दिल्ली, जो समय-समय पर वायु प्रदूषण और जल संकट की विकराल समस्याओं से जूझती है, अब एक ऐतिहासिक प्रयोग की ओर बढ़ रही है। जून 2025 के अंत तक, दिल्ली सरकार राजधानी में पहली बार क्लाउड सीडिंग अर्थात् कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) का परीक्षण करने जा रही है। यह प्रयास देश की अग्रणी तकनीकी संस्था IIT कानपुर के सहयोग से किया जा रहा है, जिसमें भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और रक्षा मंत्रालय का भी योगदान है।
यह पहल न केवल वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के एक वैकल्पिक उपाय के रूप में देखी जा रही है, बल्कि यह पर्यावरणीय विज्ञान, तकनीकी नवाचार और सरकारी सक्रियता का उदाहरण भी है। यह लेख इस पूरी परियोजना के वैज्ञानिक पक्ष, सरकारी रणनीति, संभावित प्रभाव, चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तृत प्रकाश डालता है।
क्या है क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding)?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसके अंतर्गत बादलों में विशेष प्रकार के रसायनों या खनिजों का छिड़काव किया जाता है, जिससे उनमें संघनन (Condensation) की प्रक्रिया को तेज किया जा सके। इससे वर्षा की संभावना को कृत्रिम रूप से बढ़ाया जाता है।
प्रमुख तत्व जो बादलों में छिड़के जाते हैं:
- सिल्वर आयोडाइड (AgI) – बर्फ की क्रिस्टल संरचना से मिलता-जुलता।
- पाउडर रॉक सॉल्ट
- आयोडाइज्ड सॉल्ट
- हाइज्रोस्कोपिक और ग्लेशियोजेनिक गुणों से युक्त मिश्रण – ये तत्व नमी को आकर्षित कर बादल की बूंदों को भारी बनाते हैं और वर्षा को प्रेरित करते हैं।
आदर्श बादल:
इस प्रक्रिया के लिए Nimbostratus प्रकार के बादलों को उपयुक्त माना जाता है। ये बादल सामान्यतः 500 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं और इनमें 50% से अधिक नमी होनी चाहिए।
क्यों है यह कदम चर्चा में?
19 जून 2025 को दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजींदर सिंह सिरसा ने घोषणा की कि दिल्ली सरकार को क्लाउड सीडिंग ट्रायल के लिए अधिकांश प्रमुख एजेंसियों से अनुमति मिल चुकी है।
यह भारत में राज्य सरकार द्वारा किया गया पहला संगठित क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट होगा, जिसकी लागत ₹3.21 करोड़ है। इसकी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि, प्रशासनिक समन्वय, पर्यावरणीय सोच और तकनीकी व्यावहारिकता—चारों मिलकर इसे एक उल्लेखनीय प्रयोग बनाते हैं।
परियोजना का उद्देश्य और प्राथमिकता
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य अत्यधिक वायु प्रदूषण या जल संकट की स्थिति में कृत्रिम वर्षा की व्यवहार्यता का परीक्षण करना है। हालांकि, यह चरण प्रत्यक्ष रूप से वायु गुणवत्ता सुधार के लिए नहीं है, फिर भी उम्मीद की जा रही है कि वर्षा के माध्यम से वायु में मौजूद धूल कण और प्रदूषक कम होंगे, जिससे PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कणों का स्तर घटेगा।
यह एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है जिसमें वैज्ञानिक उपायों के माध्यम से दिल्ली के पर्यावरणीय संकटों से निपटने की तैयारी की जा रही है।
परीक्षण की विशेषताएँ
विशेषता | विवरण |
---|---|
परीक्षण स्थान | दिल्ली के बाहरी क्षेत्र (VIP और सुरक्षित वर्जित क्षेत्रों से दूर) |
कुल बजट | ₹3.21 करोड़ |
प्रति ट्रायल खर्च | ₹55 लाख |
लॉजिस्टिक्स और भंडारण | ₹66 लाख |
ट्रायल उड़ानें | 5 उड़ानों में लगभग 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया जाएगा |
लॉन्च का समय | जून 2025 के अंत तक (IMD से अनुकूल मौसम की पुष्टि के बाद) |
उड़ान आधार | हिंडन एयर बेस, गाजियाबाद (रक्षा मंत्रालय से अनुमति प्राप्त) |
वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी और IIT कानपुर की भूमिका
क्लाउड सीडिंग की तकनीक को IIT कानपुर ने विकसित किया है। यह संस्था परीक्षण के दौरान तकनीकी सहायता, रसायनों की गुणवत्ता की जाँच और वर्षा जल के सैंपल का विश्लेषण भी करेगी।
प्रमुख वैज्ञानिक पहलू:
- वर्षा के बाद सिल्वर आयोडाइड की मात्रा का मूल्यांकन किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इसका पर्यावरणीय प्रभाव नगण्य है।
- प्रारंभिक परीक्षणों में पाया गया है कि यह मिश्रण स्वास्थ्य या मिट्टी/पानी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता, लेकिन दीर्घकालिक प्रयोगों से ही इसकी पुष्टि होगी।
IIT कानपुर का मत है कि यदि क्लाउड सीडिंग तकनीक सफल रहती है, तो भविष्य में इसे देश के अन्य प्रदूषित शहरों में भी लागू किया जा सकता है।
अनुमति और समन्वय में शामिल संस्थान
इस परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए कई केंद्रीय और राज्य स्तरीय एजेंसियों का समन्वय आवश्यक है। प्रमुख संस्थान जो इससे जुड़े हैं:
एजेंसी / विभाग | भूमिका |
---|---|
DGCA (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) | परीक्षण उड़ानों की अंतिम अनुमति |
IMD (भारत मौसम विज्ञान विभाग) | हर 6 घंटे में नमी, बादलों की स्थिति की जानकारी |
रक्षा मंत्रालय | हिंडन एयरबेस की अनुमति |
SPG (विशेष सुरक्षा समूह) | VIP क्षेत्र निर्धारण |
CPCB (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) | पर्यावरण प्रभाव विश्लेषण |
गृह मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, उत्तर प्रदेश सरकार | प्रशासनिक समन्वय |
यह परियोजना एक उदाहरण है कि कैसे वैज्ञानिक शोध, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न संस्थानों का समन्वय मिलकर एक नवाचार को साकार कर सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय
मंजींदर सिंह सिरसा (पर्यावरण मंत्री):
“यह ट्रायल केवल वायु गुणवत्ता नहीं, बल्कि तकनीकी व्यवहार्यता को परखने के लिए है। यह भविष्य में प्रदूषण नियंत्रण और जल संकट से निपटने का संभावित समाधान हो सकता है।”
IIT कानपुर:
“सिल्वर आयोडाइड का प्रभाव न्यूनतम प्रतीत होता है, लेकिन वर्षा के बाद के आंकड़े ही पुष्टि करेंगे। हमें तकनीकी दक्षता और पर्यावरणीय जिम्मेदारी—दोनों को साथ लेकर चलना होगा।”
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
हालांकि क्लाउड सीडिंग एक अत्याधुनिक समाधान प्रतीत होता है, इसके पर्यावरणीय पहलुओं पर सतर्क निगरानी आवश्यक है।
सकारात्मक प्रभाव:
- वायु प्रदूषण में अस्थायी लेकिन उल्लेखनीय गिरावट
- जल संचयन (Rainwater harvesting) के माध्यम से भूजल स्तर सुधार
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राहत
चिंताएँ:
- रसायनों का दीर्घकालिक प्रभाव (हालांकि न्यूनतम)
- अनियोजित वर्षा से शहरी बाढ़ की संभावना
- बादल के प्राकृतिक जीवनचक्र में हस्तक्षेप की नैतिक बहस
भविष्य की संभावनाएँ
यदि यह परीक्षण सफल रहता है, तो आने वाले वर्षों में क्लाउड सीडिंग का उपयोग दिल्ली में नियमित रूप से किया जा सकता है। इसके अलावा:
- भारत के अन्य प्रदूषण प्रभावित शहरों जैसे मुंबई, लखनऊ, कानपुर, पटना, और कोलकाता में भी यह तकनीक अपनाई जा सकती है।
- कृषि क्षेत्रों में सूखे से बचाव हेतु क्लाउड सीडिंग एक क्रांतिकारी उपाय बन सकता है।
- यह नवाचार स्मार्ट सिटी मिशन और हरित भारत अभियान जैसी पहलों में समावेशी रूप से उपयोगी हो सकता है।
दिल्ली में पहली बार कृत्रिम वर्षा कराने की यह पहल एक ऐसा उदाहरण है, जिसमें विज्ञान, प्रशासन और समाज की जरूरतों के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकटों के इस दौर में भारत को ऐसे ही नवाचारों की आवश्यकता है जो न केवल तात्कालिक समाधान दें, बल्कि दीर्घकालिक दिशा भी प्रस्तुत करें।
यह परियोजना दर्शाती है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रशासनिक सहयोग एक साथ हो, तो भारत पर्यावरणीय चुनौतियों से लड़ने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
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