उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भारत का पहला वन विश्वविद्यालय (Forest University)

भारत विश्व के उन गिने-चुने देशों में शामिल है जहाँ जैव-विविधता की असाधारण समृद्धि पाई जाती है। हिमालय से लेकर पश्चिमी घाट, सुंदरबन के मैंग्रोव वन से लेकर दक्कन के शुष्क पर्णपाती वन—भारत के वन केवल प्राकृतिक संसाधन ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन की आधारशिला भी हैं। बदलते समय के साथ जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, जैव-विविधता ह्रास और मानव-वन्यजीव संघर्ष जैसी चुनौतियाँ लगातार गहराती जा रही हैं। ऐसे में भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं वानिकी शिक्षा को संस्थागत रूप देने के प्रयास तेज़ हुए हैं।

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भारत के पहले ‘वन विश्वविद्यालय (Forest University)’ की स्थापना का निर्णय न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह देश की पर्यावरणीय नीतियों में एक निर्णायक मोड़ का संकेत भी देता है। यह विश्वविद्यालय वानिकी, वन्यजीव संरक्षण, पर्यावरण विज्ञान और जलवायु अध्ययन के क्षेत्र में उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान का एक विशिष्ट केंद्र बनेगा।

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भारत में वानिकी शिक्षा की पृष्ठभूमि

भारत में वानिकी शिक्षा की शुरुआत औपनिवेशिक काल में हुई थी। 1878 में देहरादून में इम्पीरियल फॉरेस्ट स्कूल की स्थापना को इस दिशा में पहला संगठित कदम माना जाता है। स्वतंत्रता के बाद देश में कई कृषि विश्वविद्यालयों और सामान्य विश्वविद्यालयों में वानिकी एवं पर्यावरण अध्ययन विभाग खोले गए, लेकिन अब तक केवल वानिकी और वन्यजीव अध्ययन को समर्पित एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय का अभाव रहा है।

हालाँकि देश में भारतीय वन सेवा (IFS) जैसे प्रतिष्ठित कैडर और वन अनुसंधान संस्थान (FRI), वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) जैसे संस्थान मौजूद हैं, फिर भी एक ऐसे विश्वविद्यालय की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी जहाँ—

  • वानिकी को मुख्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए
  • फील्ड आधारित प्रशिक्षण को शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बनाया जाए
  • पर्यावरणीय चुनौतियों पर बहुविषयक शोध को बढ़ावा मिले

गोरखपुर में प्रस्तावित वन विश्वविद्यालय इसी रिक्तता को भरने की दिशा में एक ठोस प्रयास है।

गोरखपुर में भारत के पहले समर्पित वन विश्वविद्यालय की घोषणा

उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर में भारत के पहले समर्पित वन विश्वविद्यालय की स्थापना की औपचारिक घोषणा की है। यह विश्वविद्यालय वानिकी, वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरणीय शिक्षा एवं अनुसंधान को समर्पित होगा। सरकार के अनुसार, इस महत्वाकांक्षी परियोजना में लगभग 500 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा, जिससे यह संस्थान राष्ट्रीय स्तर पर वन शिक्षा और संरक्षण अनुसंधान का प्रमुख केंद्र बन सकेगा।

स्वीकृति और अनुमानित लागत

राज्य सरकार द्वारा इस वन विश्वविद्यालय के लिए डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है।

  • अनुमानित कुल लागत: ₹500 करोड़
  • परियोजना को चरणबद्ध तरीके से विकसित किया जाएगा
    यह निवेश दर्शाता है कि राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को दीर्घकालिक प्राथमिकता के रूप में देख रही है।

प्रस्तावित स्थान और भूमि विवरण

यह विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थापित किया जाएगा—

  • कुल भूमि क्षेत्रफल: लगभग 125 एकड़
  • निकटवर्ती महत्वपूर्ण केंद्र: जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र

इस क्षेत्र का चयन पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह क्षेत्र जैव-विविधता, आर्द्रभूमियों और वन्यजीव संरक्षण गतिविधियों के लिए अनुकूल है।

गोरखपुर का चयन: भौगोलिक और पारिस्थितिक दृष्टि से उपयुक्त स्थान

1. भौगोलिक स्थिति

गोरखपुर उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है और नेपाल सीमा के निकट होने के कारण यह क्षेत्र जैव-विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ तराई क्षेत्र का प्रभाव दिखाई देता है, जो वन्यजीवों और दुर्लभ प्रजातियों के लिए अनुकूल आवास प्रदान करता है।

2. जैव-विविधता का केंद्र

गोरखपुर और उसके आसपास का क्षेत्र—

  • आर्द्रभूमियों (Wetlands)
  • घास के मैदानों
  • मिश्रित वनों

से समृद्ध है। यह क्षेत्र कई पक्षी प्रजातियों, सरीसृपों और स्तनधारियों का प्राकृतिक आवास है।

3. जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र की निकटता

प्रस्तावित विश्वविद्यालय परिसर के समीप स्थित जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र इस विश्वविद्यालय को एक जीवंत प्रयोगशाला (Living Laboratory) का स्वरूप प्रदान करेगा। यह विशेष रूप से गिद्ध संरक्षण, जैव-विविधता अध्ययन और वन्यजीव पुनर्वास से जुड़े शोध में सहायक होगा।

विश्वविद्यालय का परिसर और अवसंरचना

1. परिसर का विस्तार

  • कुल क्षेत्रफल: लगभग 125 एकड़
  • हरित परिसर (Green Campus) की अवधारणा
  • प्राकृतिक वनस्पतियों को संरक्षित रखते हुए निर्माण

2. प्रारंभिक बजट

  • राज्य बजट में ₹50 करोड़ का प्रारंभिक आवंटन
  • भविष्य में केंद्र सरकार एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से सहयोग की संभावना

3. प्रस्तावित भौतिक सुविधाएँ

वन विश्वविद्यालय को एक आधुनिक, आत्मनिर्भर और पर्यावरण-अनुकूल परिसर के रूप में विकसित किया जाएगा। इसमें शामिल होंगी—

  • अत्याधुनिक शैक्षणिक भवन
  • वानिकी एवं पर्यावरण विज्ञान से संबंधित शोध प्रयोगशालाएँ
  • लगभग 500 छात्रों की क्षमता वाले छात्रावास
  • छात्र और छात्राओं के लिए अलग-अलग आवास
  • फैकल्टी आवास
  • सभागार एवं सम्मेलन कक्ष
  • खेल सुविधाएँ और योग/स्वास्थ्य केंद्र

शैक्षणिक संरचना और पाठ्यक्रम

1. प्रमुख अध्ययन क्षेत्र

वन विश्वविद्यालय में निम्नलिखित विषयों में डिग्री एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित किए जाने की योजना है—

(क) वानिकी एवं कृषि-वानिकी

  • सतत वन प्रबंधन
  • सामाजिक एवं सामुदायिक वानिकी
  • वृक्षारोपण तकनीक
  • वानिकी नीति एवं कानून

(ख) सामाजिक वानिकी

  • ग्रामीण विकास में वनों की भूमिका
  • ईंधन, चारा और आजीविका आधारित वानिकी
  • सामुदायिक सहभागिता मॉडल

(ग) बागवानी

  • फल, फूल एवं औषधीय पौधों की खेती
  • नर्सरी प्रबंधन
  • जैविक बागवानी

(घ) वन्यजीव संरक्षण

  • वन्यजीव पारिस्थितिकी
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन
  • वन्यजीव कानून और संरक्षण नीति
  • पुनर्वास एवं प्रजनन कार्यक्रम

(ङ) पर्यावरण एवं जलवायु अध्ययन

  • जलवायु परिवर्तन विज्ञान
  • कार्बन क्रेडिट और जलवायु नीति
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)

(च) पारिस्थितिकी आधारित जैव-प्रौद्योगिकी

  • जैव-उर्वरक
  • जैव-कीटनाशक
  • आनुवंशिक संरक्षण

शिक्षण पद्धति: प्रायोगिक और फील्ड आधारित मॉडल

वन विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी विशेषता इसकी फील्ड-आधारित शिक्षा प्रणाली होगी। यहाँ—

  • कक्षा शिक्षण के साथ-साथ नियमित फील्ड विज़िट
  • वन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष प्रशिक्षण
  • वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में अध्ययन
  • स्थानीय समुदायों के साथ सहभागिता आधारित प्रोजेक्ट

को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाएगा।

वन विश्वविद्यालय के प्रमुख उद्देश्य

1. कुशल मानव संसाधन का निर्माण

  • वन विभाग
  • संरक्षण एजेंसियाँ
  • पर्यावरण परामर्श संस्थान

के लिए प्रशिक्षित विशेषज्ञ तैयार करना।

2. अनुसंधान और नवाचार

  • जैव-विविधता संरक्षण
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन
  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन

पर केंद्रित शोध को बढ़ावा देना।

3. सतत वन प्रबंधन

  • वनों की कटाई को नियंत्रित करना
  • पुनर्वनीकरण और हरित आवरण बढ़ाना

4. नीति निर्माण में योगदान

  • राज्य और केंद्र सरकार को वैज्ञानिक परामर्श
  • वन एवं पर्यावरण नीति के निर्माण में सहयोग

वन विश्वविद्यालय: अवधारणा और वैश्विक संदर्भ

वन विश्वविद्यालय एक ऐसा विशेषीकृत उच्च शिक्षण संस्थान होता है, जहाँ—

  • वानिकी विज्ञान
  • वन्यजीव अध्ययन
  • पारिस्थितिकी प्रबंधन
  • पर्यावरणीय स्थिरता

को समग्र दृष्टिकोण से पढ़ाया जाता है। अमेरिका, कनाडा और यूरोप के कई देशों में इस प्रकार के विश्वविद्यालय पहले से मौजूद हैं। भारत में इसकी स्थापना वैश्विक मानकों के अनुरूप पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा देगी।

UP ISFR 2023 रिपोर्ट और राज्य का पर्यावरणीय परिदृश्य

UP ISFR 2023 रिपोर्ट के अनुसार—

  • उत्तर प्रदेश में हरित आवरण (वन + वृक्ष आवरण) में भारत में दूसरी सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई
  • कुल वृद्धि: 559.19 वर्ग किलोमीटर
  • राज्य का कुल हरित आवरण बढ़कर भौगोलिक क्षेत्र का 9.96% हो गया

यह आँकड़े दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश में वन विश्वविद्यालय की स्थापना राज्य की हरित नीतियों और संरक्षण प्रयासों के अनुरूप एक महत्वपूर्ण कदम है।

उत्तर प्रदेश और भारत के लिए महत्व

1. क्षेत्रीय विकास

  • गोरखपुर और पूर्वांचल क्षेत्र में शिक्षा एवं रोजगार के अवसर
  • स्थानीय युवाओं को विशेषज्ञता प्राप्त करने का अवसर

2. पर्यावरणीय नेतृत्व

  • भारत के जलवायु लक्ष्यों (NDCs) की प्राप्ति में सहयोग
  • जैव-विविधता संरक्षण में राष्ट्रीय नेतृत्व

3. अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • वैश्विक विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के साथ साझेदारी
  • अंतरराष्ट्रीय छात्रों और शोध परियोजनाओं को आकर्षित करना

निष्कर्ष

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थापित होने वाला भारत का पहला वन विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि यह भारत की पर्यावरणीय चेतना, सतत विकास दृष्टिकोण और भविष्य की पीढ़ियों के प्रति उत्तरदायित्व का प्रतीक है। यह विश्वविद्यालय वानिकी, वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में न केवल शिक्षा और अनुसंधान को नई दिशा देगा, बल्कि देश को जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता संरक्षण की वैश्विक लड़ाई में एक सशक्त भागीदार भी बनाएगा।

स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह पहल भारत को हरित विकास, वैज्ञानिक संरक्षण और पर्यावरणीय नेतृत्व की राह पर और अधिक मजबूती से आगे बढ़ाएगी।


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