मातृभाषा: परिभाषा, अर्थ, विशेषताएँ और दिवस – संस्कृति, पहचान और अभिव्यक्ति का आधार

“मातृभाषा” — यह शब्द अपने आप में स्नेह, संस्कृति और पहचान की अनूठी भावना समेटे हुए है। इसका शाब्दिक अर्थ है “माता की भाषा”, अर्थात वह भाषा जो व्यक्ति अपने जन्म या बाल्यावस्था से अपनी माँ, परिवार या परिवेश से स्वाभाविक रूप से सीखता है। मातृभाषा केवल एक संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि यह व्यक्ति की मानसिक, सांस्कृतिक, भावनात्मक और बौद्धिक पहचान का सबसे महत्वपूर्ण अंग होती है। यह भाषा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास का प्रारंभिक आधार बनती है।

मातृभाषा हमारे विचारों की भाषा है, हमारे सपनों की भाषा है, और हमारे संस्कारों का माध्यम है। जब कोई बच्चा बोलना शुरू करता है, तो उसके पहले शब्द मातृभाषा में ही होते हैं। यही कारण है कि मातृभाषा को व्यक्ति का पहला विद्यालय कहा गया है।

मातृभाषा का अर्थ

“मातृभाषा” शब्द का शाब्दिक अर्थ है — ‘माता की भाषा’। यह वह भाषा होती है जिसे व्यक्ति जन्म के बाद सबसे पहले अपनी माँ, परिवार या परिवेश से स्वाभाविक रूप से सीखता है।

सरल शब्दों में, मातृभाषा वह भाषा है जिसमें व्यक्ति अपने विचारों को सबसे पहले व्यक्त करता है और जिसके माध्यम से वह दुनिया को समझना शुरू करता है।

यह केवल बोलने का साधन नहीं, बल्कि व्यक्ति की भावनाओं, संस्कारों और सांस्कृतिक पहचान की अभिव्यक्ति है।

मातृभाषा की परिभाषा

मातृभाषा उस भाषा को कहा जाता है जिसे व्यक्ति ने सबसे पहले सीखा और जिसके माध्यम से उसने संसार को समझना आरंभ किया। यह भाषा उसकी भावनाओं की पहली अभिव्यक्ति बनती है।

एनसीईआरटी के अनुसार:

“मातृभाषा भाषा का वह रूप है जो एक बच्चा अपनी मां से, पड़ोस से, किसी विशेष क्षेत्र या समाज से सीखता है।”

इसीलिए मातृभाषा को प्रथम भाषा (First Language) या देशी भाषा (Native Language) भी कहा जाता है। अंग्रेज़ी में इसे Native Language या Mother Tongue कहते हैं, और जो व्यक्ति इसे जन्म से बोलते हैं उन्हें मातृभाषी वक्ता (Native Speakers) कहा जाता है।

मातृभाषा का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

मातृभाषा किसी व्यक्ति की पहचान का अभिन्न हिस्सा होती है। यह न केवल बोलने का माध्यम है, बल्कि परंपराओं, लोककथाओं, रीति-रिवाजों और संस्कृति की वाहक भी है। जिस भाषा में व्यक्ति सोचता, महसूस करता और सपने देखता है, वही उसकी मातृभाषा कहलाती है।

मातृभाषा के माध्यम से ही व्यक्ति अपने समाज, धर्म, रीति-नीति और लोकसंस्कृति को जानता है। जब कोई बच्चा लोकगीत सुनता है, अपनी दादी की कहानी सुनता है, या त्योहारों में पारंपरिक गीत गाता है — तो वह अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ता है।

भारत में मातृभाषाओं की विविधता

भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है, जहाँ हर कुछ किलोमीटर पर भाषा और बोली बदल जाती है। यहाँ हजारों बोलियाँ और सैकड़ों भाषाएँ प्रचलित हैं, जो इसकी सांस्कृतिक विविधता और भाषाई समृद्धि का प्रमाण हैं।

भारत में प्रमुख रूप से लगभग 15 मातृभाषाएँ व्यापक रूप से बोली जाती हैं — जैसे हिन्दी, मराठी, बंगला, गुजराती, तमिल, तेलुगू, असमिया, पंजाबी, कन्नड़, मलयालम, सिन्धी, संस्कृत, नेपाली, उड़िया और उर्दू आदि।
हालाँकि, भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाओं को सामान रूप से आधिकारिक मान्यता दी गयी है। ये भाषाएँ हैं —
हिन्दी, मराठी, बंगला, गुजराती, तमिल, तेलुगू, असमिया, पंजाबी, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, उर्दू, संस्कृत, कश्मीरी, सिन्धी, मणिपुरी, संथाली, बोडो, डोगरी, मैथिली, नेपाली और कोकणी।

इनमें से अधिकांश भाषाएँ देश के विभिन्न क्षेत्रों की मातृभाषाएँ हैं, जो भारत की सांस्कृतिक एकता में भाषाई विविधता का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

मातृभाषा की प्रमुख विशेषताएँ

मातृभाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं —

  1. व्यक्तित्व विकास का आधार:
    मातृभाषा बच्चे के समग्र व्यक्तित्व विकास में सहायक होती है। यह उसे अपने विचारों को स्पष्टता से व्यक्त करने और आत्मविश्वास के साथ समाज में बोलने की क्षमता देती है।
  2. ज्ञान प्राप्ति का सरल माध्यम:
    बच्चा जिस भाषा में सोचता और समझता है, उसी भाषा में वह सबसे अच्छा सीखता है। इसलिए मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देना बाल विकास के लिए अत्यंत उपयोगी है।
  3. पर्यावरण से जुड़ाव:
    मातृभाषा व्यक्ति को अपने स्थानीय पर्यावरण, परिवेश और समाज से जोड़ती है। यह हमें अपने समुदाय की परंपराओं, लोककथाओं और सामाजिक संरचनाओं से परिचित कराती है।
  4. माधुर्य और भावनात्मकता:
    मातृभाषा में वह माधुर्य और आत्मीयता होती है जो किसी अन्य भाषा में संभव नहीं। यह भाषा हमारे हृदय की भावनाओं को सबसे गहराई से व्यक्त करती है।
  5. सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम:
    लोककथाएँ, मुहावरे, गीत, नृत्य, और नाटक — ये सभी मातृभाषा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते आए हैं।
  6. रचनात्मकता का विकास:
    मातृभाषा व्यक्ति की कल्पनाशक्ति और रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करती है, जिससे साहित्य, कला और संगीत के क्षेत्र में प्रतिभा विकसित होती है।
  7. सामाजिक एकता का प्रतीक:
    यह भाषा समुदाय के सदस्यों को जोड़ती है, उनमें आपसी एकजुटता और राष्ट्रीय भावना का संचार करती है।
  8. संस्कृति और मूल्यों की वाहक:
    मातृभाषा केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा, और सामाजिक मूल्यों की संरक्षक है।

शिक्षा में मातृभाषा की भूमिका

विभिन्न शोधों से सिद्ध हुआ है कि जिस बच्चे को उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है, वह अधिक तेज़ी से सीखता है और उसकी समझ बेहतर होती है। इसलिए यूनेस्को और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) दोनों ही मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देने पर बल देते हैं।

मातृभाषा में पढ़ाई करने से –

  • बच्चे को विषयों की गहरी समझ मिलती है।
  • वह अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर पाता है।
  • आत्मविश्वास बढ़ता है और सीखने की गति तीव्र होती है।

मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day)

तिथि:

21 फरवरी को हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) मनाया जाता है।

इतिहास:

इस दिवस को मनाने की प्रेरणा 1952 में बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में घटित घटना से मिली, जब कई छात्रों ने अपनी मातृभाषा बांग्ला को मान्यता दिलाने के लिए बलिदान दिया।
उनकी स्मृति में यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता दी।

उद्देश्य:

इस दिवस का उद्देश्य विश्वभर में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना और लुप्तप्राय भाषाओं को संरक्षित करना है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि हर भाषा मानवता की साझा विरासत है, जिसे संरक्षित रखना आवश्यक है।

मातृभाषा का महत्व

मातृभाषा का महत्व व्यक्ति, समाज और राष्ट्र – तीनों स्तरों पर अत्यंत गहरा है। इसके कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं —

  1. सांस्कृतिक पहचान का आधार:
    मातृभाषा व्यक्ति की जातीय और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी होती है। यह हमें हमारे इतिहास, परंपरा और समाज से जोड़ती है।
  2. परिवार और समुदाय का संबंध:
    मातृभाषा परिवार के सदस्यों को भावनात्मक रूप से जोड़ती है। यह पीढ़ियों के बीच संवाद का सेतु बनती है।
  3. शैक्षिक लाभ:
    मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी जटिल अवधारणाओं को बेहतर समझते हैं और उनमें रचनात्मक सोच विकसित होती है।
  4. सांस्कृतिक संरक्षण:
    मातृभाषा लोककथाओं, गीतों, कहावतों और परंपराओं को संजोए रखती है। भाषा के माध्यम से ही संस्कृति जीवित रहती है।
  5. वैश्वीकरण के युग में पहचान:
    आज के वैश्वीकरण के युग में जब अंग्रेज़ी या अन्य विदेशी भाषाओं का प्रभाव बढ़ रहा है, तब मातृभाषा हमारे स्थानीय और सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा करती है।
  6. बहुभाषी क्षमता का विकास:
    जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा में दक्ष होता है, वह अन्य भाषाओं को भी आसानी से सीख सकता है क्योंकि उसकी भाषाई नींव मजबूत होती है।

मातृभाषी वक्ता (Native Speakers)

मातृभाषी वक्ता वे व्यक्ति होते हैं जिन्होंने किसी भाषा को अपनी पहली भाषा के रूप में सीखा है और जो जीवनभर उसे संचार के मुख्य साधन के रूप में उपयोग करते हैं।

उनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं —

  • वे भाषा के व्याकरण, उच्चारण और शब्दावली में पूर्ण निपुण होते हैं।
  • उन्हें भाषा के मुहावरों, कहावतों और क्षेत्रीय भिन्नताओं की गहरी समझ होती है।
  • वे भाषा को केवल बोलते नहीं, बल्कि जीते हैं — उनके विचार, व्यवहार और संस्कृति उसी भाषा में ढले होते हैं।

मातृभाषा और मातृभाषी वक्ता में अंतर

तत्वमातृभाषामातृभाषी वक्ता
अर्थवह भाषा जिसे व्यक्ति जन्म से सीखता हैवह व्यक्ति जो अपनी मातृभाषा बोलता है
स्वरूपएक भाषा या भाषाई प्रणालीएक व्यक्ति या वक्ता
मुख्य विशेषताभाषा का प्रारंभिक अर्जनभाषा का सहज व धाराप्रवाह उपयोग
उदाहरणहिंदी, तमिल, बांग्ला आदि मातृभाषाएँवे लोग जो इन्हें जन्म से बोलते हैं

दूसरे शब्दों में, मातृभाषा एक भाषा है, जबकि मातृभाषी वक्ता वह व्यक्ति है जो उस भाषा को अपने जीवन का अंग बनाकर जीता है।

मातृभाषा के संरक्षण की आवश्यकता

आज विश्व में लगभग 7,000 भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन उनमें से कई विलुप्ति के कगार पर हैं। वैश्वीकरण, शहरीकरण और शिक्षा के एकरूपीकरण ने कई स्थानीय भाषाओं को कमजोर बना दिया है।

यदि मातृभाषाएँ लुप्त हो जाएँगी, तो उनके साथ पूरा सांस्कृतिक इतिहास, लोकस्मृति और परंपरा भी मिट जाएगी।
इसलिए हमें —

  • अपनी मातृभाषा में बच्चों से बात करनी चाहिए।
  • स्थानीय साहित्य, लोकगीत और लोककथाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • मातृभाषा में शिक्षा, साहित्य और तकनीकी सामग्री विकसित करनी चाहिए।

भारतीय शिक्षा नीति और मातृभाषा

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कक्षा 5 तक, और जहाँ संभव हो वहाँ कक्षा 8 तक, शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय भाषा होना चाहिए।
यह नीति इस सिद्धांत पर आधारित है कि “बच्चा उसी भाषा में सबसे अच्छा सीखता है जिसमें वह सोचता है।

यह कदम न केवल बच्चों की सीखने की क्षमता को बढ़ाएगा बल्कि देश की भाषाई विरासत को भी सशक्त करेगा।

मातृभाषा और राष्ट्र निर्माण

एक राष्ट्र की आत्मा उसकी भाषा में बसती है।
मातृभाषा राष्ट्रीय एकता का माध्यम है क्योंकि यह नागरिकों को एक साझा पहचान देती है। हिंदी, बंगला, मराठी, तमिल, या कोई भी मातृभाषा — जब इन्हें सम्मान मिलता है, तो राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता सुदृढ़ होती है।

महात्मा गांधी ने भी कहा था —

“किसी देश की आत्मा उसकी मातृभाषा में बसती है।”

दुनिया की शीर्ष 10 भाषाएँ (मातृभाषी वक्ताओं के आधार पर)

विश्वभर में लगभग 7,000 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन इनमें से कुछ भाषाएँ ऐसी हैं जिन्हें करोड़ों लोग अपनी मातृभाषा (Native Language) के रूप में बोलते हैं। नीचे दी गई तालिका में मातृभाषी वक्ताओं की संख्या के आधार पर विश्व की शीर्ष 10 भाषाएँ दर्शाई गई हैं —

क्रमांकभाषा (Language)भाषा-परिवार (Language Family)मातृभाषी वक्ता (Speakers)
1.अंग्रेज़ी (English)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)145.2 करोड़
2.मैंडरिन चीनी (Mandarin Chinese)सिनो-तिब्बतीयन (Sino-Tibetan)111.8 करोड़
3.हिन्दी (Hindi)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)60.2 करोड़
4.स्पैनिश (Spanish)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)54.8 करोड़
5.फ़्रेंच (French)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)27.41 करोड़
6.अरबी (Arabic – Standard)अफ्रीकी-एशियाई (Afro-Asiatic)27.4 करोड़
7.बंगाली (Bengali)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)27.27 करोड़
8.रूसी (Russian)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)25.82 करोड़
9.पुर्तगाली (Portuguese)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)25.77 करोड़
10.उर्दू (Urdu)इंडो-यूरोपियन (Indo-European)23.13 करोड़

विश्लेषण:

  • इस सूची से स्पष्ट है कि इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार विश्व का सबसे व्यापक भाषा समूह है, जिसमें अंग्रेज़ी, हिन्दी, स्पैनिश, फ्रेंच, बंगाली, रूसी, पुर्तगाली और उर्दू जैसी भाषाएँ शामिल हैं।
  • मैंडरिन चीनी, जो सिनो-तिब्बतीयन परिवार से संबंधित है, चीन की आधिकारिक भाषा होने के कारण सबसे अधिक बोलने वालों में दूसरी प्रमुख भाषा है।
  • हिन्दी तीसरे स्थान पर है, जो यह दर्शाता है कि भारत विश्व के सबसे बड़े मातृभाषी वक्ता समूहों में से एक का घर है।
  • अरबी और फ्रेंच भाषाएँ अपनी वैश्विक पहुंच और सांस्कृतिक प्रभाव के कारण कई देशों में बोली जाती हैं।

Quick Revision Table (सारांश तालिका)

शीर्षकविवरण
शाब्दिक अर्थमाता की भाषा
अंग्रेज़ी नामNative Language / Mother Tongue
परिभाषावह भाषा जो व्यक्ति जन्म से या बाल्यावस्था में सीखता है
प्रमुख उदाहरण (भारत)हिन्दी, मराठी, बंगला, तमिल, गुजराती आदि
मुख्य विशेषताएँव्यक्तित्व विकास, सांस्कृतिक पहचान, रचनात्मकता, सामाजिक एकता
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस21 फरवरी
स्थापना वर्षयूनेस्को द्वारा 1999 में
उद्देश्यभाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना
शिक्षा में भूमिकाज्ञान अर्जन का सबसे प्रभावी माध्यम
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020)प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देने की अनुशंसा
वर्तमान चुनौतीभाषाओं का विलुप्त होना, अंग्रेज़ी का बढ़ता प्रभुत्व
संरक्षण का उपायमातृभाषा में संवाद, साहित्य और शिक्षा को बढ़ावा देना

👉 निष्कर्षतः, मातृभाषा हमारी जड़ों की पहचान है। यदि हम अपनी मातृभाषा का सम्मान करेंगे, तो हम अपनी संस्कृति, परंपरा और आत्मा को सहेज पाएँगे।
मातृभाषा को अपनाना, अपने अस्तित्व को पहचानना है।

निष्कर्ष

मातृभाषा केवल शब्दों का समूह नहीं, यह हमारे संस्कारों, विचारों और सांस्कृतिक अस्तित्व की जड़ है। यह वह भाषा है जिसमें हम जीवन के पहले शब्द बोलते हैं, पहली बार भावनाएँ व्यक्त करते हैं, और अपनी पहचान गढ़ते हैं।

आज जबकि तकनीकी और वैश्विक संचार की भाषा अंग्रेज़ी बनती जा रही है, हमें यह याद रखना होगा कि किसी भी व्यक्ति की सोच, संवेदना और आत्मा उसकी मातृभाषा में ही सबसे स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त होती है।

इसलिए हमें अपनी मातृभाषा के प्रति गर्व, सम्मान और निष्ठा बनाए रखनी चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहें।


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