वैश्विक कर प्रणाली में हाल ही में एक नाटकीय मोड़ तब आया जब 28 जून 2025 को G7 (Group of Seven) देशों ने एक संयुक्त वक्तव्य में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को वैश्विक न्यूनतम कर ढांचे से छूट देने पर सहमति जताई। यह निर्णय न केवल OECD (Organisation for Economic Co-operation and Development) द्वारा 2021 में बनाए गए वैश्विक कर समझौते से एक बड़ा विचलन है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय कर पारदर्शिता, न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा और बहुपक्षीय सहयोग के लिए गंभीर चुनौती भी बन सकता है।
इस नीति का उद्देश्य अमेरिकी कंपनियों को “साइड-बाय-साइड” कराधान समाधान के माध्यम से विशेष छूट देना है, जिसमें वे केवल अमेरिका में कर अदा करेंगी, न कि उन देशों में जहां वे व्यापार करती हैं। यह नीति अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू की गई आर्थिक पहल “One Big Beautiful Bill” के विस्तार के रूप में देखी जा रही है, जिसमें विवादास्पद धारा 899 जैसे प्रावधान शामिल हैं।
G7 करार: निर्णय का सारांश
G7 देशों – कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका – ने एक विशेष समझौते के अंतर्गत अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को OECD के 15% न्यूनतम वैश्विक कर से छूट देने पर सहमति व्यक्त की है। यह निर्णय कनाडा की अध्यक्षता में हुई बैठक के पश्चात सामने आया और इसका लक्ष्य अमेरिका को कराधान के क्षेत्र में अधिक संप्रभुता देना है।
इस निर्णय में प्रस्तावित “Side-by-Side” मॉडल के तहत अब अमेरिकी कंपनियों के विदेशों में अर्जित मुनाफे पर भी केवल अमेरिका ही कर वसूलेगा। इससे अमेरिका की टैक्स संप्रभुता को मजबूती मिलेगी और कंपनियों का अनुपालन बोझ कम होगा।
पृष्ठभूमि: OECD का वैश्विक कर ढांचा (2021)
OECD द्वारा वर्ष 2021 में दो स्तंभों (Pillars) पर आधारित वैश्विक कर समझौता तैयार किया गया था, जिसका उद्देश्य वैश्विक कॉर्पोरेट कर व्यवस्था को अधिक निष्पक्ष और जवाबदेह बनाना था। यह ढांचा मुख्यतः दो प्रमुख स्तंभों पर आधारित था:
पिलर 1: कर अधिकारों का पुनर्वितरण
- बड़े बहुराष्ट्रीय डिजिटल और उपभोक्ता केंद्रित कंपनियों द्वारा उत्पन्न लाभ पर उन देशों को कराधिकार प्रदान करना, जहां उपभोक्ता स्थित हैं – भले ही कंपनी की भौतिक उपस्थिति वहाँ न हो।
पिलर 2: 15% का वैश्विक न्यूनतम कर
- यह सुनिश्चित करना कि कंपनियां किसी भी देश में 15% से कम कॉर्पोरेट टैक्स दर पर कर का भुगतान न करें।
- इसका उद्देश्य टैक्स हेवन (Tax Havens) का दुरुपयोग रोकना और BEPS (Base Erosion and Profit Shifting) को नियंत्रित करना था।
ट्रंप प्रशासन ने शुरुआत से ही इन प्रावधानों के कुछ हिस्सों पर आपत्ति जताई थी, विशेषकर पिलर 1 पर। अमेरिका इसे अपनी आर्थिक संप्रभुता और प्रतिस्पर्धात्मकता के खिलाफ मानता रहा है।
G7 करार के प्रमुख तत्व
1. साइड-बाय-साइड टैक्स मॉडल
- इस मॉडल के तहत अमेरिकी कंपनियों पर विदेशों में भी केवल अमेरिका द्वारा कर लगाया जाएगा।
- यह दोहरा कराधान रोकने की गारंटी देता है।
- कंपनियों के अनुपालन का बोझ घटेगा और उन्हें कर स्थिरता प्राप्त होगी।
2. अमेरिका केंद्रित नीति
- इस व्यवस्था से अमेरिका की कर संप्रभुता को बढ़ावा मिलेगा।
- वैश्विक स्तर पर अमेरिका के टैक्स राजस्व को संरक्षित करने का प्रयास है।
3. अंतिम स्वीकृति अभी शेष
- यह प्रस्ताव अभी OECD की मंजूरी के अधीन है।
- यदि इसे मंजूरी मिलती है, तो यह वैश्विक कर व्यवस्था के स्वरूप को पूरी तरह बदल सकता है।
One Big Beautiful Bill: ट्रंप की आक्रामक कर नीति
अमेरिका में ट्रंप सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक “One Big Beautiful Bill” में कई विवादास्पद प्रावधान हैं। इनमें से सबसे प्रमुख है:
धारा 899: बदला कर (Revenge Tax)
- अमेरिका को यह अधिकार देता है कि वह उन विदेशी निवेशकों पर कर लगाए, जिनके देश अमेरिकी कंपनियों पर “अनुचित कर” लगाते हैं।
- इसे अंतरराष्ट्रीय कर के क्षेत्र में एक प्रतिशोधात्मक नीति के रूप में देखा जा रहा है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि इससे व्यापार युद्ध, निवेश पर रोक, और कूटनीतिक तनाव उत्पन्न हो सकते हैं।
G7 छूट के पीछे के तर्क
1. अमेरिकी हितों की रक्षा
- ट्रंप प्रशासन की नीति अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अधिक सक्षम बनाने की दिशा में कार्य कर रही है।
2. वैश्विक कर अनिश्चितता से बचाव
- अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कर कानूनों और रिपोर्टिंग की जटिलताओं से राहत मिलेगी।
3. निवेश प्रोत्साहन
- कम कर दर के कारण कंपनियों के विदेशी निवेश में वृद्धि संभव हो सकती है।
संभावित वैश्विक प्रभाव
1. वैश्विक कर सहयोग को नुकसान
- OECD के समन्वित प्रयासों को गहरा झटका लग सकता है।
- G20 देशों और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं इस निर्णय से नाराज हो सकती हैं।
2. दोहरी कर प्रणाली का खतरा
- यदि और देश अमेरिकी मॉडल का अनुसरण करने लगते हैं, तो वैश्विक कर प्रणाली में विभाजन आ सकता है।
3. टैक्स पारदर्शिता में गिरावट
- इस नीति से टैक्स हेवन के प्रति रुझान बढ़ सकता है।
- यह OECD द्वारा बनाए गए BEPS Action Plans के विरुद्ध जा सकता है।
4. भारत जैसे देशों पर प्रभाव
- भारत को प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव झेलना पड़ सकता है, क्योंकि वह विदेशी कंपनियों से स्थानीय टैक्स की उम्मीद रखता है।
- डिजिटल कंपनियों की कर वसूली पर भी असर पड़ेगा।
भारत की चिंताएँ
भारत जैसे विकासशील देशों ने OECD के वैश्विक कर प्रस्तावों में लंबे समय तक सक्रिय योगदान दिया है। भारत की मुख्य चिंताएँ निम्नलिखित हो सकती हैं:
- अमेरिकी कंपनियों से कर वसूली में कमी
- डिजिटल सेवा कर जैसे प्रावधानों का विरोध
- टैक्स न्याय और राजस्व भागीदारी में असंतुलन
भारत को अब अपनी कर नीति और दोहरी कर संधियों (DTAA) की समीक्षा करनी पड़ सकती है।
भविष्य की दिशा: संभावित परिदृश्य
1. OECD की स्थिति स्पष्ट होगी
यदि OECD इस छूट को स्वीकृति देता है, तो अन्य देश भी अपने हितों की रक्षा के लिए ऐसे अपवादों की मांग कर सकते हैं।
2. वैश्विक कर व्यवस्था में ध्रुवीकरण
- अमेरिका के इर्द-गिर्द एक गुट बन सकता है जो वैश्विक कर के खिलाफ होगा।
- दूसरी ओर, EU और अन्य OECD सदस्य सहयोग बनाए रखने की कोशिश करेंगे।
3. व्यापार और निवेश पर प्रभाव
- कर अनिश्चितता बढ़ेगी, जिससे विदेशी निवेश में कमी आ सकती है।
- टैक्स मामलों में न्यायिक विवाद और प्रवर्तन चुनौती बढ़ सकती है।
स्थायी तथ्य और संस्थाएं
तत्व | विवरण |
---|---|
G7 सदस्य | कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका |
OECD | 38 सदस्य देशों वाला समूह, जो वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण और मानक निर्धारण करता है |
BEPS | Base Erosion and Profit Shifting – टैक्स बचाव योजनाओं के विरुद्ध OECD का प्रयास |
निष्कर्ष
G7 द्वारा अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक न्यूनतम कर से दी गई छूट न केवल अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली में एक ऐतिहासिक बदलाव है, बल्कि यह वैश्विक कर समन्वय, सहयोग और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की अवधारणाओं को भी चुनौती देता है। यह अमेरिका की बढ़ती आर्थिक राष्ट्रवाद की नीति का प्रतीक है, जो “अमेरिका प्रथम” सोच को वैश्विक व्यापार नियमों पर वरीयता देता है।
अगर यह छूट OECD द्वारा अनुमोदित की जाती है, तो यह विकासशील देशों के लिए एक नई चुनौती होगी – विशेषकर कर न्याय, डिजिटल सेवाओं की कराधान और स्थानीय राजस्व सुरक्षा के क्षेत्र में। भारत जैसे देशों को अब अपनी कर नीतियों को वैश्विक संदर्भ में पुनः संरचित करने की आवश्यकता होगी।
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