पक्षी प्रकृति का अद्भुत उपहार हैं। उनकी चहचहाहट, रंग-बिरंगे पंख और जीवन शैली न केवल प्रकृति की शोभा बढ़ाते हैं, बल्कि पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पक्षियों का अध्ययन हमें पर्यावरण की गहराइयों को समझने और संरक्षण के महत्व को जानने का अवसर देता है। भारत में ऐसे कई महान व्यक्तित्व हुए जिन्होंने जीवन भर प्रकृति और वन्यजीवन के संरक्षण को अपना ध्येय बनाया। इनमें से एक नाम है – डॉ. सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली, जिन्हें पूरी दुनिया “बर्डमैन ऑफ इंडिया” (भारत के पक्षीराज) के नाम से जानती है।
उन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय पक्षियों के अध्ययन और उनके संरक्षण को समर्पित किया। उनकी कृतियाँ और शोध आज भी पक्षी प्रेमियों, पर्यावरणविदों और विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं।
प्रारंभिक जीवन
सलीम अली का जन्म 12 नवम्बर 1896 को मुंबई (तत्कालीन बंबई) के खेड़वाड़ी क्षेत्र में हुआ। उनका पूरा नाम सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली था। बचपन में ही वे अपने माता-पिता को खो बैठे। पिता का निधन तब हुआ जब वे मात्र एक वर्ष के थे और माँ भी तीन वर्ष की आयु में दुनिया से चल बसीं। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी मौसी हमिदा बेगम और मामा अमीरुद्दीन तैयबजी ने किया।
बचपन से ही सलीम प्रकृति के प्रति गहरी रुचि दिखाने लगे। उनके मामा स्वयं शिकार और प्रकृति प्रेमी थे, जिन्होंने उन्हें जंगल, पक्षियों और प्राकृतिक दुनिया की ओर आकर्षित किया।
पक्षियों के प्रति लगाव
एक दिलचस्प घटना ने सलीम अली के जीवन की दिशा तय कर दी। बचपन में उन्होंने एक गौरैया (sparrow) का शिकार किया जिसके गले पर पीला धब्बा था। वह यह जानना चाहते थे कि यह कौन-सी प्रजाति है। इस जिज्ञासा ने उन्हें बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) ले गई। वहाँ के तत्कालीन सचिव डब्ल्यू.एस. मिलार्ड ने उनके प्रश्न का उत्तर दिया और उन्हें पक्षियों के अध्ययन के लिए प्रेरित किया। यह घटना सलीम अली के जीवन में टर्निंग प्वाइंट साबित हुई।
शिक्षा और चुनौतियाँ
सलीम अली ने शुरुआती शिक्षा मुंबई में प्राप्त की। लेकिन गणित जैसे विषयों में कठिनाई के कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने जूलॉजी (प्राणिविज्ञान) में डिप्लोमा किया और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम में गाइड के रूप में काम किया।
उनकी जिज्ञासा और लगन उन्हें जर्मनी ले गई, जहाँ उन्होंने प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ प्रोफेसर स्ट्रेसमैन (Professor Erwin Stresemann) के मार्गदर्शन में बर्लिन जूलॉजिकल म्यूज़ियम में पक्षी विज्ञान का अध्ययन किया।
भारत लौटने के बाद वित्तीय कठिनाइयों के कारण उनकी नौकरी छूट गई, लेकिन सलीम अली ने कभी हार नहीं मानी। वे स्वतंत्र शोधकर्ता के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में भ्रमण कर पक्षियों का अध्ययन करते रहे।
पक्षी विज्ञान में योगदान
सलीम अली ने लगभग 60 वर्षों तक पक्षियों पर गहन शोध किया। उन्होंने भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में पक्षी सर्वेक्षण (bird surveys) किए।
- हिमालय से लेकर दक्षिण भारत तक,
- रेगिस्तान से लेकर तटीय इलाकों तक,
उन्होंने हजारों प्रजातियों के पक्षियों का दस्तावेजीकरण किया।
उनका शोध केवल पक्षियों तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने यह भी बताया कि पक्षियों का संरक्षण मानव जीवन और पारिस्थितिकी के लिए कितना आवश्यक है।
सलीम अली की पुस्तकें
सलीम अली ने कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जो आज भी पक्षी प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए मूल्यवान स्रोत हैं।
- The Book of Indian Birds (1941)
- यह उनकी सबसे लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है।
- इसमें भारतीय पक्षियों की विस्तृत जानकारी दी गई।
- यह पुस्तक आम पाठकों और विद्यार्थियों के बीच बहुत प्रसिद्ध हुई।
- Handbook of the Birds of India and Pakistan (S. Dillon Ripley के साथ सह-लेखन)
- यह 10 खंडों में प्रकाशित हुई।
- इसमें भारतीय उपमहाद्वीप की पक्षी प्रजातियों का गहन अध्ययन है।
- The Fall of a Sparrow
- यह उनकी आत्मकथा है।
- इसमें उन्होंने अपने जीवन, संघर्षों और पक्षियों के प्रति समर्पण की कहानी साझा की।
संरक्षण के प्रयास
सलीम अली ने न केवल पक्षियों का अध्ययन किया, बल्कि उनके संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण प्रयास किए।
- उन्होंने पक्षियों के आवास (habitat) बचाने पर ज़ोर दिया।
- उनके प्रयासों से कई राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य संरक्षित क्षेत्र घोषित हुए।
- केरल का साइलेंट वैली नेशनल पार्क बचाने में उनकी भूमिका अहम रही।
उनकी पहल के कारण भारतीय समाज में वन्यजीव संरक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ी।
पुरस्कार और सम्मान
सलीम अली को उनके अद्भुत योगदान के लिए कई सम्मान मिले।
- 1983: भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण, देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, प्रदान किया।
- उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला जिसकी राशि 5 लाख रुपये थी। उन्होंने यह राशि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) को दान कर दी।
- दुनिया भर के वैज्ञानिक समुदाय ने उनके काम को सराहा और उन्हें आधुनिक पक्षी विज्ञान का अग्रदूत माना।
मृत्यु और विरासत
20 जून 1987 को सलीम अली का निधन हुआ। परंतु उनकी विरासत आज भी जीवित है।
- उनकी किताबें और शोध आज भी मार्गदर्शन करते हैं।
- BNHS को उन्होंने जिस स्तर तक पहुँचाया, वह संस्था आज भी भारत में वन्यजीव अध्ययन की अग्रणी संस्था है।
- उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में पक्षी अध्ययन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है।
“बर्डमैन ऑफ इंडिया” क्यों कहा जाता है?
सलीम अली को “बर्डमैन ऑफ इंडिया” इसलिए कहा जाता है क्योंकि:
- उन्होंने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में पक्षियों का सर्वेक्षण किया।
- पक्षी विज्ञान को भारत में लोकप्रिय और वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।
- उनकी पुस्तकों ने आम जनता को पक्षियों के करीब लाया।
- संरक्षण के क्षेत्र में उनके प्रयास ऐतिहासिक साबित हुए।
बर्डमैन ऑफ इंडिया – सलीम अली : जीवन की प्रमुख घटनाओं की टाइमलाइन
वर्ष | घटना | विवरण |
---|---|---|
1896 | जन्म | 12 नवम्बर को मुंबई (बॉम्बे) में जन्म, पूरा नाम – सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली |
1900–1902 | अनाथ बने | एक वर्ष की आयु में पिता का और तीन वर्ष की आयु में माता का निधन; पालन-पोषण मौसी और मामा ने किया |
1906–1910 | पक्षियों से लगाव | गौरैया के पीले धब्बेदार गले वाली चिड़िया की जिज्ञासा ने उन्हें बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से जोड़ा |
1926–1930 | जर्मनी में अध्ययन | प्रो. स्ट्रेसमैन के मार्गदर्शन में बर्लिन जूलॉजिकल म्यूज़ियम में पक्षी विज्ञान का अध्ययन |
1941 | पुस्तक प्रकाशन | The Book of Indian Birds प्रकाशित, जिसने पक्षियों के अध्ययन को आम लोगों तक पहुँचाया |
1968–1974 | प्रमुख शोध ग्रंथ | S. Dillon Ripley के साथ मिलकर Handbook of the Birds of India and Pakistan प्रकाशित (10 खंड) |
1983 | पद्म विभूषण | भारत सरकार ने सलीम अली को देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किया |
1985 | आत्मकथा | The Fall of a Sparrow प्रकाशित, जिसमें उनके जीवन और अनुभवों का वर्णन है |
1987 | निधन | 20 जून को बॉम्बे में निधन, भारत ने अपने “बर्डमैन ऑफ इंडिया” को खो दिया |
निष्कर्ष
सलीम अली का जीवन केवल एक वैज्ञानिक या पक्षी विज्ञानी का नहीं, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत का जीवन है। उन्होंने दिखाया कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद यदि जुनून और समर्पण हो तो असंभव कुछ भी नहीं।
आज भारत में यदि पक्षियों और वन्यजीव संरक्षण को लेकर जन-जागरूकता है तो उसमें सलीम अली की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। वे केवल “बर्डमैन ऑफ इंडिया” नहीं, बल्कि भारत की प्राकृतिक धरोहर के प्रहरी भी हैं।
उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देती है कि –
“प्रकृति की रक्षा करना, स्वयं जीवन की रक्षा करना है।”
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