पाषाण काल, मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग है, जिसमें प्राचीन मानव समुदायों ने पाषाण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके अपनी जरूरतों को पूरा किया। इस युग का आरंभ लगभग 2,500,000 ईसा पूर्व में हुआ और यह लगभग 700,000 साल तक चला। वास्तव में पाषाण काल के रूप में उस काल को परिभाषित किया गया है, जब प्रागैतिहासिक मनुष्य अपने जीवन यापन के लिए पत्थरों का उपयोग करते थे। मनुष्य के जन्म के बाद से हुए विकास को अलग-अलग कालो में बांटा गया है।
पाषाणकाल: प्रागैतिहासिक युग का आरम्भ
यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्हीं शब्दों के आधार पर Paleolithic Age (पाषाण काल) शब्द बना । यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है।
पाषाण काल का विभाजन
पाषाण काल के दौरान, मानव समुदाय जंगलों से सवास्थ्य और उर्वरक खनने के लिए अधिक खुदाई करने लगे, और यह समय उनके समुदायों के विकास के लिए महत्वपूर्ण था। पाषाण काल के बारे में निम्न सारणी में संक्षिप्त विवरण दिया गया है –
काल का आधार | पुरापाषाण काल | मध्य पाषाण काल | नवपाषाण काल |
काल | 25 लाख ईसा पूर्व से लेकर 10000 ईसा पूर्व | 10000 ईसा पूर्व से लेकर 4000 ईसा पूर्व | 10000 ईसा पूर्व से लेकर 1000 ईसा पूर्व |
चरण | 1. पूर्व पुरापाषाण काल 2. मध्य पुरापाषाण काल 3. उच्च पुरापाषाण काल | – | – |
लक्षण | आखेटक ( शिकारी ) और खाद्य संग्राहक | आखेटक ( शिकारी ) और खाद्य संग्राहक, पशुपालन की भी शुरुआत | कृषि व्यवस्था की खोज, पशुपालन को एक व्यवस्थित रूप, समाज का स्थायी निवास प्रारंभ |
औजार | क़्वार्टजाइट, शल्क और ब्लेड के हथियार | सूक्ष्म पत्थर और माइक्रोलिथ पत्थरों के हथियार | स्लेट के पत्थरों के हथियार |
महत्वपूर्ण स्थल | 1. अतिरम्पक्कम ( तमिलनाडु ) 2. हथनोरा ( मध्य प्रदेश ) 3. भीमबेटका, मध्य प्रदेश 4. मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश | 1. चोपनी मांडो, उत्तर प्रदेश 2. सराय नाहर राय, उत्तर प्रदेश 3. बागोर, राजस्थान | 1. बुर्जहोम, कश्मीर 2. गुफकराल, कश्मीर 3. चिरांद, बिहार 4. कोल्डिहवा, उत्तर प्रदेश 5. मेहरगढ़, बलूचिस्तान |
खोज | आग की खोज | आग का व्यावहारिक उपयोग | पहिये की खोज, कृषि की खोज, विधवत पशुपालन, समाज का निर्माण |
इस समय के प्राप्त पत्थरों के उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये पत्थर के उपकरण लगभग 2,50,000 ई.पू. के होंगे। अभी हाल में महारास्ट्र के ‘बोरी’ नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर ‘मनुष्य’ की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है। गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से सोहन नदी घाटी में मिलते हैं।
पाषाण काल को तीन भागों में बाटा गया है
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1. पुरापाषाण काल (Paleolithic Era) (2,500,000 ईसा पूर्व से 10,000 ई.पू. तक)
पुरापाषाण काल का समय 25 लाख ईसा पूर्व से लेकर 10,000 ईसा पूर्व तक का माना जाता है। इस काल के दौरान, मानव जीवन का आरंभ हुआ और पहले पाषाण और फिर हाथी अथवा उसके जैसे विशाल जानवरों की हड्डियों का उपयोग किया गया।
यह काल वह काल था जिसमें मनुष्य ने सबसे लंबी अवधि तक समय बिताया और विकास की ओर आगे बढ़ा था, जिसके परिणामस्वरूप इसको भी तीन काल की अवधि में बांटा जाता है-
- पूर्व पुरापाषाण काल | Lower Paleolithic Age | 25 लाख ईसा पूर्व से 1 लाख ईसा पूर्व
- मध्य पुरापाषाण काल | Middle Paleolithic Age | 1 लाख ईसा पूर्व से 40,000 ईसा पूर्व
- उच्च पुरापाषाण काल | Upper Paleolithic Age | 40,000 ईसा पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व
I. पूर्व पुरापाषाण काल | Lower Paleolithic Age | 25 लाख ईसा पूर्व से 1 लाख ईसा पूर्व
यह पूरापाषाण काल का लंबा समय है। इस समय मनुष्य पत्थरो से निर्मित औजार का प्रयोग करते थे। जैसे- हस्तकुठार, खण्डक, विदारणी। अधिकांश पुरापाषाण युग हिम युग से गुजरा है। पूर्व पुरापाषाण काल स्थल भारतीय महाद्वीप के लगभग सभी क्षेत्रों में प्राप्त होता है। जिसमे असम की घाटी, सिंधु घाटी, बेलन घाटी और नर्मदा घाटी प्रमुख है।
II. मध्य पुरापाषाण काल | Middle Paleolithic Age | 1 लाख ईसा पूर्व से 40,000 ईसा पूर्व
मध्य पुरापाषाण काल मे शल्क उपकरणों का प्रयोग बढ़ गया। मुख्य औजार के रूप में पत्थर की पपड़ियों से बने विभिन्न प्रकार के फलक, वेधनी, छेदनी और खुरचनी मिलते हैं ।हमें वेधनियाँ और फलक जैसे हथियार भारी मात्रा में मिले है।
III. उच्च पुरापाषाण काल | Upper Paleolithic Age | 40,000 ईसा पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व
उच्च पुरापाषाण काल में आद्रता कम हो गयी थी तथा हिमयुग का अंतिम अवस्था थी । इस समय आधुनिक मानव होमोसेपियंस का उदय हुआ। इस काल के औजार अधिक तेज व चमकीले थे। ये औजार हमें आंध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, दक्षिणी उत्तरप्रदेश और बिहार के पठार में मिले हैं। ताम्र पाषाण काल में चिलकोलिथ का खोज हुआ था।
इन तीनों चरणों को उस समय में मनुष्यों के द्वारा उपयोग हो रहे पत्थरों और पठारों के हथियारों के आधार पर बांटा गया है।
पुरापाषाण काल में मनुष्य एक आदिमानव के समान अपना जीवन व्यतीत करते थे, जंगलों में रहकर शिकार करना जिसको आखेट भी कहते हैं, यही उस काल के मनुष्यों का मुख्य कार्य या पेशा था।
पुरा पाषाण काल का विवरण निम्न बिन्दुओं में दिया गया है –
पहलगाम कश्मीर, वेनलघाटी इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में, भीमबेटका और आदमगढ़ होशंगाबाद मध्य प्रदेश में , नेवासा अहमदनगर महाराष्ट्र में , हुंसगी गुलबर्गा कर्नाटक में ,अट्टिरामपक्कम तमिलनाडु में , पुष्कर, ऊपरी सिंध की रोहिरी पहाड़ियाँ, नर्मदा के किनारे स्थित समानापुर में पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।
- ऐसा माना जाता है कि इस काल में मानव सबसे अधिक दिनों तक रहा है।
- अभी तक भारत में पुरा पाषाण कालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं।
- जो कुछ भी अवशेष के रूप में मिला है, वह उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के उपकरण है।
- इस काल में मानव अपना जीवन यापन पत्थरों का प्रयोग कर शिकार करके करता था।
- इस समय के मनुष्य नीग्रेटो Negreto जाति के थे।
- इस काल में मानव गुफाओं में रहता था।
- पुरापाषाण काल में मानव ने आग जलाना सीखा व उसका उपयोग विभिन्न कार्यों में करना सीखा।
- इस काल की राख के अवशेष दक्षिण भारत में कुरनूल की गुफाओं में मिले।
- इस काल के स्थलों की खोज पुरातत्त्वविदों ने पुणे-नासिक क्षेत्र, कर्नाटक के हुँस्गी-क्षेत्र, आंध्र प्रदेश के कुरनूल-क्षेत्र में की, और यहाँ की कई नदियो जैसे – ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा भीमा, वर्धा आदि में चूनापत्थर से बने अनेक पुरापाषाण औजार व अवशेष मिले।
- इन नदियों के किनारों पर गैंडा और जंगली बैल के अनेक कंकाल मिले हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस काल में इन क्षेत्रों में आज की तुलना में अधिक वर्षा होती होगी।
- इस काल के अंत तक जलवायु में परिवर्तन होने लगा और धीरे-धीरे तापमान में वृद्धि होने लगी।
- इस काल में मानव चित्रकारी करता था जिसका प्रमाण हमे अनेक गुफाओं मिल जाता है।
पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल
इसके साथ-साथ इस काल में लोग शिकार के साथ-साथ खाद्य संग्राहक की भूमिका को भी निभाते थे, जिसका अर्थ यह है कि अपने भोजन हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान में भटकते रहना, उदाहरण के लिए यदि किसी एक जंगल में रहते हुए शिकार करते-करते वहां जानवर ख़त्म होने की कगार पर पहुँच जाएँ तो फिर एक नए स्थान की खोज करना जहाँ शिकार पर्याप्त मात्रा में हो।
2. मध्यपाषाण काल (Mesolithic Era) (10,000- 4,000 ई.पू.)
मध्य पाषाण काल का समय 10,000 ईसा पूर्व से लेकर 4,000 ईसा पूर्व तक का माना जाता है, जिसमें इस काल का विकास हुआ था। इस काल में मनुष्यों द्वारा आखेटक (शिकारी) और खाद्य संग्राहक की भूमिका के साथ साथ पशुपालन की भी शुरुआत कर दी गयी थी। पहले पालतू पशु के रूप में मनुष्य ने कुत्ते से पशुपालन की शुरुआत की थी, क्योंकि कुत्ते शिकार के साथ-साथ सुरक्षा की दृष्टि से भी उपयोगी पशु था।
इस प्रकार व्यावहारिक रूप से पशुपालन की शुरुआत मध्य पाषाण काल में देखने को मिलती है।
इस काल में मनुष्यों ने सूक्ष्म पत्थरों को हथियार बनाने में इस्तेमाल किया और माइक्रोलिथ पत्थरों का हथियारों में प्रयोग किया गया था।
मध्य पाषाण काल का विवरण निम्न बिन्दुओं में दिया गया है –
- यह काल पुरापाषाण और नवपाषाण काल के बीच का काल है।
- इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु पाषाणोपकरण माइक्रोलिथ कहते थे।
- पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट और चालसिडनी जैसे पदार्थ प्रयुक्त किये गये।
- इस काल की मुख्य विशेषता लघु पाषाण उपकरण है।
- सर्वप्रथम कार्लाइल द्वारा 1867 में विंध्य क्षेत्र में लघु पाषाण उपकरण की खोज की गई थी।
- मध्य पाषाण काल को “माइक्रोलिथक काल” के नाम से भी जाना जाता है।
- मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कुछ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि लोग कृषि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे।
- इस समय मिली समाधियों से स्पष्ट होता है कि लोग अन्त्येष्टि क्रिया से परिचित थे।
- मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कुत्ते के अस्थिपंजर भी मिले है जिनसे प्रतीत होता है कि कुत्ते मनुष्य के प्राचीन काल से ही सहचर थे।
- इस काल के मानव का मुख्य पेशा शिकार करना, मछली पकड़ना और खाद्य-संग्रह करना था।
- इस काल में मानव द्वारा पशुपालन की शुरूआत की गई थी जिसके शुरूआती निशान मध्य प्रदेश और राजस्थान से मिले हैं।
मध्य पाषाण काल से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण स्थल
बागोर राजस्थान , लंघनाज गुजरात , सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महगड़ा व दमदमा उत्तर प्रदेश , भीमबेटका, आदमगढ़ मध्य प्रदेश मध्य पाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।
3. नवपाषाण काल (New Stone Age) (4,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. )
नवपाषाण काल का समय 4,000 ईसा पूर्व से लेकर 1000 ईसा पूर्व तक का माना जाता है, जिसमें इस काल का विकास हुआ था। मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल के समय में थोड़ी समानताएं इसलिए हैं क्यूंकि यह दोनों ही काल एक साथ ही विकास की ओर बढ़ रहे थे, क्यूंकि कुछ क्षेत्रों में मनुष्यों ने ज्यादा जल्दी विकास की गति को प्राप्त कर लिया था जबकि कुछ क्षेत्रों में मनुष्य अभी भी धीमी गति से ही विकास की ओर आगे बढ़ रहे थे।
इस प्रकार मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल एक तरह का संक्रमण काल था, जिसे समय के आधार पर पूरी तरह से नहीं बांटा जा सकता है। इस काल में मनुष्यों द्वारा कृषि व्यवस्था की खोज की गई, पशुपालन को एक व्यवस्थित रूप दिया गया। इसके साथ अब मनुष्य एक जगह व्यवस्थित रूप से बसने लग गया था। क्यूंकि अब वह कृषि करने लग गया था, और कृषि को बचाने हेतु एक जगह पर रहना अनिवार्य हो गया था। इस प्रकार समाज का स्थायी निवास प्रारंभ हो गया था।
इस काल में स्लेट के पत्थरों को हथियार के रूप में प्रयोग किया गया था। इसके साथ-साथ 10000 ईसा पूर्व के आसपास ही आधुनिक मनुष्य या ज्ञानी मनुष्य ( Homo Sapien ) बनने की शुरुआत हो गई थी।
नव पाषाण काल का विवरण निम्न बिन्दुओं में दिया गया है –
- इस काल में मानव को यह पता लग गया था कि बीज से वनस्पति बनती है। क्योंकि वह बीज बोने लगा था।
- इस काल में मानव ने सिंचाई करना भी सीख लिया।
- नवपाषाण काल में मानव अनाज के पकने पर उसकी कटाई कर उसका भंडारण करना सीख गया।
- इस काल में मानव में कृषि और पशु दोनों पर आधारित था।
- इस काल में मानव कई प्रकार की फसले बोता था, जिसके प्रमाण अनेक स्थानों जैसे उत्तर -पश्चिम में मेहरगढ़ (पाकिस्तान में), गुफकराल और बुर्जहोम (कश्मीर में), कोल्डिहवा और मेहरगढ़ (उत्तर प्रदेश में), चिरांद (बिहार में), हल्लूर और पैय्य्मपल्ली (आंध्र प्रदेश में) में गेहूँ, जौ, चावल, ज्वार-बाजरा, दलहन, काला चना और हरा चना जैसी फसलें उगाने के प्रमाण मिले हैं।
- नवपाषाण काल में मानव ने एक स्थान पर स्थाई रूप से रहना शुरू कर दिया था। कहीं-कहीं झोपड़ियों और घरों के अवशेष मिले हैं।
- बुर्जहोम नामक स्थान पर गड्ढे को घर बनाकर रहने के प्रमाण मिले हैं। ऐसे घरों को गर्तवास का नाम दिया गया।
- घर चौकोर और आयतकार होते थे।
- नवपाषाण काल में मानव एक स्थान पर छोटी-छोटी बस्तियाँ बनाकर रहने लगा था।
- जनजाति का सरदार ज्येष्ठ और बलशाली पुरुष को बनाया जाता था। जिससे वह जनजाति की रक्षा अच्छे से कर सके।
- नवपाषाण काल में जनजातियों की अपनी स्वयं की संस्कृति और परम्पराएँ होती थीं।
- इस काल में मानव जल, सूर्य, आकाश, पृथ्वी, गाय, और सर्प की पूजा विशेष रूप से करते थे।
- नवपाषाण काल में मानव मिट्टी के बरतनों पर रंग लगाकर और चित्र बनाकर उन्हें आकर्षक बनाने का प्रयास करता था।
“आग और पहिये की खोज ने मनुष्यों का जीवन पूरी तरह से बदल कर रख दिया। यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इसी के बाद से मनुष्यों ने विकाश की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए।”
- आग की खोज – पुरा पाषाण काल।
- पहिये की खोज – नव पाषाण काल।
राबर्ट् ब्रूस ने सन् 1863 ई में भारत में सर्वप्रथम पाषाण कालीन सभ्यता का अनुसन्धान प्रारंभ किया।
पाषाण काल से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- भारत के मेहरगढ़ से व्यवस्थित कृषि का पहला साक्ष्य प्राप्त हुआ था।
- बिहार के चिरांद नमक स्थल से नव पाषण काल के हड्डी के औजार मिले है।
- प्रयागराज के बेलन घटी से पाशाद काल के तीनो चरणों के साक्ष्य मिले है।
- मनुष्य ने सर्वप्रथम ताबा धातु का खोज किया था और इसका प्रयोग औजार बनाने के लिए किया था।
- प्रयागराज के कोल्दिहावा से चावल की खेती का साक्ष्य प्राप्त हुआ है।
- आग का खोज पुरा पाषाण काल तथा पहिये का अविष्कार नव पाषाण काल में हुआ था।
- सन 1921 ई में राय बहादुर दयाराम सहनी ने पुरातत्व विभाग के निदेशक सर जन मार्शल के नेत्रित्व में हड़प्पा नमक स्थल की खुदाई कर के हड़प्पा सभ्यता की खोज की।
- हड़प्पा सभ्यता की खोज के पश्चात् राखालदास बनर्जी ने सन 1922 ई मे मोहनजोदड़ो नमक स्थल की खोज की।
- पुरा पाषाण काल में मनुष्य की जीविका का मुख्य आधार शिकार था। इसलिए इस काल को आखेटक काल भी कहा जाता है
- आधुनिक मानव आज से लगभग 36000 ई पू अस्तित्व में आया था, इसलिए आधुनिक मानव को होमो-सेपियन भी कहते है।
- पूरा पाषाण काल में ही मानव आग की खोज कर चुका था, परन्तु इसका प्रयोग वह नव पाषाण काल से करना शुरू किया
- आग का प्रयोग करके मनुष्य जानवरों को पका कर खाना शुरू कर दिया था, और आग से वह जंगली जानवरों को डरा कर अपनी रक्षा भी करता था।
- साथ ही साथ वह आग से रात को प्रकाश करना भी सीख गया था।
- नव पाषाण काल में मनुष्य का पहला पालतू जानवर कुत्ता था।
- नव पाषण काल में मनुष्यों ने कृषि करना शुरू कर दिया था।
- कृषि करने से मनुष्यों में स्थायी निवास करने की प्रवृत्ति भी शुरू हुई।
- इसके पहले वह भोजन की तलाश में एक स्थान से दुसरे स्थान तक भटकते रहते थे।
- नव पाषाण काल में मनुष्य पहिये का अविष्कार कर लिया था।
इन्हें भी देखे
- कांस्य युग Bronze Age (3300-500 ई.पू.)
- फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी (1664 – 1790 )
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम (1773-1945)
- आंग्ल-मराठा युद्ध | 1775-1818 ई.
- शेरशाह सूरी (1485- 1545 ई.)
- महाराणा प्रताप (1540-1597 ई.)
- खिलजी वंश | Khilji Dynasty | 1290ई. – 1320 ई.
- ब्रांड एम्बेसडर
- रेलवे जोन और उनके मुख्यालय के नाम एवं स्थापना वर्ष
- गोदान उपन्यास | भाग 30 – मुंशी प्रेमचंद
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