परिसीमन | एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रक्रिया

परिसीमन भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसका मुख्य उद्देश्य निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करना और जनसंख्या के आधार पर संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या को संतुलित करना है। इस प्रक्रिया को समय-समय पर लागू किया जाता है ताकि निर्वाचन क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।

2026 में भारत में एक बार फिर परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। इस बार यह मुद्दा इसलिए अधिक संवेदनशील हो गया है क्योंकि परिसीमन यदि जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, तो दक्षिणी राज्यों की लोकसभा सीटों में कमी हो सकती है, जबकि उत्तरी राज्यों में सीटों की संख्या बढ़ सकती है। इसके चलते दक्षिणी राज्यों ने इस प्रस्ताव का विरोध करना शुरू कर दिया है, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह प्रक्रिया उनके राजनीतिक प्रभाव को कमजोर कर सकती है।

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परिसीमन की परिभाषा और उद्देश्य

परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसका मुख्य उद्देश्य “एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य” के सिद्धांत को लागू करना है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग समान जनसंख्या का प्रतिनिधित्व हो, जिससे सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले और लोकतांत्रिक प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष बने।

इसके अतिरिक्त, परिसीमन का एक अन्य प्रमुख उद्देश्य यह है कि यह राजनीतिक दलों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करता है। यदि किसी क्षेत्र में जनसंख्या अत्यधिक बढ़ जाती है और परिसीमन नहीं किया जाता, तो वहाँ के नागरिकों को समान प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता। इसी असमानता को समाप्त करने के लिए यह प्रक्रिया आवश्यक होती है।

भारतीय संविधान में परिसीमन के प्रावधान

संविधान में परिसीमन को लेकर कई अनुच्छेद और संशोधन किए गए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:

अनुच्छेद 81

यह अनुच्छेद लोकसभा में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधित्व को निर्धारित करता है। इसके अनुसार, लोकसभा में अधिकतम 550 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 530 सदस्य राज्यों से और 20 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।

अनुच्छेद 82

इस अनुच्छेद के अनुसार, प्रत्येक जनगणना के बाद संसद को एक परिसीमन अधिनियम पारित करने का अधिकार प्राप्त होता है। इसके तहत निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया जाता है, ताकि राज्यों के बीच सीटों का संतुलन बना रहे।

अनुच्छेद 170

यह अनुच्छेद राज्य विधानसभाओं की सीटों के परिसीमन से संबंधित है। परिसीमन प्रक्रिया के बाद, राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या को जनसंख्या के आधार पर समायोजित किया जाता है।

परिसीमन आयोग और उसकी भूमिका

परिसीमन आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत स्थापित किया जाता है। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में निष्पक्ष और संतुलित चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण आवश्यक होता है। यही कार्य परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है, जो निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करता है ताकि प्रत्येक नागरिक को समान प्रतिनिधित्व मिल सके। अर्थात इसका उद्देश्य देश में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को पुनर्गठित करना है ताकि जनसंख्या के आधार पर समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।

परिसीमन आयोग की संरचना

परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय होता है, जिसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं:

  1. एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (अध्यक्ष)
  2. भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त या उनका नामित सदस्य
  3. संबंधित राज्य का चुनाव आयुक्त

परिसीमन आयोग का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है, जिसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। हालाँकि, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि परिसीमन आदेश संविधान के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, तो उनकी समीक्षा की जा सकती है।

परिसीमन प्रक्रिया के चरण

परिसीमन आयोग एक सुनियोजित और चरणबद्ध प्रक्रिया के तहत कार्य करता है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है:

1. मसौदा प्रस्ताव का प्रकाशन

परिसीमन आयोग प्रारंभिक प्रस्ताव तैयार करता है और इसे जनता की प्रतिक्रिया के लिए प्रकाशित करता है। यह प्रस्ताव निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन और उनकी सीमाओं से संबंधित होता है।

2. सार्वजनिक बैठकों का आयोजन

परिसीमन आयोग राजनीतिक दलों, नागरिक संगठनों और आम जनता के साथ परामर्श करता है। सार्वजनिक बैठकों और जनसुनवाइयों के माध्यम से विभिन्न सुझाव और आपत्तियाँ दर्ज की जाती हैं।

3. आपत्तियों और सुझावों पर विचार

प्राप्त सुझावों और आपत्तियों की समीक्षा की जाती है और आवश्यक संशोधन किए जाते हैं। इस चरण में आयोग नागरिकों की राय का सम्मान करता है और यदि आवश्यक हो तो प्रारंभिक मसौदे में संशोधन करता है।

4. अंतिम आदेश का प्रकाशन

संशोधित परिसीमन आदेश को भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है और इसे लागू किया जाता है। यह आदेश लागू होने के बाद इसे बदला नहीं जा सकता।

परिसीमन के लाभ

परिसीमन लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

1. समान प्रतिनिधित्व

परिसीमन यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक का वोट समान मूल्य रखता है और जनसंख्या के अनुरूप प्रत्येक क्षेत्र को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।

2. लोकतांत्रिक संतुलन

यदि किसी क्षेत्र की जनसंख्या अधिक है, तो वहाँ अधिक सीटें आवंटित की जाती हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा निष्पक्ष बनी रहती है और लोकतंत्र मजबूत होता है।

3. वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व

परिसीमन में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाती है, जिससे सामाजिक न्याय सुनिश्चित होता है।

4. भौगोलिक संतुलन

इस प्रक्रिया के माध्यम से शहरी और ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाए रखा जाता है ताकि सभी क्षेत्रों का विकास हो।

2026 परिसीमन और दक्षिणी राज्यों की चिंता

भारत में अगला परिसीमन 2026 में होने वाला है, जिससे कुछ दक्षिणी राज्यों को अपने राजनीतिक प्रभाव में कमी का डर सता रहा है। इसका मुख्य कारण उत्तर और दक्षिण भारत के बीच जनसंख्या वृद्धि में असमानता है।

1. जनसंख्या वृद्धि और प्रतिनिधित्व

उत्तर भारत के राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश) में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक रही है, जबकि दक्षिणी राज्यों (जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश) में जनसंख्या नियंत्रण प्रभावी रूप से लागू किया गया है।

2. सीटों में असमान वृद्धि

यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होता है, तो उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटें 85 से बढ़कर 250 तक हो सकती हैं, जबकि तमिलनाडु की सीटें 39 से बढ़कर केवल 76 तक ही बढ़ेंगी। इससे दक्षिणी राज्यों का संसदीय प्रतिनिधित्व कमजोर हो सकता है।

3. राजनीतिक प्रभाव और असंतुलन

इस परिवर्तन से दक्षिणी राज्यों को यह डर है कि केंद्र सरकार में उनकी प्रभावशीलता कम हो जाएगी। वे मांग कर रहे हैं कि परिसीमन प्रक्रिया में जनसंख्या के बजाय अन्य कारकों (जैसे विकास दर और अर्थव्यवस्था में योगदान) को भी ध्यान में रखा जाए।

परिसीमन की चुनौतियाँ

परिसीमन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई चुनौतियाँ भी शामिल होती हैं:

1. जनसंख्या बनाम विकास

यदि परिसीमन केवल जनसंख्या के आधार पर होता है, तो उन राज्यों को नुकसान होगा जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को प्रभावी ढंग से लागू किया है। इससे नीतिगत असमानता उत्पन्न हो सकती है।

2. राजनीतिक विवाद

परिसीमन आयोग के निर्णय कई बार राजनीतिक दलों और राज्यों के बीच विवाद का कारण बनते हैं, जिससे इसे लागू करना कठिन हो जाता है।

3. क्षेत्रीय असंतोष

उत्तर-दक्षिण विभाजन को देखते हुए क्षेत्रीय असंतोष बढ़ सकता है, जिससे राष्ट्रीय एकता पर असर पड़ सकता है।

4. न्यायिक समीक्षा की सीमाएँ

हालाँकि परिसीमन आयोग का निर्णय अंतिम होता है, लेकिन यदि कोई विवाद होता है तो न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाएँ बनी रहती हैं, जिससे जटिलताएँ बढ़ सकती हैं।

परिसीमन भारतीय लोकतंत्र के अंतर्गत निर्वाचन क्षेत्रों में निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित करता है। हालाँकि, इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हैं, विशेष रूप से 2026 के परिसीमन को लेकर।

यह आवश्यक है कि परिसीमन प्रक्रिया में केवल जनसंख्या को आधार बनाने के बजाय अन्य कारकों को भी ध्यान में रखा जाए, ताकि सभी राज्यों को समान अवसर मिल सके और लोकतंत्र की भावना बनी रहे। यदि इस प्रक्रिया को संतुलित और निष्पक्ष रूप से लागू किया जाता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र को और अधिक सशक्त बनाएगा।

सुझाव

  1. परिसीमन में जनसंख्या के साथ-साथ विकास दर, शिक्षा स्तर और आर्थिक योगदान को भी ध्यान में रखा जाए।
  2. दक्षिणी राज्यों की चिंताओं को दूर करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर संवाद किया जाए।
  3. परिसीमन आयोग की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाए ताकि जनता को विश्वास हो कि यह निष्पक्षता से किया गया है।

इस तरह परिसीमन भारतीय लोकतंत्र को अधिक मजबूत और समावेशी बना सकता है।

परिसीमन भारतीय लोकतंत्र की एक आवश्यक प्रक्रिया है, जो यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक नागरिक को समान प्रतिनिधित्व मिले। हालाँकि, इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं, विशेष रूप से जब यह जनसंख्या के आधार पर किया जाता है। 2026 का परिसीमन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि यह विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा।

इस प्रक्रिया को संतुलित रूप से लागू करने की आवश्यकता है, ताकि सभी राज्यों के साथ न्याय हो और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा हो सके। परिसीमन केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।

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