हर साल 26 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व मैंग्रोव दिवस न केवल एक पर्यावरणीय आयोजन है, बल्कि यह एक वैश्विक आह्वान भी है—एक ऐसा आह्वान जो हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के यह मौन रक्षक, मैंग्रोव, आज खतरे में हैं। यह दिन 2015 में यूनेस्को द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त हुआ था और इसका उद्देश्य है मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ाना। यह एक ऐसा पारिस्थितिक तंत्र है जो तूफानों, सुनामी और जलवायु परिवर्तन जैसी आपदाओं से हमारे तटीय क्षेत्रों की रक्षा करता है, साथ ही जैव विविधता, स्थानीय आजीविका और कार्बन शोषण का भी प्रमुख केंद्र है।
मैंग्रोव क्या हैं?
मैंग्रोव विशेष प्रकार की वनस्पतियाँ होती हैं जो खारे या नमकीन पानी वाले तटीय क्षेत्रों में उगती हैं। ये उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। मैंग्रोव एक विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं जिसमें वृक्ष, झाड़ियाँ, और उनकी जटिल जड़ प्रणाली शामिल होती है। यह जड़ प्रणाली न केवल समुद्री लहरों के प्रभाव से भूमि को बचाती है बल्कि यह जलचर प्रजातियों के लिए एक आदर्श आवास भी होती है।
मैंग्रोव पेड़ अत्यधिक लवणता, ऑक्सीजन की कमी, और जल स्तर में उतार-चढ़ाव जैसी विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सक्षम होते हैं। इनके पत्तों और छाल में नमक निष्कासन की अद्भुत क्षमता होती है, जिससे ये खारे पानी में भी पनप सकते हैं।
दुनिया भर में लगभग 110 प्रजातियाँ मैंग्रोव पौधों की पाई जाती हैं। भारत में प्रमुख रूप से सुंदरबन, भितरकनिका (ओडिशा), माही (गुजरात) और गोदावरी डेल्टा (आंध्र प्रदेश) में मैंग्रोव वन देखे जा सकते हैं।
विश्व मैंग्रोव दिवस: इतिहास और उद्देश्य
विश्व मैंग्रोव दिवस की शुरुआत यूनेस्को ने जुलाई 2015 में की थी। यह दिवस विशेष रूप से कोलंबिया के पर्यावरणविद गुइलेर्मो कैनो इसाज़ा की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने मैंग्रोव वनों की अवैध कटाई के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
इस दिवस का मुख्य उद्देश्य है:
- वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वनों की सुरक्षा की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करना,
- लोगों को इन पारिस्थितिक संरक्षकों के महत्व के प्रति शिक्षित करना,
- स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देना,
- और, जलवायु संकट के दौर में इनकी भूमिका को उजागर करना।
मैंग्रोव का पारिस्थितिकीय महत्व
1. प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा:
मैंग्रोव वनों को ‘प्राकृतिक ढाल’ कहा जाता है। इनकी घनी वनस्पति सुनामी, तूफान और तटीय क्षरण से रक्षा करती है। 2004 की विनाशकारी सुनामी में तमिलनाडु के पिचावरम गांव की सुरक्षा का प्रमुख कारण वहां फैला मैंग्रोव क्षेत्र था, जिसने समुद्री लहरों को गांव तक पहुंचने से पहले ही कम कर दिया।
2. ब्लू कार्बन भंडारण:
मैंग्रोव वन अपने जीवित और मृत जैविक पदार्थों के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को संचित करते हैं। ये वन, उष्णकटिबंधीय स्थलीय वनों की तुलना में लगभग 5 गुना अधिक कार्बन को एक हेक्टेयर में संग्रहित कर सकते हैं। इस कारण इन्हें ब्लू कार्बन रिज़र्व भी कहा जाता है।
3. जैव विविधता के केंद्र:
मैंग्रोव जड़ प्रणाली मछलियों, केकड़ों, झींगों, घोंघों, और यहां तक कि दुर्लभ पक्षियों व जलचर जीवों के लिए भी आदर्श आवास बनाती है। सुंदरबन टाइगर रिजर्व इसका उदाहरण है, जहाँ रॉयल बंगाल टाइगर और मगरमच्छ जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
4. स्थानीय आजीविका का आधार:
मैंग्रोव संसाधनों से मछली, झींगा, रेशम, शहद, लकड़ी आदि प्राप्त होती है। भारत के तटीय क्षेत्रों में लाखों लोग इन संसाधनों पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं।
5. तटीय कटाव से रक्षा:
मैंग्रोव की गहरी और फैलावदार जड़ें तटीय मिट्टी को बाँधकर रखती हैं, जिससे तटों का कटाव कम होता है और भूमि संरक्षण सुनिश्चित होता है।
मैंग्रोव को मिल रहे खतरे
1. झींगा पालन और जलीय कृषि:
विकसित देशों और शहरी बाजारों की माँग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर झींगा पालन होता है, जिसके लिए मैंग्रोव वनों की कटाई कर कृत्रिम तालाब बनाए जाते हैं। इससे न केवल जैव विविधता का नुकसान होता है बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
2. ईंधन और निर्माण हेतु लकड़ी की कटाई:
मैंग्रोव लकड़ी अपने जलरोधक और टिकाऊ गुणों के लिए जानी जाती है। इसके कारण अवैध कटाई व्यापक रूप से हो रही है। यह समस्या भारत, बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों में गंभीर रूप ले चुकी है।
3. शहरीकरण और औद्योगिकीकरण:
तटीय क्षेत्रों में बंदरगाह, सड़क, उद्योग, और रिहायशी परियोजनाओं के निर्माण के लिए मैंग्रोव वनों को साफ किया जा रहा है। इससे पारिस्थितिक असंतुलन और स्थानीय समुदायों का विस्थापन बढ़ रहा है।
4. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
समुद्र स्तर में वृद्धि, तापमान में वृद्धि, और वर्षा के पैटर्न में बदलाव मैंग्रोव वनों के विकास और अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती बनते जा रहे हैं।
मैंग्रोव संरक्षण: वैश्विक और भारतीय पहल
- भारत सरकार ने मैंग्रोव संरक्षण के लिए राष्ट्रीय तटीय मिशन के तहत कई योजनाएँ प्रारंभ की हैं।
- सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व, भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, और गोड़ावरी कावेरी डेल्टा क्षेत्रों में विशेष संरक्षण क्षेत्र घोषित किए गए हैं।
- ‘ब्लू इकॉनॉमी’ नीति के अंतर्गत मैंग्रोव आधारित आजीविका और पारिस्थितिकी के संतुलन पर बल दिया जा रहा है।
- राष्ट्रीय मैंग्रोव संरक्षण योजना (NMCP) के माध्यम से तटीय राज्यों में पुनर्वनीकरण और संरक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
विश्व मैंग्रोव दिवस: भागीदारी कैसे करें?
1. स्थानीय प्रजातियों का पौधारोपण करें:
तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव पौधों का रोपण एक प्रभावी तरीका है। यह कार्य स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से किया जा सकता है।
2. शिक्षा एवं जन-जागरूकता:
मैंग्रोव की महत्ता पर संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, पोस्टरों, और सोशल मीडिया अभियानों के जरिए लोगों को जागरूक किया जा सकता है।
3. स्थायी व्यापार को बढ़ावा दें:
स्थानीय समुदायों द्वारा जिम्मेदारी से संग्रहित शहद, मछली, रेशम आदि उत्पादों को खरीदकर हरित अर्थव्यवस्था को समर्थन दें।
4. पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें:
प्लास्टिक का उपयोग कम करें, कार्बन उत्सर्जन घटाएँ, और समुद्री प्रदूषण को रोकने वाले उपाय अपनाएँ।
मैंग्रोव से जुड़े रोचक तथ्य
- इतिहास में उपस्थिति: मैंग्रोव के जीवाश्म बताते हैं कि ये लगभग 7.5 करोड़ वर्ष पहले भी धरती पर मौजूद थे।
- सुंदरबन – सबसे बड़ा मैंग्रोव वन: भारत और बांग्लादेश में फैला सुंदरबन क्षेत्र, दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध है।
- नमक निष्कासन क्षमता: मैंग्रोव पत्तियों और छाल के माध्यम से अतिरिक्त नमक को बाहर निकालने में सक्षम होते हैं।
- कोरल रक्षक: मैंग्रोव, गाद को छानकर और कोरल लार्वा को सुरक्षित आश्रय देकर कोरल रीफ को सफेद होने से बचाते हैं।
- ऑक्सीजन प्रदाता: यह पेड़ अत्यधिक ऑक्सीजन उत्सर्जन कर वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं।
निष्कर्ष
विश्व मैंग्रोव दिवस हमें केवल एक दिन के लिए मैंग्रोव की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह पूरे वर्षभर उनके संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है। जिस प्रकार से जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियाँ हमारे पर्यावरण को प्रभावित कर रही हैं, उस संदर्भ में मैंग्रोव वनों का संरक्षण एक अनिवार्यता बन गया है। हमें यह समझना होगा कि तटीय जीवन की स्थिरता, समुद्री जैव विविधता की रक्षा, और वैश्विक जलवायु की स्थिरता—तीनों में मैंग्रोव की भूमिका केंद्रीय है।
सरकारों, स्थानीय समुदायों, शिक्षण संस्थानों, और प्रत्येक नागरिक को मिलकर इस पारिस्थितिकी खजाने की रक्षा करनी होगी। यदि आज हमने इन प्राकृतिक संरक्षकों को संरक्षित करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो कल की पीढ़ियाँ न केवल जैव विविधता की हानि झेलेंगी, बल्कि समुद्री आपदाओं के सामने और अधिक असहाय भी होंगी।
इसलिए आइए, 26 जुलाई को केवल एक औपचारिक दिवस न मानें—बल्कि इसे एक सतत आंदोलन के रूप में अपनाएँ, ताकि हमारी तटीय विरासत सुरक्षित रह सके।
इन्हें भी देखें –
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