21वीं सदी की सुरक्षा चुनौतियाँ लगातार बदल रही हैं। समुद्रों पर नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है, और नौसैनिक शक्तियाँ न केवल पारंपरिक जहाज़ों और पनडुब्बियों पर, बल्कि उन्नत तकनीकों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर भी अधिक भरोसा कर रही हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में ऑस्ट्रेलिया ने एक अत्यंत महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है—“घोस्ट शार्क” (Ghost Shark)।
यह परियोजना केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि समुद्री युद्ध की रणनीति और संचालन के ढाँचे में क्रांतिकारी बदलाव का संकेत देती है। A$1.7 अरब (लगभग US$1.1 अरब) के निवेश से अगले पाँच वर्षों में विकसित होने वाले ये स्वायत्त अंडरसी वाहन (XL-AUVs) ऑस्ट्रेलिया की नौसैनिक शक्ति को नए स्तर पर ले जाएंगे।
घोस्ट शार्क क्या है?
“घोस्ट शार्क” नामक ये वाहन वास्तव में अत्यधिक बड़े स्वायत्त पनडुब्बी वाहन (Extra Large Autonomous Underwater Vehicles – XL-AUVs) हैं।
- आकार और स्वरूप: इनका आकार बस के बराबर होता है।
- संचालन क्षमता: ये लंबे समय तक बिना सतह पर आए पानी के भीतर रह सकती हैं और स्टील्थ (गुप्त) मिशनों को अंजाम दे सकती हैं।
- उद्देश्य:
- खुफिया जानकारी एकत्र करना (Intelligence, Surveillance, Reconnaissance – ISR)
- निगरानी और टोही
- आवश्यक होने पर हमले करना
- तैनाती: इन्हें तट (shore) या सतही जहाज़ों से आसानी से तैनात किया जा सकता है।
इनका अभिनव डिज़ाइन इन्हें पारंपरिक पनडुब्बियों से अलग बनाता है। इनमें “फ्लडेड इंटीरियर” तकनीक अपनाई गई है, यानी इसमें पारंपरिक प्रेशर हुल (Pressure Hull) मौजूद नहीं है। यह न केवल इन्हें अधिक गहराई तक ले जाने योग्य बनाता है बल्कि इनकी सहनशक्ति (Endurance) को भी बढ़ाता है।
तकनीकी विशेषताएँ और एआई का प्रयोग
घोस्ट शार्क्स का सबसे अहम पहलू है इनमें लगाया गया एंड्यूरिल का लैटिस (Lattice) एआई सिस्टम।
- यह सिस्टम नेविगेशन, प्रणोदन (Propulsion) और मिशन-संबंधी निर्णयों को स्वतः नियंत्रित करता है।
- किसी मिशन के दौरान इन्हें मानव संचालकों की प्रत्यक्ष निगरानी की आवश्यकता नहीं रहती, जिससे ये पूरी तरह से स्वायत्त (Autonomous) बन जाती हैं।
- मिशन की स्थिति के अनुसार निर्णय बदलने और दिशा तय करने की क्षमता इन वाहनों को वास्तविक युद्ध में और भी अधिक प्रभावशाली बना देती है।
AI और स्वचालन (Automation) का यह मेल घोस्ट शार्क्स को भविष्य के “स्मार्ट वारफेयर” (Smart Warfare) का प्रतीक बनाता है।
विकास और उत्पादन: ऑस्ट्रेलिया की घरेलू क्षमता
इस परियोजना को एंड्यूरिल ऑस्ट्रेलिया द्वारा डिफेन्स साइंस एंड टेक्नोलॉजी ग्रुप (DSTG) के सहयोग से विकसित किया जा रहा है।
- पूरा उत्पादन ऑस्ट्रेलिया में ही किया जाएगा।
- इसका उद्देश्य न केवल नौसैनिक शक्ति को बढ़ाना है, बल्कि देश में रक्षा उद्योग के लिए नए अवसर पैदा करना भी है।
- अनुमान है कि 2026 की शुरुआत तक इसका पहला बेड़ा (Fleet) ऑस्ट्रेलियाई नौसेना में शामिल हो जाएगा।
इससे यह स्पष्ट है कि ऑस्ट्रेलिया केवल रक्षा तकनीक का आयातक नहीं रहना चाहता, बल्कि स्वयं एक नवोन्मेषी (Innovative) रक्षा उत्पादक बनना चाहता है।
नौसैनिक युद्ध के लिए घोस्ट शार्क का महत्व
1. कम लागत और अधिक प्रभाव
मानव-संचालित पनडुब्बियों और जहाज़ों की तुलना में घोस्ट शार्क्स बहुत कम लागत में समुद्र में स्थायी उपस्थिति सुनिश्चित कर सकती हैं।
2. AUKUS कार्यक्रम की खाई भरना
ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच हुआ AUKUS समझौता ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियाँ उपलब्ध कराने पर केंद्रित है। लेकिन इन पनडुब्बियों की आपूर्ति और तैनाती में समय लग रहा है। ऐसे में घोस्ट शार्क्स ऑस्ट्रेलिया की तत्काल जरूरतों को पूरा करेंगी।
3. स्टील्थ और सहनशक्ति
इन वाहनों की गुप्त (Stealth) क्षमता और लंबी सहनशक्ति इन्हें विशाल समुद्री सीमाओं की निगरानी के लिए आदर्श बनाती है।
4. बहुउद्देश्यीय लचीलापन
चाहे वह टोही मिशन हो, खुफिया जानकारी जुटाना हो या अचानक हमला करना—ये सभी कार्य एक ही प्लेटफॉर्म से पूरे किए जा सकते हैं।
रणनीतिक प्रभाव
ऑस्ट्रेलिया के लिए घोस्ट शार्क का महत्व केवल तकनीकी नहीं है, बल्कि भू-राजनीतिक भी है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक सक्रियता ऑस्ट्रेलिया के लिए चिंता का विषय है।
- ऐसे में घोस्ट शार्क्स ऑस्ट्रेलिया को अपनी समुद्री सीमाओं पर अधिक नियंत्रण और सुरक्षा प्रदान करेंगी।
- यह अमेरिका और ब्रिटेन जैसे सहयोगियों के लिए भी राहत की बात है, क्योंकि इससे क्षेत्र में सामरिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
औद्योगिक और आर्थिक प्रभाव
इस कार्यक्रम का लाभ केवल रक्षा मोर्चे तक सीमित नहीं रहेगा।
- एंड्यूरिल में पहले से मौजूद 120 नौकरियों को समर्थन मिलेगा।
- 150 से अधिक नई कुशल नौकरियाँ सृजित होंगी।
- 40 से अधिक सप्लायर्स (आपूर्तिकर्ताओं) में लगभग 600 अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
इस प्रकार यह कार्यक्रम औद्योगिक वृद्धि और कौशल विकास दोनों में योगदान देगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
दुनिया की बड़ी नौसैनिक शक्तियाँ—जैसे अमेरिका, रूस, चीन और ब्रिटेन—पहले से ही मानवरहित पनडुब्बियों के विकास पर काम कर रही हैं।
- अमेरिका के पास Orca XL-AUV जैसे प्रोजेक्ट हैं।
- चीन भी दक्षिण चीन सागर में अपने स्वायत्त वाहनों की क्षमता बढ़ा रहा है।
- ऐसे में ऑस्ट्रेलिया का यह कदम उसे तकनीकी प्रतिस्पर्धा में पीछे नहीं रहने देगा।
यह वैश्विक स्तर पर मानवरहित नौसैनिक युद्ध प्रणाली की ओर बढ़ते रुझान का स्पष्ट संकेत है।
संभावित उपयोग
- निगरानी और खुफिया जानकारी: दुश्मन की गतिविधियों पर नज़र रखना।
- समुद्री खनन (Mine Laying/Countering): समुद्र में खदानें बिछाना या निष्क्रिय करना।
- संचार और डेटा रिले: नौसैनिक जहाज़ों और उपग्रहों के बीच संचार का माध्यम।
- रणनीतिक हमले: आवश्यक होने पर हथियार ले जाकर दुश्मन पर प्रहार करना।
भविष्य की चुनौतियाँ
हालाँकि यह परियोजना महत्वाकांक्षी है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ सामने हैं:
- तकनीकी विश्वसनीयता: क्या ये वाहनों लंबे मिशनों में बिना मानवीय हस्तक्षेप के पूरी तरह सफल रहेंगे?
- साइबर सुरक्षा: एआई आधारित सिस्टम साइबर हमलों का लक्ष्य बन सकते हैं।
- कानूनी और नैतिक प्रश्न: क्या स्वायत्त हथियार प्रणालियों का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवीय मूल्यों के अनुरूप होगा?
- रखरखाव और संचालन: इन उन्नत प्रणालियों को लंबे समय तक सुचारु रखने के लिए विशेष ढाँचागत तैयारी करनी होगी।
निष्कर्ष
“घोस्ट शार्क” परियोजना केवल ऑस्ट्रेलिया के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक नौसैनिक युद्ध के भविष्य के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
यह तकनीक:
- समुद्रों में स्थायी और किफायती उपस्थिति सुनिश्चित करेगी,
- स्टील्थ और एआई का उपयोग करके रणनीतिक बढ़त दिलाएगी,
- और ऑस्ट्रेलिया को रक्षा उद्योग में आत्मनिर्भर बनाएगी।
जहाँ एक ओर यह परियोजना रोजगार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है, वहीं दूसरी ओर यह अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा समीकरणों को भी प्रभावित करेगी। आने वाले वर्षों में यह देखना रोचक होगा कि कैसे घोस्ट शार्क्स वास्तव में नौसैनिक युद्ध की परिभाषा को बदल देती हैं।
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