फ्रांस यूरोप का एक ऐसा देश है जिसने इतिहास में न केवल राजनीतिक क्रांतियों का नेतृत्व किया, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और शासन प्रणाली की नई धारणाओं को भी जन्म दिया। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से लेकर आज तक यह देश लगातार राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का केंद्र रहा है। वर्तमान में फ्रांस पाँचवें गणराज्य (Fifth Republic) के अंतर्गत संचालित होता है, जिसकी नींव 1958 में रखी गई थी। यहाँ शासन प्रणाली न तो पूर्णतः संसदीय है और न ही पूर्णतः राष्ट्रपतिीय, बल्कि यह एक अर्ध–राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System) है जिसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों की महत्वपूर्ण भूमिकाएँ होती हैं।
हाल ही में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा सेबास्टियन लेकोर्नू को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। यह दो वर्षों में पाँचवीं बार है जब फ्रांस को नया प्रधानमंत्री मिला है। यह राजनीतिक अस्थिरता और देशव्यापी प्रदर्शनों के बीच हुआ कदम फ्रांस की मौजूदा चुनौतियों की ओर संकेत करता है। इस संदर्भ में फ्रांस के राजनीतिक ढांचे, प्रधानमंत्री की नियुक्ति की प्रक्रिया और वर्तमान आर्थिक संकट को समझना प्रासंगिक हो जाता है।
पाँचवाँ गणराज्य और संवैधानिक पृष्ठभूमि
फ्रांस की राजनीति आज जिस स्वरूप में है, उसकी जड़ें 1958 में निर्मित संविधान में निहित हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता, बार-बार बदलती सरकारें और प्रभावी नेतृत्व के अभाव ने एक नए संविधान की आवश्यकता उत्पन्न की।
- 1958 का संविधान: जनरल शार्ल द गॉल (Charles de Gaulle) के नेतृत्व में पाँचवाँ गणराज्य अस्तित्व में आया।
- मुख्य विशेषता: राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच शक्ति का बँटवारा।
- राष्ट्रपति सीधे जनता द्वारा चुना जाता है और प्रधानमंत्री को नियुक्त करने का अधिकार रखता है।
- इससे फ्रांस की शासन प्रणाली न तो अमेरिका जैसी पूर्ण राष्ट्रपतिीय है और न ही ब्रिटेन जैसी पूर्ण संसदीय, बल्कि दोनों का मिश्रण है।
फ्रांस की संसद (French Parliament)
फ्रांस की संसद द्विसदनीय (Bicameral) है, जिसमें दो सदन शामिल हैं:
(क) नेशनल असेंबली (Assemblée Nationale)
- यह निचला सदन है।
- सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा दो–चरणीय चुनाव प्रणाली (Two-Round System) से होता है।
- कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
- मुख्य शक्तियाँ:
- कानून निर्माण की प्रमुख शक्ति।
- सरकार पर नियंत्रण।
- अविश्वास प्रस्ताव पारित करके प्रधानमंत्री व मंत्रिपरिषद को पद से हटाने का अधिकार।
(ख) सीनेट (Sénat)
- यह उच्च सदन है।
- इसके सदस्य स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव से चुने जाते हैं।
- कार्य:
- कानूनों की समीक्षा करना।
- लेकिन सरकार को गिराने का अधिकार नहीं।
इस प्रकार फ्रांस की संसद में नेशनल असेंबली निर्णायक भूमिका निभाती है, जबकि सीनेट परामर्श और समीक्षा की भूमिका में रहती है।
प्रधानमंत्री की नियुक्ति की प्रक्रिया
(क) राष्ट्रपति की नियुक्ति शक्ति (Article 8)
फ्रांस का राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
(ख) नेशनल असेंबली का समर्थन
- प्रधानमंत्री तभी प्रभावी रह सकता है जब उसे नेशनल असेंबली का विश्वास प्राप्त हो।
- यदि राष्ट्रपति की पार्टी को बहुमत है, तो राष्ट्रपति अपनी ही पार्टी से प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
- लेकिन यदि विपक्ष बहुमत में है, तो राष्ट्रपति को विपक्ष के नेता को प्रधानमंत्री बनाना पड़ता है।
- इस स्थिति को “सह–अस्तित्व” (Cohabitation) कहा जाता है।
(ग) अविश्वास प्रस्ताव (Article 49)
- यदि नेशनल असेंबली प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करती है, तो प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ता है।
- यह सरकार को जवाबदेह बनाता है और संसद की शक्ति को बनाए रखता है।
प्रधानमंत्री नियुक्ति की प्रक्रिया – राष्ट्रपति और संसद की भूमिका
चरण | राष्ट्रपति की भूमिका | संसद (नेशनल असेंबली) की भूमिका | परिणाम |
---|---|---|---|
1. नियुक्ति | राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त करता है (संविधान का अनुच्छेद 8) | — | राष्ट्रपति की प्रारंभिक शक्ति |
2. बहुमत की स्थिति | यदि राष्ट्रपति की पार्टी के पास बहुमत है तो उसी पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनता है | नेशनल असेंबली से आसानी से विश्वासमत प्राप्त | राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का सहयोग |
3. विपक्ष के बहुमत की स्थिति (Cohabitation) | राष्ट्रपति को विपक्षी दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करना पड़ता है | नेशनल असेंबली अपना समर्थन विपक्षी प्रधानमंत्री को देती है | सत्ता का सह–अस्तित्व (Cohabitation) |
4. अविश्वास प्रस्ताव (Article 49) | राष्ट्रपति सीधे दखल नहीं करता | नेशनल असेंबली अविश्वास प्रस्ताव पारित कर प्रधानमंत्री को हटा सकती है | संसद की सर्वोच्च जवाबदेही |
5. कार्यकाल की अवधि | राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को हटाने की पहल कर सकता है, लेकिन व्यवहार में यह संसद पर निर्भर करता है | प्रधानमंत्री तब तक पद पर रहता है जब तक संसद का विश्वास और राष्ट्रपति का समर्थन है |
प्रधानमंत्री का कार्यकाल (Tenure)
- प्रधानमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं होता।
- वह तब तक पद पर रहता है जब तक:
- राष्ट्रपति का समर्थन प्राप्त हो।
- नेशनल असेंबली का विश्वास हासिल हो।
- इसका अर्थ है कि राजनीतिक समीकरण बदलने पर प्रधानमंत्री का पद भी अस्थिर हो सकता है।
फ्रांस की मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के दूसरे कार्यकाल में फ्रांस की राजनीति में अस्थिरता बढ़ी है।
- हाल ही में सेबास्टियन लेकोर्नू को प्रधानमंत्री बनाया गया, लेकिन यह दो वर्षों में पाँचवीं बार हुआ है जब प्रधानमंत्री बदला गया।
- यह स्थिति फ्रांस की गहरी राजनीतिक संकट को दर्शाती है।
- देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, विशेषकर आर्थिक नीतियों, पेंशन सुधारों और महँगाई के मुद्दों पर।
फ्रांस का आर्थिक संकट
(क) लगातार अधिक खर्च
- दशकों से फ्रांसीसी सरकार ने अपनी आय से अधिक खर्च किया है।
- घाटा पूरा करने के लिए कर्ज़ लेना पड़ा।
(ख) सार्वजनिक कर्ज़ में बढ़ोतरी
- 2025 की शुरुआत में फ्रांस का सार्वजनिक कर्ज़ €3,345 अरब था।
- यह देश की GDP का 114% है।
- यूरोज़ोन में फ्रांस तीसरे स्थान पर है (ग्रीस और इटली के बाद)।
- औसतन हर फ्रांसीसी नागरिक पर लगभग €50,000 (45 लाख रुपये) का कर्ज़ है।
(ग) बजट घाटा
- 2024 में बजट घाटा GDP का 8% था।
- 2025 में यह अनुमानित 4% है, जो अभी भी यूरोपीय संघ के मानकों से अधिक है।
(घ) बूढ़ी होती आबादी (Ageing Population)
- कामकाजी वर्ग की संख्या घट रही है।
- पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च बढ़ रहा है।
- इससे सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर भारी दबाव है।
फ्रांस के सामने चुनौतियाँ
- राजनीतिक अस्थिरता – बार-बार प्रधानमंत्री का बदलना नीति–निरंतरता में बाधा डालता है।
- आर्थिक सुधारों का विरोध – पेंशन सुधार और खर्च में कटौती जैसे कदमों का जनता ने विरोध किया।
- यूरोपीय संघ का दबाव – फ्रांस को अपने बजट घाटे को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
- सामाजिक असमानता – बेरोज़गारी और युवाओं में असंतोष बढ़ रहा है।
- भू–राजनीतिक चुनौतियाँ – रूस–यूक्रेन युद्ध और वैश्विक ऊर्जा संकट ने फ्रांस की अर्थव्यवस्था पर असर डाला है।
फ्रांस का संवैधानिक विकास (1789 – 1958)
वर्ष | प्रमुख घटना | संवैधानिक महत्व |
---|---|---|
1789 | फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत | निरंकुश राजशाही का अंत और लोकतांत्रिक विचारों का उदय |
1791 | पहला संविधान | संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना |
1792–1795 | प्रथम गणराज्य (First Republic) | राजतंत्र समाप्त, गणराज्य की घोषणा |
1799 | नेपोलियन बोनापार्ट का उदय | कॉन्सुलेट शासन की स्थापना |
1804 | प्रथम साम्राज्य (First Empire) | नेपोलियन सम्राट बने |
1814–1848 | राजतंत्र की पुनर्स्थापना और जुलाई राजतंत्र | बार–बार बदलाव, राजनीतिक अस्थिरता |
1848 | द्वितीय गणराज्य (Second Republic) | सार्वभौमिक पुरुष मताधिकार, राष्ट्रपतिीय प्रणाली |
1852–1870 | द्वितीय साम्राज्य (Second Empire) | नेपोलियन III का शासन |
1870–1940 | तृतीय गणराज्य (Third Republic) | संसदीय प्रणाली, स्थिर लोकतंत्र |
1940–1944 | विची शासन (Vichy Regime) | नाज़ी जर्मनी के अधीन कठपुतली सरकार |
1946 | चतुर्थ गणराज्य (Fourth Republic) | संसदीय प्रणाली, लेकिन अस्थिर सरकारें |
1958 | पाँचवाँ गणराज्य (Fifth Republic) – शार्ल द गॉल | वर्तमान अर्ध–राष्ट्रपति प्रणाली की स्थापना |
निष्कर्ष
फ्रांस की शासन व्यवस्था अपने आप में अनूठी है क्योंकि इसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ही प्रमुख भूमिका निभाते हैं। प्रधानमंत्री की नियुक्ति प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि संसद में किसका बहुमत है। वर्तमान में प्रधानमंत्री सेबास्टियन लेकोर्नू के सामने दोहरी चुनौती है – एक ओर देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति और दूसरी ओर जनता का असंतोष।
फ्रांस का राजनीतिक ढांचा यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में कोई भी व्यक्ति निरंकुश न बने और लोकतंत्र की जड़ें मजबूत बनी रहें। किंतु आज के हालात इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आर्थिक सुधार, राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक न्याय – इन तीनों क्षेत्रों में समन्वय स्थापित किए बिना फ्रांस आगे नहीं बढ़ पाएगा।
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