हिन्दी साहित्य की प्रमुख पत्र–पत्रिकाएँ और उनके संपादक

हिन्दी साहित्य का इतिहास केवल कवियों, लेखकों और उनकी कृतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पत्र–पत्रिकाओं का भी अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पत्र–पत्रिकाएँ किसी भी भाषा और साहित्य के विकास की धुरी होती हैं। इन्होंने न केवल साहित्यिक चेतना को जागृत किया, बल्कि सामाजिक–राजनीतिक आंदोलनों को भी बल प्रदान किया। भारत में राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रसार, स्वतंत्रता संग्राम की चेतना और हिन्दी भाषा के प्रचार–प्रसार में इनका अनुपम योगदान रहा।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर अज्ञेय, कमलेश्वर और नामवर सिंह तक, अनेक साहित्यकारों ने अपने समय की पत्र–पत्रिकाओं का सम्पादन करके साहित्य को दिशा देने का कार्य किया। इस लेख में हम क्रमबद्ध रूप से हिन्दी की प्रमुख पत्र–पत्रिकाओं, उनके संपादकों, प्रकाशन स्थल एवं प्रकाशन वर्ष का परिचय प्राप्त करेंगे।

भारतेन्दु युग की पत्र–पत्रिकाएँ

भारतेन्दु युग (1868–1900) हिन्दी पत्रकारिता और साहित्य का जागरण काल माना जाता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को “आधुनिक हिन्दी साहित्य का जनक” कहा जाता है। उन्होंने अनेक पत्र–पत्रिकाओं का सम्पादन करके साहित्य और समाज में नयी चेतना का संचार किया।

क्रमपत्रिका का नामसम्पादकप्रकाशन स्थानप्रकाशन वर्ष
1कवि वचन सुधाभारतेन्दु हरिश्चन्द्रकाशी1868
2हरिश्चन्द्र मैगजीनभारतेन्दु हरिश्चन्द्रकाशी1873
3हरिश्चन्द्र चन्द्रिकाभारतेन्दु हरिश्चन्द्रकाशी1874
4आनन्द कादम्बिनीबदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’मिर्जापुर1881
5हिन्दी प्रदीपपं. बालकृष्ण भट्टइलाहाबाद1877
6ब्राह्मणपं. प्रतापनारायण मिश्रकानपुर1883

विशेषताएँ

  • इन पत्रिकाओं ने हिन्दी भाषा को जनता की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया।
  • अंग्रेजी शासन और सामाजिक कुरीतियों की आलोचना की गई।
  • भारतेन्दु की पत्रिकाओं में राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सुधार की स्पष्ट धारा दिखाई देती है।

प्रमुख प्रवृत्तियाँ (Themes/Movements)

  • राष्ट्रवादी चेतना और अंग्रेज़ी शासन की आलोचना।
  • सामाजिक सुधार – बाल विवाह, पर्दा प्रथा, विधवा विवाह आदि पर विचार।
  • हिन्दी भाषा को साहित्यिक और जनभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना।
  • पत्रकारिता का आरंभिक स्वरूप और साहित्यिक नयी दिशा।
  • भारतीय संस्कृति और गौरव का पुनर्जागरण।

द्विवेदी युग की पत्र–पत्रिकाएँ

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का काल (1900–1920) हिन्दी गद्य–काव्य का सुव्यवस्थित काल माना जाता है। उन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन करके हिन्दी साहित्य को नयी दिशा प्रदान की।

क्रमपत्रिका का नामसम्पादकप्रकाशन स्थानप्रकाशन वर्ष
1सरस्वतीआचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीइलाहाबाद1900
2समालोचकचन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’जयपुर1902
3इन्दुअम्बिका प्रसाद गुप्तकाशी1909
4प्रतापगणेशशंकर विद्यार्थीकानपुर1913
5मर्यादाकृष्णकान्त मालवीयप्रयाग1909
6प्रभाकालूरामखण्डवा1913
7सुदर्शनदेवकीनन्दन खत्रीकाशी1900
8पाटलिपुत्रकाशीप्रसाद जायसवालपटना1914
9अभ्युदयमदनमोहन मालवीयकाशी1907

विशेषताएँ

  • ‘सरस्वती’ पत्रिका ने हिन्दी साहित्य में आलोचना और गद्य लेखन की परम्परा विकसित की।
  • गणेशशंकर विद्यार्थी का ‘प्रताप’ राष्ट्रीय आंदोलन का मुखपत्र बना।
  • इस युग की पत्र–पत्रिकाएँ साहित्य के साथ–साथ स्वतंत्रता संग्राम की आवाज़ भी बनीं।

प्रमुख प्रवृत्तियाँ (Themes/Movements)

  • ‘सरस्वती’ पत्रिका द्वारा आलोचना और गद्य–लेखन की परम्परा स्थापित।
  • राष्ट्रवादी विचारधारा को बल – गणेशशंकर विद्यार्थी का ‘प्रताप’।
  • भाषा–शुद्धि और साहित्य–संस्कार पर विशेष बल।
  • सुधारवादी दृष्टिकोण और आधुनिकता का आरंभ।
  • स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार का मेल।

छायावादी युग की पत्र–पत्रिकाएँ

छायावाद (1920–1937) हिन्दी काव्य का स्वर्णिम युग है। इस समय भावुकता, प्रकृति–चित्रण और व्यक्तिवादी चेतना की प्रधानता रही। पत्र–पत्रिकाओं ने नए कवियों और लेखकों को मंच प्रदान किया।

क्रमपत्रिका का नामसम्पादकप्रकाशन स्थानप्रकाशन वर्ष
1चांदरामरख सहगल, चण्डी प्रसाद ‘हृदयेश’प्रयाग1920
2प्रभाबालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’कानपुर1921
3माधुरीदुलारेलाल भार्गवलखनऊ1922
4विशाल भारतबनारसीदास चतुर्वेदीकलकत्ता1928
5हंसप्रेमचन्दकाशी1930
6समन्वयनिरालाकलकत्ता1922
7सरोजनवजादिकलाल श्रीवास्तवकलकत्ता1928
8साहित्य सन्देशगुलाबरायआगरा1937
9मतवालामहादेव प्रसाद सेठ, निरालाकलकत्ता1923
10कर्मवीरमाखनलाल चतुर्वेदीजबलपुर1921
11हिन्दी नवजीवनमहात्मा गांधीअहमदाबाद1921
12देशराजेन्द्र प्रसादपटना1920

विशेषताएँ

  • प्रेमचन्द द्वारा सम्पादित ‘हंस’ सामाजिक यथार्थवाद का आधार बना।
  • ‘चांद’ पत्रिका ने स्वतंत्रता आंदोलन को स्वर दिया और नेशनलिस्ट विचारधारा को मजबूत किया।
  • ‘माधुरी’ और ‘विशाल भारत’ ने छायावादी कवियों को मंच दिया।

प्रमुख प्रवृत्तियाँ (Themes/Movements)

  • छायावादी काव्य को मंच – प्रकृति, सौंदर्य और भावुकता की प्रधानता।
  • राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी चेतना (‘चांद’, ‘मतवाला’ आदि)।
  • प्रेमचन्द का ‘हंस’ – यथार्थवादी साहित्य और सामाजिक समानता।
  • साम्प्रदायिक सद्भाव और स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन।
  • साहित्य में वैचारिक क्रांति और प्रयोगधर्मी चेतना।

छायावादोत्तर काल की पत्र–पत्रिकाएँ

स्वतंत्रता के बाद हिन्दी साहित्य में नयी प्रवृत्तियाँ उभरीं। कहानी, उपन्यास, आलोचना, पत्रकारिता और निबंध के नए आयाम इन पत्र–पत्रिकाओं के माध्यम से सामने आए।

क्रमपत्रिका का नामसम्पादकप्रकाशन स्थान
1प्रतीकअज्ञेयदिल्ली
2कादम्बिनीराजेन्द्र अवस्थीदिल्ली
3धर्मयुगधर्मवीर भारतीमुम्बई
4सारिकाकमलेश्वरदिल्ली
5साप्ताहिक हिन्दुस्तानमनोहर श्याम जोशीदिल्ली
6हंसराजेन्द्र यादवदिल्ली
7गंगाकमलेश्वरदिल्ली
8वर्तमान साहित्यधनंजयइलाहाबाद
9आलोचनाडॉ. नामवर सिंहदिल्ली

विशेषताएँ

  • ‘प्रतीक’ और ‘सारिका’ ने आधुनिकतावादी और प्रयोगवादी साहित्य को स्वर दिया।
  • ‘धर्मयुग’ और ‘कादम्बिनी’ सामान्य पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय रहीं।
  • ‘हंस’ (राजेन्द्र यादव द्वारा सम्पादित) ने स्त्री विमर्श और दलित साहित्य को मंच दिया।

प्रमुख प्रवृत्तियाँ (Themes/Movements)

  • प्रयोगवाद और नयी कविता को बढ़ावा (अज्ञेय – ‘प्रतीक’)।
  • स्त्री विमर्श और दलित विमर्श को स्वर (‘हंस’ – राजेन्द्र यादव)।
  • आधुनिकतावादी और प्रगतिशील चिंतन (‘सारिका’, ‘धर्मयुग’)।
  • आलोचना और समीक्षा पर बल (‘आलोचना’ – नामवर सिंह)।
  • सामाजिक यथार्थ, राजनीति और सांस्कृतिक विमर्श।

पत्र–पत्रिकाओं का साहित्यिक और सामाजिक महत्व

  1. साहित्यिक चेतना का विकास – इन पत्र–पत्रिकाओं ने नये लेखकों और कवियों को अवसर दिया।
  2. स्वतंत्रता आंदोलन का सहयोग – प्रताप, हंस, चांद जैसी पत्रिकाओं ने राष्ट्रीय आंदोलन को गति दी।
  3. सामाजिक सुधार – बाल विवाह, पर्दा प्रथा, अस्पृश्यता आदि बुराइयों पर आलोचनात्मक लेख छपे।
  4. भाषा का विकास – हिन्दी भाषा को साहित्यिक और व्यवहारिक रूप से स्थापित करने में पत्र–पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  5. नई विधाओं का उद्भव – आलोचना, निबंध, रिपोर्ताज, कहानी, व्यंग्य आदि विधाएँ इन्हीं पत्र–पत्रिकाओं से विकसित हुईं।

हिन्दी की पत्र–पत्रिकाओं का इतिहास साहित्य और समाज का आईना है।

  • भारतेन्दु युग → जागरण और सामाजिक सुधार
  • द्विवेदी युग → आलोचना और राष्ट्रीय आंदोलन
  • छायावादी युग → भावुकता और यथार्थ का संगम
  • छायावादोत्तर युग → प्रयोगवाद, स्त्री–विमर्श और आधुनिकता

इन पत्र–पत्रिकाओं ने हिन्दी साहित्य को दिशा दी, स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी और समाज में नयी चेतना का संचार किया। परीक्षा की दृष्टि से इनके नाम, सम्पादक, प्रकाशन स्थल और प्रमुख प्रवृत्तियाँ याद रखना आवश्यक है।

Quick Revision Table – हिन्दी की प्रमुख पत्र–पत्रिकाएँ

युगप्रमुख पत्र–पत्रिकाएँसम्पादकप्रमुख प्रवृत्तियाँ / Movements
भारतेन्दु युग (1868–1900)कवि वचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन, हरिश्चन्द्र चन्द्रिका, हिन्दी प्रदीप, ब्राह्मणभारतेन्दु हरिश्चन्द्र, पं. बालकृष्ण भट्ट, पं. प्रतापनारायण मिश्रराष्ट्रीय चेतना, अंग्रेज़ी शासन की आलोचना, सामाजिक सुधार (बाल विवाह, विधवा विवाह), हिन्दी भाषा का प्रचार–प्रसार
द्विवेदी युग (1900–1920)सरस्वती, समालोचक, इन्दु, प्रताप, मर्यादा, अभ्युदयआचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, गणेशशंकर विद्यार्थी, मदनमोहन मालवीयआलोचना और गद्य पर बल, भाषा–शुद्धि, राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन, साहित्य में सुधारवादी दृष्टिकोण
छायावादी युग (1920–1937)चांद, माधुरी, प्रभा, विशाल भारत, हंस, मतवाला, कर्मवीर, देशरामरख सहगल, दुलारेलाल भार्गव, बनारसीदास चतुर्वेदी, प्रेमचन्द, निराला, माखनलाल चतुर्वेदी, राजेन्द्र प्रसादछायावादी काव्य को मंच, राष्ट्रीय आंदोलन को गति, यथार्थवादी साहित्य (हंस), सामाजिक समानता, साम्प्रदायिक सद्भाव
छायावादोत्तर काल (1940 के बाद)प्रतीक, कादम्बिनी, धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, हंस, गंगा, आलोचनाअज्ञेय, राजेन्द्र अवस्थी, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, मनोहर श्याम जोशी, राजेन्द्र यादव, नामवर सिंहप्रयोगवाद और नयी कविता, स्त्री–विमर्श और दलित विमर्श, आधुनिकतावादी चिंतन, आलोचना और समीक्षा, सामाजिक–राजनीतिक विमर्श

निष्कर्ष

हिन्दी की प्रमुख पत्र–पत्रिकाएँ केवल साहित्यिक धारा का परिचायक मात्र नहीं हैं, बल्कि वे भारतीय समाज, संस्कृति और राष्ट्रवादी आंदोलनों की सशक्त आवाज़ रही हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कवि वचन सुधा से लेकर अज्ञेय की प्रतीक, कमलेश्वर की सारिका और नामवर सिंह की आलोचना तक, इन पत्र–पत्रिकाओं ने समय–समय पर साहित्य और समाज दोनों को दिशा प्रदान की।
आज डिजिटल युग में भले ही छपी हुई पत्र–पत्रिकाओं का महत्व कुछ कम होता प्रतीत हो, लेकिन परीक्षा की दृष्टि से और हिन्दी साहित्य के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से ये अमूल्य धरोहर हैं। हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, उसका संघर्ष और उसकी उपलब्धियाँ इन्हीं पत्र–पत्रिकाओं के पन्नों में सजीव रूप से दर्ज हैं।


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