साहित्य के विविध रूपों में भेंटवार्ता (साक्षात्कार) एक विशेष और आकर्षक विधा है। यह विधा न केवल साहित्यिक परंपरा को समृद्ध करती है बल्कि समाज में विचारों के आदान-प्रदान और ज्ञान-विस्तार का भी माध्यम बनती है। सामान्यतः हम साहित्य को कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक के रूप में जानते हैं, किन्तु इनसे इतर भेंटवार्ता एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक किसी विशिष्ट व्यक्तित्व से आमने-सामने संवाद करता है और उसके जीवन-दर्शन, विचारों तथा अनुभवों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।
भेंटवार्ता का साहित्यिक महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह सीधे व्यक्ति से जुड़कर उसकी अंतरात्मा, सोच और दृष्टिकोण को उद्घाटित करती है। पाठकों को ऐसा अनुभव होता है मानो वे स्वयं उस महान व्यक्ति से बातचीत कर रहे हों। यही कारण है कि भेंटवार्ता को आधुनिक साहित्य में संवाद-प्रधान विधा के रूप में विशेष स्थान मिला है।
भेंटवार्ता की संकल्पना और परिभाषाएँ
भेंटवार्ता को सामान्यतः ‘साक्षात्कार’, ‘भेंट’, ‘चर्चा’, ‘विशेष परिचर्चा’ अथवा अंग्रेज़ी के शब्द ‘इंटरव्यू’ से भी जाना जाता है। ‘इंटरव्यू’ का शाब्दिक अर्थ है – आंतरिक दृष्टिकोण (Inner view)। वास्तव में यह किसी व्यक्ति के भीतर झांकने और उसके विचारों को समझने की प्रक्रिया है।
विद्वानों की परिभाषाएँ
- गुड एवं हैड के शब्दों में –
“किसी उद्देश्य से किया गया गंभीर वार्तालाप ही साक्षात्कार है।” - डेजिन के अनुसार –
“साक्षात्कार आमने-सामने बैठकर किया गया एक संवादोचित आदान-प्रदान है, जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कुछ सूचनाएं प्राप्त करता है।”
भेंटवार्ता की सामान्य परिभाषा
भेंटवार्ता साहित्य की वह विधा है जिसमें लेखक किसी व्यक्ति, विचारक, समाजसेवी, राजनेता, साहित्यकार या ऐतिहासिक/काल्पनिक चरित्र से संवाद के रूप में प्रश्नोत्तर प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक का उद्देश्य केवल जानकारी देना ही नहीं होता, बल्कि व्यक्तित्व के विचार, जीवन-दर्शन, अनुभव और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण को उजागर करना भी होता है।
सरल शब्दों में,
👉”भेंटवार्ता वह साहित्यिक विधा है जिसमें किसी व्यक्ति या चरित्र के साथ प्रत्यक्ष अथवा काल्पनिक वार्तालाप के रूप में उनकी जीवन-दृष्टि और विचारों को अभिव्यक्त किया जाता है।”
👉“भेंटवार्ता वह साहित्यिक विधा है जिसमें किसी व्यक्तित्व के साथ प्रत्यक्ष या काल्पनिक संवाद के माध्यम से उसके विचार, जीवन-दर्शन और अनुभवों को प्रस्तुत किया जाता है।”
इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि भेंटवार्ता केवल बातचीत भर नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर बौद्धिक और साहित्यिक प्रक्रिया है, जिसमें संवाद के माध्यम से विचारों और अनुभवों का संकलन किया जाता है।
भेंटवार्ता का उद्भव और विकास
भेंटवार्ता का प्रारम्भ पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हुआ। हिंदी साहित्य में इस विधा का सूत्रपात बनारसीदास चतुर्वेदी ने किया। उन्होंने साहित्यकारों और महान व्यक्तियों से संवाद करके उनकी जीवन-यात्रा और दृष्टिकोण को पाठकों तक पहुँचाया।
हिंदी में इस विधा का प्रथम स्वतंत्र प्रयास बेनीमाधव शर्मा की रचना ‘कविदर्शन’ को माना जाता है। इसके पश्चात 1930 के दशक से लेकर अब तक कई साहित्यकारों ने इस विधा में उल्लेखनीय योगदान दिया।
भेंटवार्ता वास्तविक भी हो सकती है और काल्पनिक भी। वास्तविक भेंटवार्ता में लेखक सचमुच में किसी से मिलकर संवाद करता है, जबकि काल्पनिक भेंटवार्ता में किसी ऐतिहासिक या काल्पनिक पात्र को आधार बनाकर संवाद गढ़ा जाता है। उदाहरणस्वरूप –
- राजेन्द्र यादव – ‘चेखव : एक इंटरव्यू’
- लक्ष्मीचन्द्र जैन – ‘भगवान महावीर : एक इंटरव्यू’
- राजेन्द्र यादव – ‘चेखव : एक इंटरव्यू’ → यह काल्पनिक भेंटवार्ता है, क्योंकि अंटोन चेखव (रूसी लेखक) से वास्तविक रूप से भेंटवार्ता संभव नहीं थी। इसमें लेखक ने कल्पना के आधार पर संवाद रचा है।
- लक्ष्मीचन्द्र जैन – ‘भगवान महावीर : एक इंटरव्यू’ → यह भी काल्पनिक भेंटवार्ता है, क्योंकि भगवान महावीर ऐतिहासिक व धार्मिक व्यक्तित्व हैं जिनसे वास्तविक मुलाकात संभव नहीं थी। लेखक ने इसमें सृजनात्मक ढंग से महावीर के विचारों को प्रस्तुत किया है।
हिंदी की प्रथम भेंटवार्ता
हिंदी साहित्य में भेंटवार्ता (साक्षात्कार) विधा का सूत्रपात बनारसीदास चतुर्वेदी ने किया। इन्हें हिंदी की प्रथम भेंटवार्ता लेखक माना जाता है। इन्होंने महान साहित्यकारों और समकालीन रचनाकारों से संवाद कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को पाठकों तक पहुँचाया।
सबसे पहली उल्लेखनीय भेंटवार्ता 1931 में ‘विशाल भारत’ पत्रिका के सितंबर अंक में प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था – “रत्नाकरजी से बातचीत”। इसके पश्चात चतुर्वेदी जी ने 1932 के जनवरी अंक में “प्रेमचंदजी के साथ दो दिन” प्रकाशित की। इन दोनों भेंटवार्ताओं को हिंदी साहित्य में इस विधा के आधारस्तंभ के रूप में स्वीकार किया जाता है।
यद्यपि इस विधा का प्रथम स्वतंत्र ग्रंथात्मक प्रयास बेनीमाधव शर्मा की “कविदर्शन” को माना जाता है, फिर भी भेंटवार्ता को व्यवस्थित साहित्यिक पहचान दिलाने का श्रेय चतुर्वेदी जी को ही है।
इस प्रकार हिंदी साहित्य में भेंटवार्ता की यात्रा 1931 से प्रारंभ होकर आज तक निरंतर विकसित हो रही है और समय के साथ नए रूपों—पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों और डिजिटल माध्यमों—में विस्तार पा रही है।
समयरेखा (Timeline): हिंदी भेंटवार्ता विधा का विकास
- 1931 – प्रथम भेंटवार्ता
बनारसीदास चतुर्वेदी की “रत्नाकरजी से बातचीत” (विशाल भारत, सितम्बर अंक) प्रकाशित। इसे हिंदी की प्रथम भेंटवार्ता माना जाता है। - 1932 – प्रेमचंदजी के साथ दो दिन प्रकाशित (विशाल भारत, जनवरी अंक)।
- 1933 – श्रीराम शर्मा की कबूतर प्रकाशित।
- 1952 – पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ की मैं इनसे मिला (दो भागों में) प्रकाशित।
- 1954 – देवेन्द्र सत्यार्थी की कला के हस्ताक्षर आई।
- 1968 – रणवीर रांग्रा की सृजन की मनोभूमि प्रकाशित।
- 1979 – अज्ञेय का अपरोक्ष प्रकाशित।
- 1983–1990 – मनोहर श्याम जोशी, गोविंद मिश्र आदि की कृतियाँ आईं।
- 1990 का दशक – भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा, पुष्पा भारती, कमला प्रसाद आदि के साक्षात्कार-संग्रह।
- 2000 के बाद – अजय तिवारी, प्रकाश मनु, केदारनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह आदि ने भेंटवार्ता को नई दृष्टि दी।
- वर्तमान समय – डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर ऑनलाइन इंटरव्यू और वेबिनार भेंटवार्ता की नई विधा के रूप में उभर रहे हैं।
प्रमुख रचनाकार और उनकी कृतियाँ (भेंटवार्ता)
(1) प्रारंभिक काल
- बनारसीदास चतुर्वेदी –
- रत्नाकरजी से बातचीत (1931, ‘विशाल भारत’)
- प्रेमचंदजी के साथ दो दिन (1932, ‘विशाल भारत’)
- बेनीमाधव शर्मा – कविदर्शन (प्रथम स्वतंत्र रचना)
- श्रीराम शर्मा – कबूतर (1933)
(2) मध्य काल (1950–1980)
- पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ – मैं इनसे मिला (1952, दो भागों में)
- देवेन्द्र सत्यार्थी – कला के हस्ताक्षर (1954)
- रणवीर रांग्रा –
- सृजन की मनोभूमि (1968)
- भारतीय साहित्यकारों से साक्षात्कार (1988)
- अज्ञेय (स. ही. वा.) – अपरोक्ष (1979)
- मनोहर श्याम जोशी – बातों-बातों में (1983)
- कमल किशोर गोयनका – जिज्ञासाएँ मेरी समाधान बच्चन के
(3) उत्तरार्द्ध (1980–2000)
- कर्णसिंह चौहान – साक्षात्कार: डॉ रामविलास शर्मा से बातचीत (1986)
- रत्ना लाहिड़ी – मूल्य: संस्कृति, साहित्य और समय (1987)
- भारत यायावर – ‘रेणु’ से भेंट (1987)
- गोविंद मिश्र – लेखक की जमीन (1990)
- शरद नागर और आनन्दप्रकाश त्रिपाठी – अमृतमंथन (1991)
- डॉ रामविलास शर्मा – मेरे साक्षात्कार (1994)
- कृपाशंकर चौबे – संवाद चलता रहे (1995)
- भीष्म साहनी – मेरे साक्षात्कार (1996)
- पुष्पा भारती – धर्मवीर भारती के साक्षात्कार (1998)
- प्रकाश मनु – मुलाकात (1998)
- कमला प्रसाद – वार्तालाप (1998)
- निर्मल वर्मा – मेरे साक्षात्कार (1999)
- डॉ स्मिता मिश्र – अंतरंग (1999)
(4) समकालीन काल (2000 के बाद)
- अजय तिवारी – आज के सवाल और मार्क्सवाद (2000)
- प्रकाश मनु – रामविलास शर्मा: अंतरंग स्मृतियाँ और मुलाकातें (2002)
- डॉ विश्वनाथ – मेरे साक्षात्कार (2003)
- केदारनाथ सिंह – मेरे साक्षात्कार (2003)
- हिमांशु जोशी – मेरे साक्षात्कार (2003)
- प्रभाकर क्षोत्रिय – मेरे साक्षात्कार (2003)
- राजेन्द्र यादव – जवाब दो विक्रमादित्य (2003)
- लीलाधर जगूड़ी – मेरे साक्षात्कार (2003)
- मोहन राकेश – मेरे साक्षात्कार (2004)
- त्रिलोचन – मेरे साक्षात्कार (2004)
- श्रीलाल शुक्ल – मेरे साक्षात्कार (2004)
- दूधनाथ सिंह – कहा-सुनी (2006)
- पुष्पिता – सांस्कृतिक के आलोक से संवाद (2006)
- डॉ परमानन्द श्रीवास्तव – मेरे साक्षात्कार (2006)
- डॉ प्रेमकुमार – साधना से संवाद (2006)
- डॉ समीक्षा ठाकुर – बात-बात में बात (2006)
- बलराम – वैष्णवों से वार्ता
तालिका: भेंटवार्ता विधा के प्रमुख लेखक और उनकी कृतियाँ
क्रम | लेखक का नाम | प्रमुख कृति/कृतियाँ | प्रकाशन वर्ष / समय | टिप्पणी |
---|---|---|---|---|
1 | बनारसीदास चतुर्वेदी | रत्नाकरजी से बातचीत, प्रेमचंदजी के साथ दो दिन | 1931, 1932 | हिंदी में भेंटवार्ता विधा का सूत्रपात |
2 | बेनीमाधव शर्मा | कविदर्शन | (1930 का दशक) | प्रथम स्वतंत्र रचना मानी जाती है |
3 | श्रीराम शर्मा | कबूतर | 1933 | आरंभिक प्रयास |
4 | पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ | मैं इनसे मिला (दो भाग) | 1952 | वास्तविक भेंटवार्ता |
5 | देवेन्द्र सत्यार्थी | कला के हस्ताक्षर | 1954 | साहित्यकारों से संवाद |
6 | रणवीर रांग्रा | सृजन की मनोभूमि, भारतीय साहित्यकारों से साक्षात्कार | 1968, 1988 | साहित्यिक साक्षात्कारों का संग्रह |
7 | अज्ञेय (स. ही. वा.) | अपरोक्ष | 1979 | दार्शनिक वार्तालाप |
8 | मनोहर श्याम जोशी | बातों-बातों में | 1983 | साहित्यिक संवाद |
9 | कमल किशोर गोयनका | जिज्ञासाएँ मेरी समाधान बच्चन के | — | हरिवंश राय बच्चन पर केंद्रित |
10 | कर्णसिंह चौहान | साक्षात्कार: डॉ रामविलास शर्मा से बातचीत | 1986 | आलोचना-संवाद |
11 | भारत यायावर | ‘रेणु’ से भेंट | 1987 | फणीश्वरनाथ रेणु से संवाद |
12 | गोविंद मिश्र | लेखक की जमीन | 1990 | साहित्यिक दृष्टिकोण |
13 | शरद नागर व आनन्दप्रकाश त्रिपाठी | अमृतमंथन | 1991 | अमृतलाल नागर के साक्षात्कार |
14 | डॉ रामविलास शर्मा | मेरे साक्षात्कार | 1994 | आत्मकथ्य स्वर |
15 | भीष्म साहनी | मेरे साक्षात्कार | 1996 | जीवन और साहित्य |
16 | पुष्पा भारती | धर्मवीर भारती के साक्षात्कार | 1998 | धर्मवीर भारती के विचार |
17 | निर्मल वर्मा | मेरे साक्षात्कार | 1999 | साहित्यिक जीवन दृष्टि |
18 | अजय तिवारी | आज के सवाल और मार्क्सवाद | 2000 | मार्क्सवाद पर केंद्रित |
19 | केदारनाथ सिंह | मेरे साक्षात्कार | 2003 | कवि दृष्टि |
20 | दूधनाथ सिंह | कहा-सुनी | 2006 | साहित्यिक संवाद |
लेखक का नाम | कृति/भेंटवार्ता का शीर्षक | भेंटवार्ता का प्रकार |
---|---|---|
राजेन्द्र यादव | ‘चेखव : एक इंटरव्यू’ | काल्पनिक भेंटवार्ता |
लक्ष्मीचन्द्र जैन | ‘भगवान महावीर : एक इंटरव्यू’ | काल्पनिक भेंटवार्ता |
भेंटवार्ता की प्रमुख विशेषताएँ
- संवाद प्रधानता – इसमें दो या अधिक व्यक्तियों के बीच प्रत्यक्ष वार्ता होती है।
- जीवन-दर्शन का उद्घाटन – लेखक साक्षात्कार के माध्यम से किसी महान व्यक्ति के विचारों और जीवन-दर्शन को सामने लाता है।
- वास्तविक और काल्पनिक स्वरूप – यह विधा वास्तविक संवाद पर आधारित भी हो सकती है और कल्पना पर आधारित भी।
- सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व – भेंटवार्ता केवल साहित्यिक न होकर सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
- ज्ञान का विस्तार – यह विधा पाठकों को प्रेरणा देती है और उनके ज्ञान को समृद्ध करती है।
भेंटवार्ता का साहित्यिक योगदान
भेंटवार्ता विधा का सबसे बड़ा योगदान यह है कि इसने साहित्य और समाज के बीच सेतु का कार्य किया। एक ओर यह महान साहित्यकारों और विचारकों के मनोभावों को जनसामान्य तक पहुँचाती है, तो दूसरी ओर पाठकों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करती है।
विशेषकर स्वतंत्रता आंदोलन के समय और उसके बाद के दौर में भेंटवार्ताओं ने साहित्य और समाज को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनसे न केवल साहित्यकारों के जीवन और चिंतन को समझा गया, बल्कि समकालीन समस्याओं पर उनके दृष्टिकोण को भी जाना गया।
निष्कर्ष
भेंटवार्ता हिंदी साहित्य की एक ऐसी संवादप्रधान विधा है जिसने विचारों के आदान-प्रदान को एक रचनात्मक आयाम दिया। यह विधा लेखक और समाज के बीच जीवंत संवाद स्थापित करती है। बनारसीदास चतुर्वेदी से लेकर आधुनिक साहित्यकारों तक अनेक लेखकों ने इस विधा को समृद्ध किया है।
आज के डिजिटल युग में भी भेंटवार्ता की प्रासंगिकता बनी हुई है। ऑनलाइन इंटरव्यू, वेब संवाद और साहित्यिक वेबिनार इसी परंपरा का विस्तार हैं। भविष्य में यह विधा और भी विकसित होगी और समाज को नई दृष्टि प्रदान करती रहेगी।
इन्हें भी देखें –
- हिंदी की प्रमुख गद्य विधाएँ, उनके रचनाकार और कृतियाँ
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