भारत में हर वर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस (Teacher’s Day) के रूप में मनाया जाता है। यह दिन केवल कैलेंडर की एक औपचारिक तिथि नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और समाज के उस गहरे मूल्यों का प्रतीक है, जहाँ ‘गुरु’ को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। संस्कृत श्लोक—
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
युगों से भारतीय चिंतन में यह स्थापित करता है कि शिक्षक (गुरु) केवल ज्ञानदाता नहीं, बल्कि चरित्र-निर्माता और समाज-निर्माता भी होते हैं।
वर्ष 2025 का शिक्षक दिवस विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस वर्ष इसका केंद्रीय विषय है—
“अगली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को प्रेरित करना” (Inspiring the Next Generation of Learners)।
यह विषय वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती और अवसर दोनों को इंगित करता है—यानी कैसे शिक्षक नई सदी के विद्यार्थियों को केवल किताबों का पाठक नहीं, बल्कि सृजनशील, नवाचारी और जिम्मेदार नागरिक बना सकते हैं।
5 सितम्बर क्यों? डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की विरासत
भारत में शिक्षक दिवस 5 सितम्बर को मनाया जाता है क्योंकि यह दिन देश के दूसरे राष्ट्रपति, महान दार्शनिक और शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888–1975) की जयंती है।
जन्म और पृष्ठभूमि
डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी में हुआ था। साधारण परिवार से आने वाले राधाकृष्णन ने कठिन परिस्थितियों में अध्ययन किया। प्रारंभ से ही उनका झुकाव दर्शनशास्त्र और अध्यापन की ओर रहा।
शिक्षक से राष्ट्रपति तक
उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज और बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र पढ़ाया। उनकी विद्वता इतनी गहन थी कि उनका नाम विश्वस्तरीय दार्शनिकों में लिया जाने लगा।
- 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
- 1939 से 1948 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के कुलपति रहे।
- 1949 से 1952 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत नियुक्त हुए।
- 1952 से 1962 तक भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और फिर 1962 से 1967 तक देश के दूसरे राष्ट्रपति बने।
शिक्षक दिवस की परंपरा
जब उनके शिष्यों और मित्रों ने उनका जन्मदिन मनाने का सुझाव दिया, तो उन्होंने विनम्रता से कहा—
“यदि मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।”
यही से 1962 से 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।
2025 का विषय: “अगली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को प्रेरित करना”
हर वर्ष शिक्षक दिवस का एक विशेष विषय (Theme) निर्धारित किया जाता है। 2025 का विषय है—
“अगली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को प्रेरित करना।”
इस विषय का तात्पर्य है कि शिक्षक केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं दें, बल्कि विद्यार्थियों में—
- जिज्ञासा (Curiosity)
- रचनात्मकता (Creativity)
- नवाचार की क्षमता (Innovation)
- जीवन कौशल (Life Skills)
- नैतिक मूल्यों (Ethical Values)
का विकास करें। बदलते तकनीकी युग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डिजिटल शिक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच शिक्षकों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
भारत में शिक्षक दिवस के उत्सव
शिक्षक दिवस के अवसर पर पूरे देश में विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में अनेक आयोजन होते हैं।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम – छात्र-छात्राएँ कविता, गीत, नृत्य और भाषण प्रस्तुत करते हैं।
- भूमिका परिवर्तन – कई स्कूलों में विद्यार्थी शिक्षक की भूमिका निभाते हैं और कक्षाएँ लेते हैं। यह परंपरा शिक्षकों के महत्व को अनुभव कराने के लिए होती है।
- सम्मान और पुरस्कार – शिक्षकों को सम्मान-पत्र, उपहार और शुभकामनाएँ दी जाती हैं।
- सोशल मीडिया पर उत्सव – आज के दौर में विद्यार्थी और पूर्व विद्यार्थी अपने शिक्षकों को धन्यवाद और श्रद्धा के संदेश सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर साझा करते हैं।
सरकार की पहलें और शिक्षक सशक्तिकरण
भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत शिक्षकों को सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं।
- निष्ठा (NISHTHA): विश्व का सबसे बड़ा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- राष्ट्रीय मार्गदर्शन मिशन (NMM): अनुभवी शिक्षकों द्वारा नए शिक्षकों का मार्गदर्शन।
- राष्ट्रीय पेशेवर मानक (NPST): शिक्षकों के आचरण और प्रगति हेतु मानक।
- राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार: हर वर्ष 5 सितम्बर को उत्कृष्ट शिक्षकों को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जाता है।
भारतीय संस्कृति में ‘गुरु’ की परंपरा
भारत की प्राचीन परंपरा में ‘गुरु’ को अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। गुरुकुल प्रणाली से लेकर आधुनिक विश्वविद्यालयों तक, गुरु और शिष्य का संबंध ज्ञान के हस्तांतरण से अधिक आत्मा के विकास का माध्यम रहा है।
- गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन की कथा अनुशासन और एकाग्रता का उदाहरण है।
- गुरु रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की गुरु-शिष्य परंपरा आध्यात्मिक और सामाजिक जागरण की मिसाल है।
डॉ. राधाकृष्णन का शिक्षा-दर्शन
डॉ. राधाकृष्णन का मानना था कि—
- शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार पाना नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण है।
- शिक्षक का काम विद्यार्थियों में नैतिक चेतना जगाना है।
- भारतीय संस्कृति और दर्शन के माध्यम से वैश्विक स्तर पर शांति और सहयोग का संदेश दिया जा सकता है।
उनका प्रसिद्ध कथन था—
“शिक्षा मनुष्य को स्वतंत्र बनाती है, और स्वतंत्रता ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है।”
आज के संदर्भ में शिक्षक दिवस का महत्व
21वीं सदी में जब शिक्षा डिजिटल, तकनीकी और वैश्विक रूप ले रही है, तब शिक्षक की भूमिका और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है।
- ऑनलाइन शिक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच व्यक्तिगत मार्गदर्शन की आवश्यकता बनी हुई है।
- मूल्य आधारित शिक्षा की कमी को केवल शिक्षक ही पूरा कर सकते हैं।
- ग्रामीण और शहरी शिक्षा के बीच की खाई को पाटने में शिक्षक सेतु का काम करते हैं।
परीक्षा हेतु मुख्य बिंदु
- भारत में शिक्षक दिवस: 5 सितम्बर।
- अवसर: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती।
- पहली बार मनाया गया: 1962।
- 2025 का विषय: “अगली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को प्रेरित करना।”
- सरकारी पहलें: निष्ठा, राष्ट्रीय मार्गदर्शन मिशन, NPST, राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार।
शिक्षक दिवस: समयरेखा (1962–2025)
वर्ष | प्रमुख घटना / थीम |
---|---|
1962 | पहली बार 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया गया (डॉ. राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने के बाद)। |
1967 | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कार्यकाल समाप्त हुआ, किंतु शिक्षक दिवस की परंपरा लगातार जारी रही। |
1975 | डॉ. राधाकृष्णन का निधन हुआ। इस वर्ष शिक्षक दिवस विशेष श्रद्धांजलि दिवस के रूप में मनाया गया। |
1980–1990 का दशक | पूरे देश में स्कूलों और कॉलेजों में भूमिका परिवर्तन (छात्र-शिक्षक परंपरा) लोकप्रिय हुई। |
1994 | यूनेस्को द्वारा विश्व शिक्षक दिवस (World Teachers’ Day) 5 अक्टूबर को मनाने की शुरुआत हुई। भारत ने इसे अपने राष्ट्रीय शिक्षक दिवस से जोड़कर देखा। |
2001 | राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट शिक्षकों को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित करने की परंपरा और सुदृढ़ की गई। |
2014 | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के छात्रों से सीधा संवाद कर शिक्षक दिवस का महत्व नए सिरे से उजागर किया। |
2020 | राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) लागू हुई, जिसमें शिक्षकों की भूमिका और प्रशिक्षण को विशेष महत्व दिया गया। |
2021 | कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल माध्यमों में शिक्षकों की भूमिका को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर रेखांकित किया गया। |
2022 | शिक्षक दिवस का विषय था – “भविष्य के लिए शिक्षा का पुनर्कल्पन (Reimagining Education for the Future)”। |
2023 | विषय – “डिजिटल युग में शिक्षक और शिक्षा”। |
2024 | विषय – “समानता और समावेशन हेतु शिक्षक”। |
2025 | विषय – “अगली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को प्रेरित करना”। |
निष्कर्ष
शिक्षक दिवस केवल एक समारोह नहीं, बल्कि यह उस बंधन की अभिव्यक्ति है जो शिक्षक और छात्र को जोड़ता है। 2025 का विषय “अगली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को प्रेरित करना” हमें यह स्मरण कराता है कि शिक्षक भविष्य के निर्माता हैं।
जैसे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का आधार माना, वैसे ही आज भी हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि कोई भी राष्ट्र अपने शिक्षकों के बिना प्रगति नहीं कर सकता।
इसलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने शिक्षकों को केवल औपचारिक सम्मान ही न दें, बल्कि उनके मार्गदर्शन को जीवन में उतारें और आने वाली पीढ़ियों को भी शिक्षित एवं प्रेरित करें।
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