किसी भी आधुनिक राष्ट्र के लिए विश्वसनीय और अद्यतन जनसांख्यिकीय आंकड़े (Demographic Data) अत्यंत आवश्यक होते हैं। ये आंकड़े न केवल नीति–निर्माण में सहायक होते हैं, बल्कि नागरिकों के बुनियादी अधिकारों से भी गहराई से जुड़े होते हैं। भारत में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Civil Registration System – CRS) के अंतर्गत किया जाता है और इसकी निगरानी का दायित्व भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India – RGI) पर है। हाल ही में RGI ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आग्रह किया है कि वे जन्म और मृत्यु के सार्वभौमिक पंजीकरण (Universal Registration) को सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाएँ।
इस लेख में हम रजिस्ट्रार जनरल की भूमिका, जन्म–मृत्यु पंजीकरण की प्रक्रिया, कानूनी प्रावधानों, हालिया संशोधनों, चुनौतियों और इनके सामाजिक–आर्थिक महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारत में रजिस्ट्रार जनरल (RGI) का गठन और कार्यक्षेत्र
स्थापना और प्रशासनिक नियंत्रण
भारत सरकार ने वर्ष 1961 में रजिस्ट्रार जनरल का पद स्थापित किया। यह पद गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs – MHA) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। इसका उद्देश्य था कि देश में जनगणना (Census), सिविल रजिस्ट्रेशन (Birth & Death Registration) और अन्य जनसांख्यिकीय आँकड़ों का एक केंद्रीकृत और विश्वसनीय ढाँचा तैयार किया जा सके।
प्रमुख कार्य
- जनगणना (Census of India)
- भारत में प्रत्येक दस वर्ष पर राष्ट्रीय जनगणना कराई जाती है।
- RGI इसकी योजना, समन्वय और संचालन की पूरी जिम्मेदारी निभाता है।
- यह कार्य न केवल देश की जनसंख्या गिनती तक सीमित है, बल्कि इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास, प्रवासन आदि से जुड़े आंकड़े भी शामिल होते हैं।
- सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Civil Registration System – CRS)
- CRS के अंतर्गत जन्म और मृत्यु का पंजीकरण किया जाता है।
- इसका उद्देश्य है कि देश में प्रत्येक नागरिक के जीवन से संबंधित घटनाएँ आधिकारिक रिकॉर्ड में सम्मिलित हों।
- इससे सटीक और एकरूप सांख्यिकीय आंकड़े तैयार किए जाते हैं, जो नीति और योजना निर्माण में सहायक होते हैं।
- महत्वपूर्ण सांख्यिकी का प्रकाशन
- RGI जन्म, मृत्यु, मृत्यु के कारण और जनसंख्या गतिशीलता पर नियमित आँकड़े प्रकाशित करता है।
- यह जानकारी स्वास्थ्य नीति, शिक्षा नीति, महिला एवं बाल विकास योजनाओं, शहरी और ग्रामीण विकास जैसी अनेक योजनाओं का आधार बनती है।
- सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Sample Registration System – SRS)
- 1969 में शुरू किया गया यह तंत्र जन्म दर, मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर का वार्षिक और विश्वसनीय अनुमान प्रदान करता है।
- इसमें डुअल रिकॉर्ड प्रणाली अपनाई गई है, जिसमें लगातार गणना (continuous enumeration) और स्वतंत्र सर्वेक्षण (independent survey) शामिल होते हैं।
जन्म और मृत्यु पंजीकरण : कानूनी प्रावधान
Registration of Births and Deaths Act, 1969
भारत में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण को नियंत्रित करने वाला मुख्य कानून है – Registration of Births and Deaths Act, 1969 (RBD Act, 1969)।
प्रमुख प्रावधान:
- धारा 8(1)(B) – यदि कोई जन्म या मृत्यु अस्पताल में होती है, तो संबंधित चिकित्सा अधिकारी (Medical Officer in-charge) को 21 दिनों के भीतर यह सूचना पंजीकरण प्राधिकारी को देना अनिवार्य है।
- सभी सरकारी अस्पतालों को पंजीयक घोषित किया गया है – सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार अब प्रत्येक सरकारी अस्पताल जन्म और मृत्यु का आधिकारिक पंजीयक है।
- निजी अस्पताल और अन्य संस्थान – ये भी जन्म और मृत्यु की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य हैं, अन्यथा कानूनी कार्यवाही हो सकती है।
जन्म और मृत्यु पंजीकरण में हालिया सुधार
2023 का संशोधन
वर्ष 2023 में RBD Act में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इसके अंतर्गत:
- जन्म और मृत्यु का ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया।
- सभी घटनाओं को RGI पोर्टल पर डिजिटल रूप से दर्ज करना होगा।
- यह संशोधन ई-गवर्नेंस और डिजिटल इंडिया अभियान को मजबूत करता है।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में स्पष्ट किया है कि नागरिकों के कानूनी अधिकारों और राज्य की जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए सार्वभौमिक पंजीकरण आवश्यक है। इसी आधार पर अदालत ने सभी सरकारी अस्पतालों को पंजीयक घोषित किया है।
जन्म–मृत्यु पंजीकरण का महत्व
नागरिकों के लिए महत्व
- कानूनी पहचान – जन्म प्रमाणपत्र नागरिक के जीवन का पहला कानूनी दस्तावेज होता है।
- शैक्षिक अधिकार – विद्यालय में प्रवेश, छात्रवृत्ति और परीक्षाओं के लिए जन्म प्रमाणपत्र अनिवार्य है।
- सामाजिक योजनाएँ – स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ, पेंशन, पारिवारिक पेंशन, उत्तराधिकार अधिकार जैसी कई योजनाओं के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र आवश्यक है।
- मताधिकार – चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए सही आयु प्रमाण जन्म पंजीकरण से ही मिलता है।
सरकार और समाज के लिए महत्व
- सटीक जनसंख्या आँकड़े – योजना निर्माण और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के लिए आवश्यक।
- स्वास्थ्य नीति निर्माण – मृत्यु के कारणों के आँकड़े बीमारियों की रोकथाम और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार में सहायक।
- शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी – समय पर जानकारी मिलने से सरकार लक्षित कदम उठा सकती है।
- अंतरराष्ट्रीय दायित्व – संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) को पूरा करने में भी सटीक जन्म और मृत्यु आँकड़े आवश्यक हैं।
चुनौतियाँ और समस्याएँ
हालांकि भारत ने जन्म–मृत्यु पंजीकरण में उल्लेखनीय प्रगति की है, फिर भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- ग्रामीण क्षेत्रों में कम जागरूकता – बहुत से लोग अब भी जन्म या मृत्यु का पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं समझते।
- प्रशासनिक ढिलाई – कई स्थानों पर पंजीकरण अधिकारी समय पर रिकॉर्ड दर्ज नहीं करते।
- तकनीकी बाधाएँ – दूरदराज़ के इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल साधनों की कमी।
- अस्पतालों के बाहर होने वाले जन्म–मृत्यु – घर पर प्रसव या मृत्यु होने पर रिपोर्टिंग में कठिनाई।
- डेटा की गुणवत्ता – कई बार आँकड़े अधूरे या गलत तरीके से दर्ज हो जाते हैं।
सुधार के उपाय
- जागरूकता अभियान – ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोगों को पंजीकरण की आवश्यकता और प्रक्रिया समझाई जानी चाहिए।
- डिजिटल सशक्तिकरण – हर पंचायत और ब्लॉक स्तर पर ऑनलाइन पंजीकरण सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
- सख्त कानूनी प्रवर्तन – अस्पतालों और संस्थानों को समय पर रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए जवाबदेह बनाया जाए।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण – पंजीकरण अधिकारियों और स्वास्थ्य कर्मियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए।
- डेटा एकीकरण – जन्म और मृत्यु रिकॉर्ड को आधार, स्वास्थ्य आईडी और अन्य सरकारी डेटाबेस से जोड़ा जाए।
निष्कर्ष
भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) देश के जनसांख्यिकीय ढाँचे की रीढ़ है। जन्म और मृत्यु का सार्वभौमिक पंजीकरण केवल एक कानूनी औपचारिकता नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों और राज्य की नीतिगत जिम्मेदारियों का आधार है। RBD Act, 1969 और इसके 2023 के संशोधन ने इस प्रणाली को और अधिक सुदृढ़ बनाया है।
आज जब भारत डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की ओर बढ़ रहा है, तब जन्म और मृत्यु का पूर्ण और सटीक पंजीकरण देश के विकास और शासन की पारदर्शिता दोनों के लिए अनिवार्य है। यह न केवल सरकार को सही नीति बनाने में मदद करता है, बल्कि प्रत्येक नागरिक के जीवन को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
इन्हें भी देखें –
- राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून : भारत की अंतरिक्षीय प्रगति के लिए आवश्यक आधारशिला
- आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का संशोधित आदेश: नागरिक सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station – BAS)
- केरल भारत का पहला पूर्णतः डिजिटल साक्षर राज्य बना
- इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA): भारत को “सोलर की सिलिकॉन वैली” बनाने की दिशा में वैश्विक पहल