गर्भपात कानून | महिला अधिकारों की दिशा में प्रगतिशील पहल

गर्भपात का मुद्दा सदियों से सामाजिक, धार्मिक और कानूनी बहस का विषय रहा है। यह न केवल महिला की शारीरिक और मानसिक स्वतंत्रता से जुड़ा है, बल्कि उसके प्रजनन अधिकारों के दायरे में भी आता है। आधुनिक युग में जब महिला अधिकारों और लैंगिक समानता की बात हो रही है, ऐसे में गर्भपात के कानूनी और नैतिक पक्षों पर बहस और भी महत्वपूर्ण हो गई है।

ब्रिटेन समेत कई देशों में अब इस विषय पर नए दृष्टिकोण अपनाए जा रहे हैं। वहीं भारत में भी इस संबंध में कानून तो मौजूद हैं, लेकिन व्यावहारिक चुनौतियाँ और सामाजिक कलंक आज भी महिलाओं को सुरक्षित और स्वेच्छिक गर्भपात से वंचित करते हैं।

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गर्भपात क्या है?

गर्भपात (Abortion) वह प्रक्रिया है जिसमें किसी कारणवश गर्भावस्था को रोका जाता है और भ्रूण या भ्रूणीय अंश (embryo or fetus) को गर्भाशय से बाहर निकाल दिया जाता है। यह दो प्रकार से किया जा सकता है:

1. औषधीय गर्भपात (Medicinal Abortion):

गर्भावस्था के शुरुआती चरण (अक्सर 10 सप्ताह तक) में विशेष दवाओं के माध्यम से गर्भ को समाप्त किया जाता है।

2. शल्य गर्भपात (Surgical Abortion):

गर्भावस्था के आगे के चरणों में सर्जिकल उपकरणों के माध्यम से भ्रूण को हटाया जाता है।

ब्रिटेन में प्रस्तावित बदलाव: महिला अपराधमुक्ति की ओर

ब्रिटेन की संसद में गर्भपात से संबंधित कानूनों में सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल की जा रही है। सांसद टोनिया एंटोनियाजी (Tonia Antoniazzi) ने एक संशोधन प्रस्तावित किया है जो महिलाओं को गर्भावस्था समाप्त करने के कारण किसी प्रकार की आपराधिक कार्रवाई से बचाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • किसी भी अवस्था में अपराधमुक्ति: यह प्रस्ताव कहता है कि महिला यदि किसी भी चरण में स्वयं गर्भपात कराती है, तो उसे दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
  • उद्देश्य:
    • संकटग्रस्त और कमजोर महिलाओं को कानूनी दंड से बचाना।
    • गर्भपात को स्वास्थ्य और मानवाधिकार के रूप में स्थापित करना।

चिकित्सा पेशेवरों के लिए भी सुरक्षा:

  • प्रस्ताव: गर्भपात में सहायता करने वाले डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को अभियोजन से संरक्षण दिया जाए।
  • उद्देश्य:
    • चिकित्सा पेशेवरों को कानूनी भय से मुक्त करना।
    • सुरक्षित और कानूनी गर्भपात सेवाओं को प्रोत्साहित करना।

यह दृष्टिकोण महिला की आत्मनिर्णय की स्वतंत्रता को केंद्र में रखता है और चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत लोगों को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।

भारत में गर्भपात का कानूनी ढांचा

भारत में गर्भपात का कानूनी आधार Medical Termination of Pregnancy (MTP) Act, 1971 है। यह अधिनियम महिलाओं को सुरक्षित, कानूनी और वैध तरीके से गर्भपात कराने का अधिकार प्रदान करता है। हालाँकि, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 312 सामान्यतः गर्भपात को अपराध मानती है, लेकिन MTP Act इसके लिए अपवाद बनाता है।

MTP Act, 1971 का उद्देश्य:

  • महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात से बचाना।
  • उनकी स्वास्थ्य-सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • डॉक्टरों को कानूनी सुरक्षा देना।

2021 में हुए महत्वपूर्ण संशोधन

2021 में भारत सरकार ने MTP कानून में संशोधन कर इसे और अधिक महिला-केंद्रित बनाने का प्रयास किया। इसके तहत कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए:

20 सप्ताह तक:

  • एक पंजीकृत चिकित्सक की राय पर गर्भपात की अनुमति।

20 से 24 सप्ताह तक:

  • दो पंजीकृत चिकित्सकों की अनुमति आवश्यक।
  • विशिष्ट श्रेणियों की महिलाओं के लिए लागू।

24 सप्ताह के बाद:

  • केवल Medical Board द्वारा गंभीर भ्रूणीय असामान्यता की स्थिति में अनुमति।
  • अदालतें विशेष परिस्थितियों में हस्तक्षेप कर सकती हैं (जैसे बलात्कार, खतरे में गर्भवती महिला)।

24 सप्ताह तक गर्भपात के लिए पात्र महिलाएँ

2021 संशोधन के अनुसार, जिन महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है, उनमें शामिल हैं:

  • बलात्कार/यौन उत्पीड़न/अनाचार की शिकार महिलाएँ।
  • नाबालिग लड़कियाँ।
  • विवाहिक स्थिति में परिवर्तन (जैसे तलाकशुदा या विधवा होना)।
  • शारीरिक रूप से विकलांग महिलाएँ।
  • मानसिक रूप से अस्वस्थ महिलाएँ।
  • भ्रूण में गंभीर विकृति या जीवन के लिए अक्षम स्थिति।
  • आपदा, मानवीय संकट या सरकारी घोषित आपातकाल की परिस्थितियाँ।

भारत में गर्भपात कानून की मौजूदा चुनौतियाँ

1. अविवाहित महिलाओं के लिए अस्पष्टता:

20–24 सप्ताह के बीच गर्भपात की अनुमति सिर्फ ‘विशिष्ट श्रेणियों’ तक सीमित है, जिसमें अविवाहित महिलाओं को सीधे तौर पर शामिल नहीं किया गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में एक अविवाहित महिला को 24 सप्ताह पर गर्भपात की अनुमति दी — यह न्यायिक हस्तक्षेप की मिसाल बन गई।

2. महिला–केंद्रित नहीं, डॉक्टर–केंद्रित कानून:

MTP Act में ध्यान अधिकतर डॉक्टरों की सुरक्षा पर है। जबकि महिला की इच्छा और आत्मनिर्णय को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, कानून उसके बजाय चिकित्सकों के अधिकार और ज़िम्मेदारी पर केंद्रित है।

3. भ्रूणीय जीवनीयता (Fetal Viability) पर बहस:

24 सप्ताह के बाद भ्रूण को जीवित रहने योग्य माना जाता है, जिससे गर्भपात की अनुमति देना कठिन हो जाता है। इस विचार को अदालतें कई बार गर्भपात याचिकाएँ अस्वीकार करने के लिए आधार बनाती हैं, जिससे महिला की व्यक्तिगत स्थिति और मानसिक पीड़ा को अनदेखा कर दिया जाता है।

भारत बनाम वैश्विक परिदृश्य

भारत की स्थिति:

भारत के गर्भपात कानून वैश्विक मानकों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक उदार हैं। भारत में कानून Pro-choice दृष्टिकोण को अपनाते हुए अक्सर महिला की स्वायत्तता को भ्रूण के अधिकारों पर वरीयता देता है।

अमेरिका जैसे देशों की तुलना:

कुछ अमेरिकी राज्यों में गर्भपात पर पूर्ण प्रतिबंध या अत्यंत सीमित अवधि की अनुमति है। इससे महिलाओं की आत्मनिर्णय की स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ता है।

आयरलैंड, पोलैंड जैसे देशों में सख्ती:

इन देशों में धार्मिक कारणों से गर्भपात कानून काफी कठोर हैं, जिससे वहाँ की महिलाएँ अक्सर अन्य देशों में जाकर गर्भपात करवाती हैं।

समाज में गर्भपात के प्रति दृष्टिकोण

कानूनों के साथ-साथ सामाजिक दृष्टिकोण भी गर्भपात के अधिकार पर प्रभाव डालते हैं। भारत में आज भी गर्भपात को कलंक के रूप में देखा जाता है, विशेषकर तब जब महिला अविवाहित हो। ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति और भी गंभीर है।

प्रमुख सामाजिक बाधाएँ:

  • परिवार और समाज का दबाव
  • महिला की निर्णय क्षमता पर सवाल
  • चिकित्सकों की अनिच्छा
  • गोपनीयता की कमी

आगे की राह: सुझाव और सुधार की संभावनाएँ

  1. MTP Act को और अधिक महिला-केंद्रित बनाया जाए।
    – महिला की सहमति और निर्णय को ही केंद्रीय आधार बनाया जाए, न कि डॉक्टरों की सहमति को।
  2. अविवाहित महिलाओं के लिए स्पष्ट कानूनी सुरक्षा।
    – कानून में स्पष्ट रूप से अविवाहित और लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को भी शामिल किया जाए।
  3. प्रसवपूर्व देखभाल और परामर्श सेवाओं का विस्तार।
    – मानसिक, भावनात्मक और चिकित्सीय सहायता प्रदान करने वाले परामर्श केंद्रों को विकसित किया जाए।
  4. गोपनीयता और सुरक्षा की गारंटी।
    – महिलाएँ बिना डर के सुरक्षित रूप से गर्भपात करा सकें, इसके लिए अस्पतालों और क्लीनिकों में गोपनीयता सुनिश्चित की जाए।
  5. जनजागरूकता और सामाजिक शिक्षा।
    – स्कूलों और कॉलेजों में यौन शिक्षा के साथ-साथ गर्भपात और प्रजनन अधिकारों की जानकारी दी जाए।

गर्भपात केवल एक चिकित्सीय प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह महिला की स्वतंत्रता, गरिमा और आत्मनिर्णय से जुड़ा एक बुनियादी अधिकार है। ब्रिटेन और भारत जैसे देश जब इस दिशा में सुधारात्मक कदम उठा रहे हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम समाज और कानून दोनों स्तरों पर ऐसी व्यवस्थाएँ विकसित करें, जो महिला को आत्मनिर्णय की पूरी स्वतंत्रता दें।

भारत में MTP Act एक महत्त्वपूर्ण प्रगतिशील पहल रही है, लेकिन अब समय है कि इसे और भी समावेशी, स्पष्ट और महिला-केंद्रित बनाया जाए। केवल तभी हम एक ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ महिला को अपने शरीर और प्रजनन स्वास्थ्य पर पूरा अधिकार प्राप्त हो — बिना भय, दबाव या कलंक के।

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