लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली नहीं है, बल्कि यह मानव सभ्यता का वह मूल्य है जो स्वतंत्रता, समानता और न्याय के आदर्शों को जीने का अवसर देता है। यह वह आधार है जिस पर आधुनिक समाज की राजनीतिक संरचना और सामाजिक अनुबंध टिके हुए हैं। लोकतंत्र न केवल मतदान का अधिकार प्रदान करता है, बल्कि यह नागरिकों की सक्रिय भागीदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और समान अवसर की गारंटी भी देता है।
हर वर्ष 15 सितम्बर को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस (International Day of Democracy) मनाती है, ताकि इस मूल्य की महत्ता को दोहराया जा सके और दुनिया भर में लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त बनाया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने वर्ष 2007 में इस दिवस को आधिकारिक रूप से स्थापित किया और 2008 में इसे पहली बार वैश्विक स्तर पर मनाया गया। तब से यह दिन केवल लोकतंत्र की औपचारिकता का उत्सव नहीं है, बल्कि अधिनायकवाद, भेदभाव और असमानता जैसी चुनौतियों के बीच लोकतंत्र को जीवित और प्रासंगिक बनाए रखने का संकल्प भी है।
2025 का विषय: “Achieving Gender Equality, Action by Action”
हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस का एक विशिष्ट विषय (Theme) तय किया जाता है, ताकि लोकतंत्र के किसी अहम पहलू पर गहन चर्चा और वैश्विक ध्यान केंद्रित किया जा सके।
2025 का विषय है:
“Achieving Gender Equality, Action by Action” (लैंगिक समानता हासिल करना, कदम-दर-कदम कार्रवाई के साथ)।
यह विषय इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन (IPU) द्वारा निर्धारित किया गया है। इसमें तीन प्रमुख बिंदुओं पर ज़ोर दिया गया है:
- संसदों और राजनीतिक प्रणालियों में लैंगिक समानता – लोकतांत्रिक संस्थान तभी प्रभावी हो सकते हैं जब उनमें सभी वर्गों और लिंगों का प्रतिनिधित्व हो।
- समावेशी एवं लैंगिक-संवेदनशील संस्थान – लोकतंत्र की संस्थाओं में नीतियाँ और ढांचे इस प्रकार तैयार किए जाएँ कि वे महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए भी सुरक्षित व न्यायपूर्ण हों।
- लोकतांत्रिक स्थानों में लैंगिक हिंसा और भेदभाव का अंत – राजनीति और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय महिलाओं को अब भी हिंसा, अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इसका अंत किए बिना वास्तविक लोकतंत्र की कल्पना अधूरी है।
यह विषय एक गहरी सच्चाई को रेखांकित करता है कि सच्चा लोकतंत्र लैंगिक समानता के बिना संभव नहीं है।
लोकतंत्र क्या है?
लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता जनता के पास होती है। जनता चाहे प्रत्यक्ष रूप से निर्णय ले या अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से, लोकतंत्र में शक्ति का स्रोत हमेशा नागरिक ही रहते हैं।
लोकतंत्र के प्रमुख सिद्धांत हैं:
- राजनीतिक समानता – हर नागरिक के मत का मूल्य समान।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव – जनता अपनी सरकार चुनने के लिए स्वतंत्र हो।
- कानून का शासन (Rule of Law) – हर नागरिक और नेता कानून के अधीन हो।
- मौलिक अधिकारों का सम्मान – अभिव्यक्ति, धर्म, प्रेस और संगठन की स्वतंत्रता।
- जवाबदेही और पारदर्शिता – सरकार नागरिकों के प्रति उत्तरदायी हो।
लोकतंत्र का उद्देश्य केवल बहुमत का शासन सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि यह अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा भी करता है, जिससे समाज में शांति और संतुलन बना रहे।
इतिहास और उत्पत्ति
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की जड़ें संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय संसदीय समुदाय के प्रयासों में निहित हैं।
- 2007 – संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 15 सितम्बर को “International Day of Democracy” के रूप में घोषित किया।
- 2008 – पहली बार पूरी दुनिया ने इसे मनाया।
- 1997 – इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन (IPU) ने Universal Declaration on Democracy अपनाई, जिसने लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को परिभाषित किया।
इस घोषणा में लोकतंत्र को केवल राजनीतिक ढांचा नहीं बल्कि मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय पर आधारित शासन प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया गया।
महत्व
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाने का उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई गहरे राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक कारण हैं।
1. लोकतांत्रिक शासन को बढ़ावा
यह दिवस दुनिया भर में पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी शासन के आदर्शों को सामने लाता है।
2. नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहन
लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब नागरिक केवल वोट डालने तक सीमित न रहें, बल्कि नीतियों और निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में भी सक्रिय भूमिका निभाएँ।
3. मानवाधिकारों की रक्षा
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस नागरिक स्वतंत्रता जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संगठन का अधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता को रेखांकित करता है।
4. लोकतंत्र में गिरावट से बचाव
आज की दुनिया में अधिनायकवाद, भ्रष्टाचार, मीडिया दमन और लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण का खतरा बढ़ रहा है। यह दिवस ऐसी प्रवृत्तियों के खिलाफ चेतावनी देता है।
5. लैंगिक समानता पर ज़ोर
महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित किए बिना लोकतंत्र अधूरा है।
उत्सव और गतिविधियाँ
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर दुनिया भर में कई गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं:
- वैश्विक जागरूकता अभियान – संयुक्त राष्ट्र, सरकारें और नागरिक समाज संगठन मिलकर लोकतंत्र पर संवाद आयोजित करते हैं।
- शैक्षिक कार्यक्रम – विश्वविद्यालयों और स्कूलों में व्याख्यान, वाद-विवाद और चर्चाएँ।
- सार्वजनिक संवाद – टाउन हॉल मीटिंग्स और सामुदायिक मंच।
- मीडिया कवरेज – टीवी, रेडियो और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विशेष कार्यक्रम और डॉक्यूमेंट्री।
- मतदाता पंजीकरण अभियान – विशेषकर युवाओं को लोकतंत्र से जोड़ने के लिए।
- कार्यशालाएँ और प्रशिक्षण – नागरिक नेतृत्व और राजनीतिक साक्षरता पर।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम – कला, नाटक और फ़िल्मों के माध्यम से लोकतंत्र का उत्सव।
- वकालत अभियान – लोकतंत्र-विरोधी प्रवृत्तियों, भ्रष्टाचार और भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाना।
यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑन डेमोक्रेसी से संबंध
1997 में अपनाई गई Universal Declaration on Democracy लोकतंत्र की सार्वभौमिक परिभाषा प्रस्तुत करती है। इसमें कहा गया है:
- सार्वजनिक जीवन में भागीदारी हर व्यक्ति का अधिकार है।
- लोकतंत्र समावेशी, लैंगिक-समान और अधिकार-आधारित होना चाहिए।
- संस्थान कानून के शासन और नियंत्रण-संतुलन (Checks and Balances) के सिद्धांत पर संचालित हों।
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस इसी घोषणा की भावना को आगे बढ़ाता है और हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र केवल चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह निरंतर संवाद और सुधार की प्रक्रिया है।
लोकतंत्र की समकालीन चुनौतियाँ
आज लोकतंत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है:
- अधिनायकवाद का उदय – कई देशों में एकल नेतृत्व और केंद्रीकरण लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है।
- मीडिया पर नियंत्रण – स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र की रीढ़ है, लेकिन कई जगहों पर इसे दबाने की कोशिश होती है।
- भ्रष्टाचार – शासन की पारदर्शिता घटने से नागरिकों का भरोसा टूटता है।
- डिजिटल युग की चुनौतियाँ – फेक न्यूज़ और ऑनलाइन हेट स्पीच लोकतांत्रिक विमर्श को प्रभावित कर रहे हैं।
- लैंगिक असमानता – राजनीति और संसदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी बहुत कम है।
भारत और लोकतंत्र दिवस
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसकी संवैधानिक संरचना लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूत नींव पर टिकी है।
- संविधान भारत में लोकतंत्र का आधार है, जिसमें मौलिक अधिकार, विधायिका की जिम्मेदारी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता शामिल है।
- भारत में लोकतंत्र केवल मतदान का अधिकार नहीं, बल्कि बहुलता, विविधता और समावेशिता का उत्सव है।
- अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस भारत के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहाँ लोकतांत्रिक आदर्शों और चुनौतियों दोनों का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है।
निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस 2025 हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र केवल एक राजनीतिक व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत प्रक्रिया है जिसमें हर नागरिक की सक्रिय भागीदारी जरूरी है।
2025 का विषय “लैंगिक समानता हासिल करना, कदम-दर-कदम कार्रवाई के साथ” इस बात की ओर इशारा करता है कि लोकतंत्र तब तक पूर्ण नहीं हो सकता जब तक महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले वर्गों को समान अवसर और सम्मान न मिले।
लोकतंत्र की रक्षा केवल नेताओं का काम नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है। मतदान, विचार-विमर्श, जागरूकता और सक्रिय भागीदारी ही इसे जीवित रखते हैं।
आज, जब दुनिया में लोकतंत्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, तब अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस हमें एकजुट होकर इसके आदर्शों की रक्षा करने का आह्वान करता है।
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