दिल्ली सल्तनत का समय सन 1206 से सन 1526 ई. तक के समय को कहा जाता है। इसने भारत पर 320 सालों तक राज किया। इस शासन काल में उत्तर भारत के विशाल भू भाग पर शासन करने वाले शासकों को सुल्तान कहा गया। ये शासक मूलतः तुर्क तथा अफगान मूल के थे। दिल्ली सल्तनत में विश्व की पहली महिला सुल्तान रजिया बेगम ने शासन किया था। ये शासक उत्तर भारत के मुख्य वंशो को जिसमे मुख्यतः राजपूतो को हरा कर अपना शासन स्थापित किया। जिसमे मुहम्मद गौरी ने दिल्ली के पृथ्वीराज चौहान को हराकर अपना राज्य स्थापित किया। और यही से दिल्ली सल्तनत की शुरुआत हुई।
1191 ईस्वी और 1192 ईस्वी में क्रमशः तराइन का पहला और दूसरा युद्ध लड़ा जाता है। तराइन के पहले युद्ध में दिल्ली का शासक पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी को परास्त करता है और मोहम्मद गौरी भाग जाता है, जबकि तराइन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर देता है और अपने साथ कैद करके ले जाता है। इस प्रकार, दिल्ली की गद्दी अब खाली हो चुकी थी।
इसके बाद मोहम्मद गोरी जीते गए भारतीय प्रदेशों को अपने एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक के संरक्षण में छोड़कर वापस गौर प्रदेश लौट जाता है। इसके बाद 1206 ईस्वी में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो जाती है। मोहम्मद गौरी की कोई संतान नहीं थी। ऐसी स्थिति में, मोहम्मद गौरी द्वारा भारत में जीते गए प्रदेशों पर कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन स्थापित हो जाता है और इसी के साथ 1206 ईस्वी में भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना होती है।
दिल्ली सल्तनत पर विभिन्न वंशों का अधिकार
दिल्ली सल्तनत की स्थापना भारतीय इतिहास में युगान्तकारी घटना है। शासन का यह नवीन स्वरूप भारत की पूर्ववर्ती राजव्यवस्थाओं से भिन्न था। इस काल के शासक एवं उनकी प्रशासनिक व्यवस्था एक ऐसे धर्म पर आधारित थी, जो कि साधारण धर्म से भिन्न था। दिल्ली सल्तनत का काल 1206 ई. से प्रारम्भ होकर 1562 ई. तक रहा। 320 वर्षों के इस लम्बे काल में भारत में मुस्लिमों का शासन व्याप्त रहा। यह काल स्थापत्य एवं वास्तुकला के लिये भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
दिल्ली सल्तनत में कुल पांच वंशो ने शासन किया –
- मामलूक अथवा गुलाम वंश ( 1206-1290 ) सस्थापक कुतुब्दीन ऐबक
- कुतुबी राजवंश
- कुतुबुद्दीन ऐबक (संस्थापक 1206 से 1210 ई.)
- आरामशाह (1210 से 1211 ई.)
- शम्सी राजवंश
- इल्तुतमिश (संस्थापक (1211 से 1236 ई.)
- रुक्नुद्दीन फ़िरोज (1236 ई.)
- रज़िया सुल्तान (1236 से 1240 ई.)
- मुईजुद्दीन बहरामशाह (1240 से 1242 ई.)
- अलाउद्दीन मसूदशाह (1242 से 1246 ई.)
- नासिरुद्दीन महमूद शाह (1246 से 1266 ई.)
- बलबनी राजवंश
- ग़यासुद्दीन बलबन (संस्थापक 1266 से 1286 ई.)
- कैकुबाद एवं शमसुद्दीन क्यूमर्स (1287 से 1290 ई.)
- कुतुबी राजवंश
- खिलजी वंश (1290-1320) सस्थापक जलालुद्दीन खिलजी
- जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी (संस्थापक 1290 से 1296 ई.)
- अलाउद्दीन ख़िलजी (1296 से 1316 ई.)
- शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी (1316 ई.)
- क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी (1316 से 1320 ई.)
- नासिरुद्दीन खुसरवशाह (हिन्दू से मुसलमान बना) (15 अप्रैल से 27 अप्रैल, 1320 ई.)]
- तुगलक वंश (1320-1414) सस्थापक गयासुद्दीन तुगलक
- ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (संस्थापक 1320 से 1325 ई.)
- मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325 से 1351 ई.)
- फ़िरोज शाह तुग़लक़ (1351 से 1388 ई.)
- ग़यासुद्दीन तुग़लक़ द्वितीय (तुग़लकशाह 1388 से 1389 ई.)
- अबूबक्र (फ़रवरी 1389 से अगस्त, 1390 ई.)
- नासिरुद्दीन महमूदशाह (1390 से 1394 ई.)
- नसरत शाह तुग़लक़ (1395-1398 ई.)
- महमूद तुग़लक़ (1399 से 1412 ई.)
- सैयद वंश (1414-1451) सस्थापक ख़िज्र खां
- ख़िज़्र ख़ाँ (संस्थापक 1414 से 1421 ई.)
- मुबारक शाह (1421 से 1434 ई.)
- मुहम्मदशाह (1434 से 1445 ई.)
- अलाउद्दीन आलमशाह (1445 से 1450 ई.)
- लोदी वंश (1451-1526) सस्थापक बहलोल लोदी
- बहलोल लोदी (संस्थापक 1451 से 1489 ई.)
- सिकन्दर शाह लोदी (1489 से 1517 ई.)
- इब्राहीम लोदी (1517 से 1526 ई.)
दिल्ली सल्तनत पर राज्य करने वाले वंशो का संक्षिप्त परिचय
दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर कुल 5 राजवंशों ने शासन किया था। ये पांच राजवंश क्रमशः थे- गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोदी वंश। दिल्ली सल्तनत से संबंधित इन पांचों वंशों के प्रमुख शासकों व इनके प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित हैं।-
गुलाम वंश (1206 – 1390 ईस्वी)
दिल्ली सल्तनत के पहले वंश ‘गुलाम वंश’ की स्थापना 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। गुलाम वंश को ‘मामलूक वंश’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘मामलूक’ एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- स्वतंत्र माता-पिता से उत्पन्न दास।
कुतुबुद्दीन ऐबक शासक बनने के बावजूद भी स्वयं को मोहम्मद गौरी का गुलाम ही मानता था। वह एक इल्बारी जाति का तुर्क था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर में अपनी राजधानी स्थापित की थी। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य मोहम्मद गौरी के अन्य 2 गुलामों यलदौज और कुबाचा की ओर से उत्पन्न की जाने वाली चुनौतियां थी।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण कार्य आरंभ किया था। उसने दिल्ली में एक मंदिर को तोड़कर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण भी कराया था। इसके अलावा, वर्तमान राजस्थान के अजमेर में कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक संस्कृत विद्यालय को तोड़कर ‘अढाई दिन का झोंपड़ा’ नामक मस्जिद का निर्माण भी कराया था।
इल्तुतमिश गुलाम वंश का एक अन्य प्रमुख शासक हुआ था। इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। इल्तुतमिश ने ही दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित की थी। इल्तुतमिश ने चांदी का सिक्का टंका और तांबे का सिक्का जीतल आरंभ किया था।
इल्तुतमिश की प्रमुख उपलब्धियां थीं- इक्ता व्यवस्था की शुरुआत और चालीसा दल का गठन। इक्ता व्यवस्था के अंतर्गत इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को विभिन्न इक्ताओं में विभाजित किया था। ये इक्ता एक प्रकार से प्रशासनिक और राजस्व इकाई हुआ करते थे और इनके मुखिया को मुक्ती या वली कहा जाता था।
चालीसा दल को ‘तुर्कान ए चहलगानी’ के नाम से भी जाना जाता था। इस का सर्वप्रथम उल्लेख इसामी की पुस्तक ‘फुतूह उस सलातीन’ में प्राप्त होता है। दरअसल, इल्तुतमिश ने प्रभावी रूप से शासन का संचालन करने के लिए अपने 40 वफादार सरदारों का एक गुट निर्मित किया था। इसी गुट को चालीसा दल के नाम से जाना जाता था। आगे चलकर, इस चालीसा दल को बलबन ने समाप्त कर दिया था।
गुलाम वंश के अन्य शासकों में रुक्नुद्दीन फ़िरोज (1236 ई.), रज़िया सुल्तान (1236 से 1240 ई.), मुईजुद्दीन बहरामशाह (1240 से 1242 ई.), अलाउद्दीन मसूदशाह (1242 से 1246 ई.), नासिरुद्दीन महमूद शाह (1246 से 1266 ई.), ग़यासुद्दीन बलबन (1266 से 1286 ई.), कैकुबाद एवं शमसुद्दीन क्यूमर्स (1287 से 1290 ई.) थे।
गयासुद्दीन बलबन ने लौह और रक्त की नीति, राजत्व का सिद्धांत, मंगोलों से रक्षा करने के लिए रणनीति, अपने दरबार में फारसी प्रथाओं का प्रचलन इत्यादि शामिल किया। बलबन ने अपने राजत्व सिद्धांत के तहत यह घोषित किया था कि सुल्तान धरती पर ‘ईश्वर का प्रतिनिधि’ (नियाबते खुदाई) तथा ‘ईश्वर की छाया’ (जिल्ले ईलाही) होता है और सुल्तान को निरंकुश होना चाहिए।
बलबन ने फारसी प्रथा के अनुरूप अपने दरबार में ‘सिजदा’ और ‘पैबोस’ नामक प्रथाएं प्रचलित की थी। घुटनों के बल सुल्तान के सामने बैठना ‘सिजदा’ कहलाता था, जबकि सुल्तान के सिंहासन के पास जाकर पेट के बल लेट कर सुल्तान के चरण चूमना ‘पैबोस’ कहलाता था। उसने अपने दरबार में पारसी त्यौहार ‘नवरोज’ मनाने की प्रथा भी आरंभ की थी।
गुलाम वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था, वह मोहम्मद गौरी का गुलाम था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक को उसकी उदारता के लिए लाख बख्श ( लाखो दान करने वाला ) कहा जाता था ।
- कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने सूफी संत ‘शेख ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी’ की याद में प्रारंभ कराया था जिसे बाद में इल्तुतमिस ने पूर्ण कराया।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में अढाई दिन का झोपडा नामक मस्जिद का निर्माण कराया था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु चोगम खेलते समय घोड़े से गिरने से हुई थी।
- इल्तुतमिस ने अपनी राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया।
- इल्तुतमिस ने कुतुबमीनार की ऊपर की दो मंजिल का निर्माण पूर्ण कराया था।
- इल्तुतमिस ने 40 गुलाम सरदारों का संगठन बनाया था जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहलगानी’ कहा गया।
- रजिया दिल्ली की के सिंहासन पर बैठने वाली पहली महिला सुल्तान थी।
- रजिया सुल्तान का विवाह अल्तुनिया से हुआ था।
- नसीरुद्दीन मुहम्मद ऐसा सुल्तान था जो अपनी रोजी रोटी कुरान की नकल करके बेचकर एवं टोपी सीकर चलाता है।
- ग्यासुद्दीन बलवन दिल्ली सल्तनत का क्रूर शासक था उससे अपने विरोधियों के साथ ‘लोह एवं रक्त’ की नीति अपनाई।
- बलवन ने सिजदा प्रथा ( झुककर नमस्कार ) एवं पाबौस प्रथा ( सुल्तान के पांव छूना ) प्रारंभ किया। तथा फारसी परम्परा का ‘नवरोज उत्सव’ आरंभ किया।
खिलजी वंश (1290 – 1320 ईस्वी)
दिल्ली सल्तनत का दूसरा वंश खिलजी वंश था। खिलजी वंश की स्थापना गुलाम वंश के अंतिम शासक कैयूमर्स की हत्या करके जलालुद्दीन खिलजी ने की थी। अलाउद्दीन खिलजी इस वंश का सबसे प्रमुख शासक था। अलाउद्दीन खिलजी के समय अनेक मंगोल आक्रमण हुए थे, जिनका उसने सफलतापूर्वक सामना किया था।
अलाउद्दीन खिलजी ने 1299 ईस्वी में गुजरात आक्रमण के दौरान एक हिजड़े मलिक काफूर को हजार दीनार में खरीदा था। मलिक काफूर ने अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण के पहले सफल अभियान का नेतृत्व किया था।
अलाउद्दीन खिलजी की विभिन्न उपलब्धियों में से बाजार नियंत्रण प्रणाली भी एक विशिष्ट उपलब्धि है। वह वित्तीय और राजस्व सुधारों के प्रति गंभीरता दिखाने वाला दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था। उसने ‘दीवान-ए-मुस्तखराज’ नामक नए राजस्व विभाग की स्थापना भी की थी।
दिल्ली सल्तनत के दौरान भूमि की पैमाइश के माध्यम से राजस्व निश्चित करने वाला अलाउद्दीन खिलजी पहला सुल्तान था। उसने भूमि पैमाइश की ‘मसाहत प्रणाली’ विकसित की थी। इस प्रणाली के आधार पर अलाउद्दीन खिलजी ने भू राजस्व की दर 50% निर्धारित की थी, लेकिन इससे पूर्व यह दर एक तिहाई हुआ करती थी।
ख़िलजी वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- गुलाम वंश के अंतिम शासक को मारकर जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने खिलजी वंश की स्थापना की।
- फिरोज खिलजी की हत्या उसके भतीजे व दमाद अलाउद्दीन खिलजी ने की।
- अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सफलता से प्रोत्साहित होकर ‘सिकंदर – ए – सानी’ या सिकंदर द्वितीय की उपाधि धारण कर लिया था।
- अलाउद्दीन खिलजी द्वारा जजिया कर ( गैर मुस्लिम से ), जकात कर ( धार्मिक कर सम्पत्ति का 40 वा हिस्सा ) एवं आवास और चराईं कर भी लिया जाता था।
- अलाउद्दीन ने बाजार नियंत्रण के लिए दीवान- ए-रियासत नामक अधिकारी नियुक्त किया।
- अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर नामक हिजडे ने 6 वर्षीय बालक शहाबुद्दीन उमर को गद्दी पर बैठाया।
- मलिक काफूर ने सत्ता के लालच में शहावुद्दीन को अंधा करवा कर स्वयं शासन करने लगा ।
- मलिक काफूर सत्ता का सुख मात्र 35 दिन तक ही भोग सका, मुबारक शाह खिलजी ने उसकी हत्या करवा दिया।
- कुतुबुद्दीन मुबारक शाह सुल्तान बनने के बाद आलस्य, विलासिता, वासना आदि दुर्गुणों का शिकार हो गया।
- मुबारक शाह नग्न स्त्री पुरुष के साथ दरबार में आता था एवं कभी कभी स्वयं नग्न होकर दरबार में दौड़ता था।
- खुसरो शाह हिन्दू धर्म परिवर्तित करके मुसलमान बना था तथा उसने स्वयं ‘पैगंबर का सेनापति’ की उपाधि धारण की।
- गाजी मलिक तुगलक ने खुसरो को युद्ध में परास्त कर तुगलक वंश की स्थापना की।
तुगलक वंश (1320 – 1414 ईस्वी)
तुगलक वंश दिल्ली सल्तनत का तीसरा वंश था। तुगलक वंश की स्थापना गयासुद्दीन तुगलक ने की थी। इसने किसानों के प्रति उदारता दिखाई थी और अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बढ़ाई गई भू राजस्व की दरों को कम कर दिया था। सल्तनत काल में सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करवाने वाला यह प्रथम सुल्तान था। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक को ही कहा था कि ‘हुनूज दिल्ली दूरस्त’ अर्थात् अभी दिल्ली दूर है।
मोहम्मद बिन तुगलक इस वंश का एक अन्य प्रमुख सुल्तान था। जियाउद्दीन बरनी मोहम्मद तुगलक के शासन काल की पांच प्रमुख घटनाओं का उल्लेख करता है। इनके अनुसार मोहम्मद तुगलक ने 1325-26 ईस्वी में दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि की थी, उसने 1327 ईस्वी में देवगिरी को अपनी राजधानी बनाया था, 1329 ईस्वी में उसने सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन किया था, 1332-34 ईस्वी के दौरान उसने खुरासान का अभियान किया था और इसी अवधि के दौरान उसने कराचिल का अभियान भी किया था।
हालांकि उसने ये सभी कार्य अपने राज्य की बेहतरी के लिए किए थे, लेकिन वह इनमें सफल नहीं हो पाया था। इसीलिए मोहम्मद बिन तुगलक को कुछ विद्वान ‘पागल सुल्तान’ भी कहते हैं।
फिरोजशाह तुगलक एक अन्य प्रमुख तुगलक सुल्तान हुआ था। इसने स्वयं को आदर्श मुसलमान सिद्ध करने की हरसंभव कोशिश की थी। इसने पुरी के जगन्नाथ मंदिर और कांगड़ा के ज्वालामुखी मंदिर को नष्ट किया था। फिरोजशाह तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया था। इसने गुलामों के लिए एक पृथक विभाग दीवान-ए-बंदगान की स्थापना भी की थी।
तुगलक वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- तुगलक वंश के संस्थापक ग्यासुद्दीन तुगलक ने अपने नाम के साथ गाजी ( काफिरों का धातक ) शब्द का प्रयोग किया था।
- ग्यासुद्दीन तुगलक ने सिंचाई के लिए कुंओं व नहरों का निर्माण करवाया। संभवतः यह पहला सुल्तान था जिसने नहरों का निर्माण कराया।
- ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौना खां मुहम्मद बिन तुगलक गद्दी पर बैठा।
- मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के सभी सुल्तानो मे सबसे ज्यादा शिक्षित तथा विद्वान था।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने शासन चलाने के विभिन्न विवादास्पद नीतियों बनाईं जो असफल रही।
- मुहम्मद बिन तुगलक की प्रमुख असफल नीतियां – 1. दोआब क्षेत्र में कर की वृद्धि, 2.राजधानी परिवर्तन दिल्ली से देवगिरी, 3.सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन, 4. खुरासान एवं कराचिल का अभियान।
- मुहम्मद बिन तुगलक के काल में ही हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की थी।
- अफ्रिकी यात्री इब्नबतूता मुहम्मद बिन तुगलक के काल में भारत आया था।
- मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु पर इतिहासकार बदायूनी ने लिखा – ‘राजा को अपनी प्रजा से और प्रजा को अपने राजा से मुक्ति मिल गई’।
- फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासन काल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर केवल चार कर खराच ( लगान ) , खुम्स ( युद्ध में लूट का माल ) , जजिया , जकात वसूल किए।
- फिरोजशाह तुगलक ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाने वाला पहला सुल्तान था ।
- फिरोजशाह तुगलक ने खिज्राबाद ( टोपरा ) एवं मेरठ से अशोक स्तंभ को लाकर दिल्ली में स्थापित कराया।
- फिरोजशाह तुगलक ने जाजनगर ( उड़ीसा ) के शासक भानुदेव को हराया तथा जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त किया ।
- फिरोजशाह ने नगरकोट स्थित ज्वालामुखी मंदिर को ध्वस्त कर 1300 ग्रंथों लूटकर कुछ का फारसी अनुवाद करवाया जिसे दलायते – फिरोजशाही नाम दिया।
- फिरोजशाह तुगलक ने अपनी आत्मकथा ‘फतूहात -ए – फिरोजशाही’ लिखी थी।
- तुगलक वंश का अंतिम शासक नसीरुद्दीन महमूद शाह था
- नसीरुद्दीन महमूद शाह शासन काल में तैमूरलंग ने दिल्ली में आक्रमण किया था।
सैयद वंश (1414 – 1451 ईस्वी)
दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत आने वाला चौथा वंश था सैयद वंश। सैयद वंश की स्थापना खिज्र खां ने की थी। उसने रैयत-ए-आला की उपाधि धारण की थी। एक अन्य सैयद वंशी शासक मुबारक शाह ने याहिया बिन सरहिंदी नामक लेखक को संरक्षण प्रदान किया था। इस लेखक ने तारीख ए मुबारकशाही नामक पुस्तक की रचना की थी।
सैय्यद वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- सैय्यद वंश का संस्थापक खिज्र खां ने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की वह ‘रैयत- ए – आला’ के नाम से संतुष्ट रहा।
- खिज्र खां की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुबारक खां गद्दी पर बैठा तथा शाह उपाधि धारण की।
- मुबारक शाह के दरबार में प्रसिद्ध लेखक सरहिन्दी था जिसने ‘तारीख – ए – मुबारक शाही’ लिखी थी।
- यमुना के तट पर मुबारक शाह ने मुबारकबाद नामक एक नगर बसाया था।
लोदी वंश (1451 – 1526 ईस्वी)
लोदी वंश की स्थापना बहलोल लोदी ने की थी। लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का पांचवा और आखिरी वंश था। इस वंश के बाद दिल्ली संतानत पर मुगलों का अधिकार हो गया और मुहल काल शुरू हो गया। बहलोल लोदी एक अफगान था और लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का पहला अफगान बंद था। इसके बाद सिकंदर लोदी शासक बना। सिकंदर लोदी ने अपनी गुप्तचर व्यवस्था को सुदृढ़ किया और वह गुलरूखी नाम से फारसी भाषा में कविताएं लिखा करता था। सिकंदर लोदी ने भूमि की पैमाइश के लिए ‘गजे सिकंदरी’ नामक माप का आरंभ किया था।
‘इब्राहिम लोदी’ लोदी वंश का और दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक था। 1517-18 ईस्वी में मेवाड़ के शासक राणा सांगा के साथ लड़े गए खातोली (घाटोली) के युद्ध में इब्राहिम लोदी बुरी तरह पराजित हुआ था। इसके बाद 1526 ईस्वी में इब्राहिम लोदी ने बाबर के साथ पानीपत का पहला युद्ध लड़ा था और युद्ध मैदान में ही मारा गया था। युद्ध मैदान में ही मरने वाला इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत का पहला और एकमात्र सुल्तान था।
लोदी वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- बहलोल लोदी दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला पहला अफगान शासक था। उसने ‘बहलोल शाह गाजी’ नामक उपाधि धारण की।
- बहलोल लोदी का पुत्र निजाम खां ‘सुल्तान सिकंदर शाह लोदी’ उपाधि के साथ गद्दी पर बैठा।
- सिकंदर लोदी ने 1504 ई. में आगरा शहर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
- सिकंदर शाह लोदी द्वारा माप का एक पैमाना ‘ गज-ए-सिकंदरी’ प्रचलित कराया।
- सिकंदर लोदी ने ज्वालामुखी मंदिर की मूर्तियों तुडवाकर कसाइयों को मांस तौलने के लिए दे दिया था।
- सिकंदर लोदी के आदेश पर संस्कृत ग्रंथ ‘ आयुर्वेद ‘ का फारसी अनुवाद ‘ फरहंगे – सिकंदरी ‘ नाम से किया गया।
- गले के कैंसर से सिकंदर लोदी की मृत्यु होने के बाद उसका पुत्र इब्राहिम लोदी गद्दी पर बैठा।
- इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां तथा पंजाब के शासक दौलत खां लोदी ने काबुल के शासक बाबर को दिल्ली पर आक्रमण का निमंत्रण दिया था।
- बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच 21 अप्रैल 1526 में पानीपथ का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें इब्राहिम लोदी बुरी तरह हार गया।
- इब्राहिम लोदी उसी युद्ध में मारा गया और दिल्ली के सल्तनत काल का अंत हो गया।
- बाबर ने इब्राहिम लोदी को मारकर दिल्ली में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
दिल्ली सल्तनत का अंत
दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत पाँच मुस्लिम साम्राज्य या राजवंश किये। दिल्ली सल्तनत के इन राजवंशों द्वारा 1206 से 1526 ई. के बीच दिल्ली के क्षेत्र पर शासन किया गया। 16 वीं शताब्दी में, दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate) के अंतिम शासक इब्राहीम लोदी को मुग़ल शासक बाबर ने पराजित किया। इस युद्ध में इब्राहीम लोदी युद्ध में मारा गया। इस प्रकार दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया, और बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।