शुंग वंश | ब्राह्मण राजवंश | Sunga Dynasty | 185-73 ई.पू.

शुंग वंश की स्थापना पुष्यमित्र ने किया था। इस वंश को ब्राह्मण वंश के नाम से भी जाना जाता है। शुंग वंश की स्थापना के साथ ही राज्य में भागवत धर्म की विशेष उन्नति हुई क्योंकि सभी शुंग वंश के शासक वैदिक धर्म के मानने वाले थे, इसलिए उन्होंने भारत में पुनः वैदिक धर्म की स्थापना की।

शुंग वंश

अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ को उसी के ब्राहमण सेनापति पुष्यमित्र ने मारकर शुंग वंश की स्थापना की। बाण ने “हर्ष-चरित” में लिखा है कि अंतिम मौर्य सम्राट् बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र ने सेना के एक प्रदर्शन का आयोजन किया और राजा को इस प्रदर्शन को देखने के लिए आमंत्रित किया। उस समय उपयुक्त अवसर देखकर कर उसने राजा का वध कर दिया।

जिस महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने 184 ईसा पूर्व में अन्तिम मौर्य शासक बृहद्रथ की जीवन-लीला समाप्त की वह इतिहास में पुष्यमित्र के नाम से विख्यात है । उसने जिस नवीन राजवंश की स्थापना की वह ‘शृंग’ नाम से जाना जाता है। शुंगों का इतिहास साहित्य तथा पुरातत्व दोनों की सहायता से ज्ञात होता है।

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पुष्यमित्र शुंग: भारतीय सनातन संस्कृति के पुनर्स्थापक महान सम्राट का परिचय

पुष्यमित्र शुंग
  • नाम – पुष्यमित्र शुंग।
  • पुत्र- अग्निमित्र और वसुमित्र
  • पुष्यमित्र शुंग की पत्नी का नाम- देवमला
  • गौत्र – कश्यप, भारद्वाज (पतंजलि के अनुसार)
  • इनके पूर्ववर्ती सम्राट – बृहद्रथ मौर्य।
  • उतरवर्ती सम्राट – अग्निमित्र।
  • शासन अवधि – 185 ईसा पूर्व से 149 ईसा पूर्व तक।
  • सम्राज्य – शुंग सम्राज्य।
  • धर्म – हिन्दू सनातन।
  • शासन अवधी – 185-149 ई.पू.
  • सस्थापक – शुंग वंश

पुष्यमित्र शुंग (Pushyamitra Shunga) एक महान हिंदू सम्राट तथा शुंग वंश के संस्थापक थे। जिन्होंने भारतीय सनातन संस्कृति को पुनर्स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शासनकाल का समयावधि लगभग 185 ईसा पूर्व से 149 ईसा पूर्व तक थी। उन्हें शुंग वंश के शासक के रूप में जाना जाता है और उनके शासनकाल में भारतीय भूमि पर संकटमय परिस्थितियाँ थीं।

शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन कर्म के आधार पर वह क्षत्रिय थे। उन्होंने अपने शासनकाल में हिंदू धर्म को संरक्षित करने और ब्राह्मणों की प्रभुता को स्थापित करने का प्रयास किया। उनके शासनकाल में धर्मनिरपेक्षता का प्रचार किया गया और ब्राह्मणों को अधिकारिक स्थान दिया गया। हालांकि, यह उन्हें बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायों के प्रति विवादों में फंसा दिया।

पुष्यमित्र शुंग (Pushyamitra Shunga) का जन्म भारत में एक महान राजा के रूप में हुआ, जिन्होंने डूबती हुई सनातन संस्कृति को न केवल बचाया, बल्कि उसे पूरे भारत में पुनर्स्थापित किया। उनके शासनकाल में पतित वैदिक धर्म को भी उन्होंने पुनः स्थापित किया।

पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल लगभग 36 वर्षों तक चला। वे जाति से ब्राह्मण थे, लेकिन उनके गोत्र को लेकर मतभेद है। पतंजलि के अनुसार पुष्यमित्र शुंग का गोत्र भारद्वाज था, जबकि काव्यकार कालिदास की रचना “मालविकाग्निमित्रम्” के अनुसार उनका गोत्र कश्यप था।

महाभारत के हरिवंश पर्व में भी पुष्यमित्र शुंग के गोत्र को कश्यप कहा गया है। हालांकि, जेसी बोस के अनुसार पुष्यमित्र शुंग द्वैत ब्राह्मण थे, जिसे दो गोत्रों का मिश्रण माना जाता है।

पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में शुंग वंश की राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) थी। उन्होंने नगरों की सुरक्षा और संगठन को मजबूत किया, साथ ही राष्ट्रीय विकास को ध्यान में रखते हुए कई परियोजनाओं का आयोजन किया। उनके शासनकाल में धर्मनिरपेक्षता की प्रचार प्रसार किया गया और ब्राह्मणों को अधिकारिक स्थान दिया गया। हालांकि, कुछ इतिहासकार द्वारा उन्हें बौद्ध धर्म के अनुयायों के प्रति क्रूरता का आरोप लगाया गया है।

पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में बौद्ध धर्म के प्रचारकों को संकट झेलना पड़ा और उनके धर्मानुयायियों का धर्म परिवर्तन कराया गया होने का कहा जाता है, लेकिन इसके संबंध में कोई प्रमाणित साक्ष्य मौजूद नहीं है।

शुंग वंश की उत्पत्ति

शुंग वंश के राजाओं के नामों के अन्त में ‘मित्र’ शब्द जुड़ा देखकर महामहोपाध्याय पं. हर प्रसाद शास्त्री ने यह मत प्रतिपादित किया था कि वे वस्तुतः पारसीक थे तथा ‘मिथ्र’ (सूर्य) के उपासक थे। परन्तु भारतीय साक्ष्यों के आलोक में यह मत सर्वथा अमान्य है।

हर्षचरित में पुष्यमित्र को ‘अनार्य’ कहा गया है। कुछ विद्वान इस आधार पर शुंगों को निम्न जातीय कहते हैं। किन्तु यह मान्यता उचित नहीं है। वस्तुतः बाण ने पुष्यमित्र के कार्य (अपने स्वामी की धोखे से हत्या) को निन्दनीय माना है इसी कारण उसे ‘अनार्य’ कहा है।

उनका यह संबोधन जाति का सूचक नहीं माना जा सकता था। दिव्यावदान शुंगों को मौर्यों से संबद्ध करता है। इस आधार पर कुछ लोग शुंग कुल को भी क्षत्रिय मानने के पक्षधर हैं। किन्तु दिव्यावदान का कथन ऐतिहासिकता से परे है।

भारतीय साहित्य शुंगों को ब्राह्मण मानता है। पुराण पुष्यमित्र को शुंग कहते हैं । ‘शुंग’ वंश को महर्षि पाणिनि ने ‘भारद्वाज गोत्र का ब्राह्माण’ बताया है। मालविकाग्निमित्र में पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र को ‘बैम्बिक कुल’ से सम्बन्धित किया गया है।

शुंग वंश की मूर्ति

बौद्धायन श्रौतसूत्र से पता चलता है कि ‘बैम्बिक’ काश्यप गोत्र के ब्राह्मण थे । इस प्रकार चाहे पुष्यमित्र शुंग रहा हो अथवा बैम्बिक, वह स्पष्टतः ब्राह्मण जातीय था। तारानाथ ने भी उसे ब्राह्मण जाति का बताया है जिसके पूर्वज पुरोहित थे । हरिवंश में पुष्यमित्र को काश्यप गोत्रीय ‘द्विज’ कहा गया है।

ऐसा प्रतीत होता है कि शुंग पहले मौर्यों के ही पुरोहित थे। अनेक प्राचीन ग्रन्थ शुंग आचार्यों का उल्लेख करते हैं। आश्वलायन श्रौतसूत्र में शुंगों का उल्लेख आचार्यों के रूप में मिलता है। बृहदारण्यक उपनिषद् में ‘शौंगीपुत्र’ नामक एक आचार्य का उल्लेख है।

शुंग वंश का इतिहास के स्रोत

शुंगों का इतिहास हम साहित्य तथा पुरातत्व दोनों की सहायता से ज्ञात करते हैं । जिसका विवरण इस प्रकार है:

1. साहित्य

  • पुराण: पुराणों में मत्स्य, वायु तथा ब्राह्मांड विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पुराणों से पता चलता है कि पुष्यमित्र शुंग वंश का संस्थापक था। पार्जिटर मत्स्य-पुराण के विवरण को प्रामाणिक मानते हैं । इसके अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक राज्य किया था।
  • हर्षचरित: इसकी रचना महाकवि बाणभट्ट ने की थी। इससे पता चलता है कि पुष्यमित्र ने अन्तिम मौर्य नरेश बृहद्रथ की हत्या कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया। हर्षचरित उसे ‘अनार्य’ तथा ‘निम्न उत्पत्ति’ का बताता है।
  • पतंजलि का महाभाष्य: पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। उनके ‘महाभाष्य’ में यवन आक्रमण की चर्चा हुई है, जिसमें बताया गया है कि यवनों ने साकेत तथा माध्यमिका को रौंद डाला था।
  • गार्गी संहिता: यह एक ज्योतिष ग्रन्थ है । इसके युग-पुराण खण्ड में यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है जहाँ बताया गया है कि यवन आक्रान्ता साकेत, पंचाल, मथुरा को जीतते हुए कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) के निकट तक जा पहुँचे ।
  • मालविकाग्निमित्र: यह महाकवि कालीदास का नाटक ग्रंथ है। इससे शुंगकालीन राजनैतिक गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त होता है। पता चलता है कि पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था तथा उसवे विदर्भ को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया था। कालिदास यवन-आक्रमण का भी उल्लेख करते हैं जिसके अनुसार अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु सरिता के दाहिने किनारे पर यवनों को पराजित किया था।
  • थेरावली: इसकी रचना जैन लेखक मेरुतुंग ने किया था। इस ग्रन्थ में उज्जयिनी के शासकों की वंशावली दी गयी है। यहाँ पुष्यमित्र का भी उल्लेख मिलता है तथा बताया गया है कि उसने 30 वर्षों तक राज्य किया। मेरुतुंग का समय चौदहवीं शती का है । अत: उनका विवरण विश्वसनीय नहीं लगता ।
  • हरिवंश: इस ग्रन्थ में पुष्यमित्र की ओर परोक्ष रूप से संकेत किया गया है। तदनुसार उसे ‘औद्‌भिज्ज’ (अचानक उठने वाला) कहा गया है जिससे कलियुग में चिरकाल से परित्यक्त अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था। इसमें इस व्यक्ति को ‘सेनानी’ तथा ‘काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण’ कहा गया है। के. पी. जायसवाल इसकी पहचान पुष्यमित्र से करते हैं।
  • दिव्यावदान: यह एक बौद्ध ग्रन्थ है। इसमें पुष्यमित्र को मौर्य वंश का अन्तिम शासक बताया गया है तथा उसका चित्रण बौद्ध धर्म के संहारक के रूप में हुआ है। किन्तु ये विवरण विश्वसनीय नहीं हैं।

2. पुरातत्व

  • अयोध्या का लेख: यह पुष्यमित्र के अयोध्या के राज्यपाल धनदेव का है। इससे पता चलता है कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये।
  • बेसनगर का लेख: यह यवन राजदूत हेलियोडोरस का है तथा गरुड़-स्तम्भ के ऊपर खुदा हुआ है। इससे मध्य भारत के भागवत धर्म की लोकप्रियता सूचित होती है।
  • भरहुत का लेख: यह भरहुत स्तूप की एक वेष्टिनी पर खुदा हुआ मिलता है। इससे पता चलता है कि यह स्तूप शुंगकालीन रचना है।

उपर्युक्त लेखों के अतिरिक्त साँची, बेसनगर, बोधगया आदि के प्राप्त स्तूप एवं स्मारक शुंगकालीन कला एवं स्थापत्य की उत्कृष्टता का ज्ञान कराते हैं। शुंगकाल की कुछ मुद्रायें कौशाम्बी, अयोध्या, अहिच्छत्र तथा मथुरा से प्राप्त होती हैं । इनसे भी तत्कालीन इतिहास पर कुछ प्रकाश पड़ता है।

शुंग वंश का राज्य विस्तार और शासन

“मालविकाग्निमित्र”, “दिव्यावदान” व तारानाथ के अनुसार पुष्यमित्र का राज्य नर्मदा तक फैला हुआ था। पाटलिपुत्र. अयोध्या और विदिशा उसके राज्य के मुख्य नगर थे। विदिशा में पुष्यमित्र ने अपने पुत्र अग्निमित्र को अपना प्रतिनिधि शासक नियुक्त किया। अयोध्या के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये। वहाँ उसने धनदेव नामक व्यक्ति को शासक नियुक्त किया। नर्मदा नदी के तट पर अग्निमित्र की महादेवी धारिणी का भाई वीरसेन सीमा के दुर्ग का रक्षक नियुक्त किया गया था।

शुंग वंश के राजाओ के नाम

शुंग वंश में जिन राजाओं ने शासन किया उनके नाम और उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

  • सम्राट पुष्यमित्र शुंग 185–149. बृहद्रथ की हत्या करने के बाद राजवंश की 185 ई.पू स्थापना की।
  • सम्राट अग्निमित्र शुंग 149–141 ईसा पूर्व।
  • सम्राट वसुज्येष्ठ शुंग 141–131ईसा पूर्व।
  • सम्राट वसुमित्र शुंग 131–124 ईसा पूर्व।
  • सम्राट अन्ध्रक शुंग 124–122 ईसा पूर्व।
  • सम्राट पुलिन्दक शुंग 122–119 ईसा पूर्व।
  • सम्राट घोष शुंग 119–108 ईसा पूर्व।
  • सम्राट वज्रमित्र शुंग 108–94 ईसा पूर्व।
  • सम्राट भगभद्र शुंग 94-83 ईसा पूर्व।
  • सम्राट देवभूति शुंग 83-73 ईसा पूर्व।

शुंग वंश के इन राजाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

1. पुष्यमित्र शुंग (185-149 ई.पू.)

पुष्यमित्र, शुंग वंश के संस्थापक और शुंग साम्राज्य के प्रथम राजा थे। शुंग वंश के संस्थापक बनने से पहले यह मौर्य साम्राज्य में सेनापति के पद पर कार्यरत थे। पुष्यमित्र शुंग की पत्नी का नाम देवमाला था। 185 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के अंतिम राजा ब्रह्मद्रथ की हत्या कर इन्होंने स्वयं को राजा घोषित कर दिया। इसके बाद अश्वमेध यज्ञ शुरू हुआ, संपूर्ण उत्तर भारत पर इनका अधिकार हो गया। इनके राज्य से संबंधित शिलालेख पंजाब और जालंधर में मिले हैं। इन्होंने सनातन संस्कृति को पुनः जीवित किया था। बौद्ध धर्म को खत्म करके इन्होंने भारत में पुनः वैदिक धर्म की स्थापना की थी। 149 ईसा पूर्व पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु हो गई।

2. अग्निमित्र शुंग (149-141 ईसा पूर्व)

अग्निमित्र शुंग शुंग वंश के दूसरे सम्राट थे, इनके पिता का नाम पुष्यमित्र शुंग था, जो शुंग वंश के संस्थापक थे । पिता पुष्यमित्र शुंग के कार्यकाल में यह विदिशा के “गोप्ता” थे। अग्निमित्र शुंग के बारे में महाकवि कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक “मालविकाग्निमित्र”, उत्तर कौशल एवं उत्तरी पंचाल से प्राप्त मुद्राएं और पौराणिक आधार पर इनके इतिहास की व्याख्या की जाती है। कई विद्वानों एवं इतिहासकारों का मानना है कि महाकवि कालिदास अग्निमित्र शुंग के समकालीन थे, लेकिन इस बात पर मतभेद है।
अग्निमित्र शुंग ने तीन विवाह किए थे पहली पत्नी का नाम धारिणी, दूसरी पत्नी का नाम इरावती तथा तीसरी पत्नी का नाम मालविका था। इनके पुत्र का नाम वसुमित्र था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अग्निमित्र शुंग ने 8 वर्षों तक राज किया था। साहित्य एवं कला से इन्हें विशेष प्रेम था। उत्तर कौशल में भारी तादाद में प्राप्त मुद्राओं ने यह सिद्ध कर दिया कि यह मुद्राएं अग्निमित्र शुंग की हैं।

3. वसुज्येष्ठ शुंग (141-131 ईसा पूर्व)

शुंग वंश के तीसरे राजा वसुज्येष्ठ शुंग थे। इन्होंने राजा के रूप में 10 वर्षों तक राज्य किया था। इनके इतिहास से संबंधित अधिक ऐतिहासिक तथ्य मौजूद नहीं है, अतः स्पष्ट रूप से इनके कार्यकाल और इनके इतिहास के बारे में बता पाना मुश्किल है।

4. वसुमित्र शुंग (131-124 ईसा पूर्व)

वसुमित्र शुंग, शुंग वंश के चौथे सम्राट थेे, इनके पिता का नाम अग्निमित्र शुंग था। इनकी माता का नाम धारणी था। वसुज्येष्ठ शुंग इनका सौतेला भाई था। इन्होंने भी यवनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, मूजदेव नामक व्यक्ति ने इनकी हत्या की थी।

इनके अलावा शुंग वंश में जिन्होंने राज किया वो ज्यादा प्रभावशाली नहीं थे एवं उनके बारे में कुछ खास जानकारी नहीं मिलती है। इनके नाम निम्न है :-

  • अन्ध्रक (124-122 ईसा पूर्व)
  • पुलिन्दक (122-119 ईसा पूर्व)
  • घोष शुंग 119–108 ईसा पूर्व।
  • वज्रमित्र 108–94 ईसा पूर्व।
  • भगभद्र 94-83 ईसा पूर्व।
  • देवभूति (83-73 ईसा पूर्व)

शुंग वंश के युद्ध

शुंग वंश के युद्ध:

शुंग वंश के का मुख्य रूप से विदर्भ राज्य से युद्ध हुआ तथा जिसमे विदर्भ राज्य को शुंग वंश की अधीनता स्वीकारनी पड़ी। इसके अलावा यूनानियों ने भी आक्रमण किया था। परन्तु यूनानियों को भी पराजय का सामना करना पड़ा।

विदर्भ से युद्ध

“मालविकाग्निमित्र” नाटक से हमें पता चलता है कि विदर्भ में यज्ञसेन ने एक नए राज्य की नींव डाली थी। वह मौर्य राजा वृहद्रथ के सचित का साला था। इससे प्रकट होता है कि वह पुष्यमित्र के विरुद्ध था। पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने यज्ञसेन के चचेरे भाई माधवसेन से मिलकर एक षड्यंत्र रचा। इसलिए यज्ञसेन के अन्तपाल ने माधाव्सें को पकड़ लिया। इस पर अग्निमित्र ने वीरसेन को यज्ञसेन के विरुद्ध भेजा। वीरसेन ने यज्ञसेन को हरा दिया। इस पर यज्ञसेन को अपने राज्य का कुछ भाग माधवसेन को देना पड़ा। इस प्रकार विदर्भ राज्य को पुष्यमित्र का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा।

यूनानियों का आक्रमण

पतंजली के महाभाष्य से दो बातों का पता चलता है –

  • पतंजलि ने स्वयं पुष्यमित्र के लिए अश्वमेध यज्ञ किया था।
  • उस समय एक आक्रमण में यूनानियों ने चित्तौड़ के निकट मध्यमिका नगरी और अवध में साकेत को घेर डाला, लेकिन पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित कर दिया था।

“गार्गी संहिता” के युगपुराण में भी लिखा है कि दुष्य, पराक्रमी यवनों ने साकेत, पंचाल और मथुरा को जीत लिया। संभवतः यह आक्रमण उस समय हुआ जब पुष्यमित्र मौर्य राजा का सेनापति था। संभव है कि इस युद्ध में विजयी होकर ही पुष्यमित्र बृहद्रथ को मारकर राजा बना हो। कालिदास ने यूनानियों के एक दूसरे आक्रमण का वर्णन अपने नाटक “मालविकाग्निमित्र” में किया है।

यह युद्ध संभवतः पंजाब में सिंध नदी के तट पर हुआ और पुष्यमित्र के पोते और अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने इस युद्ध में यूनानियों को हराया। शायद यह युद्ध इस कारण हुआ हुआ हो कि यूनानियों ने अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लिया हो। सभवतः यह यूनानी आक्रमणकारी, जिसने पुष्यमित्र के समय में आक्रमण किया, डिमेट्रियस था। इस प्रकार हम देखते हैं कि पुष्यमित्र ने यूनानियों से कुछ समय के लिए भारत की रक्षा की। यूनानियों को पराजित करके ही संभवतः पुष्यमित्र ने वे अश्वमेध यज्ञ किये जिनका उल्लेख घनदेव के अयोध्या अभिलेख में है।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा धार्मिक कार्य

मौर्यकालीन साम्राज्य में बौद्ध और जैन धर्म का प्रचार प्रसार ज्यादा होने लग गया था। लेकिन जैसे ही शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग ने राजगद्दी संभाली सनातन धर्म की पुनः स्थापना को बल मिला।

शुंग वंश की स्थापना के साथ ही राज्य में भागवत धर्म की विशेष उन्नति हुई क्योंकि सभी शुंग वंश के शासक वैदिक धर्म के मानने वाले थे, इसलिए उन्होंने भारत में पुनः वैदिक धर्म की स्थापना की। सम्राट अशोक ने यज्ञ और पशु बलि पर रोक लगा दी थी जिन्हें शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग पुनः पुनर्जीवित कर दी। बौद्ध धर्म को पुष्यमित्र ने ज्यादा जोर नहीं दिया।

कई इतिहासकारों का मानना है कि पुष्यमित्र बौद्ध धर्म के विरुद्ध थे और उन्होंने कई बौद्ध विहारों का विनाश करवाया था, बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवाई थी। लेकिन शुंग वंशी राजा ब्राह्मण धर्म के आधार पर चलने वाले थे, उन्होंने “भरहुत स्तूप” का निर्माण और सांची स्तूप की रेलिंग बनवाई थी, तो यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने बौद्ध धर्म वालों के प्रति गलत किया था, ऐसा इतिहास में भी कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता है।

सनातन धर्म का रक्षक महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग

मौर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के पौत्र अशोक महान ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक राजपाठ छोड़कर बौद्ध भिक्षु बनकर धर्म प्रचार नहीं किये। अपितु अशोक ने एक बौध सम्राट के रूप में लगभग 20 वर्षों तक शासन किया। अहिंसा का पथ अपनाते हुए उसने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया। अत्यधिक अहिंसा के प्रसार से भारत की वीर भूमि बौद्ध भिक्षुओ व बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी। 

उससे भी आगे जब मौर्य वंश का नौवा अन्तिम सम्राट व्रहद्रथ मगध की गद्दी पर बैठा, तब उस समय तक आज का अफगानिस्तान, पंजाब व लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन चुका था। जब सिकंदर व सैल्युकस जैसे वीर भारत के वीरों से अपना मान मर्दन करा चुके थे, तब उसके लगभग 90 वर्ष पश्चात् जब भारत से बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक निति के कारण वीर वृत्ति का लगभग ह्रास हो चुका था, जिसके कारण ग्रीकों ने सिन्धु नदी को पार करने का साहस दिखा दिया।

सम्राट व्रहद्रथ के शासनकाल में ग्रीक शासक मिनिंदर जिसको बौद्ध साहित्य में मिलिंद कहा गया है, ने भारत वर्ष पर आक्रमण की योजना बनाई। मिनिंदर ने सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्म गुरुओं से संपर्क साधा,और उनसे कहा कि अगर आप भारत विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के पश्चात् मै बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा। बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह किया तथा भारत पर आक्रमण के लिए एक विदेशी शासक का साथ दिया। सम्राट व्रहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र से यह सब देखा नहीं गया और उसने अपने सम्राट को मरने की योजना बना डाली।

एक दिन उसने अपनी सब सेना को एकत्र कर उसके प्रदर्शन की व्यवस्था की। सम्राट बृहद्रथ को भी इस प्रदर्शन के अवसर पर निमंत्रित किया गया। सेना पुष्यमित्र के प्रति अनुरक्त थी। सेना के सम्मुख ही पुष्यमित्र द्वारा बृहद्रथ की हत्या कर दी गई, और वह विशाल मगध साम्राज्य का अधिपति बन गया। इस प्रकार पुष्यमित्र शुंग ने ‘शुंग वंश’ की नींव रखी। हर्षचरित में बृहद्रथ को ‘प्रतिज्ञादुर्बल’ कहा गया है। इसका अभिप्राय यह है कि, राज्याभिषेक के समय प्राचीन आर्य परम्परा के अनुसार राजा को जो प्रतिज्ञा करनी होती थी, बृहद्रथ उसके पालन में दुर्बल था। सेना उसके प्रति अनुरक्त नहीं थी। इसीलिए सेनानी पुष्यमित्र का षड़यंत्र सफल हो गया।

पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ की हत्या क्यों की?

ऐसा कहा जाता है की अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ को उसी के ब्राहमण सेनापति पुष्यमित्र ने मारकर शुंग वंश की स्थापना की। पुष्यमित्र शुंग देश प्रेमी होने के साथ-साथ हिंदू हृदय सम्राट भी थे। उन्हें देश के प्रति गद्दारी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। जबकि मौर्य साम्राज्य के राजाओं ने हिंदू सनातन संस्कृति को बचाने की बजाय बौद्ध धर्म पर विशेष ध्यान दिया, जिसका फायदा विदेशी ताकतों ने उठाना चाहा।

यह बात पुष्यमित्र शुंग को पसंद नहीं थी और उन्होंने अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ को मारकर उसकी सेना के खुद सम्राट बन गए। सभी सैनिकों ने भी पुष्यमित्र शुंग के साथ काम करने में खुशी जाहिर की और उनका पूरा साथ दिया।

महान कवि बाण ने “हर्ष-चरित” में लिखा है कि अंतिम मौर्य सम्राट् बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र ने सेना के एक प्रदर्शन के आयोजन को देखने के लिए सम्राट् बृहद्रथ को आमंत्रित किया। और उस समय उपयुक्त अवसर देखकर पुष्यमित्र शुंग (Pushyamitra Shung) ने अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या करके राज्य अपने अधीन कर लिया था।

परन्तु कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इसके पीछे की कहानी कुछ और थी। उनके अनुसार, मौर्य सम्राट बृहद्रथ के पास खबर आई कि कुछ ग्रीक शासक भारत पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं। भारत में मौजूद बौद्ध मठों के धर्मगुरुओं ने ग्रीक शासकों के साथ हाथ मिला लिया था और उनका साथ देने के लिए तैयार थे।

ग्रीक सैनिकों को भारत में बौद्ध भिक्षुओं के भेश में पनाह मिलने लगी। ग्रीक शासकों द्वारा लाए गए हत्यारों को बौद्ध मठों में छिपा दिया गया।

जब एक गुप्तचर के माध्यम से पुष्यमित्र शुंग को इस बात का पता चला तो वह राजा बृहद्रथ की आज्ञा लिए बिना ही मठों में पहुंच गया। इस दौरान उसने पाया कि वास्तव में ग्रीक सैनिक, बौद्ध भिक्षुओं के रूप में वहां पर उपस्थित थे।

यह देखते ही पुष्यमित्र शुंग ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया, इतना ही नहीं जो बौद्ध गुरु उनका साथ दे रहे थे, उन्हें पकड़ लिया गया और सम्राट बृहद्रथ के सामने प्रस्तुत किया गया।

सम्राट बृहद्रथ को बिना जानकारी दिए पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया गया यह कार्य उन्हें बहुत बुरा लगा। इसी बात को लेकर राजा और पुष्यमित्र शुंग के बीच में एक बहस छिड़ गया, इसी बहस के दौरान राजा बृहद्रथ ने क्रोधित होकर पुष्यमित्र शुंग पर हमला कर दिया। सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने इस हमले का जोरदार जवाब दिया और अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ को मौत के घाट उतार दिया।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा भारत में वैदिक धर्म की पुनः स्थापना

जब भारत में शुंग राजवंश की जड़े मजबूत करने के साथ ही साथ शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग ने भारतीय सनातन संस्कृति को पुनः स्थापित किया और भारत में वैदिक धर्म की स्थापना करने की शुरुआत की।

मौर्यकाल हिंदू संस्कृति के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा। उस समय मौर्य सम्राटों द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने और उनका प्रचार एवं प्रसार करने की वजह से जहाँ अनेको लोग भय और डर के कारण हिंदू धर्म को छोड़ दिए तथा बौद्ध धर्म को अपना लिया। वहीँ पुष्यमित्र शुंग के राजा बनने के पश्चात परिस्थितियां पुनः हिंदू संस्कृति के पक्ष में हो गई जिस कारण से लोग पुनः हिंदू धर्म में आने लग गए।

मौर्य कल में जहाँ पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन इत्यादि कर्मकांड बंद हो गए थे वो इस समय पुनः शुरू हो गए। इस प्रकार से पुष्यमित्र शुंग के सम्राट बनने के पश्चात भारत में वैदिक धर्म की पुनः स्थापना हुई। पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ भी करवाएं। अश्वमेध यज्ञ के पीछे पुष्यमित्र शुंग की यह मान्यता थी कि इससे भारत में वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार होगा।

पुष्यमित्र शुंग के कार्यकाल में संपूर्ण भारत का माहौल बदल गया। संपूर्ण भारतवर्ष में वैदिक धर्म की विजय पताका फिर से फहराने लगी। इस प्रकार से वैदिक धर्म की पुनः स्थापना करने वाले तथा शुंग वंश के संस्थापक, पुष्यमित्र शुंग ने 36 वर्षों तक शासन किया था। और जो सनातन धर्म विलुप्ति के कगार पर था उसका परचम एक बार पुनः पुरे विश्व में लहराने लगा।

क्या पुष्यमित्र शुंग ही भगवान राम है?

पुष्यमित्र शुंग का नाम पतंजलि के ग्रंथों में उल्लेखित है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे अश्वमेध यज्ञ करवाने के लिए जाने जाते थे। ऐसी कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है जो पुष्यमित्र शुंग की इस प्रकार की कार्यशैली को समर्थित कर सके।

ब्राह्मणिक ग्रंथों और पुराणों में ब्राह्मणों द्वारा अश्वमेध यज्ञ करवाने का वर्णन है, लेकिन इसका सीधा संबंध पुष्यमित्र शुंग के साथ नहीं है। इसलिए, यह कहना कि पुष्यमित्र शुंग राम है और उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया है, इतिहास के प्रमाणों के बिना एक धारणा है।

समर्थ श्रीराम का महत्व और उनकी अद्वैत गुणों को किसी भी व्यक्ति या राजा के साथ तुलना करना उचित नहीं है। भगवान श्रीराम अपने आप में एक अद्वितीय व्यक्तित्व हैं और उनकी खासताओं को केवल उनके ही रूप में स्वीकारा जाना चाहिए।

इसलिए, समर्थ श्रीराम के अनुयायी होने के संदर्भ में पुष्यमित्र शुंग का जिक्र करते हुए उन्हें राम के रूप में परिभाषित करना गलत है। ऐसी जगह पर यह कहना उचित होगा कि पुष्यमित्र शुंग (Pushyamitra Shung) श्रीराम के भक्त थे या उनकी अनुयायी थे।

पुष्यमित्र शुंग के अभिलेख

पुष्यमित्र शुंग के अभिलेख सांग्ला (वर्तमान में सियालकोट) में पाए गए हैं और इन अभिलेखों में उनके राज्य के स्थापना से लेकर शासन प्रबंध और भारत में पुन: वैदिक धर्म की स्थापना के बारे में वर्णन है। इन अभिलेखों के माध्यम से पुष्यमित्र शुंग के इतिहास का संक्षेप में वर्णन किया जाता है।

पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु कैसे हुई?

पुष्यमित्र शुंग ने लगभग 36 वर्षों (185-149 ई.पू.) तक राज किया था। इसके पश्चात सामान्य रूप से 149 ईसा पूर्व पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु हो गई।

शुंग वंश का पतन

शुंग वंश के अन्तिम शासक देवभूति के मन्त्रि वासुदेव ने उसकी हत्या कर सत्ता प्राप्त की और कण्व वंश की स्थापना की। कण्व वंश ने 75 इ.पू. से 30 इ.पू. तक शासन किया। वसुदेव पाटलिपुत्र के कण्व वंश का प्रवर्तक था। वैदिक धर्म एवं संस्कृति संरक्षण की जो परम्परा शुंगो ने प्रारम्भ की थी उसे कण्व वंश ने जारी रखा।


इन्हें भी देखें –

1 thought on “शुंग वंश | ब्राह्मण राजवंश | Sunga Dynasty | 185-73 ई.पू.”

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