संधि शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘संधान’, ‘मेल’ या जोड़। संस्कृत व्याकरण में ‘संधि’ का संधि एक प्रक्रिया है जिसमें दो वर्णों (स्वर या व्यंजन) के मेल से एक नया स्वर या व्यंजन उत्पन्न होता है, जिससे उच्चारण में सुगमता और प्रवाह आता है। संधि का मुख्य उद्देश्य शब्दों के उच्चारण को सरल और सुगम बनाना होता है। साथ ही यह भाषा की सुंदरता को बढ़ाने में सहायक होता है।
दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है। संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरो या वर्णों के मिलने से उत्पन्न विकार सन्धि कहलाती है।
- उदाहरण –
- सम् + तोष = संतोष
- देव + इंद्र = देवेंद्र
- भानु + उदय = भानूदय
- हिम + आलय = हिमालय।
सन्धि का सामान्य अर्थ है-‘मेल’ या ‘मिलाना’। जब दो शब्द पास-पास आते हैं तो एक-दूसरे की निकटता के कारण पहले शब्द के अन्तिम वर्ण तथा दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण में अथवा दोनों में कुछ परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार होने वाले परिवर्तन (विकार) को ‘सन्धि’ कहते हैं। जैसे—’हिम’ और ‘आलय’ में हिम के अन्तिम स्वर वर्ण ‘अ’ तथा आलय के प्रथम स्वर वर्ण ‘आ’ के मिलने से हिमालय रूप बना।
सन्धि के नियम केवल भारतीय भाषाओं में ही नहीं हैं बल्कि कोरियायी जैसी यूराल-आल्टिक परिवार की भाषाओं में भी हैं। जिस प्रकार नीला और लाल रंग मिलकर बैगनी रंग बन जाता है, उसी प्रकार सन्धि एक “प्राकृतिक” या सहज क्रिया है।
संधि की परिभाषा
सन्धि शब्द का अर्थ है ‘मेल’ या जोड़। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते है।
संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरो या वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को सन्धि कहते हैं।
जैसे – सम् + तोष = संतोष ; देव + इंद्र = देवेंद्र ; भानु + उदय = भानूदय।
संधि के भेद
सन्धि स्वर, व्यञ्जन और विसर्ग के भेद के कारण तीन प्रकार की होती है-
- स्वर सन्धि (या अच् सन्धि)
- व्यञ्जन सन्धि (हल संधि )
- विसर्ग सन्धि
स्वर संधि किसे कहते हैं?
स्वरों का स्वरों के साथ मेल होने पर उनमें जो ध्वनि सम्बन्धी परिवर्तन होता है, उसे ‘स्वर-सन्धि’ कहते हैं। अथवा दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं।
जैसे – विद्या + आलय = विद्यालय।
स्वर सन्धि मुख्य रूप से पांच प्रकार की होती है-
- दीर्घ सन्धि
- गुण सन्धि
- यण सन्धि
- अयादि सन्धि
- वृद्धि सन्धि
दीर्घ संधि किसे कहते हैं?
सूत्र- अक: सवर्णे दीर्घः अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं।
यदि ह्रस्व या दीर्घ स्वर अ, इ, उ, ऋ/लृ के बाद क्रमश: ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ/लृ आएँ तो दोनों के मिलने से क्रमश: दीर्घ आ, ई, ऊ, औ, ऋ हो जाते हैं
ऋ, लृ सवर्ण संज्ञक हैं; अत: दोनों समान स्वर माने जाते हैं। ऋ, लृ में से किसी भी स्वर के पूर्व या पश्चात् होने पर दोनों के स्थान पर दीर्घ ऋ ही होता है, क्योंकि संस्कृत में लु दीर्घ नहीं होता है। जैसे-
(क) अ/आ + अ/आ = आ
- अ + अ = आ –> धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- अ + आ = आ –> हिम + आलय = हिमालय
- अ + आ =आ–> पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
- आ + अ = आ –> विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- आ + आ = आ –> विद्या + आलय = विद्यालय
(ख) इ और ई की संधि
- इ + इ = ई –> रवि + इंद्र = रवींद्र ; मुनि + इंद्र = मुनींद्र
- इ + ई = ई –> गिरि + ईश = गिरीश ; मुनि + ईश = मुनीश
- ई + इ = ई–> मही + इंद्र = महींद्र ; नारी + इंदु = नारींदु
- ई + ई = ई–> नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश
(ग) उ और ऊ की संधि
- उ + उ = ऊ–> भानु + उदय = भानूदय ; विधु + उदय = विधूदय
- उ + ऊ = ऊ–> लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
- ऊ + उ = ऊ–> वधू + उत्सव = वधूत्सव ; वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
- ऊ + ऊ = ऊ–> भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
दीर्घ संधि के अन्य उदहारण:
गुण संधि किसे कहते हैं?
यदि अ अथवा आ के पश्चात् ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ एवं ल आ जाएँ तो उनके स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर् तथा अल् हो जाता है। अर्थात इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए हो जाता है, उ, ऊ हो तो ओ हो जाता है, तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। जैसे –
- अ + इ = ए –> नर + इंद्र = नरेंद्र
- अ + ई = ए –> नर + ईश= नरेश
- आ + इ = ए –> महा + इंद्र = महेंद्र
- आ + ई = ए –> महा + ईश = महेश
- अ + उ = ओ–> ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
- आ + उ = ओ –> महा + उत्सव = महोत्सव
- अ + ऊ = ओ –> जल + ऊर्मि = जलोर्मि
- आ + ऊ = ओ –> महा + ऊर्मि = महोर्मि
- अ + ऋ = अर् –> देव + ऋषि = देवर्षि
- आ + ऋ = अर् –> महा + ऋषि = महर्षि
गुण संधि के अन्य उदहारण
वृद्धि संधि किसे कहते हैं?
अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे –
- अ + ए = ऐ –> एक + एक = एकैक ;
- अ + ऐ = ऐ –> मत + ऐक्य = मतैक्य
- आ + ए = ऐ –> सदा + एव = सदैव
- आ + ऐ = ऐ –>महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
- अ + ओ = औ –> वन + औषधि = वनौषधि
- आ + ओ = औ –> महा + औषधि = महौषधि
- अ + औ = औ –> परम + औषध = परमौषध
- आ + औ = औ –> महा + औषध = महौषध
यण संधि किसे कहते हैं?
यदि ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ तथा लु के बाद कोई असमान स्वर आ जाए तो इ-ई का य्, उ-ऊ का व् और ऋ का र् तथा लु का ल हो जाता है। (जिस व्यंजन में ये स्वर संयुक्त होंगे वह इन स्वरों के निकल जाने पर हलन्त हो जाएगा) अर्थात
(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।
(ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।
(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। जैसे-
- इ + अ = य् + अ –> यदि + अपि = यद्यपि
- ई + आ = य् + आ –> इति + आदि = इत्यादि।
- ई + अ = य् + अ –> नदी + अर्पण = नद्यर्पण
- ई + आ = य् + आ –> देवी + आगमन = देव्यागमन
- उ + अ = व् + अ –> अनु + अय = अन्वय
- उ + आ = व् + आ –> सु + आगत = स्वागत
- उ + ए = व् + ए –> अनु + एषण = अन्वेषण
- ऋ + अ = र् + आ –> पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
यण संधि के अन्य उदहारण
अयादि संधि किसे कहते हैं?
ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं। अर्थात यदि ए, ओ, ऐ, औ के बाद कोई भी स्वर आए तो ए का अय्, ओ का अव, ऐ का आय तथा औ का आव् हो जाता है। जैसे-
- ए + अ = अय् –> ने + अन = नयन
- ऐ + अ = आय् –> गै + अक = गायक
- ओ + अ = अव् –> पो + अन = पवन
- औ + अ = आव् –> पौ + अक = पावक
- औ + इ = आव् –> नौ + इक = नाविक
अयादि संधि के अन्य उदहारण
व्यंजन संधि किसे कहते हैं?
व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
जैसे-शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र। उज्ज्वल
(क) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। जैसे –
- क् + ग = ग्ग –> दिक् + गज = दिग्गज
- क् + ई = गी –> वाक + ईश = वागीश
- च् + अ = ज् –> अच् + अंत = अजंत
- ट् + आ = डा –> षट् + आनन = षडानन
- प + ज + ब्ज –> अप् + ज = अब्ज
(ख) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे –
- क् + म = ं –> वाक + मय = वाङ्मय
- च् + न = ं –> अच् + नाश = अंनाश
- ट् + म = ण् –> षट् + मास = षण्मास
- त् + न = न् –> उत् + नयन = उन्नयन
- प् + म् = म् –> अप् + मय = अम्मय
(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसे –
- त् + भ = द्भ –> सत् + भावना = सद्भावना
- त् + ई = दी –> जगत् + ईश = जगदीश
- त् + भ = द्भ –> भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
- त् + र = द्र –> तत् + रूप = तद्रूप
- त् + ध = द्ध –> सत् + धर्म = सद्धर्म
(घ) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। जैसे –
- त् + च = च्च –> उत् + चारण = उच्चारण
- त् + ज = ज्ज –> सत् + जन = सज्जन
- त् + झ = ज्झ –> उत् + झटिका = उज्झटिका
- त् + ट = ट्ट –> तत् + टीका = तट्टीका
- त् + ड = ड्ड –> उत् + डयन = उड्डयन
- त् + ल = ल्ल –> उत् + लास = उल्लास
(ङ) त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है। जैसे –
- त् + श् = च्छ –> उत् + श्वास = उच्छ्वास
- त् + श = च्छ –> उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
- त् + श = च्छ –> सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
(च) त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। जैसे –
- त् + ह = द्ध –> उत् + हार = उद्धार
- त् + ह = द्ध –> उत् + हरण = उद्धरण
- त् + ह = द्ध –> तत् + हित = तद्धित
(छ) स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। जैसे –
- अ + छ = अच्छ –> स्व + छंद = स्वच्छंद
- आ + छ = आच्छ –> आ + छादन = आच्छादन
- इ + छ = इच्छ –> संधि + छेद = संधिच्छेद
- उ + छ = उच्छ –> अनु + छेद = अनुच्छेद
(ज) यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे –
- म् + च् = ं –> किम् + चित = किंचित
- म् + क = ं –> किम् + कर = किंकर
- म् + क = ं –> सम् + कल्प = संकल्प
- म् + च = ं –> सम् + चय = संचय
- म् + त = ं –> सम् + तोष = संतोष
- म् + ब = ं –> सम् + बंध = संबंध
- म् + प = ं –> सम् + पूर्ण = संपूर्ण
(झ) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे –
- म् + म = म्म –> सम् + मति = सम्मति
- म् + म = म्म –> सम् + मान = सम्मान
(ञ) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। जैसे –
- म् + य = ं –> सम् + योग = संयोग
- म् + र = ं –> सम् + रक्षण = संरक्षण
- म् + व = ं –> सम् + विधान = संविधान
- म् + व = ं –> सम् + वाद = संवाद
- म् + श = ं –> सम् + शय = संशय
- म् + ल = ं –> सम् + लग्न = संलग्न
- म् + स = ं –> सम् + सार = संसार
(ट) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। जैसे –
- र् + न = ण –> परि + नाम = परिणाम
- र् + म = ण –> प्र + मान = प्रमाण
(ठ) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैसे –
- भ् + स् = ष
- अभि + सेक = अभिषेक
- नि + सिद्ध = निषिद्ध
- वि + सम + विषम
विसर्ग संधि किसे कहते हैं?
विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं।
जैसे- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
(क) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है। जैसे –
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
- अधः + गति = अधोगति
- मनः + बल = मनोबल
(ख) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है। जैसे –
- निः + आहार = निराहार
- निः + आशा = निराशा
- निः + धन = निर्धन
(ग) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। जैसे –
- निः + चल = निश्चल
- निः + छल = निश्छल
- दुः + शासन = दुश्शासन
(घ) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। जैसे –
- नमः + ते = नमस्ते
- निः + संतान = निस्संतान
- दुः + साहस = दुस्साहस
(ङ) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। जैसे –
- निः + कलंक = निष्कलंक
- चतुः + पाद = चतुष्पाद
- निः + फल = निष्फल
(च) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे –
- निः + रोग = नीरोग
- निः + रस = नीरस
(छ) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। जैसे –
अंतः + करण = अंतःकरण
संधि की सारणी
संधि की सारणी नीचे दी गयी है –
इन्हें भी देखें –
- मुंशी प्रेमचंद जी और उनकी रचनाएँ
- सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं 50+उदाहरण
- संज्ञा (Noun) किसे कहते हैं? परिभाषा, भेद एवं 50+ उदाहरण
- क्रिया (Verb) किसे कहते हैं? परिभाषा, भेद एवं 50+ उदाहरण
- लिंग (Gender) – परिभाषा, भेद और नियम
- काल (Tense) किसे कहते है? भेद और 50+ उदाहरण
- मराठा साम्राज्य के शासक और पेशवा
- मराठा साम्राज्य | MARATHA EMPIRE | 1674 – 1818
- मगध साम्राज्य | Magadha Empire | 1700-322 BC
- धार्मिक आन्दोलन | Religious Movements | 600 ईसा पूर्व
- चन्द्रगुप्त द्वितीय | 380 ईस्वी – 415 ईस्वी
- सम्राट अकबर: शक्तिशाली साम्राज्य निर्माण और सद्गुणपूर्ण नेतृत्व |1542–1605 ई
- बाबर (1483 ई. – 1530 ई.)
- हिन्द यवन आक्रमण Indo-Greek Invasion (180 BC – 10 AD)
- सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) 2350 – 1750 ई.पू.
- Computer Fundamental
- Computer Network
- Computer Virus
- Malware
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