तमिलनाडु सरकार ने अपने 2025-26 के राज्य बजट में एक महत्वपूर्ण घोषणा की, जिसमें भारतीय रुपये (₹) के आधिकारिक प्रतीक को बदलकर तमिल अक्षर “ரூ” (रु) अपनाने का निर्णय लिया गया। यह कदम तमिल भाषा को बढ़ावा देने और राज्य की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया गया है। इस निर्णय ने पूरे देश में चर्चा को जन्म दिया है और कई संवैधानिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक सवाल खड़े किए हैं। इस लेख में, हम इस निर्णय के विभिन्न पहलुओं की विस्तृत चर्चा करेंगे।
भारतीय रुपये का आधिकारिक प्रतीक (₹) और उसका इतिहास
परिचय और विकास
भारतीय रुपये के लिए आधिकारिक प्रतीक (₹) को 15 जुलाई 2010 को अपनाया गया था। इससे पहले, भारतीय मुद्रा को “Rs” या “INR” के रूप में लिखा जाता था, जिससे पाकिस्तानी और श्रीलंकाई रुपये जैसी अन्य मुद्राओं के साथ भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती थी। इस समस्या को हल करने और रुपये को विशिष्ट पहचान देने के लिए भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की, जिसके माध्यम से वर्तमान प्रतीक को चुना गया।
डिज़ाइन और महत्व
रुपये का प्रतीक (₹) देवनागरी “र” (Ra) और रोमन “R” का मिश्रण है। इसका डिज़ाइन आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर डी. उदय कुमार द्वारा तैयार किया गया था। इसमें दो समांतर रेखाएँ हैं, जो भारतीय तिरंगे के दो रंगों (केसरिया और हरा) का प्रतीक हैं।
वैश्विक संदर्भ
रुपये का प्रतीक अपनाने के बाद, यह दुनिया की पाँचवीं मुद्रा बन गया, जिसे एक विशेष प्रतीक द्वारा पहचाना जाता है। इससे पहले, अमेरिकी डॉलर ($), ब्रिटिश पाउंड (£), जापानी येन (¥) और यूरो (€) के प्रतीक पहले से ही प्रचलित थे।
चाँदी के सिक्के से आधुनिक मुद्रा तक का सफर
प्राचीन काल
भारतीय मुद्रा का नाम “रुपया” संस्कृत शब्द “रुप्याह्” से लिया गया है, जिसका अर्थ चाँदी होता है। “रूप्यकम्” का अर्थ चाँदी का सिक्का होता था, जो प्राचीन भारत में व्यापारिक विनिमय के लिए प्रचलित था।
मुगल काल
1540-1545 के बीच शासन करने वाले शेर शाह सूरी को आधुनिक रुपया प्रणाली का जनक माना जाता है। उन्होंने एक मानकीकृत चाँदी का सिक्का चलाया, जिसका भार लगभग 178 ग्रेन (11.53 ग्राम) था। इसके अलावा, सोने का “मोहर” और तांबे का “दाम” भी प्रचलन में लाया गया।
ब्रिटिश काल
ब्रिटिश शासन के दौरान रुपया मुख्य मुद्रा बना रहा। उस समय रुपये का भार 11.66 ग्राम था और उसमें 91.7% शुद्ध चाँदी होती थी। 19वीं शताब्दी के अंत तक, रुपया ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली के अंतर्गत 1 शिलिंग 4 पेंस के बराबर आंका जाता था।
आधुनिक भारत में रुपया
1957 में रुपये का दशमलवीकरण किया गया। पहले 1 रुपया = 16 आने = 64 पैसे = 192 पाई में बँटा होता था, लेकिन 1957 के बाद इसे 100 पैसे में विभाजित कर दिया गया। वर्तमान में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मुद्रा जारी करने और इसकी नीति निर्धारण का कार्य करता है।
क्या राज्य सरकार रुपये के प्रतीक को बदल सकती है?
संवैधानिक स्थिति
भारतीय रुपये का चिह्न (₹) 2010 में केंद्र सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से अपनाया गया था, लेकिन इसे राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem) का दर्जा नहीं मिला है। इसलिए, यह किसी विशेष कानून के अंतर्गत नहीं आता जो इसे बदलने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता हो।
संविधान की संघ सूची (Union List) के अनुसार:
- Entry 36: मुद्रा से संबंधित कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है।
- Entry 38: भारतीय रिज़र्व बैंक से संबंधित कानून भी केंद्र सरकार ही बना सकती है।
रुपये के प्रतीक में बदलाव करने पर संभावित कानूनी कार्रवाई
- संविधान के अनुसार केंद्र सरकार का अधिकार: संविधान की 7वीं अनुसूची की संघ सूची (Union List) में “मुद्रा” (Entry 36) और “भारतीय रिज़र्व बैंक” (Entry 38) का उल्लेख है, जिससे स्पष्ट होता है कि राज्य सरकारों को मुद्रा या उसके प्रतीकों में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है।
- भारतीय मुद्रा अधिनियम, 1906 और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934: ये अधिनियम भारतीय मुद्रा की प्रामाणिकता और डिज़ाइन को नियंत्रित करते हैं। यदि राज्य सरकार रुपये के प्रतीक को बदलने का प्रयास करती है, तो इसे इन अधिनियमों के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 256 और 257 के तहत कार्रवाई: यदि केंद्र सरकार इसे गंभीर संवैधानिक उल्लंघन मानती है, तो वह राज्य सरकार को अनुच्छेद 256 और 257 के तहत इस फैसले को वापस लेने का निर्देश दे सकती है। अगर राज्य सरकार इसका पालन नहीं करती, तो राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) लगाने की सिफारिश हो सकती है।
- वित्तीय सहायता में कटौती: यदि राज्य सरकार किसी विवादास्पद निर्णय पर कायम रहती है, तो केंद्र सरकार वित्तीय सहायता या अनुदान में कटौती करके इसे वापस लेने के लिए कह सकती है।
रुपये के प्रतीक में बदलाव के संभावित प्रभाव
1. मानकीकरण प्रक्रिया पर प्रभाव
राष्ट्रीय मुद्रा के प्रतीक को एक समान रूप में स्वीकार किया जाता है, ताकि पूरे देश में आर्थिक लेन-देन और प्रशासनिक कार्यों में एकरूपता बनी रहे। यदि हर राज्य अपने अलग प्रतीक विकसित करने लगे, तो इससे राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली में असमानता उत्पन्न हो सकती है।
2. संघीय ढांचे और भाषाई पहचान
भारत का संविधान राज्यों को उनकी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की स्वतंत्रता देता है। हालांकि, राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ छेड़छाड़ संघीय ढांचे में असहमति को जन्म दे सकती है। यह अन्य राज्यों को भी अपने प्रतीक विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय एकता प्रभावित हो सकती है।
3. प्रशासनिक और वित्तीय प्रभाव
- सरकारी दस्तावेजों, बैंकिंग प्रणालियों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन में रुपये का मानकीकृत चिह्न (₹) उपयोग किया जाता है।
- यदि विभिन्न राज्यों द्वारा अलग-अलग प्रतीक विकसित किए जाने लगे, तो इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- इससे मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी प्रभावित हो सकती है, जिससे विदेशी निवेशकों के बीच अनिश्चितता बढ़ सकती है।
तमिलनाडु सरकार द्वारा रुपये के प्रतीक में बदलाव का निर्णय निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण भाषाई और सांस्कृतिक कदम है। हालांकि, यह कदम संवैधानिक, कानूनी और आर्थिक रूप से कई सवाल खड़े करता है। यदि यह मामला आगे बढ़ता है, तो अन्य राज्य भी अपने प्रतीक अपनाने की माँग कर सकते हैं, जिससे राष्ट्रीय मुद्रा की एकरूपता पर संकट उत्पन्न हो सकता है।
यदि केंद्र सरकार इस मुद्दे को गंभीर संवैधानिक उल्लंघन मानती है, तो वह इसे रोकने के लिए विभिन्न कानूनी उपाय अपना सकती है। भविष्य में रुपये का प्रतीक राष्ट्रीय पहचान और एकता का प्रतीक बना रहेगा या राज्यों को इसमें बदलाव करने की छूट मिलेगी, यह एक महत्वपूर्ण विषय बना रहेगा।
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