भारत का डेयरी क्षेत्र: विकास, चुनौतियाँ और संभावनाएँ

भारत का डेयरी क्षेत्र केवल एक कृषि-आधारित उद्योग नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश होने के साथ-साथ भारत ने अपने सहकारी मॉडल और कम लागत वाले उत्पादन ढांचे के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। हालांकि, यह क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें उत्पादकता की कमी, सस्ते श्रम पर निर्भरता और दीर्घकालिक स्थायित्व की चिंताएँ प्रमुख हैं। इस लेख में हम भारत के डेयरी क्षेत्र के इतिहास, वर्तमान स्थिति, आर्थिक महत्व, सरकारी नीतियों, चुनौतियों और भविष्य की राह पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारत का डेयरी क्षेत्र: वैश्विक नेतृत्व

भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। वैश्विक दूध उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 24.76% है। यह स्थिति केवल उत्पादन क्षमता को नहीं दर्शाती, बल्कि यह भी बताती है कि भारत का डेयरी क्षेत्र ग्रामीण आजीविका, पोषण सुरक्षा और आर्थिक विकास में कितनी अहम भूमिका निभाता है।

उत्पादन वृद्धि और उपलब्धता

भारत का दूध उत्पादन पिछले दशक में उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। 2014-15 में जहाँ दूध उत्पादन 146.31 मिलियन टन था, वहीं 2023-24 तक यह बढ़कर 239.30 मिलियन टन हो गया। यह वृद्धि पशुपालन क्षेत्र की तेजी से बढ़ती मांग और सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन को दर्शाती है।

प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता भी वैश्विक औसत से कहीं अधिक है। 2023-24 में प्रति व्यक्ति उपलब्धता 471 ग्राम/दिन रही, जबकि वैश्विक औसत मात्र 322 ग्राम/दिन है। यह तथ्य दर्शाता है कि भारत न केवल अपनी जनसंख्या की पोषण आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है, बल्कि अतिरिक्त उत्पादन के माध्यम से निर्यात क्षमता भी रखता है।

शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य

भारत का दूध उत्पादन कुछ प्रमुख राज्यों में केंद्रित है। इनमें:

  • उत्तर प्रदेश
  • राजस्थान
  • मध्य प्रदेश

इन राज्यों का योगदान राष्ट्रीय उत्पादन में सबसे अधिक है। इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति, पशुधन की संख्या और सहकारी समितियों की सक्रियता इसे संभव बनाती है।

आर्थिक योगदान

भारत का डेयरी क्षेत्र सबसे बड़ा कृषि उत्पाद है और देश की GDP में लगभग 5% का योगदान देता है। इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र 8 करोड़ से अधिक किसानों को रोजगार प्रदान करता है। विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए डेयरी आय का एक स्थायी स्रोत है।

पशुपालन क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 2014-15 से 2020-21 तक 7.9% रही, जो कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर से अधिक है। यह बताता है कि डेयरी उद्योग ने न केवल ग्रामीण आय बढ़ाने में योगदान दिया है बल्कि कृषि क्षेत्र के संतुलित विकास में भी अहम भूमिका निभाई है।

पोषण सुरक्षा और सामाजिक महत्व

दूध और डेयरी उत्पाद भारतीय आहार का अभिन्न हिस्सा हैं। दूध प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन का प्रमुख स्रोत है, जो बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अत्यंत आवश्यक है।

इसके अतिरिक्त, डेयरी सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी लगभग 35% है, जो ग्रामीण समाज में लैंगिक समावेशी विकास की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। महिलाओं की आर्थिक भागीदारी न केवल परिवार की आय बढ़ाती है बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण को भी प्रोत्साहित करती है।

भारत का डेयरी क्षेत्र और निर्यात क्षमता

भारत केवल दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक ही नहीं है, बल्कि यह दुग्ध उत्पादों का अग्रणी निर्यातक भी है।

भारत से निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पाद:

  • स्किम्ड मिल्क पाउडर
  • मक्खन
  • घी
  • पनीर और अन्य प्रोसेस्ड उत्पाद

भारत का निर्यात मुख्य रूप से एशियाई और अफ्रीकी देशों में होता है। निर्यात क्षमता न केवल भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जन का साधन है, बल्कि यह देश की वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भी योगदान देता है।

सरकारी पहलें

भारतीय डेयरी क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने और किसानों का समर्थन करने के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं:

  1. राष्ट्रीय गो–कल्याण मिशन – देशी नस्लों के सुधार और संरक्षण के लिए।
  2. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) कार्यक्रम – दूध उत्पादन और विपणन में सुधार के लिए।
  3. राज्य सहकारी डेयरी महासंघ – राज्य स्तर पर सहकारी ढांचे को मजबूत बनाने के लिए।
  4. राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम – ग्रामीण डेयरी उद्योग को सशक्त बनाने के लिए।
  5. डेयरी उद्यमिता विकास योजना (DEDS) – नए उद्यमियों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए।

इन योजनाओं के परिणामस्वरूप छोटे किसानों की आय में वृद्धि, दूध उत्पादन में सुधार और संगठित विपणन तंत्र का विकास हुआ है।

भारत के डेयरी क्षेत्र की चुनौतियाँ

भारत का डेयरी क्षेत्र जितना मजबूत है, उतनी ही बड़ी चुनौतियों से भी जूझ रहा है:

  1. कम उत्पादकता – भारतीय दुधारू पशुओं की उत्पादकता विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है।
  2. सस्ते श्रम पर निर्भरता – सहकारी मॉडल का टिकाऊपन सस्ते श्रम पर टिका है, जो दीर्घकालिक रूप से अस्थिर है।
  3. बुनियादी ढांचे की कमी – कोल्ड चेन, चिलिंग सेंटर और संगठित संग्रह प्रणाली की कमी से उत्पादकता प्रभावित होती है।
  4. पशु स्वास्थ्य समस्याएँ – टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से पशुधन बीमारियों से ग्रस्त रहता है।
  5. जलवायु परिवर्तन – बदलते मौसम पैटर्न और जलवायु असुरक्षा पशुपालन को प्रभावित कर रहे हैं।

आगे की राह

भारत के डेयरी क्षेत्र को मजबूत और दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने आवश्यक हैं:

  1. उत्पादकता बढ़ाना
    • कृत्रिम गर्भाधान (AI), इन–विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) और देशी आनुवंशिकी सुधार को बढ़ावा।
    • पशुओं के पोषण और आहार संशोधन पर ध्यान।
  2. बुनियादी ढांचा सुधार
    • कोल्ड चेन, चिलिंग सेंटर और संगठित संग्रह प्रणाली का विकास।
    • दूध प्रसंस्करण उद्योग का आधुनिकीकरण।
  3. सहकारी ढांचे का विस्तार
    • अधिक किसानों को सहकारी समितियों से जोड़ना।
    • स्थानीय स्तर पर सहकारी समितियों का गठन, जिससे असमानताओं और लागत को कम किया जा सके।
  4. जोखिम प्रबंधन
    • जलवायु–प्रतिरोधी नस्लों का विकास।
    • व्यापक पशु स्वास्थ्य अभियान और टीकाकरण।
    • स्थिर मूल्य निर्धारण और किसानों के लिए बीमा योजनाएँ।

निष्कर्ष

भारत का डेयरी क्षेत्र केवल दूध उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण समाज के सामाजिक-आर्थिक विकास का भी प्रमुख आधार है। यह क्षेत्र आर्थिक योगदान, पोषण सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण और निर्यात क्षमता जैसे कई आयामों को एक साथ जोड़ता है।

हालांकि, चुनौतियों का समाधान करना और उत्पादकता को बढ़ाना समय की आवश्यकता है। यदि भारत अपने डेयरी क्षेत्र को तकनीकी नवाचार, मजबूत सहकारी ढांचे और बेहतर बुनियादी ढांचे के माध्यम से सशक्त बनाता है, तो यह न केवल अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करेगा बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अग्रणी स्थिति को और मजबूत करेगा।


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