तीन गुना बढ़ा स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा धन | संस्थागत निवेश या काले धन की वापसी?

स्विट्ज़रलैंड की केंद्रीय बैंक — स्विस नेशनल बैंक (SNB) — ने हाल ही में अपने वार्षिक आंकड़े जारी किए हैं, जिनमें एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। वर्ष 2024 में स्विस बैंकों में भारतीयों का कुल जमा धन तीन गुना बढ़कर CHF 3.5 अरब (लगभग ₹37,600 करोड़) तक पहुँच गया है। यह वृद्धि ऐसे समय में दर्ज की गई है, जब भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच स्वचालित सूचना साझा व्यवस्था (Automatic Exchange of Information – AEOI) लागू है और काले धन के खिलाफ अभियान लगातार तेज़ किया जा रहा है।

स्विस बैंकों में भारतीय धन की संरचना: 2024 का लेखा-जोखा

SNB के मुताबिक, 2024 में स्विस बैंकों में जमा भारतीय फंड्स का कुल मूल्य CHF 3,545.54 मिलियन रहा, जिसमें निम्नलिखित श्रेणियाँ शामिल हैं:

1. ग्राहक जमा (Customer Deposits)

  • CHF 346 मिलियन (लगभग ₹3,675 करोड़) की राशि ग्राहक खातों में जमा रही।
  • 2023 की तुलना में यह 11% की वृद्धि है।
  • यह फंड आमतौर पर व्यक्तिगत या व्यावसायिक खातों में सीधे जमा होता है।

2. अन्य बैंकों के माध्यम से फंड्स

  • इस श्रेणी में CHF 3.02 अरब की भारी राशि शामिल है।
  • 2023 में यह राशि मात्र CHF 427 मिलियन थी — यानी लगभग सात गुना वृद्धि दर्ज हुई।
  • यह इस ओर इशारा करता है कि भारतीय संस्थान, विशेषकर वित्तीय संस्थान या निवेश कंपनियाँ, स्विस बैंकों में बड़ी मात्रा में लेन-देन कर रही हैं।

3. फिड्यूशियरी/ट्रस्ट अकाउंट्स

  • इस श्रेणी में CHF 41 मिलियन का निवेश रहा।
  • 2023 में यह आंकड़ा मात्र CHF 10 मिलियन था, यानी चार गुना से अधिक वृद्धि हुई है।
  • फिड्यूशियरी या ट्रस्ट संरचनाएं आमतौर पर परिसंपत्तियों को छिपाने या कर बचाने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं।

4. अन्य वित्तीय साधन

  • इस श्रेणी में गिरावट देखी गई, जहाँ 2023 में CHF 293 मिलियन थे, वहीं 2024 में यह घटकर CHF 135 मिलियन रह गए।

ऐतिहासिक संदर्भ: उतार-चढ़ाव का ग्राफ

स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा समय-समय पर चर्चा का विषय रहा है। SNB के आंकड़ों के अनुसार:

  • 2006 में भारतीय फंड्स ने अब तक की उच्चतम सीमा को छुआ था — CHF 6.5 अरब
  • उसके बाद लगातार गिरावट और वृद्धि के दौर चले।
  • 2023 में, फंड्स में 70% की गिरावट आई थी और यह आंकड़ा चार वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया था।
  • लेकिन 2024 में, यह ट्रेंड पूरी तरह से पलट गया और रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।

वैश्विक रैंकिंग में भारत की स्थिति

स्विस बैंकों में भारतीयों की मौजूदगी अब वैश्विक तुलना में भी अधिक मुखर हो गई है। 2023 में, भारत का स्थान 67वाँ था, जो 2024 में बढ़कर 48वाँ हो गया है। यह एक बड़ा छलांग है, जो इस बात की ओर संकेत करता है कि भारत से संबंधित संस्थागत गतिविधियाँ स्विस बैंकिंग प्रणाली में अब अधिक प्रासंगिक होती जा रही हैं।

संस्थागत बनाम व्यक्तिगत जमा: असली तस्वीर

यह सवाल ज़रूरी है कि इतनी बड़ी वृद्धि का स्रोत क्या है? क्या यह व्यक्तिगत जमा है या संस्थागत निवेश?

BIS (Bank for International Settlements) का विश्लेषण

  • BIS के मुताबिक, गैर-बैंक व्यक्तिगत जमाओं में मात्र 6% की वृद्धि दर्ज हुई है।
  • इसका सीधा संकेत यह है कि इस बार की वृद्धि व्यक्तिगत खातों से नहीं, बल्कि संस्थागत निवेशों से संबंधित है।

SNB और BIS के आंकड़ों में अंतर

  • SNB का डेटा व्यापक होता है, जिसमें ग्राहक जमा, बैंकिंग नेटवर्क के माध्यम से जमा, प्रतिभूतियाँ, ऋण और ट्रस्ट अकाउंट्स शामिल होते हैं।
  • जबकि BIS का डेटा केवल गैर-बैंकिंग व्यक्तिगत जमाओं और ऋणों पर आधारित होता है।

इसलिए SNB का डाटा संस्थागत लेन-देन को प्रमुखता देता है, जबकि BIS आंकड़े उस आधार को अलग करके प्रस्तुत करते हैं, जिससे विश्लेषण अधिक स्पष्ट हो पाता है।

कानूनी और नियामकीय दृष्टिकोण

भारत और स्विट्जरलैंड के बीच पिछले कुछ वर्षों में कर सूचनाओं के स्वतः आदान-प्रदान की व्यवस्था स्थापित की गई है। इसका उद्देश्य था कि विदेशों में छिपाए गए काले धन की पहचान कर भारत सरकार उचित कार्रवाई कर सके।

स्वचालित सूचना साझा व्यवस्था (AEOI)

  • भारत ने OECD के वैश्विक कर पारदर्शिता ढाँचे के तहत AEOI को अपनाया है।
  • इसके तहत स्विट्जरलैंड समेत कई देश हर वर्ष भारतीय खाताधारकों की जानकारी भारत सरकार को उपलब्ध कराते हैं।

फिर भी फंड्स क्यों बढ़े?

यह सवाल उठता है कि जब सूचनाओं का स्वतः आदान-प्रदान हो रहा है, तब भारतीय निवेशकों द्वारा स्विस बैंकों की ओर रुझान क्यों बढ़ा?

संभावित कारण:

  1. संस्थागत निवेशकों की रणनीति में बदलाव: वैश्विक स्तर पर कुछ निवेश फंड्स या वित्तीय संस्थान स्विट्ज़रलैंड को एक सुरक्षित निवेश ठिकाना मानते हैं।
  2. भारतीय कंपनियों के वैश्वीकरण की प्रक्रिया: कई कंपनियाँ विदेशों में परिचालन और निवेश के लिए फंड्स स्थानांतरित करती हैं।
  3. काला धन वैध स्वरूप में वापसी की संभावना: कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि नोटबंदी और अन्य कर सुधारों के बाद विदेशों में जमा काले धन को वैध माध्यमों से फिर से घुमाकर लाया जा रहा है।

क्या यह काला धन है?

इस मुद्दे पर आम जनता और मीडिया में अक्सर यह धारणा रहती है कि स्विस बैंकों में रखा गया भारतीय धन काला धन (Unaccounted Money) है। हालाँकि, यह पूरी तरह से सत्य नहीं है।

कारण:

  • SNB का डेटा कुल जमा को दर्शाता है, न कि अवैध या बेहिसाब फंड्स को।
  • इन जमा राशि में से अधिकांश का स्रोत संस्थागत निवेश या वैध व्यापारिक गतिविधियाँ भी हो सकती हैं।
  • कई भारतीय कंपनियाँ विदेशी साझेदारी के तहत स्विस बैंकिंग का उपयोग करती हैं।

फिर भी सतर्कता आवश्यक

  • फिड्यूशियरी और ट्रस्ट अकाउंट्स अक्सर गोपनीयता की आड़ में उपयोग होते हैं, जिससे काले धन के प्रयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
  • भारत सरकार को SNB के आँकड़ों के आधार पर उचित डेटा ट्रेसिंग और जांच करनी चाहिए।

राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण

स्विस बैंकों में भारतीय धन हमेशा से एक राजनीतिक बहस का हिस्सा रहा है। चुनावी वादों में अक्सर यह मुद्दा उठता है कि विदेशों में छिपाए गए काले धन को वापस लाकर भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया जाएगा।

हालात:

  • 2014 में केंद्र सरकार के गठन के समय “विदेशों से काला धन वापस लाने” का वादा किया गया था।
  • अब 2024 में अगर धन तीन गुना बढ़ा है, तो यह राजनीतिक दृष्टि से सरकार के सामने स्पष्टीकरण की माँग भी उत्पन्न करता है।

क्या संकेत दे रहे हैं ये आँकड़े?

वर्ष 2024 में स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा धन तीन गुना बढ़ना, एक ओर भारतीय वित्तीय ताकत और वैश्विक उपस्थिति का संकेत हो सकता है, तो दूसरी ओर यह सावधानी और जांच की भी माँग करता है। जब तक यह सुनिश्चित न हो कि यह धन वैध स्रोतों से आया है, तब तक इसकी पारदर्शिता और नियमन अत्यंत आवश्यक है।

भारत सरकार को चाहिए कि:

  • AEOI व्यवस्था के अंतर्गत प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कर संदिग्ध खातों की जांच करे।
  • फिड्यूशियरी और ट्रस्ट संरचनाओं की भूमिका को विशेष निगरानी में रखा जाए।
  • BIS और SNB दोनों प्रकार के डेटा का तुलनात्मक अध्ययन करके निष्कर्ष निकाले जाएं।

अंतिम विचार

स्विस बैंकों में भारतीयों की मौजूदगी अब केवल एक वित्तीय आँकड़ा नहीं, बल्कि यह आर्थिक नीति, कर नियमन, पारदर्शिता और वैश्विक निवेश रणनीति का आईना बन चुका है। ज़रूरत इस बात की है कि सरकार और जनता दोनों इस बढ़ते धन को केवल शक की निगाह से नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण विश्लेषण की दृष्टि से देखें।

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