51वां G-7 शिखर सम्मेलन और भारत की भूमिका

21वीं सदी के बदलते वैश्विक परिदृश्य में बहुपक्षीय सहयोग और समन्वय की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य संकट, डिजिटल तकनीकी परिवर्तन और भू-राजनीतिक तनाव जैसी समस्याएँ किसी एक देश के प्रयास से हल नहीं की जा सकतीं। ऐसे में वैश्विक निर्णय-निर्माताओं के एक प्रभावशाली मंच – Group of Seven (G-7) – की भूमिका अत्यंत अहम हो जाती है।

वर्ष 2025 में कनाडा के कानानास्किस में आयोजित 51वें G-7 शिखर सम्मेलन ने एक बार फिर इस मंच की प्रासंगिकता को रेखांकित किया है। भारत की इसमें “आउटरीच पार्टनर” के रूप में भागीदारी, न केवल उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को दर्शाती है, बल्कि यह संकेत भी देती है कि भारत अब वैश्विक दक्षिण (Global South) की एक सशक्त आवाज़ बन चुका है।

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G-7: एक परिचय

स्थापना और विकास

G-7 की स्थापना 1975 में उस समय हुई जब वैश्विक स्तर पर तेल संकट और आर्थिक मंदी का प्रभाव गहरा रहा था। इसका प्रारंभ एक अनौपचारिक मंच के रूप में हुआ जिसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल थे – जिसे शुरू में Group of Six कहा गया।

वर्ष 1976 में कनाडा के जुड़ने के बाद यह Group of Seven (G-7) बना। इसके बाद 1998 में रूस को शामिल किया गया और समूह का नाम G-8 हो गया। किंतु 2014 में क्रीमिया संकट के चलते रूस को समूह से निष्कासित कर दिया गया, जिससे यह पुनः G-7 में परिवर्तित हो गया।

यूरोपीय संघ की भूमिका

हालांकि यूरोपीय संघ G-7 का औपचारिक सदस्य नहीं है, लेकिन वह स्थायी पर्यवेक्षक (Permanent Observer) के रूप में शिखर सम्मेलनों में भाग लेता है। उसे वोटिंग अधिकार या अध्यक्षता प्राप्त नहीं है, परंतु नीति संवाद में उसकी भागीदारी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

G-7 का वैश्विक प्रभाव

  • जनसंख्या: G-7 देशों की संयुक्त जनसंख्या वैश्विक जनसंख्या का मात्र 10% है।
  • आर्थिक शक्ति: ये देश वैश्विक GDP का लगभग 30% नियंत्रित करते हैं, जिससे इनकी वैश्विक आर्थिक व्यवस्था पर व्यापक पकड़ है।

इस तरह, G-7 विश्व की सबसे विकसित लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं का मंच है, जो न केवल आर्थिक मुद्दों पर, बल्कि जलवायु, तकनीक, सुरक्षा और मानवाधिकार जैसे पहलुओं पर भी संयुक्त दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

G-7 का कार्य और उद्देश्य

  • वार्षिक शिखर सम्मेलन: प्रत्येक वर्ष G-7 शिखर सम्मेलन आयोजित होता है जिसमें सदस्य देशों के प्रमुख एकत्रित होते हैं।
  • मुख्य उद्देश्य: वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा कर समावेशी, स्थायी और व्यावहारिक समाधान निकालना।
  • निर्णय प्रणाली: निर्णय सर्वसम्मति (Consensus) से लिए जाते हैं, जो सहयोगात्मक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है।

प्रमुख विषयवस्तु (Presidency के अनुसार परिवर्तनशील)

  1. अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
  2. वैश्विक आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण
  3. जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा
  4. तकनीकी परिवर्तन: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा
  5. वैश्विक स्वास्थ्य और महामारी तैयारी
  6. आपूर्ति श्रृंखला और व्यापार नीति

G-7 की अध्यक्षता प्रणाली

हर वर्ष एक सदस्य देश रोटेशन के आधार पर G-7 की अध्यक्षता करता है। यह अध्यक्ष देश उस वर्ष के एजेंडा और प्राथमिकताओं को तय करता है तथा सम्मेलन की रूपरेखा और विषयवस्तु का निर्धारण करता है।

उदाहरणस्वरूप, यदि कनाडा अध्यक्ष है, तो वह अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार वैश्विक चुनौतियों को सम्मेलन में प्रमुखता देगा – जैसे आर्कटिक सुरक्षा, स्वदेशी समुदायों के अधिकार, या जलवायु नीतियाँ।

51वां G-7 शिखर सम्मेलन: मुख्य बिंदु

स्थान: कानानास्किस, कनाडा

वर्ष: 2025

भारत की भागीदारी: G-7 आउटरीच पार्टनर के रूप में

इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत का नेतृत्व करते हुए जलवायु परिवर्तन, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, डिजिटल परिवर्तन और वैश्विक शांति जैसे विषयों पर रचनात्मक और समावेशी चर्चा की। G-7 देशों के नेताओं के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हुए भारत ने विकासशील देशों की चिंताओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।

भारत की G-7 में भागीदारी: एक विश्लेषण

भारत का G-7 में औपचारिक दर्जा

भारत G-7 का औपचारिक सदस्य नहीं है, लेकिन उसे “आउटरीच पार्टनर” के रूप में नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता है। इसका अर्थ है कि भारत का दृष्टिकोण G-7 की नीति चर्चाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

भारत की भागीदारी का इतिहास

  • वर्ष 2003 से अब तक भारत को 11 से अधिक बार आमंत्रित किया गया है।
  • 2019 से हर वर्ष भारत किसी न किसी रूप में G-7 सम्मेलनों में भाग ले रहा है।

भारत की विशेष भूमिका

  1. आर्थिक कद: भारत वर्तमान में विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिससे वैश्विक मंचों पर उसकी आवाज़ प्रभावशाली है।
  2. Global South का नेतृत्व: भारत विकासशील देशों की चुनौतियों और प्राथमिकताओं को वैश्विक नीति चर्चाओं में प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
  3. नीति योगदान: भारत जलवायु न्याय, डिजिटल समावेशन, स्वास्थ्य अवसंरचना और ऊर्जा सुरक्षा जैसे विषयों पर सक्रिय भागीदारी करता रहा है।

भारत की भूमिका क्यों महत्वपूर्ण है?

1. वैश्विक नेतृत्व में योगदान

भारत जलवायु परिवर्तन, अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा संक्रमण, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में विविधता और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे विषयों पर स्पष्ट नीति और प्रतिबद्धता प्रस्तुत करता रहा है।

2. वैश्विक दक्षिण की आवाज

भारत न केवल अपनी बात रखता है, बल्कि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के विकासशील देशों के हितों और आवाज़ को भी G-7 जैसे मंच पर प्रस्तुत करता है। यह भारत को एक सेतु (bridge) की भूमिका में स्थापित करता है – विकसित और विकासशील देशों के बीच।

3. बहुपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहन

भारत बहुपक्षीय व्यवस्था, नियम-आधारित वैश्विक शासन और सर्वसम्मति से निर्णय लेने के सिद्धांतों का समर्थन करता है। G-7 जैसे मंचों पर भारत की भागीदारी इस सहयोगात्मक दृष्टिकोण को मजबूती देती है।

G-7 शिखर सम्मेलन का वैश्विक महत्व

1. आर्थिक शक्ति का केंद्र

G-7 सदस्य वैश्विक GDP का बड़ा हिस्सा नियंत्रित करते हैं। उनकी आर्थिक नीतियाँ वैश्विक बाज़ारों, व्यापार नीति और निवेश प्रवाह को प्रत्यक्ष प्रभावित करती हैं।

2. वैश्विक नीति निर्धारण

जलवायु नीति, स्वास्थ्य सेवाओं, खाद्य सुरक्षा, तकनीकी विनियमन जैसे क्षेत्रों में G-7 के निर्णयों का वैश्विक प्रभाव पड़ता है।

3. संकट के समय समन्वय मंच

चाहे वह कोविड-19 महामारी हो या यूक्रेन संकट, G-7 ने वैश्विक प्रतिक्रियाओं में समन्वय और सहायता प्रदान करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है।

4. लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा

G-7 का गठन लोकतांत्रिक, स्वतंत्र और खुले समाजों के बीच सहयोग के उद्देश्य से हुआ है। यह मंच मानवाधिकार, प्रेस स्वतंत्रता और विधि के शासन जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करता है।

51वां G-7 शिखर सम्मेलन एक महत्वपूर्ण अवसर था जहाँ भारत ने वैश्विक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट और समावेशी भूमिका को रेखांकित किया। भारत की सक्रिय भागीदारी यह दर्शाती है कि वह केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि एक वैश्विक नीति-निर्माता और सह-नेता के रूप में उभर रहा है।

G-7 जैसे मंचों पर भारत की भूमिका यह सुनिश्चित करती है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की दृष्टि, विकासशील देशों की चिंताएँ, और वैश्विक सहयोग की भावना – सभी को उचित स्थान मिले। भविष्य में भी G-7 और भारत के बीच यह सहयोग वैश्विक चुनौतियों का समाधान निकालने में सहायक सिद्ध हो सकता है।

सुझाव और आगे की दिशा

  • भारत को G-7 में औपचारिक सदस्यता के लिए एक रणनीतिक पहल करनी चाहिए या कम से कम “स्थायी आमंत्रित सदस्य” का दर्जा पाने की कोशिश करनी चाहिए।
  • भारत को वैश्विक जलवायु वित्त, डिजिटल गवर्नेंस और अफ्रीकी देशों के विकास में निवेश जैसे विषयों पर ठोस प्रस्ताव G-7 के समक्ष रखने चाहिए।
  • G-7 को भी चाहिए कि वह भारत जैसी उभरती शक्तियों के विचारों को नीति निर्माण में समुचित प्राथमिकता दे।

यह लेख न केवल 51वें G-7 शिखर सम्मेलन की झलक प्रस्तुत करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि भारत का भविष्य वैश्विक मंचों पर कितनी गहराई से जुड़ा हुआ है। G-7 और भारत के बीच यह साझा यात्रा वैश्विक समस्याओं के लिए साझा समाधानों की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

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