मानव जीवन और उसके विकास में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। धरती पर जीवन की सभी गतिविधियाँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन संसाधनों पर निर्भर हैं। प्राचीन काल से ही मानव प्रकृति द्वारा प्रदत्त साधनों का उपयोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता आ रहा है। किंतु जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी और तकनीकी प्रगति हुई, इन संसाधनों पर दबाव भी बढ़ता गया। इसके परिणामस्वरूप इनके विवेकपूर्ण उपयोग और संरक्षण की आवश्यकता महसूस की जाने लगी।
प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जाता है। इनमें एक प्रमुख आधार उनके उपयोग की सततता (Sustainability of Use) है। इस आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है:
1️⃣ पुनरुत्पादनीय या नवीनीकरणीय संसाधन (Renewable Resources)
2️⃣ गैर-पुनरुत्पादनीय या अ-नवीनीकरणीय संसाधन (Non-Renewable Resources)
आइए इन दोनों श्रेणियों का विस्तार से अध्ययन करें।
1. पुनरुत्पादनीय या नवीनीकरणीय संसाधन (Renewable Resources)
पुनरुत्पादनीय संसाधन वे प्राकृतिक साधन हैं, जिन्हें प्रकृति बार-बार उत्पन्न करती रहती है। यदि इनका दोहन संतुलित और विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए, तो ये निरंतर उपलब्ध रहते हैं और अगली पीढ़ियों की आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकते हैं। इन संसाधनों की विशेषता यह है कि ये समय के साथ अपने आप या मानवीय प्रयासों से पुनः उत्पन्न हो सकते हैं।
प्रमुख उदाहरण
👉 वनस्पति और पशुधन – पौधे, पेड़, घास, मत्स्य संसाधन और पालतू पशु पुनरुत्पादनीय संसाधनों में आते हैं। पौधे बीज से पुनः उत्पन्न होते हैं और पशुधन अपनी प्रजनन शक्ति के कारण संख्या में वृद्धि करते हैं। यदि इनका संतुलित उपयोग किया जाए, तो ये न केवल पर्यावरण संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण होते हैं।
👉 पानी (जल संसाधन) – नदियाँ, झीलें, धरातलीय और भूगर्भीय जल भंडार वर्षा और प्राकृतिक जल चक्र के माध्यम से पुनः भरते रहते हैं। वर्षा ऋतु में जल स्रोतों का पुनर्भरण होता है और वे मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
👉 सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा – ये अक्षय संसाधन कभी समाप्त नहीं होते। इनका उपयोग जितना भी किया जाए, ये भविष्य में भी उतनी ही मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। इसलिए इन्हें कभी न समाप्त होने वाले संसाधनों की श्रेणी में रखा जाता है।
पुनरुत्पादनीय संसाधनों की सीमाएँ और चुनौतियाँ
यद्यपि ये संसाधन पुनः उत्पन्न हो सकते हैं, किन्तु यदि इनका अंधाधुंध दोहन किया जाए तो इनकी पुनर्जनन दर प्रभावित होती है और ये समाप्ति की कगार पर पहुँच सकते हैं। उदाहरणस्वरूप:
- वनों की अंधाधुंध कटाई से भूमि का क्षरण और जैव विविधता की हानि होती है।
- अत्यधिक मत्स्य आखेट से समुद्री जीवन संतुलन बिगड़ता है और मछलियों की प्रजनन दर घट जाती है।
- अत्यधिक भूजल दोहन से जल स्तर गिर जाता है और सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
मानव गतिविधियाँ, जैसे कि औद्योगीकरण, शहरीकरण और कृषि का विस्तार, इन संसाधनों पर दबाव डालते हैं। इसके चलते कई बार प्राकृतिक चक्र बाधित होता है। उदाहरण के लिए, यदि वर्षा न हो या सूखा पड़ जाए, तो जल स्रोत रिक्त हो जाते हैं। यदि यह स्थिति लगातार कुछ वर्षों तक बनी रहे तो जल संकट उत्पन्न हो सकता है।
सतत उपयोग और संरक्षण
पुनरुत्पादनीय संसाधनों का सतत उपयोग और संरक्षण आवश्यक है ताकि प्राकृतिक चक्र निर्बाध रूप से चलता रहे। इसके लिए कुछ उपाय आवश्यक हैं:
- वनों की कटाई पर नियंत्रण और वनीकरण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना
- मछलियों के प्रजनन काल में आखेट पर रोक लगाना
- जल संचयन और संरक्षण की तकनीकों को बढ़ावा देना
- सौर, पवन और अन्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग करना
गैर-पुनरुत्पादनीय या अ-नवीनीकरणीय संसाधन (Non-Renewable Resources)
गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधन वे प्राकृतिक साधन हैं, जिनका निर्माण प्रकृति में लाखों वर्षों में होता है और जो मानव जीवनकाल की दृष्टि से पुनः उत्पन्न नहीं हो सकते। इन संसाधनों की मात्रा सीमित होती है। इनके अंधाधुंध प्रयोग से इनके समाप्त होने की आशंका सदैव बनी रहती है।
प्रमुख उदाहरण
👉 खनिज पदार्थ और धातुएँ – लोहा, तांबा, टिन, सीसा, यूरेनियम जैसे खनिज पदार्थ इस श्रेणी में आते हैं। इनका निर्माण भूगर्भीय प्रक्रियाओं में लाखों वर्षों में होता है।
👉 कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस – ये जीवाश्म ईंधन हैं जो प्राचीनकालीन जैविक पदार्थों के विघटन से बने हैं। इनका निर्माण करोड़ों वर्षों में होता है और वर्तमान में इनका तीव्र गति से दोहन हो रहा है।
गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधनों से जुड़ी समस्याएँ
गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधनों की समाप्ति की संभावना मानव सभ्यता के लिए गंभीर चिंता का विषय है। वर्तमान औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियाँ इन पर अत्यधिक निर्भर हैं। उदाहरणस्वरूप:
- पेट्रोलियम उत्पादों पर आधारित परिवहन व्यवस्था
- कोयले पर आधारित ऊर्जा उत्पादन
- धातुओं पर आधारित निर्माण कार्य
इनकी उपलब्धता सीमित होने के कारण इनके विकल्पों की खोज और सतत उपयोग पर बल दिया जा रहा है।
गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधनों का सतत प्रबंधन
गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधनों के सतत प्रबंधन हेतु प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे:
- पुनर्चक्रण (Recycling) – धातुओं और अन्य खनिज पदार्थों के पुनः उपयोग की प्रक्रिया
- ऊर्जा दक्षता – ऐसी तकनीकों का विकास जो कम ऊर्जा में अधिक उत्पादन करें
- वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग – सौर, पवन, ज्वारीय ऊर्जा जैसे अक्षय संसाधनों का उपयोग बढ़ाना ताकि जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घट सके
पुनरुत्पादनीय और गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधनों में अंतर
विशेषता | पुनरुत्पादनीय संसाधन | गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधन |
---|---|---|
उत्पत्ति | अल्पकालिक प्राकृतिक चक्र में पुनः उत्पन्न होते हैं | लाखों वर्षों में उत्पन्न होते हैं |
समाप्ति की संभावना | संतुलित उपयोग पर समाप्त नहीं होते | सीमित भंडार, समाप्त होने की संभावना अधिक |
उदाहरण | वन, जल, मछली, सौर ऊर्जा | कोयला, पेट्रोलियम, लोहा, तांबा |
संरक्षण की रणनीति | संतुलित दोहन, पुनर्भरण | पुनर्चक्रण, वैकल्पिक संसाधनों का उपयोग |
सतत विकास और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग
आज के समय में जब संसाधनों पर अत्यधिक दबाव है, सतत विकास की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। सतत विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करे, लेकिन भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को खतरे में न डाले।
सतत विकास हेतु आवश्यक है कि:
- प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण और न्यायसंगत उपयोग हो
- अपशिष्ट न्यूनतम हो और अधिकतम पुनर्चक्रण किया जाए
- ऊर्जा के अक्षय स्रोतों को प्राथमिकता दी जाए
- पर्यावरण संतुलन बनाए रखने हेतु जैव विविधता का संरक्षण हो
निष्कर्ष
प्राकृतिक संसाधन मानव सभ्यता की नींव हैं। इनका विवेकपूर्ण उपयोग ही मानव समाज की दीर्घकालीन उन्नति और पर्यावरण संतुलन को सुनिश्चित कर सकता है। जहाँ पुनरुत्पादनीय संसाधनों का संरक्षण और पुनर्भरण आवश्यक है, वहीं गैर-पुनरुत्पादनीय संसाधनों के स्थान पर वैकल्पिक साधनों का विकास और प्रयोग समय की मांग है।
आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि पृथ्वी के संसाधन असीमित नहीं हैं। यदि हम इनका दुरुपयोग करते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन कठिन बना देंगे। इसलिए, प्राकृतिक संसाधनों के सतत, न्यायसंगत और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग से ही हम अपने और अपनी अगली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं।
Environmental Economics – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें –
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