ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना: भारत के सबसे दक्षिणी द्वीप का रूपांतरण

भारत सरकार ने जिस महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की है, वह न केवल आर्थिक विकास का प्रतीक है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, समुद्री प्रभुत्व और पारिस्थितिक संतुलन के बीच तालमेल बिठाने का एक साहसिक प्रयास भी है। ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “विकसित भारत 2047” के विज़न का अभिन्न हिस्सा है। यह परियोजना हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) में भारत की स्थिति को और अधिक मजबूत बनाएगी तथा देश को वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करने में योगदान देगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस पहल को “रणनीतिक, रक्षा और राष्ट्रीय महत्व” का बताते हुए कहा कि यह परियोजना भविष्य के भारत की दिशा तय करेगी। पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव द्वारा साझा लेख में इसकी समेकित विकास योजना और पारिस्थितिक सुरक्षा उपायों का भी उल्लेख है।

ग्रेट निकोबार द्वीप: भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

ग्रेट निकोबार द्वीप भारत का सबसे दक्षिणी भूभाग है। यह द्वीप अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है और यहां स्थित इंदिरा प्वाइंट भारत की सबसे दक्षिणी बिंदु माना जाता है।

  • भौगोलिक स्थिति:
    • इंदिरा प्वाइंट से इंडोनेशिया मात्र 150 किलोमीटर दूर है।
    • यह स्थान मलक्का जलडमरूमध्य के समीप स्थित है, जो विश्व की सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है।
  • रणनीतिक महत्व:
    • मलक्का जलडमरूमध्य से होकर विश्व का लगभग 40% समुद्री व्यापार गुजरता है।
    • यहां पर भारत की मजबूत उपस्थिति चीन की “String of Pearls” रणनीति का जवाब मानी जाती है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • 2004 की सुनामी के दौरान यह द्वीप भारी तबाही का शिकार हुआ था।
    • द्वीप का अधिकांश हिस्सा घने उष्णकटिबंधीय वन और जैव विविधता से भरपूर है।

परियोजना का अवलोकन

ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को बहु-विकास पहल (Multi-Development Initiative) के रूप में देखा जा रहा है। इसका उद्देश्य केवल बुनियादी ढांचा बनाना नहीं है, बल्कि द्वीप को एक वैश्विक कनेक्टिविटी और आर्थिक हब के रूप में विकसित करना है।

मुख्य विशेषताएँ

  1. अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT)
    • 14.2 मिलियन TEU क्षमता
    • एशिया के सबसे बड़े ट्रांसशिपमेंट टर्मिनलों में से एक
    • भारत को सिंगापुर और कोलंबो जैसे बंदरगाहों की निर्भरता से मुक्ति
  2. ग्रीनफ़ील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा
    • नागरिक और सैन्य दोनों उपयोगों के लिए
    • अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और रक्षा विमानों की सुविधा
    • पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा
  3. विद्युत संयंत्र
    • 450 MVA क्षमता का गैस और सौर ऊर्जा आधारित पावर प्रोजेक्ट
    • नवीकरणीय ऊर्जा पर विशेष जोर
  4. टाउनशिप विकास
    • 16,610 हेक्टेयर क्षेत्र में नई बस्ती
    • आबादी, व्यवसाय और आर्थिक गतिविधियों के लिए आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्र
  5. समग्र निवेश
    • अनुमानित लागत: ₹72,000 करोड़
    • समयावधि: 30 वर्षों में चरणबद्ध कार्यान्वयन

रणनीतिक और भू-राजनीतिक महत्व

  1. चीन की चुनौती का मुकाबला
    • हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को संतुलित करने में सहायक।
    • ‘String of Pearls’ रणनीति (हंबनटोटा, ग्वादर जैसे बंदरगाहों पर चीनी पकड़) का जवाब।
  2. समुद्री सुरक्षा और अपराध नियंत्रण
    • समुद्री डकैती, अवैध मछली पकड़ने और अन्य अंतरराष्ट्रीय अपराधों पर निगरानी।
    • भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल की गतिविधियों को बढ़ावा।
  3. भौगोलिक लाभ
    • इंदिरा प्वाइंट की निकटता इंडोनेशिया और मलक्का जलडमरूमध्य की निगरानी को आसान बनाती है।
    • भारत का प्रभाव दक्षिण-पूर्व एशिया तक विस्तृत होगा।

पारिस्थितिक और जनजातीय चिंताएँ

वन और जैव विविधता पर असर

  • लगभग 13,075 हेक्टेयर वन क्षेत्र (द्वीप का 15%) विकास कार्यों के कारण प्रभावित होगा।
  • करीब 9.64 लाख पेड़ काटे जाने की संभावना।
  • द्वीप लेदरबैक समुद्री कछुए जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों का प्रमुख प्रजनन स्थल है।

जनजातीय समुदाय

  • शोमपेन जनजाति: लगभग 237 सदस्य
  • निकोबारी जनजाति: लगभग 1,094 सदस्य
  • इनकी संस्कृति, भाषा और जीवनशैली पर बाहरी प्रभाव का खतरा।
  • आरक्षित क्षेत्र (751 वर्ग किमी) में से 84 वर्ग किमी का डीनोटिफिकेशन किया गया।

भूकंपीय जोखिम

  • यह क्षेत्र उच्च भूकंपीय क्षेत्र (Seismic Zone V) में स्थित है।
  • 2004 की सुनामी (9.2 तीव्रता) ने द्वीप को बुरी तरह प्रभावित किया था।

सरकार का दृष्टिकोण: अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी का संतुलन

भारत सरकार इस परियोजना को “अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी एक-दूसरे की पूरक हैं” के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

सुरक्षा उपाय

  • भूकंप-रोधी निर्माण: National Building Code के अनुसार सभी ढांचों का निर्माण।
  • नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: सौर ऊर्जा का एकीकरण।
  • विशेष संरक्षित क्षेत्र: जनजातीय और जैव विविधता संरक्षण के लिए अलग ज़ोन।
  • ईको-संवेदनशील योजना: न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव के लिए विकास कार्यों का डिजाइन।

संभावित लाभ

  1. आर्थिक लाभ
    • भारत का अपना ट्रांसशिपमेंट हब
    • बंदरगाह शुल्क और लॉजिस्टिक्स से अरबों डॉलर की कमाई
    • रोजगार के हजारों अवसर
  2. पर्यटन
    • हवाई अड्डे और बुनियादी ढांचे से पर्यटन को बढ़ावा
    • प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता का आकर्षण
  3. राष्ट्रीय सुरक्षा
    • नौसेना और वायुसेना की मजबूत उपस्थिति
    • अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों पर निगरानी क्षमता

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

  1. पर्यावरणविदों की चिंताएँ
    • लाखों पेड़ों की कटाई और समुद्री कछुओं पर असर।
    • द्वीप की नाजुक पारिस्थितिकी असंतुलित हो सकती है।
  2. जनजातीय जीवन पर प्रभाव
    • आधुनिकता और बाहरी लोगों के आगमन से पारंपरिक संस्कृति प्रभावित होगी।
    • स्वास्थ्य और सामाजिक ढांचे में असमानता उत्पन्न होने का खतरा।
  3. भूकंप और सुनामी का खतरा
    • उच्च भूकंपीय क्षेत्र में इतना बड़ा निवेश जोखिमपूर्ण।

महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Revision Table)

बिंदुविवरण
परियोजना का नामग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना
उल्लेख किया गयाप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, 12 सितम्बर 2025
लेख साझा कियाभूपेन्द्र यादव (पर्यावरण मंत्री)
लागत₹72,000 करोड़
अवधि30 वर्ष (चरणबद्ध विकास)
मुख्य घटकICTT, ग्रीनफ़ील्ड एयरपोर्ट, पावर प्रोजेक्ट, टाउनशिप
जनजातियाँशोमपेन (237), निकोबारी (1,094)
पर्यावरणीय चिंता9.64 लाख पेड़, लेदरबैक कछुए, 13,075 हेक्टेयर वन क्षेत्र
सामरिक महत्वमलक्का जलडमरूमध्य पर निगरानी, चीन की चुनौती का मुकाबला

ग्रेट निकोबार विकास से जुड़े प्रमुख घटनाक्रम

वर्ष/तिथिघटनाक्रम
1956अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला।
1972वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शोमपेन और निकोबारी जनजातियों को संरक्षित जनजाति का दर्जा।
1979ग्रेट निकोबार द्वीप को UNESCO बायोस्फीयर रिज़र्व घोषित किया गया।
2004 (26 दिसम्बर)हिंद महासागर में 9.2 तीव्रता का भूकंप और सुनामी, द्वीप को भारी क्षति। इंदिरा प्वाइंट समुद्र में डूब गया।
2010भारतीय नौसेना ने “INS Baaz” (कैंपबेल बे एयरबेस) को सक्रिय किया, सामरिक दृष्टि से द्वीप का महत्व और बढ़ा।
2015भारत सरकार ने ग्रेट निकोबार द्वीप को एक “रणनीतिक विकास क्षेत्र” के रूप में चिह्नित किया।
2020पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रेट निकोबार विकास परियोजना के लिए प्रारंभिक मंजूरी प्रदान की।
2021NITI Aayog ने “Holistic Development of Great Nicobar” योजना का मसौदा जारी किया।
202272,000 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की गई।
2023पर्यावरणीय और जनजातीय प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट सार्वजनिक हुई; पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने आपत्ति दर्ज कराई।
2024सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में परियोजना पर सुनवाई हुई।
12 सितम्बर 2025प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने परियोजना को “रणनीतिक, रक्षा और राष्ट्रीय महत्व” की पहल बताते हुए इसकी पुष्टि की और भूपेन्द्र यादव का लेख साझा किया।
2047 (लक्ष्य वर्ष)विकसित भारत 2047 के विज़न के अनुरूप ग्रेट निकोबार को एक प्रमुख समुद्री–हवाई कनेक्टिविटी हब और वैश्विक ट्रांसशिपमेंट केंद्र बनाने का लक्ष्य।

निष्कर्ष

ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना एक ऐसी ऐतिहासिक पहल है, जो भारत को आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से नई ऊँचाइयों पर ले जाने की क्षमता रखती है। परंतु इसके साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण और जनजातीय समुदायों की सुरक्षा प्राथमिकता में रहे।

सरकार का दावा है कि यह परियोजना “विकास और संरक्षण” का संतुलित उदाहरण बनेगी। यदि सचमुच ऐसा हो सका तो भारत न केवल हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करेगा बल्कि वैश्विक समुद्री शक्ति बनने की दिशा में निर्णायक कदम भी उठाएगा।


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