दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ — संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका) और जनवादी गणराज्य चीन — पिछले एक दशक से व्यापारिक, तकनीकी और सामरिक टकराव के दौर से गुजर रही हैं। वर्ष 2025 में दक्षिण कोरिया के बंदरगाह शहर बुसान (Busan) में आयोजित एशिया–पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (APEC) शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक ने इस लंबे तनावपूर्ण दौर में एक नई राह खोली है।
यह मुलाकात केवल औपचारिक नहीं थी, बल्कि दोनों देशों के बीच ठंडी होती कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास साबित हुई। उल्लेखनीय है कि यह दोनों नेताओं की छह साल बाद पहली प्रत्यक्ष बैठक थी। पिछली बार दोनों 2019 में जापान के ओसाका में हुए G20 शिखर सम्मेलन के दौरान आमने-सामने मिले थे।
बैठक का संदर्भ और पृष्ठभूमि
वर्ष 2018 में अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुआ व्यापार युद्ध (Trade War) वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ था।
अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर भारी टैरिफ (शुल्क) लगाए, जबकि चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर प्रतिशोधी कर लगाकर इसका जवाब दिया। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक व्यापार श्रृंखला बाधित हुई, तकनीकी सहयोग ठप पड़ा, और दुनिया भर के निवेशकों के बीच अनिश्चितता फैल गई।
हाल के वर्षों में इस टकराव ने फेंटानिल संकट, तकनीकी निर्यात प्रतिबंध, और रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) जैसे मुद्दों को और अधिक जटिल बना दिया था। इस पृष्ठभूमि में बुसान में हुई यह बैठक, तनाव कम करने और संतुलन बहाल करने का अवसर लेकर आई।
एशिया–पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (APEC) सम्मेलन का महत्व
APEC एक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच है जिसमें 21 सदस्य देश शामिल हैं। इसका उद्देश्य एशिया–प्रशांत क्षेत्र में मुक्त व्यापार, निवेश और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है।
बुसान में आयोजित 2025 का यह सम्मेलन इसलिए ऐतिहासिक माना गया क्योंकि इसमें अमेरिका और चीन — दोनों — अपने-अपने हितों की रक्षा करते हुए भी सहयोग की दिशा में आगे बढ़ने को तैयार दिखे।
ट्रम्प और शी जिनपिंग की यह मुलाकात इसी सम्मेलन के इतर हुई, परंतु इसके वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ अत्यंत गहरे हैं।
बैठक में हुए प्रमुख समझौते
दोनों देशों के बीच कई ऐसे महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक समझौते हुए जिनका असर न केवल द्विपक्षीय व्यापार पर बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है। आइए इन समझौतों को विस्तार से समझें।
1. टैरिफ में कटौती: व्यापार युद्ध में अस्थायी विराम
अमेरिका ने घोषणा की कि वह चीनी वस्तुओं पर फेंटानिल-संबंधी टैरिफ को 20% से घटाकर 10% कर देगा।
इस निर्णय के बाद चीन से आने वाले आयात पर कुल अमेरिकी टैरिफ दर 57% से घटकर 47% रह जाएगी।
यह एक तरह से “ट्रेड वॉर में अस्थायी शांति समझौता” है।
इस कदम से अमेरिकी बाजार में सस्ते चीनी उत्पादों की उपलब्धता बढ़ेगी, महंगाई पर नियंत्रण रहेगा, और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार होगा। चीन के लिए भी यह राहत का विषय है क्योंकि अमेरिकी टैरिफ उसके निर्यात को प्रभावित कर रहे थे।
2. रेयर अर्थ मिनरल्स पर अस्थायी समझौता
चीन ने एक वर्ष के लिए अपने नए निर्यात प्रतिबंधों को निलंबित करने पर सहमति दी है।
ये खनिज जैसे — नियोडिमियम (Neodymium), प्रासियोडिमियम (Praseodymium), डिस्प्रोसियम (Dysprosium) — आधुनिक तकनीकी उद्योगों की रीढ़ माने जाते हैं।
इनका उपयोग F-35 फाइटर जेट, मिसाइल सिस्टम, इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन टर्बाइनों, और स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक्स में किया जाता है।
इस समझौते से अमेरिका को अपने रक्षा और प्रौद्योगिकी उद्योगों के लिए आवश्यक आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
3. सोयाबीन और कृषि उत्पादों की खरीद
शी जिनपिंग ने अमेरिका से बड़ी मात्रा में सोयाबीन, मक्का और अन्य कृषि उत्पादों की तत्काल खरीद की घोषणा की।
यह कदम दोनों देशों के किसानों और व्यापारियों के लिए राहत लेकर आया है।
अमेरिकी कृषि उद्योग, जो पिछले कुछ वर्षों से चीनी मांग में कमी के कारण नुकसान झेल रहा था, अब नई गति पकड़ सकता है।
चीन को भी स्थिर खाद्य आपूर्ति और अंतरराष्ट्रीय मूल्य स्थिरता से लाभ मिलेगा।
4. फेंटानिल संकट पर कार्रवाई
फेंटानिल (Fentanyl) — एक अत्यधिक घातक सिंथेटिक ओपिऑयड — अमेरिका में ड्रग ओवरडोज से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण बन चुका है।
अमेरिका का आरोप था कि यह मादक पदार्थ चीन में निर्मित होकर अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश कर रहा है।
बैठक में चीन ने वादा किया कि वह फेंटानिल की अवैध तस्करी और उत्पादन को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएगा।
यह समझौता अमेरिकी जनस्वास्थ्य और आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।
5. तकनीक और व्यापार पर सहयोग
अमेरिका ने चीनी कंपनियों पर लगाए गए ‘Entity List’ प्रतिबंधों को एक साल के लिए निलंबित करने पर सहमति दी है।
यह सूची उन कंपनियों की है जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण अमेरिका में कारोबार करने से रोका गया था, जैसे Huawei, ZTE आदि।
इस निर्णय से तकनीकी संवाद और व्यापारिक सहयोग को अस्थायी रूप से पुनर्स्थापित करने का अवसर मिलेगा।
साथ ही, दोनों देशों ने भविष्य में Nvidia के चिप्स (उन्नत Blackwell चिप को छोड़कर) पर सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा करने का निर्णय लिया।
6. भविष्य की द्विपक्षीय यात्राएँ और वार्ताएँ
ट्रम्प ने घोषणा की कि वे अप्रैल 2026 में चीन की यात्रा करेंगे, जबकि शी जिनपिंग उसके बाद अमेरिका की यात्रा करेंगे।
इन यात्राओं से द्विपक्षीय कूटनीति को नई दिशा मिलने की उम्मीद है।
दोनों पक्षों ने यह भी कहा कि वे व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा, और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में निरंतर संवाद बनाए रखेंगे।
7. वैश्विक मुद्दों पर साझा दृष्टिकोण
बैठक में दोनों नेताओं ने यूक्रेन युद्ध के समाधान पर सहयोग करने की सहमति जताई।
हालाँकि, ताइवान का मुद्दा इस बैठक में चर्चा का विषय नहीं बना — शायद जानबूझकर ताकि यह मुलाकात किसी विवाद में न उलझे।
दोनों पक्षों ने कहा कि वे एशिया–प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और शांति बनाए रखने के लिए मिलकर काम करेंगे।
अमेरिका को चीन के साथ रेयर अर्थ समझौते की ज़रूरत क्यों है
अमेरिका की आर्थिक और तकनीकी प्रगति आज भी दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements) पर काफी हद तक निर्भर है।
ये खनिज न केवल रक्षा उत्पादन में बल्कि AI, EVs, 5G नेटवर्क, और नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
मुख्य कारण
- प्रोसेसिंग में चीन का दबदबा:
दुनिया की 90% से अधिक रिफाइनिंग क्षमता चीन के पास है।
अमेरिका के पास खुद की प्रोसेसिंग सुविधा बेहद सीमित है। - रणनीतिक उपयोगिता:
नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम जैसे तत्वों का उपयोग मिसाइल, जेट इंजन, सैटेलाइट और रडार में होता है।
चीन यदि निर्यात रोक दे, तो अमेरिकी रक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। - राजनीतिक दबाव:
चीन ने पहले भी कई बार रेयर अर्थ निर्यात को नियंत्रण में रखकर इसे एक कूटनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग किया है।
इसलिए अमेरिका को इस निर्भरता से बचने के लिए वैकल्पिक रास्ते खोजने होंगे। - वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला में समय:
नए सप्लाई चेन और प्रोसेसिंग प्लांट बनाने में कम से कम 10 वर्ष लग सकते हैं।
इसलिए फिलहाल चीन से समझौता करना व्यावहारिक और रणनीतिक दृष्टि से आवश्यक है। - आर्थिक स्थिरता:
इस समझौते से कीमतों और आपूर्ति में स्थिरता बनी रहेगी, जिससे अमेरिकी उद्योगों को भरोसेमंद वातावरण मिलेगा।
अमेरिका–चीन व्यापार संबंध: आँकड़ों में स्थिति
दोनों देशों के बीच का व्यापारिक संबंध अत्यंत विशाल और जटिल है।
नवीनतम आँकड़ों के अनुसार —
- कुल द्विपक्षीय व्यापार: लगभग ₹48 लाख करोड़
- अमेरिका से चीन को निर्यात: ₹12 लाख करोड़
- प्रमुख वस्तुएँ — सेमीकंडक्टर, सोयाबीन, मक्का, विमान, एलएनजी (LNG), और कच्चा तेल।
- चीन से अमेरिका को निर्यात: ₹36.8 लाख करोड़
- प्रमुख वस्तुएँ — इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स, स्मार्टफोन, लैपटॉप, और बैटरियाँ।
इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि चीन अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और दोनों के आर्थिक हित एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।
विश्लेषण: इस बैठक के रणनीतिक और वैश्विक निहितार्थ
- वैश्विक बाजारों में स्थिरता:
टैरिफ में कमी और आपूर्ति श्रृंखला में सहजता से विश्व बाजार में मुद्रास्फीति घटने और निवेश में वृद्धि की संभावना है। - भू-राजनीतिक सन्तुलन:
यूक्रेन, मध्य–पूर्व और इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका–चीन के सहयोग से बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में नया संतुलन स्थापित हो सकता है। - तकनीकी प्रतिस्पर्धा में विराम:
Entity List में छूट मिलने से दोनों देशों की टेक कंपनियों के बीच संवाद और नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा। - कृषि और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार:
सोयाबीन और एलएनजी जैसे उत्पादों के व्यापार से ग्रामीण अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूती और चीन को खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा मिलेगी। - फेंटानिल नियंत्रण से मानव सुरक्षा:
दोनों देशों का यह सहयोग मादक द्रव्य विरोधी अंतरराष्ट्रीय नीति के लिए एक उदाहरण बनेगा।
आगे की चुनौतियाँ
हालाँकि यह बैठक सकारात्मक रही, परंतु कुछ मूलभूत मतभेद अभी भी बरकरार हैं —
- ताइवान और दक्षिण चीन सागर का विवाद
- तकनीकी श्रेष्ठता की प्रतिस्पर्धा (AI, Quantum, Semiconductor)
- मानवाधिकार और साइबर सुरक्षा के मुद्दे
- अमेरिकी चुनावों के बाद की नीति स्थिरता
इसलिए, यह बैठक एक “अस्थायी सुलह” के रूप में देखी जानी चाहिए, स्थायी समाधान के रूप में नहीं।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रम्प और शी जिनपिंग की बुसान में हुई यह ऐतिहासिक बैठक वैश्विक अर्थनीति के लिए एक नया मोड़ साबित हुई है।
जहाँ एक ओर इसने अमेरिका–चीन व्यापार युद्ध में संवाद की वापसी करवाई, वहीं दूसरी ओर विश्व को यह संकेत दिया कि कूटनीति और सहयोग ही वैश्विक स्थिरता का वास्तविक मार्ग है।
टैरिफ में कटौती, रेयर अर्थ खनिजों पर अस्थायी समझौता, और तकनीकी प्रतिबंधों में नरमी — ये सभी कदम न केवल द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करते हैं, बल्कि पूरे विश्व की आर्थिक गति को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते हैं।
आने वाले वर्षों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह सहयोग स्थायी विश्वास में बदल पाता है या फिर यह केवल राजनीतिक समय–सीमा तक सीमित एक रणनीतिक विराम साबित होता है।
एक बात निश्चित है —
बुसान बैठक ने अमेरिका और चीन दोनों को यह एहसास दिलाया है कि प्रतिस्पर्धा की सीमा वहीं समाप्त होती है, जहाँ सहयोग की शुरुआत होती है।
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