावादी और समन्वयवादी है।
हिन्दू धर्म की मान्यता अनुसार, आत्मा अजर-अमर होती है और सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र माना जाता है। हिन्दूओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े होते हैं और हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्यमार्ग को सर्वोत्तम माना जाता है। इस प्रकार, हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को व्यक्त करता है।”
हिन्दू धर्म की शाखाएं
सनातन हिन्दू धर्म, एक विशाल और अद्वितीय धार्मिक पथ है, जिसमें विभिन्न शाखाएं और सम्प्रदायों का विस्तृत वर्णन होता है। यहां कुछ प्रमुख हिन्दू धर्म की शाखाओं का विवरण है:
- वैष्णव सम्प्रदाय
- शैव सम्प्रदाय
- शाक्त सम्प्रदाय
- श्रीवैष्णव सम्प्रदाय
- आर्य समाज
- निराकारवाद
वैष्णव सम्प्रदाय
वैष्णव सम्प्रदाय में भगवान विष्णु की पूजा एवं अनुसरण की जाती है। इसमें कृष्ण भक्ति, राम भक्ति और विष्णु के अवतारों के प्रमाणित कार्यों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसमें इस्कॉन (हरे कृष्ण महामंदिर) जैसे प्रमुख संस्थान शामिल हैं।
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय में भगवान शिव की पूजा और अनुसरण की जाती है। इसमें शिवलिंग पूजा, शिव के महत्वपूर्ण अवतारों और तंत्र की प्रथाएं महत्वपूर्ण होती हैं।
शाक्त सम्प्रदाय
शाक्त सम्प्रदाय में मां दुर्गा या देवी की पूजा की जाती है। इसमें शक्ति पूजा, नवरात्रि और तंत्र मंत्र का महत्व अधिक होता है। काली, लक्ष्मी, सरस्वती और गौरी जैसी देवियाँ इस सम्प्रदाय के मुख्य देवी-देवताओं में शामिल हैं।
श्रीवैष्णव सम्प्रदाय
श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में लक्ष्मी-नारायण की पूजा की जाती है। इसमें श्रीमद् भगवद् गीता का महत्व अधिक होता है और कृष्णभक्ति और नारायण पूजा महत्वपूर्ण होती है।
आर्य समाज
आर्य समाज भारतीय संस्कृति और वैदिक धर्म पर आधारित है। इसमें वैदिक यज्ञ, मन्त्र पाठ, संस्कृत भाषा का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
निराकारवाद
निराकारवाद हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण आंश है, जिसमें ईश्वर का निराकार और अविनाशी स्वरूप मान्यता होती है। यह धार्मिक धाराओं में अद्वैत वेदांत, उपनिषदों और गीता के सिद्धांतों पर आधारित है।
ये कुछ मात्र प्रमुख हिन्दू धर्म की शाखाएं हैं और इसके अलावा भी अनेक उप-शाखाएं और सम्प्रदाय हैं, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक विचारधारा के विविध आयामों को व्यक्त करते हैं।
हिन्दू धर्म के विविध उप-शाखाएं और सम्प्रदायों का उल्लेख
शाखाएं और सम्प्रदायों की विस्तृतता के कारण, नामों और उनकी विशेषताओं के संबंध में सही और पूर्ण जानकारी प्रदान करना मुश्किल है। हिन्दू धर्म के विविध उप-शाखाएं और सम्प्रदायों का उल्लेख कुछ निम्नलिखित है:
- श्रीशैव सम्प्रदाय: यह शाखा शिवलिंग की पूजा के माध्यम से भगवान शिव के प्रतीक के प्रति भक्ति प्रदर्शित करती है।
- वीरशैव सम्प्रदाय: इस सम्प्रदाय में वीरभद्र को मुख्य देवता माना जाता है, जो भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं।
- श्रीकृष्ण सम्प्रदाय: इस सम्प्रदाय में भगवान कृष्ण की भक्ति और पूजा में महत्वपूर्ण रूप से विश्वास रखा जाता है। इसमें निम्बार्क सम्प्रदाय, वल्लभाचार्य सम्प्रदाय, गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय शामिल हैं।
- रामानुज सम्प्रदाय: इस सम्प्रदाय में भगवान विष्णु की भक्ति एवं श्रीराम के महत्वपूर्ण अवतारों के प्रति विश्वास होता है।
- मध्व सम्प्रदाय: इस सम्प्रदाय में मध्वाचार्य के द्वारा प्रवर्तित सिद्धांतों पर आधारित विशेष भक्ति और वैष्णव साधना होती है।
- शक्त सम्प्रदाय: यह सम्प्रदाय देवी दुर्गा, काली और अन्य शक्ति रूपी देवी-देवताओं की पूजा और महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र के प्रति विश्वास रखती है।
- आद्वैत सम्प्रदाय: इस सम्प्रदाय में शंकराचार्य द्वारा विकसित आद्वैतवाद के सिद्धांतों पर आधारित ईश्वर और जीव के अद्वैत स्वरूप का महत्वपूर्ण विश्वास होता है।
ये केवल कुछ हिन्दू धर्म की शाखाएं हैं और वास्तविकता में अनेक उप-शाखाएं, आचार्य-संप्रदाय, संत-मत, विशेष साधु-संत समुदाय और जाति-सम्प्रदाय विद्यमान हैं, जो विविध आयामों को व्यक्त करते हैं और हिन्दू धर्म के भिन्न-भिन्न आंशों और सिद्धांतों को प्रतिष्ठान करते हैं।
हिन्दू धर्म की अवधारणाएँ एवं परम्पराएँ
हिन्दू धर्म की प्रमुख अवधारणाएं निम्नलिखित हैं-
- ब्रह्म– ब्रह्म को सर्वव्यापी, एकमात्र सत्ता, निर्गुण तथा सर्वशक्तिमान माना गया है। वास्तव में यह एकेश्वरवाद के ‘एकोऽहं, द्वितीयो नास्ति’ (अर्थात् एक ही है, दूसरा कोई नहीं) के ‘परब्रह्म’ हैं, जो अजर, अमर, अनन्त और इस जगत का जन्मदाता, पालनहारा व कल्याणकर्ता है।
- आत्मा– ब्रह्म को सर्वव्यापी माना गया है अत: जीवों में भी उसका अंश विद्यमान है। जीवों में विद्यमान ब्रह्म का यह अशं ही आत्मा कहलाती है, जो जीव की मृत्यु के बावजूद समाप्त नहीं होती और किसी नवीन देह को धारण कर लेती है। अंतत: मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् वह ब्रह्म में लीन हो जाती है।
- पुनर्जन्म– आत्मा के अमरत्व की अवधारणा से ही पुनर्जन्म की भी अवधारणा पुष्ट होती है। एक जीव की मृत्यु के पश्चात् उसकी आत्मा नयी देह धारण करती है अर्थात् उसका पुनर्जन्म होता है। इस प्रकार देह आत्मा का माध्यम मात्र है।
- योनि– आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 करोड़ योनियों की कल्पना की गई है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। योनि को आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में जैव प्रजातियाँ कह सकते हैं।
- कर्मफल– प्रत्येक जन्म के दौरान जीवन भर किये गये कृत्यों का फल आत्मा को अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। अच्छे कर्मों के फलस्वरूप अच्छी योनि में जन्म होता है। इस दृष्टि से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ योनि है। परन्तु कर्मफल का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति अर्थात् आत्मा का ब्रह्मलीन हो जाना ही है।
- स्वर्ग-नरक– ये कर्मफल से सम्बंधित दो लोक हैं। स्वर्ग में देवी-देवता अत्यंत ऐशो-आराम की ज़िन्दगी व्यतीत करते हैं, जबकि नरक अत्यंत कष्टदायक, अंधकारमय और निकृष्ट है। अच्छे कर्म करने वाला प्राणी मृत्युपरांत स्वर्ग में और बुरे कर्म करने वाला नरक में स्थान पाता है।
- मोक्ष– मोक्ष का तात्पर्य है- आत्मा का जीवन-मरण के दुष्चक्र से मुक्त हो जाना अर्थात् परमब्रह्म में लीन हो जाना। इसके लिए निर्विकार भाव से सत्कर्म करना और ईश्वर की आराधना आवश्यक है।
- चार युग– हिन्दू धर्म में काल (समय) को चक्रीय माना गया है। इस प्रकार एक कालचक्र में चार युग-कृत (सत्य), सत त्रेता, द्वापर तथा कलि-माने गये हैं। इन चारों युगों में कृत सर्वश्रेष्ठ और कलि निकृष्टतम माना गया है। इन चारों युगों में मनुष्य की शारीरिक और नैतिक शक्ति क्रमश: क्षीण होती जाती है। चारों युगों को मिलाकर एक महायुग बनता है, जिसकी अवधि 43,20,000 वर्ष होती है, जिसके अंत में पृथ्वी पर महाप्रलय होता है। तत्पश्चात् सृष्टि की नवीन रचना शुरू होती है।
- चार वर्ण– हिन्दू समाज चार वर्णों में विभाजित है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। ये चार वर्ण प्रारम्भ में कर्म के आधार पर विभाजित थे। ब्राह्मण का कर्तव्य विद्यार्जन, शिक्षण, पूजन, कर्मकांड सम्पादन आदि है, क्षत्रिय का धर्मानुसार शासन करना तथा देश व धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करना, वैश्यों का कृषि एवं व्यापार द्वारा समाज की आर्थिक आवश्यकताएँ पूर्ण करना तथा शूद्रों का अन्य तीन वर्णों की सेवा करना एवं अन्य ज़रूरतें पूरी करना। कालांतर में वर्ण व्यवस्था जटिल होती गई और यह वंशानुगत तथा शोषणपरक हो गई। शूद्रों को अछूत माना जाने लगा। बाद में विभिन्न वर्णों के बीच दैहिक सम्बन्धों से अन्य मध्यवर्ती जातियों का जन्म हुआ। वर्तमान में जाति व्यवस्था अत्यंत विकृत रूप में दृष्टिगोचर होती है।
- चार आश्रम– प्राचीन हिन्दू संहिताएँ मानव जीवन को 100 वर्ष की आयु वाला मानते हुए उसे चार चरणों अर्थात् आश्रमों में विभाजित करती हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्न्यास। प्रत्येक की संभावित अवधि 25 वर्ष मानी गई। ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति गुरु आश्रम में जाकर विद्याध्ययन करता है, गृहस्थ आश्रम में विवाह, संतानोत्पत्ति, अर्थोपार्जन, दान तथा अन्य भोग विलास करता है, वानप्रस्थ में व्यक्ति धीरे-धीरे संसारिक उत्तरदायित्व अपने पुत्रों को सौंप कर उनसे विरक्त होता जाता है और अन्तत: सन्न्यास आश्रम में गृह त्यागकर निर्विकार होकर ईश्वर की उपासना में लीन हो जाता है।
- चार पुरुषार्थ– धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- ये चार पुरुषार्थ ही जीवन के वांछित उद्देश्य हैं उपयुक्त आचार-व्यवहार और कर्तव्य परायणता ही धर्म है, अपनी बौद्धिक एवं शरीरिक क्षमतानुसार परिश्रम द्वारा धन कमाना और उनका उचित तरीके से उपभोग करना अर्थ है, शारीरिक आनन्द भोग ही काम है तथा धर्मानुसार आचरण करके जीवन-मरण से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही मोक्ष है। धर्म व्यक्ति का जीवन भर मार्गदर्शक होता है, जबकि अर्थ और काम गृहस्थाश्रम के दो मुख्य कार्य हैं और मोक्ष सम्पूर्ण जीवन का अंति लक्ष्य।
- चार योग– ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग तथा राजयोग- ये चार योग हैं, जो आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने के मार्ग हैं। जहाँ ज्ञान योग दार्शनिक एवं तार्किक विधि का अनुसरण करता है, वहीं भक्तियोग आत्मसमर्पण और सेवा भाव का, कर्मयोग समाज के दीन दुखियों की सेवा का तथा राजयोग शारीरिक एवं मानसिक साधना का अनुसरण करता है। ये चारों परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि सहायक और पूरक हैं।
- चार धाम– उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम- चारों दिशाओं में स्थित चार हिन्दू धाम क्रमश: बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, जगन्नाथपुरी और द्वारका हैं, जहाँ की यात्रा प्रत्येक हिन्दू का पुनीत कर्तव्य है।
- प्रमुख धर्मग्रन्थ– हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथ हैं- चार वेद (ॠग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद) तेरह उपनिषद, अठारह पुराण, रामायण, महाभारत, गीता, रामचरितमानस आदि। इसके अलावा अनेक कथाएँ, अनुष्ठान ग्रंथ आदि भी हैं।
हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवता
हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियाँ हैं।
- विष्णु – शांति व वैभव।
- सूर्य – स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता।
- शिव – ज्ञान व विद्या।
- गणेश – बुद्धि व विवेक।
- शक्ति – शक्ति व सुरक्षा।
हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले देवी एवं देवता
हिन्दू धर्म में विभिन्न देवी एवं देवताएं मान्यताओं के अनुसार पूजी जाती हैं। इन देवी एवं देवताओं की भक्ति और आराधना को हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यहां नीचे कुछ प्रमुख देवी एवं देवताओं के बारे में विस्तार से बताया गया है:-
- ब्रह्मा: ब्रह्मा हिन्दू धर्म के मुख्य देवता हैं, जिन्हें सृष्टि का पालन करने का कार्य सौंपा जाता है। उन्हें चार मुख और चार बाहुएं होती हैं और वे स्वर्ग के द्वारपाल भी हैं।
- विष्णु: विष्णु हिन्दू धर्म के महादेवता हैं, जिन्हें सृष्टि के पालन का कार्य सौंपा जाता है। उन्हें जगत का पालक कहा जाता है और उनके अवतारों में राम और कृष्ण प्रमुख हैं।
- शिव: शिव हिन्दू धर्म के महादेवता हैं, जो संहार का कार्य संभालते हैं। उन्हें आदिदेव, महाकाल और नीलकंठ भी कहा जाता है। उनकी आराधना तांडव नृत्य के माध्यम से की जाती है।
- दुर्गा: दुर्गा माता हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं, जिन्हें शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे शक्ति और सुरक्षा की प्रतीक हैं और नवरात्रि के दौरान उनकी आराधना की जाती है।
- लक्ष्मी: लक्ष्मी हिन्दू धर्म की धन और समृद्धि की देवी हैं। वे धन और सौभाग्य की प्रतीक हैं और धनतेरस और दीवाली पर उनकी पूजा की जाती है।
- सरस्वती: सरस्वती हिन्दू धर्म की विद्या और कला की देवी हैं। उन्हें ज्ञान और संगीत की देवी के रूप में माना जाता है और विद्यार्थी उनकी आराधना करते हैं।
इनके अलावा भी हिन्दू धर्म में अनेक देवी एवं देवताएं हैं जैसे हनुमान, गणेश, सूर्य, भैरव, कार्तिकेय, गंगा, यमराज, वायु और अग्नि आदि। ये देवी एवं देवताएं भक्तों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और उन्हें सुख, समृद्धि, शक्ति और संरक्षण प्रदान करती हैं।
यहां हिन्दू धर्म की कुछ अन्य प्रमुख देवी एवं देवताओं के बारे में विस्तार से बताया गया है:
- हनुमान: हनुमान हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं। वे भगवान श्रीराम के भक्त और सेवक हैं। हनुमानजी को बल, शक्ति और वीरता का प्रतीक माना जाता है। उनकी आराधना रामनवमी और हनुमान जयंती जैसे पर्वों पर की जाती है।
- गणेश: गणेश हिन्दू धर्म के मुख्य देवता में से एक हैं। वे विज्ञान, बुद्धि, संयम, सुख, शुभकार्यों की देवी एवं देवता हैं। गणेश चतुर्थी पर्व पर उनकी आराधना की जाती है और उन्हें विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति भी कहा जाता है।
- सूर्य: सूर्य हिन्दू धर्म में दिव्यता, प्रकाश, शक्ति और जीवन का प्रतीक हैं। उन्हें सूर्य देवता के रूप में पूजा जाता है और उनकी आराधना सूर्य उदय और सूर्यास्त पर्वों पर की जाती है।
- भैरव: भैरव हिन्दू धर्म के देवता हैं, जो शिव के एक अवतार माने जाते हैं। वे न्याय और न्यायपालन के देवता हैं और उनकी आराधना काली चतुर्दशी पर्व पर की जाती है।
- कार्तिकेय: कार्तिकेय हिन्दू धर्म के देवता हैं, जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है। वे ब्रह्मा के पुत्र हैं और सैन्यकार्य, युद्ध, बल और सौरमंडलिक नक्षत्रों के प्रतीक हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर्व पर उनकी आराधना की जाती है।
- गंगा: गंगा माता हिन्दू धर्म में एक पवित्र नदी के रूप में मानी जाती है। उन्हें गंगाजी के रूप में भी जाना जाता है और उनकी आराधना गंगा दशहरा और कुंभ मेले जैसे पर्वों पर की जाती है। गंगा माता को पावनता और मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
- यमराज: यमराज हिन्दू मिथोलॉजी में मृत्यु का देवता हैं। वे कर्म के नियंता, सत्य के प्रतीक और पुरुषार्थ के देवता माने जाते हैं। यम द्वितीया पर्व पर उनकी आराधना की जाती है।
- वायु: वायु हिन्दू धर्म के देवता हैं, जो प्राण और जीवन के प्रतीक हैं। उन्हें पावन, प्राणवायु, शक्तिशाली और ज्ञान का स्वामी माना जाता है। वायु पूजा पर्व पर उनकी आराधना की जाती है।
- अग्नि: अग्नि हिन्दू धर्म में अग्नि के देवता के रूप में पूजी जाते हैं। वे पवित्रता, प्रकाश, तप, शुद्धता और यज्ञ के प्रतीक हैं। अग्नि पूजा पर्व पर उनकी आराधना की जाती है।
यह केवल कुछ हिन्दू धर्म के प्रमुख देवी एवं देवताओं की सूची है और हिन्दू धर्म में और भी कई देवताएं हैं, जिन्हें अलग-अलग रूपों में पूजा जाता है।
हिन्दू धर्म के प्रमुख देवी और देवताओं का विस्तृत परिचय
हिन्दू धर्म के कुछ देवताओं के नाम एवं उनके बारे में जानकारी-
- अग्रेजी नाम – Hanuman
- हिन्दी नाम – हनुमान
- वाहन – वानर (मक्कर)
- पिता – वायु देवता
- माता – अंजनी
- शक्ति – बल, सामरिक क्षमता, वीरता, ज्ञान
- पूजा दिन – मंगलवार
- पूजा विधि – दीपक, प्रसाद, मंत्र जप
- अग्रेजी नाम – Ganesha
- हिन्दी नाम – गणेश
- वाहन – मूषक (मशक), मोर
- पिता – शिव
- माता – पार्वती
- शक्ति – बुद्धि, विवेक, संपत्ति, सफलता
- पूजा दिन – शुक्रवार
- पूजा विधि – लड्डू, पुष्प, दीपक, मंत्र जप
- अग्रेजी नाम – Surya
- हिन्दी नाम – सूर्य
- वाहन – सप्तरथी (सप्तगोष्ठी)
- पिता – कश्यप
- माता – अदिति
- शक्ति – प्रकाश, जीवन, ऊर्जा
- पूजा दिन – रविवार
- पूजा विधि – प्रातःकालीन आराधना, मंत्र जप
- अग्रेजी नाम – Bhairava
- हिन्दी नाम – भैरव
- वाहन – कुत्ता
- पिता – शिव
- माता – देवी (भद्रकाली)
- शक्ति – क्रोध, वीरता, शक्ति, संहार
- पूजा दिन – अमावस्या
- पूजा विधि – भयंकर रूप, अध्यात्मिक आराधना, मंत्र जप
- अग्रेजी नाम – Kartikeya
- हिन्दी नाम – कार्तिकेय
- वाहन – मायूर (मोर)
- पिता – शिव
- माता – पार्वती
- शक्ति – सेनानीकरण, समर्थता, युद्ध, वीरता
- पूजा दिन – मंगलवार
- पूजा विधि – तीर्थ, फूल, दीपक, मंत्र जप
- अग्रेजी नाम – Ganga
- हिन्दी नाम – गंगा
- वाहन – मकर (मगरमच्छ)
- पिता – हिमवान
- माता – मेनका
- शक्ति – पवित्रता, शुद्धि, स्नान, प्रायश्चित्त
- पूजा दिन – सोमवार
- पूजा विधि – स्नान, जलाभिषेक, मंत्र जप
- अग्रेजी नाम – Yamaraja
- हिन्दी नाम – यमराज
- वाहन – बफ़्फ़ालो
- पिता – सूर्य
- माता – संज्ञा
- शक्ति – न्याय, दंड, कर्मफल, निर्णय
- पूजा दिन – समस्त शनिवार
- पूजा विधि – नियमित धर्म अनुसार पूजा, मंत्र जप
- अग्रेजी नाम – Vayu
- हिन्दी नाम – वायु
- वाहन – ताल या शरभ
- पिता – कश्यप
- माता – अदिति
- शक्ति – प्राण, श्वास, उद्घाटन, चलना
- पूजा दिन – बुधवार
- पूजा विधि – धूप, पुष्प, दीपक, मंत्र जप
हिन्दू धर्म, भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनतम धर्मों में से एक है। यह एक विशाल और विविध धार्मिक परंपरा है जिसमें आठों दिशाओं में बसा हुआ है। हिन्दू धर्म में प्रमुख सिद्धांतों में से एक है ब्रह्मांड में एक उच्चतम एकत्व और परमात्मा की अनन्त स्वरूपता का आदान-प्रदान। यह धर्म संसार को संसारिक दुख से मुक्ति और आनंद की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है।
हिन्दू धर्म में कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और राजयोग जैसे मार्गों का उल्लेख होता है जो आत्मा को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की ओर ले जाने के लिए उपयोगी हैं। हिन्दू धर्म में रींकर्नेशन (पुनर्जन्म), धर्म-कर्म संबंध, धार्मिक त्योहार, देवी-देवताओं की पूजा और वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत आदि प्रमुख धार्मिक ग्रंथों का महत्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म विविधता, सहिष्णुता और सामंजस्य के सिद्धांतों पर आधारित है और अनंत सत्य की खोज में आत्म-प्रकाश को प्रोत्साहित करता है।
हिन्दू धर्म के प्रमुख और महत्वपूर्ण त्योहार
हिन्दू धर्म में कई प्रमुख और महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। इन त्योहारों का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक होता है और वे विभिन्न देशों और क्षेत्रों में अपनी विशेषताओं और परंपराओं के साथ मनाए जाते हैं। यहां कुछ प्रमुख हिन्दू त्योहारों का वर्णन है:
- दीवाली: यह सबसे प्रमुख हिन्दू त्योहार है और भारत और अन्य देशों में विशेष आनंद और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह प्रकाश का त्योहार है जिसमें दीपों की पंक्ति और अन्न, धन, सुख, और समृद्धि की प्रतीकता के रूप में प्रयोग होता है।
- होली: यह रंगों का त्योहार है जो भारत और दुनिया भर में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसमें लोग एक-दूसरे पर रंग फेंकते हैं, गीत गाते हैं, नाचते हैं और मिठाईयों का सेवन करते हैं।
- नवरात्रि: यह नौ दिनों तक चलने वाला धार्मिक उत्सव है जो देवी दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है। इसके दौरान लोग माता दुर्गा की आराधना करते हैं, भक्तिभाव से व्रत रखते हैं और दुर्गा पंडालों का दौरा करते हैं।
- रक्षा बंधन: यह भाई-बहन के प्यार और बंधन का प्रतीक त्योहार है। इसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई अपनी बहन को उपहार देता है। यह प्यार और सम्मान का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।
- जन्माष्टमी: यह भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मन्दिरों में भजन-कीर्तन किया जाता है, भक्तों के बीच रासलीला का आयोजन किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है।
- गणेश चतुर्थी: यह भगवान गणेश की पूजा के रूप में मनाया जाता है। इसमें गणेश मूर्ति की स्थापना की जाती है और उसकी पूजा की जाती है। यह चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है और आरती, भजन और प्रसाद की विशेषता होती है।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, हिन्दू धर्म में और भी कई त्योहार मनाए जाते हैं जैसे राखी, होला मोहला, विजयादशमी, पोंगल, लोहड़ी, नग पंचमी, कर्तिक पूर्णिमा, तीज, दशहरा, मकर संक्रांति आदि। ये त्योहार भक्ति, रस्म और परंपराओं के माध्यम से हिन्दू समाज के आपसी संबंध, आदर्शों और सामरस्य को प्रकट करते हैं।
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इन्हें भी देखें-
- भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र
- ईसाई धर्म (1ई.-Present)
- इस्लाम का महाशक्तिशाली उदय और सार्वजनिक विस्तार
- बौद्ध धर्म Buddhism (गौतम बुद्ध Gautam Buddha 563-483BC)
- जैन धर्म Jainism
- सूफी और भक्ति आंदोलन: मध्यकालीन भारतीय समाज में सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
- भक्ति आन्दोलन: उद्भव, विकास, और समाज पर प्रभाव
- निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति: एक दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
- विभिन्न दार्शनिक मत और उनके प्रवर्तक