मेलियोइडोसिस (Melioidosis): एक उभरती हुई संक्रामक चुनौती

हाल ही में आंध्र प्रदेश के तुरकापालेम गांव से एक चिंताजनक खबर सामने आई है। जुलाई से अब तक यहाँ 23 रहस्यमय मौतें दर्ज की गईं और जाँच के बाद स्पष्ट हुआ कि इनमें से एक मामला मेलियोइडोसिस (Melioidosis) का है। भारत में इस संक्रमण की पहचान नई नहीं है, लेकिन यह बीमारी अक्सर निदान की कमी और कम रिपोर्टिंग के कारण सार्वजनिक चर्चा में नहीं आ पाती। चूँकि यह रोग जीवाणुजन्य (Bacterial) है और इसका प्रसार विशेष रूप से मिट्टी व पानी से जुड़ा है, इसलिए इसका अध्ययन न केवल चिकित्सकों बल्कि आम जनता, किसानों, सैनिकों और पर्यावरणीय शोधकर्ताओं के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

यह लेख मेलियोइडोसिस के कारणों, संक्रमण के स्रोत, लक्षण, संवेदनशील समूह, वैश्विक व भारतीय परिदृश्य, मौसमी प्रभाव, रोकथाम और प्रबंधन पर विस्तृत चर्चा करेगा।

मेलियोइडोसिस क्या है?

मेलियोइडोसिस एक संक्रामक रोग है जो Burkholderia pseudomallei नामक बैक्टीरिया से होता है। यह बैक्टीरिया मुख्यतः मिट्टी और पानी में पाया जाता है और वर्षों तक जीवित रह सकता है।

  • यह रोग मनुष्यों और जानवरों दोनों को संक्रमित कर सकता है।
  • व्यक्ति से व्यक्ति में संक्रमण अत्यंत दुर्लभ है।
  • अब तक वैज्ञानिक साक्ष्यों में यह प्रमाण नहीं मिला कि यह रोग जानवर से इंसान या कीड़े से इंसान में सीधे तौर पर फैलता है।

संक्रमण के कारण और स्रोत

Burkholderia pseudomallei के संक्रमण का प्रमुख माध्यम है:

  1. त्वचा के ज़ख्मों या कटे हिस्सों के माध्यम से मिट्टी/कीचड़ के संपर्क में आना।
  2. प्रदूषित पानी के संपर्क या उसके सेवन से।
  3. प्रदूषित धूल या कणों का श्वसन द्वारा फेफड़ों में पहुँचना।

यह रोग अधिकतर उन क्षेत्रों में पाया जाता है जहाँ लोग खेती-बाड़ी, मछली पालन या निर्माण कार्य करते हैं और अक्सर नमी व गीली मिट्टी के संपर्क में रहते हैं।

संवेदनशीलता और जोखिम वाले समूह

सामान्य परिस्थितियों में स्वस्थ व्यक्ति में यह रोग घातक नहीं होता, लेकिन कुछ परिस्थितियों में इसका संक्रमण बेहद खतरनाक सिद्ध हो सकता है।

अधिक संवेदनशील व्यक्ति:

  • मधुमेह (Diabetes) के रोगी
  • किडनी या लीवर की पुरानी बीमारियों से ग्रसित लोग
  • कैंसर से पीड़ित व्यक्ति
  • शराब की लत वाले लोग

उच्च जोखिम वाले समूह:

  • सैन्य कर्मी, जो अक्सर विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में रहते हैं
  • साहसिक यात्री (Adventure Travelers)
  • इको-टूरिस्ट
  • निर्माण कार्यकर्ता
  • धान की खेती करने वाले किसान
  • मछली पालन और वानिकी से जुड़े लोग

भौगोलिक प्रसार (Geographic Prevalence)

मेलियोइडोसिस का प्रसार विशिष्ट क्षेत्रों में अधिक देखा जाता है।

  • यह रोग मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है।
  • भारत में इसके मामले दर्ज किए जाते हैं, लेकिन यहाँ इसकी निदान और रिपोर्टिंग अक्सर कम होती है।
  • भारत में मेलियोइडोसिस का पहला मामला 1991 में मुंबई में दर्ज हुआ था।

मौसमी प्रभाव

अध्ययनों से पता चलता है कि मेलियोइडोसिस का प्रसार बरसात के मौसम में काफी बढ़ जाता है।

  • लगभग 75–85% मामले मानसून या उसके बाद सामने आते हैं।
  • कारण यह है कि बारिश से मिट्टी और पानी में बैक्टीरिया की सक्रियता बढ़ जाती है और मनुष्य अधिक संपर्क में आते हैं।

लक्षण (Symptoms)

मेलियोइडोसिस के लक्षण विविध हो सकते हैं और अक्सर अन्य बीमारियों जैसे फ्लू या टीबी से मिलते-जुलते हैं, जिसके कारण गलत निदान (Misdiagnosis) की समस्या सामने आती है।

सामान्य लक्षण:

  • फ्लू जैसे लक्षण
  • बुखार
  • सिरदर्द

गंभीर लक्षण:

  • निमोनिया
  • लगातार खाँसी
  • सीने में दर्द
  • त्वचा पर घाव या अल्सर (Skin Sores)
  • शरीर के विभिन्न अंगों में पस से भरे फोड़े (Abscesses)

मेलियोइडोसिस के प्रमुख पहलू

श्रेणीविवरण
लक्षण (Symptoms)– बुखार, सिरदर्द, फ्लू जैसे लक्षण
– लगातार खाँसी और सीने में दर्द
– त्वचा पर घाव और अल्सर
– शरीर में पस से भरे फोड़े
– गंभीर स्थिति में निमोनिया
कारण (Causes)Burkholderia pseudomallei बैक्टीरिया से संक्रमण
– प्रदूषित मिट्टी और पानी के संपर्क से
– घावों के माध्यम से संक्रमण
– प्रदूषित धूल/कणों का श्वसन द्वारा प्रवेश
जोखिम समूह (Risk Groups)– मधुमेह, किडनी/लीवर रोग और कैंसर के मरीज
– शराब की लत वाले लोग
– सैन्य कर्मी, साहसिक यात्री, इको-टूरिस्ट
– किसान, मछली पालन और वानिकी से जुड़े लोग
– निर्माण कार्यकर्ता
रोकथाम के उपाय (Prevention Measures)– सुरक्षित और उबला हुआ पानी पीना
– खेती/निर्माण कार्य में दस्ताने और जूते पहनना
– घाव को तुरंत धोकर कीटाणुनाशक लगाना
– व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखना
– उच्च जोखिम समूह में जागरूकता फैलाना

मेलियोइडोसिस बनाम टीबी

चूँकि मेलियोइडोसिस के लक्षण टीबी जैसे हो सकते हैं, कई बार मरीजों का इलाज गलत दिशा में चला जाता है।

  • टीबी में लंबी अवधि तक खाँसी, वजन घटना और रात में पसीना आना सामान्य लक्षण हैं।
  • मेलियोइडोसिस में भी लंबे समय तक खाँसी और सीने में दर्द रहता है, लेकिन इसमें त्वचा के घाव और पस से भरे फोड़े अधिक आम हैं।

भारत में मेलियोइडोसिस

भारत में इस बीमारी का प्रसार मौजूद है, लेकिन इसके वास्तविक आंकड़े सामने नहीं आते।

  • पहला मामला 1991, मुंबई में दर्ज किया गया।
  • कई बार मरीजों को टीबी, निमोनिया या अन्य संक्रमण मानकर इलाज किया जाता है।
  • हाल ही में आंध्र प्रदेश में सामने आया मामला इस ओर ध्यान दिलाता है कि भारत में इसके प्रति जागरूकता और सटीक निदान तकनीक की आवश्यकता है।

आंध्र प्रदेश का हालिया मामला

तुरकापालेम गांव (आंध्र प्रदेश) में जुलाई 2025 से अब तक 23 रहस्यमय मौतें हो चुकी हैं।

  • स्वास्थ्य विभाग की जाँच में पाया गया कि इनमें से एक मरीज की मौत मेलियोइडोसिस संक्रमण से हुई है।
  • यह घटना ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ जल, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और निदान में देरी जैसी समस्याओं को उजागर करती है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर पहचान और सही इलाज हो, तो कई जानें बचाई जा सकती हैं।

रोकथाम (Prevention)

वर्तमान समय में मेलियोइडोसिस से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वच्छता

  1. सुरक्षित पानी का उपयोग
    • पानी को उबालकर पीना या फ़िल्टर का प्रयोग करना।
  2. सुरक्षात्मक कपड़े
    • खेती या निर्माण कार्य करते समय दस्ताने और जूते पहनना।
  3. स्वच्छता का पालन
    • घावों को तुरंत धोना और कीटाणुनाशक का उपयोग करना।
  4. जागरूकता
    • उच्च जोखिम वाले लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए विशेष जानकारी देना।

उपचार और प्रबंधन (Management)

  • इस रोग के लिए अभी तक कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।
  • इलाज मुख्यतः एंटीबायोटिक्स पर आधारित है।
  • लंबी अवधि तक उपचार की आवश्यकता हो सकती है ताकि संक्रमण पूरी तरह से समाप्त हो सके।

निष्कर्ष

मेलियोइडोसिस एक गंभीर लेकिन कम पहचाना गया संक्रामक रोग है। भारत जैसे देश में, जहाँ बड़ी आबादी खेती-बाड़ी, निर्माण कार्य और मछली पालन में संलग्न है, वहाँ इसके प्रसार की संभावना बनी रहती है।

  • आंध्र प्रदेश का हालिया मामला हमें यह याद दिलाता है कि स्वास्थ्य सेवाओं और निदान तंत्र को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
  • बरसात के मौसम में इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए संवेदनशील समूहों को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए।
  • यदि समय पर निदान और उचित इलाज किया जाए तो मेलियोइडोसिस से मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

इसलिए जरूरी है कि जनजागरूकता अभियान, डॉक्टरों के बीच प्रशिक्षण, और सटीक निदान तकनीक को बढ़ावा दिया जाए। केवल इसी से हम भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में सक्षम हो पाएँगे।


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