हिमालयी नदी प्रणाली (Himalayan River System), एक विशाल और संघटित नदी प्रणाली है जो भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी हिमालय से निकलकर दक्षिणी भूमि तक बहती है। हिमालयी नदी प्रणाली भारतीय उपमहाद्वीप के जल संसाधन का महत्वपूर्ण स्रोत है। इसका अध्ययन भूगोलशास्त्र में विशेष महत्व रखता है। इसका प्रयोग साइक्लोन निर्माण, जल संचार, और कृषि क्षेत्रों की सिंचाई के लिए किया जाता है, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है।
हिमालयी नदी प्रणाली (हिमालयी अपवाह तंत्र)
- स्रोत और प्रवाह: हिमालयी नदी प्रणाली के स्रोत हिमालय की शीतल चोटियों से होते हैं, जो बर्फ, बर्फबारी, और बर्फ के पिघलने से उत्पन्न होती हैं। यह नदी प्रणाली गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, और उनकी सहायक नदियों को अपने साथ लेकर बहती है।
- भूमि क्षेत्र: यह नदी प्रणाली भारत के उत्तरी और पश्चिमी भू-भागों को छूने वाली विभिन्न शाखाओं के माध्यम से बहती है, जिसमें गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र शामिल हैं।
- सहायक नदियाँ: हिमालयी नदी प्रणाली के कई सहायक नदियाँ हैं, जो इसे और भी संघटित बनाती हैं। इनमें यमुना, सिंधु, गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा, और महानदी शामिल हैं।
- नदी प्रणाली का महत्व: हिमालयी नदी प्रणाली का महत्व भारतीय सभी भू-भागों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह नदी प्रणाली साइक्लोन बनाने में, जल संचार करने में, और कृषि क्षेत्रों को सिंचाई करने में सहायक है।
- जल संसाधन का स्रोत: हिमालयी नदी प्रणाली भारत के जल संसाधन के लिए मुख्य स्रोत है। यह नदी प्रणाली लोगों को पीने के पानी, कृषि, उद्योग, और जल संरक्षण के लिए अद्वितीय जल स्रोत प्रदान करती है।
- वायुमंडलीय प्रभाव: हिमालयी नदी प्रणाली के स्रोतों से निकलने वाली हवा वायुमंडलीय परिस्थितियों को सुधारने में मदद करती है और भूमि पर विभिन्न प्रभाव डालती है।
नदियों के उद्गम स्थल से उनके समागम तक के सफ़र को अपवाह तंत्र कहते हैं।
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ और ग्लेशियरों (हिमानी या हिमनद) के पिघलने से बनी हैं। इस कारण से इनमें पूरे वर्ष निरन्तर प्रवाह बना रहता है। हिमालय की नदियों के बेसिन बहुत बड़े हैं एवं उनके जलग्रहण क्षेत्र सैकड़ों-हजारों वर्ग किमी. में फैले हुए हैं।
हिमालय की नदियों को तीन प्रमुख नदी-तंत्रों में विभाजित किया गया है।
हिमालय पर प्रवाहित होने वाली तीन ऐसी नदियां हैं, जो हिमालय के उत्थान से पूर्व भी उस स्थान पर प्रवाहित होती थीं, ऐसी नदियों को पूर्ववर्ती नदियां कहते हैं। पूर्ववर्ती नदियों का अर्थ है कि ये तीनों नदियां हिमालय के उत्थान के पहले से ही प्रवाहित होती थी। ये नदियाँ तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से निकलती थीं, तथा टेथिस सागर में अपना जल गिराती थीं। इन तीन पूर्ववर्ती नदियों के नाम निम्नलिखित हैं-
- सिंधु नदी
- सतलज नदी
- ब्रह्मपुत्र नदी
हिमालय के निर्माण से पहले उस स्थान पर टेथिस सागर हुआ करता था। टेथिस सागर को टेथिस भू-सन्नति भी कहते हैं। जब टेथिस भू-सन्नति से हिमालय का उत्थान प्रारम्भ हुआ, उस समय भी इन नदियों ने न तो अपनी दिशा बदली और न ही अपना रास्ता छोड़ा। ये नदियाँ उस समय भी अपने उसी प्रवाह के साथ प्रवाहित होती रही। अपनी तेज धारा के कारण ये तीनों नदियां हिमालय के उत्थान के साथ-साथ हिमालय को काटती रहीं और अपने घाटियों को गहरा करती रहीं।
इस प्रकार इन तीनों नदियों ने वृहद् हिमालय में गहरी और संकरी घाटियों का निर्माण कर दिया। इन घाटियों को गॉर्ज या आई (I) आकार की घाटी अथवा कैनियन भी कहते हैं। इन घाटियों के नाम है –
- सिंधु गॉर्ज – जम्मू-कश्मीर में गिलगिट के समीप सिंधु नदी पर
- शिपकिला गॉर्ज- हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी पर
- दिहांग गॉर्ज- अरूणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर
हिमालय क्षेत्र की तीनों पूर्ववर्ती नदियां अर्थात् सिंधु, सतलज और ब्रह्मपुत्र अंतर्राष्ट्रीय नदियां हैं। ये तीनों नदियां तीन देश से होकर प्रवाहित होती हैं –
- सिंधु नदी – चीन, भारत, पाकिस्तान
- सतलज नदी – चीन, भारत, पाकिस्तान
- ब्रह्मपुत्र नदी – चीन, भारत, बांग्लादेश
सिन्धु नदी-तंत्र
सिन्धु नदी तंत्र के अन्तर्गत सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियां सम्मिलित है। अर्थात इस नदी तंत्र के मुख्य नदी सिन्धु नदी है। सिन्धु नदी तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट ‘बोखार-चू ग्लेशियर’ से निकलती है। यह नदी 2,880 किमी. लम्बी है। भारत में इसकी लम्बाई 1,114 किमी. (पाक अधिकृत सहित, केवल भारत में 709 किमी.) है। इसका जल संग्रहण क्षेत्र 11.65 लाख वर्ग किमी. है। यह नदी अंतर्राष्ट्रीय नदी है जो तीन देशों चीन, भारत, पाकिस्तान से होकर प्रवाहित होती है।
- सिंधु नदी ‘सिंधु नदी तंत्र’ की प्रमुख नदी है।
- सिंधु नदी ब्रह्मपुत्र नदी के बाद भारत में प्रवाहित होने वाली दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
- सिंधु नदी के बायें तट पर आकर 5 प्रमुख सहायक नदियाँ मिलती है जिनके नाम है- झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज।
- सिंधु नदी तंत्र में दो नदियां सिन्धु नदी और सतलज नदी तिब्बत के मानसरोवर झील से निकलती हैं।
- सिंधु नदी तंत्र की एकमात्र नदी झेलम नदी जम्मू-कश्मीर राज्य से निकलती है।
- सिंधु नदी तंत्र की शेष तीन नदियां जिनके नाम चेनाब, रावी और व्यास हैं, हिमाचल प्रदेश से निकलती हैं।
- सिंधु नदी तंत्र की ये पांच सहायक नदियाँ (झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज) पंजाब में पंचनद कहलाती हैं। इन्ही के कारण इस राज्य का नाम पंजाब (पांच नदियों का देश) पड़ा।
- ये पांचों प्रमुख सहायक नदियां सम्मिलित रूप से पाकिस्तान के मिठानकोट में सिंधु नदी के बायें तट पर अपना जल गिराती हैं।
- सिंधु नदी तंत्र की नदियों का उद्गम स्थान निम्न है-
- सिंधु – तिब्बत के मानसरोवर झील के समीप चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से।
- सतलज – तिब्बत के मानसरोवर झील के समीप राकसताल या राक्षसताल से।
- झेलम – जम्मू-कश्मीर में बेरीनाग के समीप शेषनाग झील से।
- चेनाब – हिमाचल प्रदेश में बारालाचाला दर्रे के समीप से।
- रावी और व्यास -हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के समीप से।
- इनमें से व्यास नदी सतलज की सहायक नदी है।
- व्यास नदी सिंधु नदी तंत्र की एकमात्र ऐसी सहायक नदी है, जो पाकिस्तान में प्रवाहित नहीं होती है।
- व्यास नदी रोहतांग दर्रे (हिमाचल प्रदेश) से निकलकर पंजाब में कपूरथला के निकट हरिके नामक स्थान पर सतलज नदी से मिल जाती है।
- सिन्धु नदी जिन शहरों से होकर प्रवाहित होती है उनके नाम हैं – लेह, स्कार्दु, दासु, बेशम, थाकोट, डेरा इश्माइल खान, सुक्कूर, हैदराबाद।
सिन्धु जल समझौता (सिन्धु – नद समझौता)
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिन्धु जल समझौते के अन्तर्गत भारत सिन्धु व उसकी सहायक नदियों में झेलम और चेनाब का 20 प्रतिशत जल उपयोग कर सकता है और पाकिस्तान इसका 80 प्रतिशत जल उपयोग करेगा। जबकि व्यास, सतलज और रावी नदी के 80 प्रतिशत जल का उपयोग भारत कर सकता है, और इसके 20 प्रतिशत जल का उपयोग पाकिस्तान कर सकता है। सिन्धु नदी भारत से होकर पाकिस्तान पहुचती है। पाकिस्तान में कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है।
सिन्धु नदी-तंत्र की सहायक नदियां
सिन्धु नदी-तंत्र की सहायक नदियों के नाम हैं – ब्यास नदी, चिनाब नदी, गार नदी, गिलगित नदी, गोमल नदी, हुनजा नदी, झेलम नदी, काबुल नदी, कुनार नदी, कुर्रम नदी, पानजनाद नदी, रावी नदी, श्योक नदी, सून नदी, सुरू नदी, सतलुज नदी, स्वात नदी, ज़ांस्कर नदी, झॉब नदी, टोची नदी, गोमल नदी, संगर नदी।
सिन्धु नदी की सहायक नदियों में से कुछ नदियाँ सिन्धु नदी में दायीं ओर से आकर मिलती हैं तो कुछ नदियाँ बायीं ओर से आकर मिलती है, जिसको निम्न प्रकार से समझा जा सकता है –
- सिन्धु नदी के दायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियाँ – श्योक नदी, काबुल नदी, कुर्रम नदी, गोमल नदी, हुनजा नदी, गिलगित नदी, स्वात नदी, कुनार नदी, झोब नदी।
- सिन्धु नदी के बायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियाँ – सतलज, व्यास, रावी, चिनाब एवं झेलम नदियों की संयुक्त धारा (मिठानकोट के पास) तथा जास्कर नदी, स्यांग नदी, शिगार नदी, गिलगिट नदी, सुरु नदी, सुन नदी, पानजनाद नदी।
झेलम, चिनाव, रावी, व्यास एवं सतलुज सिंध नदी की पांच प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। इनको संयुक्त रूप से पंचनद कहा जाता है। इन पाँचों नदियों का जल संयुक्त रूप से पाकिस्तान के मिठानकोट के पास सिन्धु नदी में समाहित हो जाता है। इन पाँचों नदियों को सिन्धु नदी की उपनदी भी कहा जाता है।
झेलम नदी
झेलम नदी सिन्धु नदी की सहायक नदी है। झेलम नदी जम्मू-कश्मीर में पीरपंजाल पर्वत श्रेणी में शेषनाग झील के पास वेरीनाग झरने से निकलती है। यह नदी बहती हुयी श्रीनगर से होते हुए वूलर झील में मिलती है। झेलम नदी वुलर झील से आगे भारत-पाकिस्तान सीमा के साथ-साथ प्रवाहित होती है, इसके पश्चात पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। इसकी सहायक नदी किशनगंगा है।
किशनगंगा को पाकिस्तान में नीलम कहा जाता है। श्रीनगर झेलम नदी के किनारे बसा है। श्रीनगर में इस पर ‘शिकार’ या ‘बजरे’ अधिक चलाए जाते हैं। झेलम नदी कश्मीर घाटी से होकर प्रवाहित होती है। कश्मीर घाटी एक समतल मैदान है एवं ढाल कम है। इस कारण यहाँ झेलम नदी विसर्पों का निर्माण करती है। झेलम नदी जम्मू-कश्मीर में अनन्तनाग से बारामुला तक नौकागम्य है। अंततः पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के झंग ज़िले में त्रिम्मू नामक स्थान पर चिनाब नदी के साथ इसका संगम होता है, जिसके पश्चात चिनाब नदी आगे जाकर स्वयं सिन्धु नदी समाहित हो जाती है।
चिनाब नदी
यह नदी सिन्धु नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। जो हिमाचल प्रदेश में चन्द्रभागा कहलाती है। चिनाब नदी भारत के हिमाचल प्रदेश के लाहौल (लाहुल) और स्पीति जिले के ऊपरी हिमालय में टांडी में बाड़ालाचा दर्रे से चंद्रा और भागा नाम की निकलने वाली दो नदियों के संगम से बनती है। इसकी ऊपरी भाग में इसे चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है। यह सिंधु नदी की एक सहायक नदी है। यह नदी जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र से होते हुए पंजाब, पाकिस्तान के मैदानी इलाकों में बहती है। चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश व जम्मू कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान के मिठानकोट नामक स्थान पर सिंधु नदी में मिल जाती है।
रावी नदी
रावी नदी सिन्धु नदी की सहायक नदी है। रावी नदी उत्तर भारत में बहने वाली एक नदी है। इसका ऋग्वैदिक कालीन नाम परुष्णी है। इसको लहौर नदी भी कहा जाता है। यह अमृतसर और गुरदासपुर की सीमा बनाती है। यह सिंधु के सहायक पंचनद (पांच नदियों) में सबसे छोटी नदी हैं।
रावी नदी हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले में रोहतांग दर्रे से निकल कर हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर तथा पंजाब होते हुए पाकिस्तान पहुँचती है। रावी नदी पाकिस्तान में झांग जिले की सीमा पर चिनाब नदी में मिल जाती हैं। इस पर थीन बांध बना है। चिनाब आगे जाकर सिन्धु नदी से मिल जाती है।
व्यास नदी
ब्यास नदी को पहले दो अन्य नामों अर्जिकिया नदी और विपाशा नदी के रूप में जाना जाता था। यह नदी कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है। यह कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा से प्रवाहित होती हुई मुरथल के पास पंजाब में चली जाती है। कांगड़ा घाटी पार करके ब्यास नदी पंजाब (भारत) में आने के बाद दक्षिण दिशा में घूम जाती है और फिर दक्षिण-पश्चिम में यह 470 किमी बहने के बाद आर्की में कपूरथला के निकट ‘हरिके’ नामक स्थान पर सतलुज नदी में मिल जाती है।
मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर टीहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर इसके प्रमुख तटीय स्थान हैं। इसकी कुल लंबाई 460 किमी है। हिमाचल प्रदेश में इसकी लंबाई 256 किमी है। कुल्लू में पतलीकूहल, पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, फोजल, सर्वरी और सैज इसकी सहायक नदियां हैं। कांगड़ा में सहायक नदियां बिनवा न्यूगल, गज और चक्की हैं। इस नदी का नाम महर्षि ब्यास के नाम पर रखा गया है। यह प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक नदी मानी जाती है। यह नदी सतलज की सहायक नदी है। यह नदी पुर्ण रूप से भारत में (460-470 किमी.) बहती है। व्यास नदी 326 ई. पू. में सिकंदर महान के भारत आक्रमण की अनुमानित पूर्वी सीमा थी।
सतलज (सतलुज) नदी
सतलज (सतलुज) नदी तिब्बत में मानसरोवर के निकट राकस ताल (राक्षस ताल) से निकलती है। और भारत में हिमांचल प्रदेश में स्थित शिपकीला दर्रे के पास से प्रवेश करती है। यहाँ पर इसका स्थानीय नाम लोगचेन खम्बाव है। भाखड़ा नांगल बांध सतलज नदी पर बनाया गया है। यह नदी हिमाचल प्रदेश में शिपकिला गॉर्ज का निर्माण करती है। सतलज नदी भारत में दो राज्यों हिमाचल प्रदेश एवं पंजाब से होकर प्रवाहित होती है। सतलज नदी सिंधु नदी के शेष चार नदियों का जल लेकर सम्मिलित रूप से पाकिस्तान के मिठानकोट में सिंधु नदी से बायीं तट पर मिल जाती है।
सिन्धु नदी की उपनदियाँ
सिंधु नदी तंत्र की पांच नदियाँ जिनके नाम है – वितस्ता (झेलम), चन्द्रभागा (चिनाब), ईरावती (रावी), विपासा (व्यास) और शतद्रु (सतलुज) को ही सिन्धु नदी की उपनदियाँ कहा जाता है। इनमें सतलुज/ शतद्रु नदी सबसे बड़ी उपनदी है। शतद्रु (सतलुज) नदी पर बना भाखड़ा-नंगल बांध से सिंचाई एंव विद्युत् परियोजना को बहुत सहायता मिली है। इस परियोजना के द्वारा भारत के पंजाब एंव हिमाचल प्रदेश में खेती करना अत्यंत सुगम हो गया। वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे जम्मू व कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित है।
गंगा नदी-तंत्र
उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से भागीरथी के रूप में निकलकर देवप्रयाग में अलकनंदा एवं भागीरथी के संगम के बाद निकलने वाली संयुक्त धारा गंगा नदी के नाम से जाना जाता है। प्रयागराज (इलाहाबाद) के निकट गंगा से यमुना मिलती है, जिसे संगम या प्रयाग कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में गंगा दो प्रमुख वितरिकाओं (धाराओं) में बँट जाती है।
वितरिका ( Distributary ) मुख्य नदी से निकलने वाली ऐसी छोटी नदी होती है जिसमें वह पुनः नहीं मिलती है। इस प्रकार दो वितरिकाओं में बंट कर एक धारा हुगली नदी के रूप में अलग हो जाती है, जबकि मुख्यधारा भागीरथी के रूप में आगे बढ़ती है। हुगली नदी गंगा नदी से फिर नहीं मिलती है। आगे छोटानागपुर पठार की दामोदर नदी हुगली नदी में आकर मिलती है। फरक्का बाँध का निर्माण हुगली नदी पर ही किया गया है।
पश्चिम बंगाल में गंगा नदी की मुख्य धारा हुगली नदी से अलग होने के बाद भागीरथी नाम से आगे बढती हुई बांग्लादेश चली जाती है। बांग्लादेश में इसे पद्मा नाम से जाना जाता है। बांग्लादेश में पाबना से पूर्व, गोलुंडो के पास ब्रह्मपुत्र नदी जमुना के नाम से पद्मा/ भागीरथी (गंगा) में मिलती है। इनकी संयुक्त धारा पद्मा के नाम से आगे बढती है। इस पद्मा नदी में बांग्लादेश में ही मेघना नदी आकर मिलती है।
मेघना नदी से मिलने के बाद गंगा एवं ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा मेघना के नाम से आगे बढ़ती है और आगे जाकर अनेक जल वितरिकाओं में बंटते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले यह नदी डेल्टा का निर्माण करती है, जिसका नाम गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा अथवा सुन्दर बन डेल्टा है। यह विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा कहलाता है।
डेल्टा किसे कहते हैं?
नदी जब सागर या झील में गिरती है तो उसके वेग में कमी के कारण मुहाने पर उसके मलबे का निक्षेप होने लगता है। इस निक्षेप के कारण वहां विशेष प्रकार के स्थल रूप का निर्माण होता है। इसी स्थल रूप को डेल्टा कहते हैं।
गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा (सुन्दर बन डेल्टा)
बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह धारा कई छोटी-छोटी वितरिकाओ (धाराओं) में बंट जाती है। और एक डेल्टा का निर्माण करती है। इस डेल्टा को गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा कहा जाता है। यह डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है। इसका विस्तार हुगली और मेघना नदियों के बीच है। इस डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष अधिक मात्र में पाए जाते हैं इस कारण इसे ‘सुन्दर वन डेल्टा’ कहा जाता है।
गंगा नदी-तंत्र की सहायक नदियां
- गंगा नदी के बांयी ओर मिलने वाली सहायक नदी – गोमती, घाघरा, गण्डक, बूढ़ीगंगा, कोशी, महानंदा, ब्रह्मपुत्र।
- गंगा नदी के दांयी ओर मिलने वाली सहायक नदी – यमुना, टोंस (तमसा), सोन।
यमुना नदी
यमुना नदी गंगा नदी की सबसे लम्बी सहायक नदी है। इसकी लम्बाई 1,370 किमी. है। यह नदी बंदरपूंछ श्रेणी पर स्थित यमुनोत्री हिमनद से निकलती है। हिमालय पर्वत के हिमाच्छादित चोटी बंदरपुच्छ की ऊँचाई 6200 मीटर है। बंदरपुच्छ चोटी से 7 से 8 मील उत्तर-पश्चिम में कालिंद पर्वत स्थित है। यमुना नदी का उद्गम स्थल यहीं है। इसी पर्वत के नाम पर यमुना को कालिंदजा अथवा कालिंदी कहा जाता है। परन्तु यमुना नदी यहाँ पर अदृश्य रहती है, और वह अदृश्य रूप में ही यमुनोत्री हिमनद तक पहुँचती है। उसके बाद यमुना नदी के दर्शन होते हैं।
कालिंद पर्वत पर अपने उद्गम स्थान से निकलकर यमुना नदी आगे कई मील तक विशाल हिमगारों और हिम मंडित कंदराओं में अदृश्य रूप से बहती है। इस नदी की धारा पहाड़ी ढलानों पर से अत्यन्त तीव्रतापूर्वक उतरती हुई यमुनोत्तरी पर्वत (20,731 फीट ऊँचाई) से प्रकट होती है। यहाँ इनके दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु यात्री प्रतिवर्ष भारत वर्ष के कोने-कोने से पहुँचते हैं। यमुना नदी की प्रमुख सहायक नदियां हिंडन, ऋषि गंगा, चंबल, बेतवा, केन एवं सिंध है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहबाद) में यमुना नदी का संगम गंगा नदी से हो जाता है।
रामगंगा नदी
रामगंगा नदी भारत की प्रमुख तथा पवित्र नदियों में से एक हैं। यह उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहती है और गंगा नदी की एक सहायक नदी है। रामगंगा नदी का उद्गम उत्तराखण्ड के राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के गैरसैण तहसील में दूधतोली पहाड़ी की दक्षिणी ढलानों में होता है। इस नदी के स्रोत को “दिवालीखाल” कहा जाता है। यह नदी कन्नौज के पास गंगा नदी में मिल जाती है।
गोमती नदी
गोमती नदी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले की तहसील कलीनगर के ग्राम फुलहर के उत्तर पश्चिम में फुल्हर झील (गोमत ताल) से होता है। इस नदी का बहाव उत्तर प्रदेश में 900 कि.मी. तक है। गोमती नदी के किनारे लखनऊ, जौनपुर व गाजीपुर शहर बसे हुए हैं। यह नदी वाराणसी के निकट सैदपुर के पास कैथी नामक स्थान पर गंगा में मिल जाती हैI
घाघरा (सरयु) नदी
सरयू नदी को घाघरा नदी भी कहा जाता है। यह भारत के उत्तरी भाग में बहने वाली एक नदी है। यह नदी उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर ज़िले में उत्पन्न होती है, और आगे जाकर शारदा नदी में इसका विलय हो जाता है। यहाँ पर इसे काली नदी के नाम से भी जाना जाता है। इसके पश्चात यह उत्तर प्रदेश राज्य से गुज़रती है। यहाँ पर शारदा नदी पुनः घाघरा नदी में आकर मिल जाती है।
घाघरा नदी को कई स्थानों पर सरयू नदी के नाम से बुलाया जाता है। इस नदी के किनारे अयोध्या का ऐतिहासिक व तीर्थ नगर बसा हुआ है। इसके पश्चात सरयू नदी बिहार राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ बलिया और छपरा के बीच में इसका विलय गंगा नदी में हो जाता है। इस नदी की प्रमुख सहायक नदियां राप्ती एवं शारदा नदी है।
घाघरा नदी अपने ऊपरी भाग में काली नदी के नाम से जानी जाती है और निचले भाग में सरयू नदी के रूप में जानी जाती है। यह काफ़ी दूरी तक भारत के उत्तराखण्ड राज्य और नेपाल के बीच सीमा रेखा बनाती है। सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी राप्ती है। राप्ती नदी इसमें उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर मिलती है। प्रमुख नगर गोरखपुर इसी राप्ती नदी के तट पर स्थित है। बाराबंकी, बहरामघाट, बहराइच, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद, अयोध्या, टान्डा, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट, बलिया आदि शहर इस नदी के तट पर स्थित हैं।
गण्डक नदी
गण्डकी नदी, नेपाल और बिहार में बहने वाली एक नदी है। इस नदी को बड़ी गंडक या केवल गंडक भी कहा जाता है। इस नदी को नेपाल में शालिग्रामी या सालग्रामी और मैदानों मे नारायणी और सप्तगण्डकी नाम से जाना जाता है। यूनानी के भूगोलवेत्ताओं की कोंडोचेट्स तथा महाकाव्यों में उल्लिखित सदानीरा भी यही नदी है।
गण्डक नदी हिमालय से निकलकर दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती हुई भारत में प्रवेश करती है। त्रिवेणी पर्वत के पहले इस नदी में एक सहायक नदी त्रिशूलगंगा मिलती है। यह नदी उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों के बीच काफी लम्बी सीमा निर्धारित करती है। उत्तर प्रदेश में यह नदी महराजगंज और कुशीनगर जिलों से होकर बहती हुई बिहार पहुँचती है। बिहार में यह चंपारन, सारन और मुजफ्फरपुर जिलों से होकर बहती हुई पटना के सम्मुख गंगा नदी में मिल जाती है।
कोसी नदी
कोसी नदी या कोशी नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है। यह गंगा नदी की सहायक नदी है। कोसी नदी मार्ग अपने परिवर्तन तथा आकस्मिक बाढ़ के लिए कुख्यात है। इस नदी द्वारा बिहार में धन – जन की अपार क्षति होती है जिस कारण इसे बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहा जाता है। कोसी/कोशी नदी नेपाल में हिमालय पर्वत से निकलती है और बिहार में भीम नगर के रास्ते से होते हुए भारत में दाखिल होती है।
इस नदी के भौगोलिक रूप के बारे में कहा जाता है कि यह नदी पिछले 200 सालों में लगभग 120 किमी. से भी अधिक धरातल पर अपना विस्तार कर चुकी है। यह नदी बिहार के राजमहल के पास गंगा में मिल जाती है। इसके अलावा बिहार के कटिहार में भी यह नदी गंगा में मिलती है। इस की लम्बाई लगभग 720 किमी. है। यह नदी बिहार में सुपौल, पूर्णिया, कटिहार आदि जिले में बहती है।
हिन्दू ग्रंथों में कोशी नदी को कौशिकी नाम से उद्धृत किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि विश्वामित्र ने इसी नदी के किनारे ऋषि का दर्ज़ा पाया था। विश्वामित्र कुशिक ऋषि के शिष्य थे और उन्हें ऋग्वेद में कौशिक भी कहा गया है। इन्ही के नाम पर इस नदी का नाम कौशिकी पड़ा, जो बाद में कोशी नाम से जाना जाने लगा। महाभारत में भी इसका ज़िक्र कौशिकी नाम से मिलता है। यह नदी सात धाराओं से मिलकर बनी है। इन सात धाराओं से मिलने के कारण इसे सप्तकोशी नदी कहा गया। स्थानीय रूप से इसे कोसी कहा जाता है।
हुगली नदी
हुगली नदी को भागीरथी-हुगली नदी भी कहा जाता है। यह नदी भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बहने वाली एक नदी है। हुगली नदी का उद्गम प. बंगाल में गंगा नदी की वितरिका के रूप में होता है। गंगा नदी से निकलने के बाद यह नदी पुनः गंगा नदी में नहीं मिलती है। छोटा नागपुर पठार की दामोदर नदी इसमें आकर मिलती है और यह संयुक्त धारा बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
हुगली नदी पर ही फरक्का बांध का निर्माण किया गया है। इसको विश्व का सबसे अधिक विश्वासघाती नदी कहते है। इसी नदी के तट पर कोलकाता बन्दरगाह स्थित है। गंगा नदी की अन्य धाराओं की भांति हुगली-भागीरथी नदी को भी पवित्र नदी माना जाता है।
तमसा (टोंस) नदी
तमसा नदी जिसे टोंस नदी भी कहा जाता है, भारत के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह गंगा नदी की सहायक नदी है। तमसा नदी मध्य प्रदेश के मैहर जिले में कैमूर पर्वतमाला में स्थित तमसा कुण्ड नामक जलाशय से उत्पन्न होती है। यह कैमूर की पहाड़ीयों से निकलकर उत्तर प्रदेश में प्रयागराज (इलाहबाद) से 32 किमी आगे सिरसा के पास गंगा नदी में मिल जाती है।
सोन नदी
सोन नदी भारत के मध्य भाग में बहने वाली एक नदी है। इस नदी को सोनभद्र शिला के नाम से भी जाना जाता है। यमुना नदी के बाद यह गंगा नदी की दक्षिणी सहायक नदियों में सबसे बड़ी सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले में अमरकंटक के पास है, जो विंध्याचल पहाड़ियों में नर्मदा नदी के स्रोतस्थल से पूर्व में स्थित है। सों नदी उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्यों से प्रवाहित होते हुए बिहार के पटना ज़िले में गंगा नदी में मिल जाती है।
यमुना की सहायक नदियां
चम्बल (चंबल) नदी
चम्बल (चंबल) नदी मध्य भारत में प्रवाहित होने वाली तथा यमुना नदी की सहायक नदी है। यह नदी जानापाव पर्वत में बांगचु पॉइंट महू से निकलती है। चम्बल (चंबल) नदी का प्राचीन नाम चर्मण्वती है। इसकी सहायक नदियाँ शिप्रा, सिन्ध, काली सिन्ध और कुनू नदी है। यह नदी भारत में उत्तर तथा उत्तर-मध्य भाग में राजस्थान के चित्तौड़ गढ़ के चौरासी गढ से कोटा तथा धौलपुर सवाईमाधोपुर, मध्यप्रदेश के धार, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, भिंड, मुरैना आदि जिलों से होकर प्रवाहित होती है।
यह नदी दक्षिण की ओर मुड़ कर उत्तर प्रदेश राज्य में इतवा के समीप यमुना नदी में मिल जाती है। यमुना नदी में मिलने से पहले यह नदी राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच सीमा रेखा का काम करती है। इस नदी पर चार जल विधुत परियोजना बनायीं गयी है, जिनके नाम गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज (कोटा) है। राजस्थान की औधोगिक नगरी कोटा चम्बल नदी के किनारे स्थित है।
चम्बल (चंबल) नदी की सहायक नदियां – बनास, पार्वती, कालीसिंध एवं क्षिप्रा, आहू, परवन आदि।
सिंध नदी (Sindh River)
सिन्ध नदी भारत के मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश राज्यों में प्रवाहित होने वाली एक नदी है। यह नदी यमुना नदी की एक उपनदी (सहायक नदी) है। यह सिन्धु नदी, सिन्द नदी और काली सिन्ध नदी से बिलकुल पृथक नदी है। इस नदी की लंबाई 470 किमी है। यह नदी मध्यप्रदेश के विदिशा जिले की लटेरी तहसील से 5 किलोमीटर दूर के ग्राम गोपितलाई स्थित ताल से निकलती है तथा मध्य प्रदेश में यह उत्तर पूर्व दिशा में बहती है और उत्तर प्रदेश में जगमानपुर के पास प्रविष्ट होती है। यह नदी यहाँ से 15 किमी उत्तर में यमुना नदी से मिल जाती है।
बेतवा नदी
वेतवा नदी यमुना नदी की सहायक नदी है। वेतवा नदी मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में विन्ध्य पर्वत माला के कुम्हारागाँव से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, ललितपुर आदि ज़िलों से होकर गुजरती है। यह हमीरपुर के निकट यमुना नदी में मिलती है। इसका प्राचीन नाम वेत्रवती था। वेतवा नदी बुंदेलखण्ड पठार की सबसे लम्बी नदी है।
केन नदी
केन नदी भारत के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली एक नदी है। यह यमुना की सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले में विंध्याचल की कैमूर पर्वतमाला में होता है। इसके बाद पन्ना में इससे कई धारायें आकर जुड़ जाती हैं। अंत में यह उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में यमुना नदी से मिल जाती है।
चम्बल नदी की सहायक नदियां
बनास नदी
बनास नदी राजस्थान में बहने वाली एक नदी है। यह चम्बल नदी की सहायक नदी है। यह अरावली पर्वतमाला की खमनोर पर्वतश्रेणी में कुम्भलगढ़ से 5 किमी दूर राजसमन्द ज़िले में स्थित वेरों का मठ नामक शिव मंदिर में जन्म लेती है। तत्पश्चात पूर्वोत्तर दिशा में बहती हुई यह मेवाड़ क्षेत्र से गुज़रती हुई राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर प्रवाहित होती हुई चम्बल नदी के समीप पहुँचती है। यहाँ पर सवाई माधोपुर ज़िले में रामेश्वर नामक स्थान पर चम्बल नदी से मिल जाती है। बनास नदी एक अनिरंतर नदी है। यह नदी गर्मियों में अक्सर सूख जाती है।
क्षिप्रा नदी
यह चम्बल नदी की सहायक नदी है। यह इंदौर के उज्जैनी मुंडला गांव की ककड़ी बड़ली नामक पहाड़ी से निकलती है और मंदसौर में चंबल मे मिल जाती है। क्षिप्रा नदी मध्यप्रदेश में बहने वाली एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक नदी है। इस नदी का नाम भारत की पवित्र नदियों में आता है। उज्जैन में कुम्भ का मेला इसी नदी के किनारे लगता है।
भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर भी यही है। क्षिप्रा नदी को मालवा की गंगा के रूप में भी जाना जाता है। पुराणों में ऐसा उल्लखित है की क्षिप्रा नदी का स्मरण करने मात्र से ही मानव के सारे संचित पाप नष्ट हो जाते है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
काली सिंध नदी
यह नदी भारत के मध्य प्रदेश और राजस्थान में बहने वाली नदी है। यह चम्बल नदी की सहायक नदी है। काली सिंध नदी मध्य प्रदेश के देवास ज़िले में बागली नामक गाँव के पास विंध्याचल पहाड़ियों में जन्म लेती है। यहाँ से जन्म लेने के बाद यह नदी सोनकच्छ के समीप से गुज़रती हुई शाजापुर ज़िले में प्रवेश करती है। शाजापुर से निकलकर राजगढ़ ज़िले से होती हुई राजस्थान के झालावाड़ व कोटा ज़िलों से प्रवाहित होती हुई, नौनेरा नामक स्थान में चम्बल नदी से मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 150 किलोमीटर है।
पार्वती नदी
पार्वती नदी भारत के मध्य प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह चम्बल नदी की सहायक नदी है। पार्वती नदी की लम्बाई लगभग 471 किमी है। पार्वती नदी की उत्पत्ति सीहोर ज़िले की विंध्याचल पहाड़ियों के पश्चिमी श्रेणियों में बसे घने जंगल के बीच सिद्दीकगंज ग्राम के पास से 610 मीटर की ऊँचाई पर होती है। सीहोर ज़िले से निकलकर यह गुना ज़िले में प्रवेश करती है और फिर राजस्थान में प्रवेश कर बाराँ ज़िले से निकलकर सवाई माधोपुर ज़िले में पाली ग्राम के निकट चम्बल नदी में मिल जाती है। इसके मार्ग का लगभग 18 किमी. भाग मध्य प्रदेश व राजस्थान की सीमा का निर्धारण करता है।
ब्रह्मपुत्र नदी-तंत्र
बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र को जमुना नाम से जाना जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत में पुरंग जिले में स्थित मानसरोवर झील के निकट चेमायुंगडुंग ग्लेशियर (आंग्सी हिमनद) से होता है, जो ‘कोंगग्यू त्सो’ (‘Konggyu Tsho’) नामक झील के दक्षिण में है। तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को सांग्पो नाम से जाना जाता है। भारत में यह यह नमचा बरबा पर्वत शिखर के निकट अरूणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है तब इसका नाम दिहांग होता है। बाद में इसमें इसकी 2 सहायक नदियाँ दिबांग नदी और लोहित नदी आकर मिल जाती है।
इन नदियों के मिलने के बाद यह ब्रह्मपुत्र नाम से जानी जाती है। आसाम घाटी में बहते हुए इसे ब्रह्मपुत्र और फिर बांग्लादेश में प्रवेश करने पर इसे जमुना कहा जाता है। आगे चलकर इस नदी का पद्मा (गंगा) से संगम के बाद यह पद्मा नाम से आगे बढती है। आगे आने पर इसमें मेघना नदी आकर मिल जाती है और इनकी संयुक्त धरा को मेघना कहा जाता है। यह संयुक्त धारा सुंदरबन डेल्टा का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदियां
- ब्रह्मपुत्र नदी में दांयी ओर से मिलने वाली सहायक नदी – सुबनसिरी, कामेंग, मानस, संकोज, तीस्ता।
- ब्रह्मपुत्र नदी में बांयी ओर से मिलने वाली सहायक नदियां – लोहित, दिबांग, धनश्री, कालांग।
सुबनसिरी नदी
सुबनसिरी नदी भारत के असम व अरुणाचल प्रदेश राज्यों तथा तिब्बत में बहने वाली एक नदी है, जो ब्रह्मपुत्र नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह नदी तिब्बत में हिमालय में आरम्भ होती है और पूर्व व दक्षिणपूर्व दिशाओं में बहती हुई भारत में प्रवेश करती है। भारत में यह असम के लखीमपुर ज़िले में ब्रह्मपुत्र से संगम करती है। सुबनसिरी का पानी ब्रह्मपुत्र में बहने वाले जल का 7.92% मापा गया है। अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी और निचले सुबनसिरी ज़िलों का नाम इसी नदी पर रखा गया है।
कामेंग नदी
कामेंग नदी जो पहले भरेली नदी भी कहलाती थी, भारत के असम व अरुणाचल प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह ब्रह्मपुत्र नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है।
मानस नदी
मानस नदी दक्षिणी भूटान और भारत के बीच हिमालयी तलहटी में एक नदी है। इसका नाम हिंदू पौराणिक कथाओं में सांप भगवान मनसा के नाम पर रखा गया है। यह भूटान की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। यह नदी भूटान की चार प्रमुख नदी प्रणालियों में से एक है। भूटान की चार प्रमुख नदी प्रणालियों के नाम मानस नदी, अमो चू या टोरसा नदी, वोंग चू या रायक नदी, मो चू या संकोष नदी हैं।
संकोश (संकोज) नदी
संकोश नदी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है। संकोश (संकोज) नदी को गदाधर नदी के नाम से भी जानते हैं। यह पूर्वोत्तर भारत में बहने वाली एक नदी है। इसका उद्भव उत्तरी भूटान में होता है। भारत के असम राज्य में इसका विलय ब्रह्मपुत्र नदी में हो जाता है। भूटान में इसका नाम पुना त्सांग छू है। संकोश नदी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है।
तीस्ता नदी
तीस्ता नदी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है। यह नदी भारत के सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्य एवं बांग्लादेश से होकर बहती है। तीस्ता नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी विभाग की मुख्य नदी है। पश्चिम बंगाल में यह नदी दार्जिलिंग जिले में बहती है। तीस्ता नदी को सिक्किम और उत्तरी बंगाल की जीवनरेखा कहा जाता है। सिक्किम और पश्चिम बंगाल से प्रवाहित होती हुई यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है और ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।
लोहित नदी
लोहित नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम में बहने वाली एक नदी है। यह ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी है। इसका उद्गम स्थान पूर्वी तिब्बत के ज़याल छू पर्वतश्रेणी है। यह नदी पूर्वी तिब्बत के ज़याल छू पर्वतश्रेणी से निकलकर अरुणाचल प्रदेश में दो सौ किलोमीटर तक तीव्र वेग से बहने के बाद असम के मैदानी क्षेत्र में पहुंचती है। यह नदी तूफानी और अशान्त है इस कारण से इसे खून की नदी भी कहते हैं।
इस नदी की मिट्टी आंशिक रूप से लाल होने के कारण इसे लोहित नदी कहा जाता है। लोहित का अर्थ रक्त होता है। यह नदी मिश्मी पर्वतमाला से बहती हुई ब्रह्मपुत्र घाटी के मुहाने पर ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी को सियांग नदी के नाम से जाना जाता है।
दिबांग नदी
दिबांग नदी ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी है जो भारत के असम और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में बहती है। ब्रह्मपुत्र नदी दिहांग के नाम से अरुणाचल प्रदेश में भारत में प्रवेश करती है, जहाँ पर इसकी सहायक नदी देबांग (देबांग) और लोहित आकर इसमें (ब्रह्मपुत्र नदी में) मिलती हैं। यह संयुक्त नदी पूरी असम घाटी में प्रवाहित होती हुई धुबरी के नीचे की ओर बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
धनश्री नदी
धनसीरी नदी (धनश्री नदी) भारत के असम और नागालैण्ड राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है। इसकी लम्बाई 352 किलोमीटर (219 मील) है। यह नदी असम के गोलाघाट ज़िले और नागालैण्ड के दीमापुर ज़िले की मुख्य नदी है। धनसीरी नदी (धनश्री नदी) नागालैण्ड के लाइसांग पर्वत से उत्पन्न होती है और उत्तर दिशा में बहकर ब्रह्मपुत्र नदी में विलय हो जाती है।
कालांग नदी
कालांग नदी को कलंग नदी, कोलोंग नदी, कैलंग नदी आदि नामों से जानते हैं। यह नदी भारत में ब्रह्मपुत्र नदी की एक प्रत्यागत धारा है, जो असम राज्य के नगाँव ज़िले में ब्रह्मपुत्र की मुख्य धार से अलग होती है और गुवाहाटी के समीप कोलोंगपर में उस से फिर से जा मिलती है। यह लगभग 250 किमी तक बहती है और नगाँव, मरिगाँव और कामरूप ज़िलों से गुज़रती है।
गुंफित सरिता/ गुंफित नदी किसे कहते हैं?
गुंफित सरिता/ गुंफित नदी एक नदी या सरिता से उत्पन्न होने वाली लघु, उथली तथा संग्रथित सरिताओं का जाल होता है। नदी के मुहाने के पास भूमि का ढाल अत्यंत धीमा होने पर बड़ी मात्रा में मलवे का जमाव होता रहता है जिस कारण से डेल्टा का निर्माण होता है। इस डेल्टाई भाग में नदी का जल अनेकों शाखाओं एवं उपशाखाओं (जल वितरिकाओं) में विभिक्त हो जाता है। ये जल वितरिकाएं आगे पुनः अनेकों बार मिलती और पृथक होती रहती है। इस प्रकार छोटी-छोटी सरिताएं एक-दूसरे से कही कही गुथी हुई होती हैं तो कही कही उथली होती हैं। इस प्रकार सरिताओं को गुंफित सरिता/ गुंफित नदी कहा जाता है।
इन्हें भी देखें –
- प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली / अपवाह तंत्र | Peninsular River System
- भारत की नदियाँ | अपवाह तंत्र | Rivers of India
- भारत के महान मरुस्थल | The Great Indian Desert
- भारत के प्रायद्वीपीय पठार | The Great Indian Peninsular Plateau
- भारत के तटीय मैदान | The Costal Plains of India
- दुनिया के प्रमुख धर्म | Major religions of the world | टॉप 10
- भारत का संविधान: स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का संरक्षण
- सिन्धु नदी तन्त्र | सिन्धु और सहायक नदियाँ | Indus River System
- ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र | ब्रह्मपुत्र और सहायक नदियाँ