टीपू सुल्तान |1750 ई.-1799 ई.

टीपू सुल्तान को “मैसूर का शेर” – Tiger of Mysore कहा गया है। टीपू सुल्तान एक कुशल, वीर और बहादुर वीर थे। जिनमें वीरता और साहस कूट-कूट कर भरा था। उनकी वीरता के आगे अंग्रेजों को भी घुटने टेकने पडे।

इसके अतिरिक्त वे एक बेहद प्रशंसनीय रणनीतिकार भी थे, अपनी रणनीति से ही टीपू सुल्तान हमेशा अपने अधीन प्रदेशों को जीतने की कोशिश करते थे। अंग्रेजों के खिलाफ कई लड़ाई में वीर योद्धा टीपू सुल्तान का अहम योगदान रहा।

टीपू सुल्तान का परिचय

संपूर्ण नाम (Full Name)सुल्तान सईद वाल्शारीफ फतह अली खान बहादुर साहब टिपू (टीपू सुल्तान)
जन्म (Date of Birth)1 दिसंबर 1750
जन्मस्थल (Birth Place)देवनाहल्ली, बैंगलोर (कर्नाटका राज्य)
माता का नाम (Mother Name)फातिमा फख्र- उन-निसा।
पिता का नाम (Father Name)हैदर अली।
पत्नी/पत्नियो का नाम (Spouse)खादिजा जमान बेगम, सिंधू सुल्तान इत्यादि।
धर्म (Religion)इस्लाम (सुन्नी इस्लाम)
भाषा ज्ञान (Known Languages)अरबी, उर्दू, कन्नडा, हिंदी, फारसी।
राजधानी (Capital)श्रीरंगपट्टनम।
संतान की कुल संख्या (Children)15
प्रमुख पहचान(Main Identity)1. युद्ध मे अग्निबाण का उपयोग करनेवाला प्रथम भारतीय शासक 2. मैसूर शासक।
प्रमुख युद्ध और उनकी संख्या(Main Wars and Their Numbers)मैसूर युद्ध, कुल 4 युध्द।
मृत्यू (Death)4 मई 1799

टीपू सुल्तान का इतिहास

बहादुर और योग्य शासक टीपू सुल्तान ने मंगलौर की संधि जो कि द्वितीय एंग्लो-मैसूर युद्ध को खत्म करने के लिए थी, इसमें उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ मिलकर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही यह भारत का ऐतिहासिक मौका था, जब किसी भारतीय वीर शासक ने अंग्रेजों पर हुकूमत की थी।

कुशल वीर योद्धा टीपू सुल्तान ने अपने पिता हैदरअली की मौत के बाद मैसूर का राजपाठ संभाला और अपने शासनकाल में कई बदलाव लाकर कई प्रदेशों में जीत हासिल की। इसके साथ ही योग्य शासक टीपू सुल्तान ने लोहे से बने मैसूरियन रॉकेट (Mysorean Rockets) का भी विस्तार किया था। वहीं टीपू सुल्तान के रॉकेटों के सामने कई सालों तक भारत में हुकूमत करने वाली अंग्रेजी सेना भी थर्राती थी। टीपू सुल्तान ने युद्ध के मैदान में पहली बार रॉकेट का इस्तेमाल किया था।

टीपू सुल्तान |1750 ई.-1799 ई.

जिसके बाद टीपू सुल्तान के इस हथियार ने भविष्य को नई संभावनाएं दीं और कल्पना की उड़ान दी। वहीं इससे टीपू सुल्तान की भविष्य को लेकर दूरदर्शिता का अंदाजा लगाया जा सकता है। टीपू सुल्तान की रॉकेज टेक्नोलॉजी के बारे में पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपनी पुस्तक ”अग्नि की उड़ान” (Agni Ki Udaan) में भी जिक्र किया है।

टीपू सुल्तान ने इस तरह अपने बेहतरीन हथियारों का इस्तेमाल कर कई युद्धों में तारीफ ए-काबिल प्रदर्शन कर जीत हासिल की थी। एक योग्य शासक होने के अलावा टीपू सुल्तान एक विद्वान, कुशल, सेनापति और महान कवि थे। जो अक्सर कहते थे कि –

”शेर की एक दिन की जिंदगी गिधड़ की एक हजार साल से बेहतर होती है”

टीपू सुल्तान का जन्म

10 नवम्बर 1750 में  बेंगलुरु के देवानाहल्ली में जन्मे टीपू सुल्तान का नाम टिपू सुल्तान आरकोट के औलिया टीपू मस्तान के नाम पर रखा गया। टीपू सुल्तान को उनके दादाजी फ़तेह मुह्म्म्द के नाम पर फ़तेह अली भी कहा जाता था। वहीं इस तरह टीपू सुल्तान  का पूरा नाम सुल्तान सईद वाल्शारीफ फतह अली खान बहादुर शाह टीपू था।

टीपू सुल्तान का परिवार

टीपू सुल्तान  के पिता का नाम हैदर अली था जो कि दक्षिण भारत में मैसूर के साम्राज्य के एक काबिल और सैन्य अधिकारी थे। इनकी माता का नाम फातिमा फख- उन निसा था और टिपू सुल्तान इन दोनों के बड़े पुत्र थे।

उनके पिता हैदर अली साल 1761 में अपनी बुद्धिमत्ता और कुशलता के बल पर मैसूर साम्राज्य के वास्तविक शासक के रूप में सत्ता में काबिज हुए और उन्होनें अपने कौशल और योग्यता के बल पर अपने रूतबे से मैसूर राज्य में सालों तक शासन किया।

वहीं उनके पिता की 1782 में मौत के बाद वे टीपू सुल्तान ने मैसूर साम्राज्य का राजसिंहासन संभाला। वहीं उनका विवाह सिंध सुल्तान के साथ किया गया, हालांकि इसके बाद उन्होंने कई और भी शादियां की। उनके अपनी अलग-अलग बेगमों से कई बच्चे भी हुए।

टीपू  सुल्तान का प्रारंभिक जीवन

महज 15 साल की उम्र में ही टिपू सुल्तान युद्ध कला में निपुण हो गए थे। और उन्होंने अपने पिता हैदर अली के साथ कई सैन्य अभियानों में भी हिस्सा लिया। 1766 में उन्होनें ब्रिटिश के खिलाफ हुई मैसूर की पहली लड़ाई में अपने पिता के साथ संघर्ष किया था और अपनी कौशल क्षमता और बहादुरी से अंग्रेजों को खदेड़ने में भी कामयाब हुए।

वहीं इस दौरान उनके पिता हैदर अली, पूरे भारत में सबसे शक्तिशाली शासक बनने के लिए मशहूर हो गए थे। अपने पिता हैदर अली के बाद शासक बनने के बाद टीपू ने उनकी नीतियों को जारी रखा और अंग्रेजों को अपनी कुशल प्रतिभा से कई बार पटखनी दी, इसके अलावा निज़ामों को भी कई मौकों पर धूल चटाई।

टीपू सुल्तान |1750 ई.-1799 ई.

टीपू सुल्तान ने अपने पिता के मैसूर साम्राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए वीरता के साथ प्रदर्शन किया और सूझबूझ से रणनीति बनाई। वे हमेशा अपने देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहते थे। इसके साथ ही वे अपने अभिमानी और आक्रामक स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे।

टीपू सुल्तान की शिक्षा

टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली खुद पढ़े- लिखे नहीं थे लेकिन उन्होनें टीपू सुल्तान को वीर और कुशल योद्धा बनाने पर खास ध्यान दिया। यहां तक कि हैदर अली ने टीपू की शिक्षा के लिए योग्य शिक्षकों की नियुक्ति भी की थी।

दरअसल हैदर अली के फ्रांसिसी अधिकारियों के साथ राजनीतिक संबंध थे इसलिए उन्होनें अपने बेटे को को सेना में कुशल फ्रांसिसी अधिकारियों द्धारा राजनीतिक मामलों में प्रशिक्षित किया गया था।

टीपू सुल्तान को हिंदी, उर्दू, पारसी, अरबी, कन्नड़ भाषाओं के साथ-साथ कुरान, इस्लामी न्यायशास्त्र, घुड़सवारी, निशानेबाजी और तलवारबाजी की भी शिक्षा दी गई थी।

आपको बता दें कि टीपू सुल्तान  को बचपन से ही शिक्षाविदों में बहुत अधिक रुचि थी। टीपू सुल्तान अच्छी तरह से शिक्षित होने के साथ ही एक कुशल सैनिक भी थे। टीपू एक धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे और वह सभी धर्मों को मान्यता देते थे। कुछ सिद्धांतों के द्वारा उन्होंने हिंदुओं और ईसाइयों के धार्मिक उत्पीड़न का विरोध भी किया था।

टीपू सुल्तान की पत्नियाँ और संताने

वैसे तो टिपू सुल्तान ने बहुत सी शादियाँ की थी जिनमे से इनके प्रमुख पत्नियों के नाम खादिजा जमान बेगम, सिंधू सुल्तान इत्यादि की जानकारी ऐतिहासिक स्त्रोतों से प्राप्त होती है। इनके कुल १५ पुत्रो के बारे में जानकारी मौजूद है, जिनके नाम निम्नलिखित तौर पर है –

टीपू सुल्तान के कुल 15 पुत्रो के नाम

  1. मुहम्मद निजाम उद -दिन – खान सुल्तान
  2. गुलाम अहमद खान सुल्तान
  3. शहजादा हैदर अली
  4. गुलाम मोहम्मद सुल्तान साहिब
  5. मिराज उद-दिन- अली खान सुल्तान
  6. अब्दुल खलिक़ खान सुल्तान
  7. सरवर उद -दिन– खान सुल्तान
  8. मुहम्मद शुक्रूउल्लाह खान सुल्तान
  9. मुनीर उद- दिन- खान सुल्तान
  10. मुही उद-दिन- खान सुल्तान
  11. मुहम्मद सुभान खान सुल्तान
  12. मुहम्मद यासीन खान सुल्तान
  13. मुईज उद-दिन-खान सुल्तान
  14. हशमथ अली खान सुल्तान
  15. मुहम्मद जमाल उद -दिन-खान सुल्तान

टीपू सुलतान के प्रमुख युद्ध

मैसूर शासन और इस्ट इंडिया कंपनी के बिच हुए प्रमुख युद्ध : War Between East India Company and Mysore Kingdom

  • प्रथम एंग्लो- मैसूर युध्द (First Anglo- Mysore War, 1766)
  • द्वितीय एंग्लो – मैसूर युध्द (Second Anglo – Mysore War, 1780)
  • तृतीय एंग्लो – मैसूर युध्द (Third Anglo – Mysore War, 1790)
  • चतुर्थ एंग्लो – मैसूर युध्द (Fourth Anglo – Mysore War, 1798)

मराठा साम्राज्य और मैसूर शासन के बीच हुए प्रमुख युद्ध : Maratha Mysore War

  • नारगुंद का युध्द (Battle of Nargund, 1784)
  • अदोनी युध्द (Adoni Siege, 1786)
  • सावनुर युध्द (Savanur Battle, 1786)
  • बदामी का युध्द (Battle of Badami, 1786)
  • बहादूर बेन्दा का युध्द (Bahadur Benda Siege, 1787)
  • गजेंद्रगढ युध्द (Gajendragad War, 1786)

टीपू  सुल्तान का शासनकाल

टीपू सुल्तान बहादुर होने के साथ-साथ दिमागी सूझबूझ से रणनीति बनाने में भी बेहद माहिर था। उसने अपने शासनकाल में कभी हार नहीं मानी और अंग्रेजों को हारने के लिए मजबूर कर दिया।

आपको बता दें कि टीपू सुल्तान अपने शासनकाल में सम्मानित व्यक्तित्व वाले एक साधारण नेता के रूप में जाने जाते थे। वहीं टीपू को अपनी प्रजा से बहुत ज्यादा सम्मान मिला।

टीपू सुल्तान ‘जेकबिन क्लब’ के संस्थापक सदस्य थे, जिन्होंने फ्रांसीसी के प्रति अपनी निष्ठा कायम ऱखी। वह अपने पिता की तरह एक सच्चे देशभक्त थे।

टीपू सुल्तान |1750 ई.-1799 ई.

इसके अलावा महान योद्धा टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में अंग्रेजों के खिलाफ फ्रांसीसी, अफगानिस्तान के अमीर और तुर्की के सुल्तान जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों की सहायता कर उनका भरोसा जीता।

टीपू सुल्तान के शासन से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • टीपू ने ब्रिटिश की ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार से होने वाले खतरे का अनुमान पहले ही व्यक्त किया था। टीपू और उनके पिता हैदर अली ने साल 1766 में हुए पहले मैसूर युद्ध में अंग्रेजों को हरा दिया था।
  • इसके बाद साल 1779 में अंग्रेजों ने फ्रांसिसी बंदरगाह पर कब्जा कर लिया जो कि टिपू संरक्षण के तहत था। टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने साल 1780 में बदला लेने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का फैसला किया। और अपने बेटे टीपू सुल्तान के साथ 1782 के द्वितीय मैसूर युद्ध में भी अंग्रेजों को जोरदार पटखनी दी। वहीं इस दौरान द्धितीय एंग्लो-मैसूर युद्ध के रूप में एक अभियान भी चलाया गया, जिसमें उन्होंने सफलता हासिल की। इस युद्ध को खत्म करने के लिए उन्होनें समझदारी से अंग्रेजों के साथ मंगलौर की संधि कर ली थी। इस दौरान हैदर अली कैंसर जैसी घातक बीमारी से पीड़ित हो गए थे और साल 1782 में उन्होनें अपनी आखिरी सांस ली।
  • अपने पिता की मौत के बाद बड़े पुत्र होने के नाते टीपू सुल्तान को मैसूर साम्राज्य का राजसिंहासन पर बिठाया गया। 22 दिसंबर 1782 में टिपू सुल्तान ने अपने पिता हैदर अली की जगह ली और मैसूर साम्राज्य के शासक बन गए। राजपाठ संभालने के बाद टिपू सुल्तान ने अपने शासन में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए और अंग्रेजों के अग्रीमों की जांच करने के लिए मराठों और मुगलों के साथ गठबंधन कर सैन्य रणनीतियों पर काम किया।
  • टीपू सुल्तान – अपनी योग्यता और कुशल रणनीतियों के लिए अपने शासनकाल के दौरान एक बेहतर और कुशल शासक साबित हुए। आपको बता दें कि जब टीपू सुल्तान मैसूर साम्राज्य को संभाल रहे थे तो उन्होंने अपनी हर एक जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभाया। अपने शासनकाल में टीपू सुल्तान ने अपने पिता की अधूरी पड़ी हुई परियोजनाएं जैसे सड़कें, पुल, प्रजा के लिए मकान और बंदरगाह बनवाना जैसे कामों को पूरा किया। इसके अलावा रॉकेट टैक्नोलॉजी से उन्होंने न सिर्फ कई सैन्य परिवर्तन किए बल्कि खुद का दूरदर्शी होने का प्रमाण भी दिया। युद्ध में सबसे पहले टाइगर टिपू सुल्तान ने रॉकेट का इस्तेमाल किया ताकि इस प्रभावशाली हथियार से शत्रुओं को पराजित किया जा सके।
  • साहसी योद्धा के रूप के टीपू सुल्तान की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इसी को देखते हुए इस महान योद्धा ने अपने क्षेत्र का विस्तार करने की योजना बनाई। इसके साथ ही त्रवंकोर राज्य को हासिल करने का सोचा। त्रवंकोर, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एक सहयोगी राज्य था। वहीं इस राज्य को हासिल करने की लड़ाई की शुरुआत साल 1789 में हुई थी। इस तरह यहां से ही तीसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध की शुरुआत हुई।
  • टीपू जैसे बहादुर शासक का सामना करने के लिए त्रवंकोर के महाराजा ने ईस्ट इंडिया कंपनी से मद्द मांगी। जिसके बाद लार्ड कार्नवालिस ने इस महान योद्धा को पराजित करने के लिए एक मजबूत सैन्य बल का निर्माण किया और हैदराबाद के निजामों के साथ गठबंधन कर लिया।
  • इसके बाद साल 1790 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने टीपू सुल्तान पर हमला किया और जल्द ही कोयंबटूर पर ज्यादा से ज्यादा नित्रंयण स्थापित कर लिया।जिसके बाद टीपू ने भी कार्नवालिस पर हमला किया। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह रही कि वे अपने इस अभियान में सफलता नहीं हासिल कर सके।
  • वहीं यह लड़ाई करीब 2 साल तक जारी रही। साल 1792 में इस लड़ाई को खत्म करने के लिए टिपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्नम की संधि पर साइन कर दिए। इस दौरान उन्हें मालाबार और मंगलौर को मिलाकर अपने प्रदेशों को खोना भी पड़ा था।
  • बहरहाल टीपू सुल्तान बेहद अभिमानी और एक आक्रामक स्वभाव के शासक थे, इसलिए उसने अपने कई प्रदेशो को खोने के बाद भी अंग्रेजों के साथ अपनी लड़ाई खत्म नहीं की। साल 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठों और निजामों के साथ गठबंधन कर टिपू सुल्तान के मैसूर राज्य पर हमला किया। यह चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध था। जिसमें ब्रिटिश लोगों ने मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर अपना कब्जा जमा लिया था। इस तरह महान शासक टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में तीन बड़ी लड़ाइयां लड़ीं और अपना नाम हमेशा के लिए अपना नाम वीर योद्धा के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज करा लिया।

टीपू सुल्तान की मृत्यु

‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति चलाने वाले अंग्रेज़ों ने संधि करने के बाद भी टिपू सुल्तान से गद्दारी कर डाली। ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदराबाद के निजामों के साथ मिलकर चौथी बार टीपू पर ज़बरदस्त हमला किया और इस लड़ाई में महान योद्धा टीपू सुल्तान की हत्या कर दी।

इस तरह 4 मई साल 1799 में मैसूर का शेर श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। इसके बाद इनके शव को मैसूर के श्रीरंगपट्टनम में दफन किया गया। ये भी कहा जाता है कि टीपू सुल्तान की तलवार को ब्रिटशर्स ब्रिटेन ले गए।

इस तरह वीरयोद्धा टीपू सुल्तान हमेशा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गए और इसके बाद इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए उनकी वीरगाथा के किस्से छप गए।

महायोद्धा टिपू सुल्तान की मौत के बाद 1799 ई. में अंग्रेज़ों ने मैसूर राज्य के एक हिस्से में उसके पुराने हिन्दू राजा के जिस नाबालिग पौत्र को गद्दी पर बैठाया, उसका दीवान पुरनिया को नियुक्त कर दिया गया था।

टीपू सुल्तान के विकास कार्य  

वीर योद्धा टीपू  सुल्तान ने अपने शासनकाल में कई विकास काम किए। यही वजह थी कि उन्हें अपने राज्य की प्रजा से बहुत सम्मान भी मिला है। टीपू सुल्तान की शहादत के बाद अंग्रेज़ श्रीरंगपट्टनम से दो रॉकेट ब्रिटेन के ‘वूलविच संग्रहालय’ की आर्टिलरी गैलरी में प्रदर्शनी के लिए रखी थी।

टिपू सुल्तान जब मैसूर की कमान संभाल रहे थे, तब उन्होंने जल भंडारण के लिए कावेरी नदी के उस स्थान पर एक बांध की नींव रखी। टीपू ने अपने पिता हैदर द्वारा शुरू की गई ‘लाल बाग परियोजना’ को सफलतापूर्वक पूरा किया।

टीपू निःसन्देह एक कुशल प्रशासक और योग्य सेनापति था। उसने ‘आधुनिक कैलेण्डर’ की भी शुरुआत की और सिक्का ढुलाई तथा नाप-तोप की नई प्रणाली का इस्तेमाल किया था। वह दूरदर्शी शासक था, उसने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में ‘स्वतन्त्रता का वृक्ष’ लगवाया और साथ ही ‘जैकोबिन क्लब’ का सदस्य भी बना। इसके अलावा आपको बता दें कि वे खुद को नागरिक टिपू पुकारता था।

टीपू सुल्तान |1750 ई.-1799 ई.

टीपू  सुल्तान का किला

‘टीपू के क़िला’ को पालक्काड किले (Palakkad Fort) के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यह पालक्काड टाउन के बीचोबीच स्थित है। इसके साथ ही यह किला पालक्कड़ जिले की लोकप्रिय और ऐतिहासिक इमारत है। आपको बता दें कि यह किला साल 1766 में बनवाया गया था।

मैसूर के राजाओं द्वारा किले का इस्तेमाल महत्वपूर्ण सैनिक गतिविधियों के लिए किया जाता था। किले के पास में एक खुला मैदान स्थित है, जिसे स्थानीय लोग कोट्टा मैदानम या किले का मैदान के नाम से जानते हैं।

ऐतिहासिक मान्यताओं के मुताबिक यह मैदान टीपू सुल्तान का अस्तबल था जहां पर सेनाओं के जानवर पाले जाते थे। वहीं अब इस मैदान का इस्तेमाल सभाओं, खेल प्रतियोगिताओं और प्रदर्शनियों के लिये होता है।

अब इस ऐतहासिक धरोहर टीपू के किले की देखरेख भारतीय पुरातात्विक विभाग करता है। टीपू के पिता और मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने इस क़िले को ‘लाइट राइट’ यानी ‘मखरला’ से बनवाया था।

वहीं जब हैदर अली ने मालाबार और कोच्चि में विजय प्राप्त कर अपने अधीन कर लिया था, तब उन्होंने इस किले का निर्माण करवाया था। जिसके बाद मैसूर साम्राज्य के शासक टीपू सुल्तान ने इस किले पर अपना हक जमाया था।

टिपू सुल्तान का पालक्काड क़िला, केरल में शक्ति-दुर्ग था, जहां से वह ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ लड़ते थे। इसी तरह साल 1784 में एक युद्ध में कर्नल फुल्लेर्ट के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने 11 दिन दुर्ग को घेर कर रखा और अपने अधीन कर लिया। फिर कोष़िक्कोड़ के सामूतिरि ने इस क़िले को जीत लिया। 1790 में ब्रिटिश सैनिकों ने क़िले पर फिर से अधिकार कर लिया। बंगाल में ‘बक्सर का युद्ध’ और  दक्षिण में मैसूर का चौथा युद्ध को जीत कर भारतीय राजनीति पर अंग्रेज़ों ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी।

टीपू सुल्तान से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • टीपू सुल्तान अपनी कुशलता और महानता के लिए जाने जाते हैं। वे एक महान योद्धा थे, टीपू सुल्तान की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। वहीं टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मेन भी कहा जाता है। क्योंकि उन्होंने पहले रॉकेट का इस्तेमाल किया था। सूत्रों के मुताबिक लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के रॉकेट रखे हुए हैं।
  • टीपू सुल्तान का पूरा नाम ‘सुल्तान फतेह अली खान शाहाब’ था और उनका यहा नाम उनके पिता हैदर अली ने रखा था। वे भी एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शिता के पक्के थे।
  • योग्य और कुशल शासक टीपू सुल्तान एक बादशाह बन कर पूरे देश पर राज करना चाहता था, लेकिन उस महायोद्धा की ये इच्छा पूरी नही हुई।
  • टीपू सुल्तान ने महज 18 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ अपनी पहली जंग जीती थी।
  • आपको बता दें कि वीर योद्धा टीपू सुल्तान को “शेर-ए-मैसूर” इसलिए कहा जाता हैं, क्योंकि उन्होनें महज 15 साल की छोटी उम्र से ही अपने पिता के साथ जंग में हिस्सा लेने की शुरूआत कर दी थी और इस दौरान टीपू ने बेहतर प्रदर्शन किया था। वहीं पिता हैदर अली ने अपने बेटे टीपू को बहुत मजबूत बनाया और उसे राजनीतिक, सैन्य सभी तरह की शिक्षा दी।
  • टिपू सुल्तान को लेकर कहा जाता है कि वह अपने आसपास की चीजों का इस्लामीकरण चाहता था। वहीं टीपू सुल्तान इस वजह से भारतीय राजनीति में भी काफी विवादों में रहते हैं।
  • यह कहा जाता है कि टीपू सुल्तान ने बहुत सी जगहों का नाम बदलकर मुस्लिम नामों पर रख दिया था। लेकिन उनकी मौत के बाद सभी जगहों के नाम फिर से पुराने नामों पर रख दिए गए।
  • आपको बता दें कि टीपू सुल्तान राजसिंहासन संभालते ही अपने राज्य मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया था। टीपू सुल्तान के लिए यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान करीब 1 करोड़ हिंदूओं का धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें मुसलमान बना दिया। लेकिन टीपू की मृत्यु के बाद जिनका धर्म परिवर्तन करवाया गया था उनमें से ज्यादातर लोग वापस हिंदू बन गए थे।
  • टीपू सुल्तान के नाम पर ये भी तथ्य मशहूर है कि टीपू ‘राम’ नाम की अंगूठी पहनते थे, वहीं उनकी मौत के बाद उनकी ये अंगूठी अंग्रेजों ने उतार ली थी और इसे भी वे अपने साथ ले गए थे।
  • साल 1799 में अंग्रजों के खिलाफ चौथी लड़ाई में अपने राज्य मैसूर की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान शहीद हो गए थे।
  • टीपू सुल्तान खुद को नागरिक टीपू कहा करते थे।
  • ऐसा कहा जाता है कि टीपू सुल्तान के 12 बच्चे थे। जिनमें से महज दो बच्चों के बारे में ही पता चल पाया है।

टीपू सुल्तान की तलवार

टीपू सुल्तान की तलवार के बारे में भी एक रोचक तथ्य यह है कि जब महान योद्धा शहीद हो गए थे तो उनकी तलवार उनके शव के पास पड़ी मिली थी जिसके बाद ब्रिटिशर्स उनकी तलवार को ब्रिटेन लेकर चले गए थे और उन्होंने इसे अपनी जीत की ट्रॉफी बनाकर वहां के म्यूजियम में इसे रख लिया।

18वीं सदी के मैसूर के शासक टीपू सुल्तान से जुड़ी कुल मिलाकर 30 चीज़ें नीलाम की गई। इनमें उनकी एक ख़ास तलवार भी है, जो लगभग 21 करोड़ रुपए में नीलाम हुई। बताया जाता है की इस तलवार की मूठ पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ है। टाइगर ऑफ मैसूर कहे जाने वाले टीपू सुल्तान की तलवार का वजन 7 किलो 400 ग्राम था।

इसके अलावा यह भी बताया जाता है की यह तलवार इतनी तेज थी कि अगर किसी ने लोहे का कवच भी पहना हो तो ये उसे भी चीर सकती थी। इस तलवार की मूठ पर कुरान की आयतें लिखी होती थीं जिसमें युद्ध फ़तेह के सन्देश अंकित थे।

टीपू सुल्तान |1750 ई.-1799 ई.

इस तरह महान और योग्य योद्धा टीपू सुल्तान ने अपनी योग्यता, शक्ति और समझदारी से अंग्रेजों को युद्ध के मैदान में पटखनी दी और अपने राज्य की रक्षा की। टीपू सुल्तान जैसे वीर शासक को हमेशा याद किया जाएगा।


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