सितंबर 2025 में तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन न केवल बहुपक्षीय कूटनीति का मंच रहा बल्कि भारत और चीन—एशिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों—के बीच संवाद का अवसर भी बना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यह द्विपक्षीय मुलाकात लंबे समय से प्रतीक्षित थी। इसने दोनों देशों के संबंधों में नई सकारात्मक गति लाने का संकेत दिया।
मुलाकात का महत्व
मोदी और शी की यह बैठक सिर्फ एक औपचारिक राजनयिक मुलाकात नहीं थी, बल्कि सीमा विवाद, आर्थिक सहयोग, बहुपक्षीय साझेदारी और जनता से जनता के रिश्तों जैसे बहुआयामी विषयों पर संवाद का मंच बनी। यह मुलाकात ऐसे समय हुई जब वैश्विक भू–राजनीति में एशियाई शक्तियों की भूमिका बढ़ रही है।
मुख्य बिंदु:
- दोनों नेताओं ने आपसी मतभेदों को विवाद में नहीं बदलने की प्रतिबद्धता दोहराई।
- “विकास सहयोगी” (developmental partners) होने पर जोर दिया गया।
- क्षेत्रीय स्थिरता और आपसी सहयोग को भविष्य की प्राथमिकता बताया गया।
सीमा मुद्दे और सुरक्षा संवाद
भारत–चीन संबंधों की सबसे बड़ी चुनौती सदैव सीमा विवाद और सीमा पर झड़पें रही हैं। 2020 की गलवान झड़प के बाद से संबंधों में काफी तनाव आया था।
- 2024 में बॉर्डर डिसएंगेजमेंट: दोनों पक्षों ने सफलतापूर्वक सैन्य पीछे हटाव (disengagement) पूरा किया।
- 2025 की सहमति: तब से अब तक शांति बनाए रखने और सीमा पर स्थिरता सुनिश्चित करने पर सहमति बनी।
- दोनों देशों ने यह स्वीकार किया कि सीमा विवाद का समाधान धीरे–धीरे आपसी विश्वास और संवाद से ही संभव है।
जनता से जनता के रिश्ते (People-to-People Relations)
कूटनीति का वास्तविक आधार लोगों के बीच का संवाद होता है। मोदी और शी ने इस पहलू को महत्व देते हुए कई घोषणाएँ कीं—
- सीधी उड़ानों को बढ़ाने पर सहमति।
- वीज़ा प्रक्रिया को सरल बनाने का निर्णय।
- कैलाश मानसरोवर यात्रा को पुनः शुरू करने पर बल।
- छात्र और पर्यटक वीज़ा बहाली से सांस्कृतिक आदान–प्रदान को प्रोत्साहन मिलेगा।
आर्थिक और व्यापारिक सहयोग
भारत और चीन दोनों ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभ हैं।
- वैश्विक स्थिरता में योगदान: दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की रीढ़ माना गया।
- व्यापार असंतुलन: भारत का चीन के साथ बड़ा व्यापार घाटा है। मोदी ने इस पर संतुलन की आवश्यकता दोहराई।
- नई संभावनाएँ: डिजिटल अर्थव्यवस्था, हरित ऊर्जा और प्रौद्योगिकी साझेदारी पर सहयोग की संभावनाएँ तलाशी गईं।
बहुपक्षीय सहयोग और अंतरराष्ट्रीय मंच
- प्रधानमंत्री मोदी ने SCO में चीन की अध्यक्षता और तियानजिन शिखर सम्मेलन का समर्थन किया।
- राष्ट्रपति शी को भारत में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2026 में आमंत्रित किया।
- दोनों नेताओं ने बहुपक्षीय संगठनों (SCO, BRICS, G20, UN) के तहत सहयोग को गहरा करने पर सहमति जताई।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO): एक परिचय
उद्भव और गठन
- 1996: चीन, रूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने शंघाई फाइव (Shanghai Five) की स्थापना की।
- उद्देश्य: सीमा निर्धारण और निरस्त्रीकरण।
- 2001: उज़्बेकिस्तान के शामिल होने पर नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) रखा गया।
उद्देश्य
- क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता।
- आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुकाबला।
- आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग।
सदस्य देश (2025 तक – 10)
- चीन
- रूस
- भारत
- पाकिस्तान
- ईरान
- बेलारूस
- कज़ाख़स्तान
- किर्गिस्तान
- ताजिकिस्तान
- उज़्बेकिस्तान
पर्यवेक्षक देश: अफगानिस्तान, मंगोलिया।
आधिकारिक भाषा: रूसी और चीनी।
भारत और SCO
- भारत 2017 में पूर्ण सदस्य बना।
- 2023 में भारत ने संगठन की घूर्णन अध्यक्षता संभाली।
- भारत ने आतंकवाद–रोधी सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा और कनेक्टिविटी पर जोर दिया।
- भारत की सदस्यता SCO को संतुलित बनाती है क्योंकि यह केवल चीन–रूस प्रभाव तक सीमित नहीं रहता।
SCO का वैश्विक महत्व
- जनसंख्या योगदान: विश्व की लगभग 40% आबादी।
- आर्थिक योगदान: वैश्विक GDP का लगभग 30%।
- ऊर्जा संसाधनों से भरपूर मध्य एशिया और एशियाई दिग्गजों का साझा मंच।
SCO की संरचना
- राज्यों के प्रमुखों की परिषद: सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था (वार्षिक बैठक)।
- सचिवालय (बीजिंग): प्रशासनिक कार्य।
- क्षेत्रीय आतंकवाद–रोधी संरचना (RATS, ताशकंद): सुरक्षा और आतंकवाद–रोधी सहयोग।
भारत–चीन संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और चीन का संबंध सभ्यतागत स्तर पर हजारों वर्षों से रहा है।
- प्राचीन काल: बौद्ध धर्म और रेशम मार्ग से सांस्कृतिक आदान–प्रदान।
- 1950 का दशक: “हिंदी–चीनी भाई–भाई” का नारा।
- 1962: सीमा युद्ध ने रिश्तों में गहरी खाई पैदा की।
- 1988: राजीव गांधी की चीन यात्रा से संबंध सामान्यीकरण की शुरुआत।
- 2000 के दशक: आर्थिक सहयोग में वृद्धि।
- 2020: गलवान झड़प ने अविश्वास बढ़ाया।
- 2025: मोदी–शी मुलाकात एक सकारात्मक मोड़।
तालिका: भारत–चीन संबंधों के प्रमुख पड़ाव
वर्ष | घटना | महत्व |
---|---|---|
1954 | पंचशील समझौता | शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नींव |
1962 | भारत–चीन युद्ध | गहरी अविश्वास की शुरुआत |
1988 | राजीव गांधी की चीन यात्रा | संबंध सामान्यीकरण |
2008 | रणनीतिक साझेदारी | व्यापार और कूटनीति में नई ऊर्जा |
2017 | डोकलाम विवाद | सीमा तनाव |
2020 | गलवान संघर्ष | गंभीर सैन्य टकराव |
2024 | बॉर्डर डिसएंगेजमेंट | शांति बहाली की दिशा |
2025 | मोदी–शी मुलाकात (SCO) | सहयोग और विश्वास बहाली का प्रयास |
भविष्य की संभावनाएँ
मोदी और शी की मुलाकात ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत–चीन संबंध केवल प्रतिस्पर्धा तक सीमित नहीं हैं। यदि दोनों देश सहयोग की दिशा में आगे बढ़ें तो—
- एशिया में शांति और स्थिरता मजबूत होगी।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिलेगी।
- आतंकवाद–रोधी और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर संयुक्त प्रयास संभव होंगे।
निष्कर्ष
तियानजिन में मोदी और शी की मुलाकात सिर्फ एक कूटनीतिक कार्यक्रम नहीं बल्कि भारत–चीन संबंधों में विश्वास बहाली का संकेत है। यह संवाद दर्शाता है कि मतभेदों के बावजूद संवाद और सहयोग से एशिया और विश्व में स्थिरता लाई जा सकती है। शंघाई सहयोग संगठन इस दिशा में एक मजबूत मंच के रूप में उभर रहा है।
इन्हें भी देखें –
- SCO शिखर सम्मेलन 2025: चीन का 2 अरब डॉलर पैकेज और जिम्मेदार एआई सहयोग की नई दिशा
- किलर व्हेल (Orca): रहस्यमयी शिकारी और इंसानों से संवाद की कोशिश
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