पर्यावरण के अध्ययन का महत्व | Importance of the Study of Environment

यह लेख “पर्यावरण के अध्ययन का महत्व” विषय पर एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें पर्यावरण अध्ययन की आवश्यकता, उपयोगिता और समकालीन समय में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया है। लेख में यह बताया गया है कि कैसे पर्यावरण, मानव जीवन का आधार है और जीवन के प्रत्येक पहलू – जैसे स्वास्थ्य, आहार, आवास, संस्कृति, आर्थिक गतिविधियाँ, धार्मिक मान्यताएँ, और वैज्ञानिक उन्नति – सभी पर्यावरण से जुड़े हुए हैं। इसमें स्पष्ट किया गया है कि पर्यावरण अध्ययन न केवल प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में प्रयास करता है, बल्कि यह प्रदूषण नियंत्रण, सतत विकास, जलवायु परिवर्तन की समझ और जनसामान्य में पर्यावरणीय चेतना जगाने का भी कार्य करता है।

लेख में प्रदूषण के विविध प्रकारों, उनके दुष्प्रभावों और उनसे निपटने के उपायों को भी विस्तार से समझाया गया है। इसके साथ ही, यह लेख पर्यावरणीय संकटों जैसे – जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, शहरीकरण, जैव विविधता की हानि, और संसाधनों के अनियंत्रित दोहन को भी संबोधित करता है। निष्कर्षतः यह लेख बताता है कि पर्यावरण अध्ययन केवल एक अकादमिक विषय नहीं, बल्कि जीवन की सुरक्षा का माध्यम है और इसके बिना मानव जाति का भविष्य संकटग्रस्त हो सकता है। यह मेटा विवरण विद्यार्थियों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए अत्यंत उपयोगी जानकारी प्रदान करता है।

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प्रस्तावना

पर्यावरण एक ऐसा जीवन-स्रोत है, जो अनादिकाल से पृथ्वी पर मानव और सम्पूर्ण जीव-जगत को न केवल आश्रय प्रदान करता रहा है, बल्कि उनके विकास, संतुलन और अस्तित्व का आधार भी रहा है। आधुनिक युग में औद्योगीकरण, शहरीकरण और वैज्ञानिक प्रगति के फलस्वरूप मनुष्य प्रकृति के साथ संघर्ष की स्थिति में आ खड़ा हुआ है। इस संघर्ष का दुष्परिणाम प्रदूषण, संसाधन ह्रास, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता में कमी और पारिस्थितिक असंतुलन के रूप में दिखाई दे रहा है। इन सभी समस्याओं की जड़ में पर्यावरण के प्रति हमारी उपेक्षा ही प्रमुख कारण है। ऐसे में पर्यावरण अध्ययन न केवल इन समस्याओं को समझने में सहायक है, बल्कि इनके समाधान हेतु भी आधारभूमि तैयार करता है।

पर्यावरण अध्ययन की आवश्यकता और अवधारणा

पर्यावरण शब्द अंग्रेजी के “Environment” से बना है, जिसका तात्पर्य है – वह सब कुछ जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। इसमें वायु, जल, मृदा, जीव-जंतु, वनस्पति, पर्वत, नदियाँ, महासागर, तापमान, ध्वनि, ऊर्जा आदि सभी प्राकृतिक घटक शामिल होते हैं। पर्यावरण की यह संकल्पना केवल भौतिक तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और जैविक संदर्भों में भी इसका विश्लेषण किया जाना आवश्यक है।

जीवधारी और पर्यावरण एक-दूसरे से इतने गहरे जुड़े हैं कि एक के बिना दूसरे की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कोई भी जीव पूरी तरह एकाकी या पृथक जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। प्रकृति की हर इकाई किसी न किसी अन्य इकाई से परस्पर संबंध में होती है। यही कारण है कि पर्यावरण अध्ययन समग्र दृष्टिकोण से न केवल प्राकृतिक वातावरण को समझता है, बल्कि उसमें मानवीय हस्तक्षेपों और उसके परिणामों का भी विश्लेषण करता है।

पर्यावरण अध्ययन का महत्व: विभिन्न आयामों में विश्लेषण

1. जीवों के अस्तित्व के लिए आधारभूत भूमिका

जीवों की संख्या, आकार, वितरण, और घनत्व पर पर्यावरण की अनुकूलता या प्रतिकूलता का सीधा प्रभाव पड़ता है। अनुकूल पर्यावरण में जीवों की वृद्धि होती है जबकि प्रतिकूल पर्यावरण में उनका ह्रास होता है। उदाहरणस्वरूप, जलवायु परिवर्तन और तापमान में तीव्र उतार-चढ़ाव ने कई प्रजातियों के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। पर्यावरण अध्ययन इन परिवर्तनों का वैज्ञानिक विश्लेषण कर संरक्षण की दिशा में कार्य करता है।

2. मानव सभ्यता और संस्कृति का निर्धारक

मानव की रीति-नीति, परंपराएँ, धार्मिक विश्वास, आचार-व्यवहार और सामाजिक संगठन, सभी कुछ पर्यावरण से प्रभावित होते हैं। भारतीय संस्कृति में नदियों की पूजा, वृक्षों का पूजन, गाय को पवित्र मानना – यह सब प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का प्रतीक है। पर्यावरण अध्ययन इस सांस्कृतिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्य में इन परंपराओं की उपयोगिता और वैज्ञानिकता को रेखांकित करता है।

3. आर्थिक विकास और संसाधनों का संतुलन

पर्यावरण और अर्थव्यवस्था में गहरा संबंध है। कृषि, उद्योग, परिवहन, ऊर्जा उत्पादन, भवन निर्माण – सभी मानवीय क्रियाएँ पर्यावरण पर आधारित हैं। पर्यावरण का असंतुलन प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक गिरावट का कारण बनता है। उदाहरणस्वरूप, सूखा पड़ने पर कृषि क्षेत्र प्रभावित होता है जिससे खाद्य संकट और महंगाई की स्थिति उत्पन्न होती है। पर्यावरण अध्ययन संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग का मार्गदर्शन देता है।

4. प्रदूषण और उससे उत्पन्न समस्याओं की जानकारी

पर्यावरण अध्ययन से यह समझने में मदद मिलती है कि वायु, जल, मृदा, ध्वनि और रेडियोधर्मी प्रदूषण किस प्रकार उत्पन्न होते हैं, इनसे मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी पर क्या प्रभाव पड़ता है, और इन्हें नियंत्रित करने के क्या उपाय हैं। आज वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, कैंसर जैसी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। पर्यावरण अध्ययन इन समस्याओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने और समाधान खोजने में सहायक होता है।

5. जनचेतना और व्यवहारिक परिवर्तन

पर्यावरण अध्ययन का एक मुख्य उद्देश्य जनसाधारण को जागरूक बनाना है। इससे व्यक्ति में पर्यावरण के प्रति चेतना, संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न होती है। जैसे—प्लास्टिक का कम प्रयोग, ऊर्जा की बचत, जल संरक्षण, वृक्षारोपण आदि गतिविधियाँ तभी संभव हैं जब व्यक्ति पर्यावरणीय दायित्वों को समझे।

6. स्थायी विकास की दिशा में योगदान

स्थायी विकास (Sustainable Development) का अर्थ है—ऐसा विकास जो वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों को सुरक्षित रखे। पर्यावरण अध्ययन इस दिशा में नीतिगत निर्णयों, योजनाओं और कार्यक्रमों के निर्माण में सहयोग करता है।

7. जलवायु परिवर्तन और वैश्विक आपदाओं की चेतावनी

पर्यावरण अध्ययन से हमें वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तनों जैसे ग्लोबल वार्मिंग, समुद्री स्तर में वृद्धि, मरुस्थलीकरण, हिमखंडों के पिघलने, बाढ़, सूखा, चक्रवात आदि की जानकारी मिलती है। इससे न केवल हम इनके कारणों को समझ सकते हैं, बल्कि इनसे बचाव के उपाय भी कर सकते हैं।

8. औद्योगीकरण और शहरीकरण की पर्यावरणीय चुनौतियाँ

वर्तमान में तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण से पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव बढ़ा है। अधिक निर्माण, वाहनों की वृद्धि, कचरे का असंगठित निपटान आदि समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। पर्यावरण अध्ययन इन समस्याओं की पहचान कर सतत नगरीकरण की रूपरेखा प्रदान करता है।

पर्यावरण अध्ययन: समस्याएँ और समाधान

(i) संसाधनों का शोषण और असंतुलन

जनसंख्या वृद्धि और तकनीकी विकास के कारण मानव ने संसाधनों का दोहन शुरू कर दिया है। पारंपरिक कृषि पद्धतियों की जगह कीटनाशकों और रसायनों से युक्त प्रणाली ने मृदा को विषैला बना दिया है।

समाधान: पर्यावरण अध्ययन संसाधनों के सतत उपयोग, जैविक कृषि, प्राकृतिक खेती और पुनर्चक्रण जैसे उपायों पर बल देता है।

(ii) पारिस्थितिक तंत्र का विघटन

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, प्राकृतिक आवासों का विनाश और जैव विविधता में कमी के कारण पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है।

समाधान: पर्यावरण अध्ययन विभिन्न जैव क्षेत्रों का संरक्षण, वन्यजीवों की रक्षा और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन की विधियाँ प्रस्तुत करता है।

(iii) प्रदूषण का बढ़ता स्तर

औद्योगिक, घरेलू और कृषि अपशिष्टों के कारण प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुँच चुका है।

समाधान: पर्यावरण अध्ययन प्रदूषण नियंत्रण के तकनीकी उपायों जैसे–ईंधन विकल्प, जल उपचार संयंत्र, अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, पर्यावरणीय नीति-निर्माण आदि का प्रस्ताव करता है।

आज के समय में पर्यावरण अध्ययन का विशेष महत्व

जनसंख्या वृद्धि

आज विश्व की प्रमुख समस्याओं में से एक है—तेजी से बढ़ती जनसंख्या। पिछले 100 वर्षों में जितनी जनसंख्या बढ़ी है, उतनी वृद्धि 10 लाख वर्षों में नहीं हुई थी। इसका सीधा प्रभाव संसाधनों की मांग और पर्यावरण पर पड़ता है।

गरीबी और असमानता

गरीबी से जूझ रहे लोग जंगल काटकर जीविका चलाते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। पर्यावरण अध्ययन गरीबी उन्मूलन को पर्यावरणीय योजनाओं से जोड़ने का प्रयास करता है।

तकनीकी विकास और पर्यावरणीय विनाश

हालांकि तकनीकी विकास ने जीवन को सुविधाजनक बनाया है, परंतु यह पर्यावरणीय संकटों का कारण भी बना है। पर्यावरण अध्ययन तकनीक को पर्यावरण-सम्मत दिशा में उपयोग करने पर बल देता है।

वर्तमान युग में जब मानव अपनी सुख-सुविधाओं की पूर्ति हेतु प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रहा है, तब पर्यावरणीय असंतुलन, प्रदूषण और पारिस्थितिक संकट अत्यंत गहराता जा रहा है। ऐसे समय में पर्यावरण अध्ययन केवल एक शैक्षणिक विषय न होकर जीवन रक्षा का माध्यम बन चुका है।

यह अध्ययन हमें प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने, संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग, प्रदूषण नियंत्रण, जैव विविधता संरक्षण और सतत विकास की ओर मार्गदर्शन प्रदान करता है। अगर हमें मानवता का भविष्य सुरक्षित रखना है, तो पर्यावरणीय चेतना को शिक्षा, नीति, व्यवहार और शासन-प्रणाली का अभिन्न अंग बनाना ही होगा।

अतः, यह निर्विवाद सत्य है कि – “पर्यावरण की रक्षा ही जीवन की रक्षा है।” और पर्यावरण अध्ययन उस रक्षा का मूल आधार है।

Environmental Economics – KnowledgeSthali


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