भारत में एयर कंडीशनर (AC) तापमान सीमा निर्धारण की पहल

गर्मियों के मौसम में शहरी और अर्ध-शहरी भारत में एयर कंडीशनर (AC) अब आवश्यकता बन चुके हैं। जहां ये मशीनें गर्मी से राहत देती हैं, वहीं यह ऊर्जा खपत और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालती हैं। ऐसे में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की हालिया पहल — जिसमें देश में एयर कंडीशनरों के लिए तापमान सीमा 20°C से 28°C के बीच तय करने की योजना बनाई गई है — एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में सामने आई है।

इस प्रस्ताव का उद्देश्य न केवल ऊर्जा की बचत करना है, बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा और पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा देना है। यह लेख इस प्रस्ताव की पृष्ठभूमि, तकनीकी पक्ष, संभावित लाभ, और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

वर्तमान स्थिति और प्रस्ताव का संदर्भ

भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में जहां गर्मी के मौसम का विस्तार और तीव्रता दोनों बढ़ रहे हैं, वहां AC का उपयोग हर साल कई गुना बढ़ता जा रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, भारत में 2030 तक एयर कंडीशनर से संबंधित विद्युत भार 200 गीगावॉट तक पहुंचने की आशंका है। यह बिजली उत्पादन और वितरण तंत्र पर गंभीर दबाव डालेगा।

इस चुनौती से निपटने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय और Bureau of Energy Efficiency (BEE) ने संयुक्त रूप से 2018, 2021 और अब 2025 में यह प्रस्ताव दिया कि AC का तापमान डिफॉल्ट रूप से 24°C तय किया जाए और उसका समायोजन 20°C से 28°C के बीच ही सीमित किया जाए।

AC तापमान सीमा निर्धारण की आवश्यकता क्यों?

1. ऊर्जा दक्षता में सुधार

BEE के अनुसार, यदि AC का तापमान 1°C बढ़ाया जाए, तो लगभग 6% बिजली की बचत संभव है। उदाहरण के लिए, यदि कोई उपयोगकर्ता 18°C की बजाय 24°C पर AC चलाता है, तो ऊर्जा खपत में भारी कमी आती है।

राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रभाव:

  • यदि पूरे देश में एयर कंडीशनर को डिफॉल्ट 24°C पर सेट किया जाए,
    तो प्रति वर्ष 20 अरब यूनिट बिजली की बचत हो सकती है।
  • इससे न केवल देश की ऊर्जा आवश्यकता में कमी आएगी, बल्कि कार्बन उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय गिरावट संभव है।

2. स्वास्थ्य संबंधी लाभ

अत्यधिक ठंडा तापमान न केवल असहज हो सकता है, बल्कि कई बार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी सिद्ध होता है।

18°C से कम तापमान पर रहने के खतरे:

  • उच्च रक्तचाप (Hypertension): अचानक तापमान में गिरावट रक्त संचार को प्रभावित करता है।
  • अस्थमा और श्वसन संक्रमण: ठंडी और शुष्क हवा फेफड़ों को प्रभावित करती है।
  • कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों के लिए खतरा: बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों के लिए यह जोखिम और अधिक हो जाता है।

3. वैश्विक प्रमाण और अनुशंसाएँ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO):

WHO के अनुसार, समशीतोष्ण जलवायु (Temperate Climate) वाले क्षेत्रों में इनडोर तापमान कम से कम 18°C होना चाहिए ताकि स्वास्थ्य प्रभावित न हो।

अन्य देशों के अनुभव:

  • जापान: वहां “Cool Biz” नामक नीति के अंतर्गत इनडोर तापमान 28°C तक निर्धारित किया गया ताकि ऊर्जा की बचत हो और ऑफिस में हल्के वस्त्र स्वीकार्य हों।
  • UK और न्यूजीलैंड: अध्ययन दर्शाते हैं कि थोड़ा गर्म इनडोर वातावरण हृदय और श्वसन स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है।

थर्मल कंफर्ट मानक (Thermal Comfort Standards):

  • ASHRAE 55 और ISO 7730 जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, 20°C से 24°C का तापमान हल्के वस्त्र पहने लोगों के लिए आदर्श माना गया है।
  • भारत जैसे विविध जलवायु वाले देश में, स्थानीय वातावरण और सांस्कृतिक कारकों के आधार पर समायोजन जरूरी है।

एयर कंडीशनर कैसे कार्य करता है: तकनीकी अवलोकन

AC का मूल कार्य ऊष्मा का स्थानांतरण है — यानि कमरे की गर्मी को बाहर निकालकर अंदर ठंडी हवा प्रवाहित करना। यह प्रक्रिया एक वाष्प-संपीड़न चक्र (Vapour Compression Cycle) के माध्यम से होती है।

मुख्य चरण:

  1. इवैपोरेशन (Evaporation):
    • कमरे की गर्म हवा इवैपोरेटर से होकर गुजरती है।
    • यहां रेफ्रिजरेंट वाष्पित होकर गर्मी और नमी को अवशोषित करता है।
  2. संपीड़न (Compression):
    • रेफ्रिजरेंट वाष्प अब एक कंप्रेसर से गुजरता है।
    • यहाँ इसका तापमान और दबाव दोनों बढ़ते हैं — और यहीं सबसे अधिक बिजली की खपत होती है।
  3. कंडेंसिंग (Condensation):
    • गर्म गैस अब कंडेंसर से होकर बाहर जाती है, जहाँ यह ऊष्मा त्यागकर पुनः तरल रूप में बदलती है।
  4. विस्तार (Expansion):
    • तरल रेफ्रिजरेंट एक एक्सपैंशन वाल्व से होकर गुजरता है, जिससे उसका तापमान और दबाव गिरता है।
    • यह पुनः इवैपोरेटर में प्रवेश करता है — और यह चक्र निरंतर चलता रहता है।

इस प्रक्रिया में तापमान सीमाओं का पालन आवश्यक है ताकि AC अधिकतम दक्षता के साथ कार्य कर सके।

नीति का ऐतिहासिक विकास

यह विचार सबसे पहले 2018 में सामने आया, जब BEE ने प्रस्ताव दिया था कि भारत में सभी AC को डिफॉल्ट रूप से 24°C पर सेट किया जाए। इसके पीछे तर्क था कि उपयोगकर्ता अधिकतर 20°C से नीचे के तापमान पर AC चलाते हैं, जिससे अनावश्यक ऊर्जा खपत होती है।

इसके बाद 2021 में फिर से यह प्रस्ताव चर्चा में आया, और अब 2025 में इसे व्यापक रूप से लागू करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।

कहाँ लागू होगा यह नियम?

  • घरेलू AC (घर और अपार्टमेंट)
  • वाणिज्यिक उपयोग (होटल, मॉल, ऑफिस)
  • परिवहन क्षेत्र (कारों में लगे AC)

ऊर्जा संरक्षण के दीर्घकालिक लाभ

  1. बिजली की आपूर्ति पर दबाव में कमी
    यदि समूचे भारत में AC तापमान सीमित किया जाए, तो पावर ग्रिड पर भार कम होगा, जिससे लोड शेडिंग जैसी समस्याएं घटेंगी।
  2. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटेगा
    कोयले और गैस से चलने वाले बिजली संयंत्रों पर निर्भरता घटेगी, जिससे कार्बन फुटप्रिंट में भारी कमी आएगी।
  3. वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा
    जब ऊर्जा की मांग स्थिर होगी, तो सौर और पवन ऊर्जा जैसे विकल्पों को शामिल करने में अधिक लचीलापन मिलेगा।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

1. उपभोक्ता स्वतंत्रता में हस्तक्षेप

कुछ लोगों का तर्क है कि सरकार द्वारा तापमान पर सीमा लगाना निजी चयन की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

2. प्रौद्योगिकी में विविधता

भारत में AC विभिन्न तकनीकी क्षमताओं वाले होते हैं, और कुछ पुरानी प्रणालियाँ 24°C पर कुशलता से कार्य नहीं कर पातीं।

3. जन जागरूकता की कमी

अधिकांश उपयोगकर्ता नहीं जानते कि तापमान बढ़ाने से ऊर्जा की बचत होती है।
जनसंचार और जागरूकता अभियान के बिना यह नीति सफल नहीं हो सकती।

समाधान और आगे का रास्ता

  1. स्मार्ट AC और IoT आधारित उपकरणों को बढ़ावा
    जो उपयोगकर्ता को तापमान सुझाव और ऊर्जा उपयोग की रिपोर्ट प्रदान करें।
  2. सब्सिडी और प्रोत्साहन योजनाएँ
    जो लोग ऊर्जा कुशल उपकरण अपनाते हैं, उन्हें वित्तीय सहायता मिले।
  3. मानक तय करने वाली एजेंसियों को सक्रिय भूमिका देनी चाहिए, जैसे –
    • BEE
    • Ministry of Power
    • State Electricity Boards

भारत में AC के तापमान पर नियंत्रण एक मात्र तकनीकी निर्णय नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय रणनीति है जो ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरणीय संतुलन और नागरिक स्वास्थ्य से जुड़ी है। इस नीति का क्रियान्वयन यदि प्रभावी ढंग से किया जाए, तो यह भारत को न केवल ऊर्जा संरक्षण की दिशा में अग्रसर करेगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भविष्य में जब बिजली की मांग और पर्यावरणीय खतरे दोनों बढ़ रहे हैं, तब यह कदम एक दूरदर्शी निर्णय बन सकता है — जहाँ आराम और जिम्मेदारी का संतुलन बने।

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