वर्ष 2025 का नोबेल पुरस्कार भौतिकी विज्ञान जगत में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ है। यह प्रतिष्ठित सम्मान तीन महान वैज्ञानिकों — जॉन क्लार्क (John Clarke), मिशेल एच. डेवोरेट (Michel H. Devoret) और जॉन एम. मार्टिनिस (John M. Martinis) — को उनकी अभूतपूर्व खोज “इलेक्ट्रिक सर्किट्स में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग और ऊर्जा क्वांटाइजेशन” के लिए प्रदान किया गया। इनकी खोजों ने यह सिद्ध कर दिया कि क्वांटम प्रभाव केवल सूक्ष्म जगत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इन्हें मैक्रोस्कोपिक प्रणालियों — जैसे सुपरकंडक्टिंग सर्किट्स — में भी देखा जा सकता है।
इस कार्य ने आधुनिक क्वांटम कंप्यूटिंग की नींव रखी, जहाँ पारंपरिक बिट्स के स्थान पर क्यूबिट्स का उपयोग होता है, जो एक साथ 0 और 1 दोनों अवस्थाओं में रह सकते हैं। इन प्रयोगों ने ऊर्जा क्वांटाइजेशन की अवधारणा को तकनीकी रूप से साकार किया और सुपरकंडक्टिंग सर्किट्स के माध्यम से बिना ऊर्जा हानि वाले उपकरणों का रास्ता खोला। जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस की इस खोज ने चिकित्सा, कंप्यूटिंग, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में क्रांति की नई संभावनाएँ उत्पन्न कीं। यह पुरस्कार न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि का सम्मान है, बल्कि विज्ञान के उस युग का उद्घोष भी है जहाँ क्वांटम सिद्धांत प्रयोगशाला से निकलकर वास्तविक जीवन की तकनीकों का आधार बन चुका है।
विज्ञान की दुनिया में क्वांटम क्रांति
वर्ष 2025 का नोबेल पुरस्कार भौतिकी (Nobel Prize in Physics 2025) विज्ञान के इतिहास में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ है। यह पुरस्कार तीन प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों — जॉन क्लार्क (John Clarke), मिशेल एच. डेवोरेट (Michel H. Devoret) और जॉन एम. मार्टिनिस (John M. Martinis) — को उनकी उस अद्भुत खोज के लिए दिया गया है जिसने क्वांटम भौतिकी को प्रयोगशाला से निकालकर तकनीकी क्रांति के वास्तविक मंच पर ला खड़ा किया।
इन तीनों वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार “इलेक्ट्रिक सर्किट में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग और ऊर्जा क्वांटाइजेशन (Macroscopic Quantum Tunneling and Energy Quantization in Electric Circuits)” की खोज के लिए मिला है। यह वह खोज थी जिसने न केवल भौतिकी के सैद्धांतिक ढांचे को मजबूत किया बल्कि क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी उभरती प्रौद्योगिकी की नींव भी रख दी।
नोबेल विजेता: तीन वैज्ञानिक, एक साझा दृष्टि
1. जॉन क्लार्क (John Clarke)
जॉन क्लार्क, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले (UC Berkeley) के वरिष्ठ प्रोफेसर हैं। वे सुपरकंडक्टिंग क्वांटम इंटरफेरेंस डिवाइसेस (SQUIDs) के क्षेत्र में अपने बुनियादी कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। 1980 के दशक में उन्होंने ऐसे प्रयोगों की निगरानी की, जिनसे यह साबित हुआ कि क्वांटम प्रभाव केवल सूक्ष्म (microscopic) कणों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये मैक्रोस्कोपिक सर्किट्स (macroscopic circuits) में भी देखे जा सकते हैं।
उनके प्रयोगों ने यह दिखाया कि जब कोई सुपरकंडक्टिंग सर्किट ठंडे तापमान (near absolute zero) पर पहुँचता है, तब उसमें इलेक्ट्रॉन ऐसी व्यवहारिक सीमाएँ लांघ जाते हैं जिन्हें क्लासिकल भौतिकी नहीं समझा सकती। यही “टनलिंग” (Tunneling) का अद्भुत क्वांटम प्रभाव है।
2. मिशेल एच. डेवोरेट (Michel H. Devoret)
मिशेल डेवोरेट, येल यूनिवर्सिटी (Yale University) और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया, सैंटा बारबरा (UCSB) दोनों से जुड़े रहे हैं। वे वर्तमान में Google Quantum AI में चीफ साइंटिस्ट हैं और सुपरकंडक्टिंग क्वांटम सर्किट्स को नियंत्रित करने की तकनीकों पर अग्रणी शोध कर रहे हैं।
डेवोरेट ने क्वांटम सर्किट्स के डिजाइन को ऐसा बनाया कि उसमें “ऊर्जा के स्तर” (energy levels) को मापा और नियंत्रित किया जा सके। यह वही सिद्धांत है जिस पर क्यूबिट्स (Qubits) काम करते हैं — यानी ऐसी बिट्स जो एक साथ 0 और 1 दोनों अवस्थाओं में रह सकती हैं।
3. जॉन एम. मार्टिनिस (John M. Martinis)
मार्टिनिस, यूसी सैंटा बारबरा में प्रोफेसर हैं और उन्होंने कई क्वांटम कंप्यूटिंग स्टार्टअप्स की सह-स्थापना की है। वे उन वैज्ञानिकों में हैं जिन्होंने क्वांटम कंप्यूटर को वास्तविकता में बदलने के लिए प्रयोगशाला से आगे बढ़कर औद्योगिक पैमाने पर कार्य किया।
मार्टिनिस ने Google के साथ मिलकर वह टीम बनाई जिसने 2019 में “क्वांटम सुप्रीमेसी (Quantum Supremacy)” का प्रदर्शन किया — यानी ऐसा कंप्यूटर जिसने एक ऐसी गणना की जो किसी भी पारंपरिक सुपरकंप्यूटर के लिए असंभव थी।
खोज: क्वांटम का कमाल
1. क्वांटम मैकेनिक्स क्या है?
क्वांटम मैकेनिक्स वह विज्ञान है जो परमाणु और इलेक्ट्रॉन जैसे सूक्ष्म कणों के व्यवहार को समझाता है। इन कणों का व्यवहार अजीब और अप्रत्याशित होता है। वे कभी कण की तरह, तो कभी तरंग की तरह व्यवहार करते हैं।
क्वांटम सिद्धांत कहता है कि ऊर्जा निरंतर नहीं होती, बल्कि छोटे-छोटे पैकेट्स (quanta) में मौजूद रहती है।
2. मैक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग (Macroscopic Quantum Tunneling)
यह वह घटना है जिसमें किसी बाधा (barrier) के पार इलेक्ट्रॉन “टनल” कर जाते हैं — भले ही क्लासिकल भौतिकी के अनुसार उनके पास इतनी ऊर्जा न हो कि वे दीवार पार कर सकें।
क्लार्क, डेवोरेट और मार्टिनिस ने यह दिखाया कि यह “टनलिंग” सिर्फ छोटे कणों में ही नहीं, बल्कि सुपरकंडक्टिंग सर्किट्स जैसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स में भी होती है।
इसका परिणाम यह हुआ कि वैज्ञानिकों ने क्वांटम प्रभावों को प्रयोगशाला के बाहर — यानी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्स में प्रत्यक्ष रूप से देखना शुरू किया। यह आधुनिक क्वांटम प्रौद्योगिकी की जन्मस्थली बनी।
3. ऊर्जा क्वांटाइजेशन (Energy Quantization)
क्वांटम सर्किट्स में ऊर्जा सतत नहीं बल्कि अलग-अलग स्तरों (Discrete Levels) में रहती है। इसे आप सीढ़ियों की तरह समझ सकते हैं — ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर पर छलांग लगाती है।
यही सिद्धांत क्वांटम बिट्स या क्यूबिट्स (Qubits) के संचालन का आधार है। पारंपरिक कंप्यूटर बिट्स केवल 0 या 1 की स्थिति में रहते हैं, जबकि क्यूबिट्स इन दोनों अवस्थाओं में एक साथ हो सकते हैं — जिसे सुपरपोज़िशन (Superposition) कहा जाता है।
खोज का प्रभाव: एक नई वैज्ञानिक क्रांति
1. क्वांटम कंप्यूटिंग का युग
इन वैज्ञानिकों की खोजों ने क्वांटम कंप्यूटिंग की नींव रखी। आज क्वांटम कंप्यूटर उन जटिल समस्याओं को हल करने की क्षमता रखते हैं जिन्हें दुनिया के सबसे तेज सुपरकंप्यूटर भी हल नहीं कर सकते।
क्वांटम कंप्यूटिंग के अनुप्रयोग:
- दवा खोज (Drug Discovery): नई दवाओं की संरचना का पूर्वानुमान।
- जलवायु मॉडलिंग (Climate Modelling): मौसम और ग्लोबल वार्मिंग की सटीक भविष्यवाणी।
- क्रिप्टोग्राफी (Cryptography): सुरक्षित डेटा एन्क्रिप्शन तकनीकें।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): सुपरफास्ट डेटा प्रोसेसिंग और अनुकूलन एल्गोरिद्म।
2. क्वांटम सेंसर और मापन तकनीक
क्लार्क और उनके सहयोगियों के SQUID आधारित प्रयोगों ने ऐसी सेंसर तकनीकें विकसित कीं जो अत्यंत सूक्ष्म चुंबकीय क्षेत्रों को भी माप सकती हैं। आज ये तकनीकें MRI मशीनों, भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षणों, और अंतरिक्ष यानों के नेविगेशन सिस्टम्स में प्रयुक्त हो रही हैं।
3. सुपरकंडक्टिंग सर्किट्स और ऊर्जा दक्षता
इन प्रयोगों से यह भी साबित हुआ कि सुपरकंडक्टिंग सर्किट्स में ऊर्जा का कोई अपव्यय नहीं होता। इसका अर्थ यह है कि भविष्य में हम ऐसी इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियाँ बना सकेंगे जो बिजली की खपत को न्यूनतम कर देंगी।
यह न केवल औद्योगिक क्रांति को गति देगा, बल्कि सतत विकास (Sustainable Development) की दिशा में भी बड़ा कदम साबित होगा।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: क्वांटम सिद्धांत से प्रयोगशाला तक
क्वांटम सिद्धांत की शुरुआत 1900 में मैक्स प्लैंक (Max Planck) द्वारा ऊर्जा क्वांटाइजेशन की अवधारणा से हुई। इसके बाद आइंस्टाइन, श्रॉडिंगर, हाइजेनबर्ग, और बोहर जैसे वैज्ञानिकों ने इसे आगे बढ़ाया।
20वीं सदी के उत्तरार्ध में वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू किया कि क्वांटम प्रभाव केवल परमाणु स्तर पर नहीं बल्कि मैक्रोस्कोपिक प्रणालियों में भी प्रकट हो सकते हैं — बशर्ते तापमान बहुत कम रखा जाए।
यहीं से जॉन क्लार्क और उनके साथियों का काम शुरू हुआ, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि “क्वांटम दुनिया” को हम देख और नियंत्रित भी कर सकते हैं।
तकनीकी क्रांति का मार्ग
क्वांटम सर्किट्स के अध्ययन से क्वांटम बिट्स (Qubits) विकसित हुए, जो पारंपरिक बिट्स से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं।
आज IBM, Google, Microsoft, Intel जैसी कंपनियाँ इन सर्किट्स के प्रयोग से क्वांटम कंप्यूटर बना रही हैं। Google ने 2019 में अपने 53-क्यूबिट्स वाले “Sycamore” प्रोसेसर से यह दिखा दिया कि क्वांटम कंप्यूटिंग केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि भविष्य की हकीकत है।
क्वांटम खोजों का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
1. स्वास्थ्य क्षेत्र में नवाचार
क्वांटम तकनीकें अत्यंत संवेदनशील सेंसर विकसित कर रही हैं, जो ब्रेन इमेजिंग, कैंसर डिटेक्शन, और नैनोमेडिसिन में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं।
2. ऊर्जा क्षेत्र में योगदान
सुपरकंडक्टिंग तकनीकें बिजली के संचरण में शून्य ऊर्जा हानि सुनिश्चित कर सकती हैं। इससे न केवल बिजली की बचत होगी, बल्कि कार्बन उत्सर्जन में भी भारी कमी आएगी।
3. रक्षा और साइबर सुरक्षा
क्वांटम क्रिप्टोग्राफी से डेटा सुरक्षा लगभग अटूट हो जाएगी। भविष्य में साइबर हमलों से रक्षा के लिए क्वांटम एन्क्रिप्शन प्रमुख हथियार बनेगा।
जूरी का बयान: “क्वांटम को साकार करने की कला”
स्वीडिश रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज (Royal Swedish Academy of Sciences) ने अपने बयान में कहा —
“इन तीन वैज्ञानिकों ने वह कर दिखाया जिसे कभी असंभव माना गया था। उन्होंने क्वांटम के सिद्धांतों को प्रयोगशाला से बाहर निकालकर दृश्य, मापनीय और उपयोगी तकनीक में बदल दिया।”
यह कथन यह दर्शाता है कि 2025 का यह पुरस्कार केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि मानव बुद्धि की विजय का प्रतीक है — जो ‘अदृश्य’ को ‘दृश्य’ बनाने की क्षमता रखती है।
भविष्य की दिशा: क्वांटम युग की शुरुआत
आज जब हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और डेटा साइंस की बात करते हैं, तो इसके पीछे क्वांटम प्रोसेसिंग की शक्ति धीरे-धीरे उभर रही है।
2050 तक यह अनुमान है कि क्वांटम कंप्यूटर पारंपरिक कंप्यूटरों को पूरी तरह पीछे छोड़ देंगे। वे जटिल रासायनिक अभिक्रियाओं, अंतरिक्षीय डेटा विश्लेषण, और वैश्विक आर्थिक मॉडलिंग में प्रमुख भूमिका निभाएंगे।
सारांश (Summary Table)
श्रेणी | विवरण |
---|---|
पुरस्कार | नोबेल पुरस्कार 2025 (भौतिकी) |
विजेता | जॉन क्लार्क, मिशेल एच. डेवोरेट, जॉन एम. मार्टिनिस |
संस्थान | UC Berkeley, Yale University, UC Santa Barbara |
खोज का विषय | इलेक्ट्रिक सर्किट्स में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग और ऊर्जा क्वांटाइजेशन |
महत्त्व | क्वांटम कंप्यूटिंग और सुपरकंडक्टिंग तकनीक की नींव |
प्रभाव क्षेत्र | कंप्यूटिंग, चिकित्सा, ऊर्जा, सुरक्षा |
विज्ञान की दिशा | सूक्ष्म से विशाल तक क्वांटम सिद्धांत का विस्तार |
निष्कर्ष: एक नए युग की शुरुआत
2025 का नोबेल पुरस्कार भौतिकी न केवल तीन वैज्ञानिकों की उपलब्धि का सम्मान है, बल्कि यह उस परिवर्तन का प्रतीक भी है जिसे हम “क्वांटम युग” के नाम से पहचानेंगे।
जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब विज्ञान, कल्पना और दृढ़ निश्चय एक साथ चलते हैं, तब असंभव भी संभव हो जाता है।
उनकी खोजों ने यह साबित किया है कि क्वांटम मैकेनिक्स केवल एक सैद्धांतिक अवधारणा नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के भविष्य की वास्तविक आधारशिला है —
जहाँ ऊर्जा, जानकारी और पदार्थ — तीनों की सीमाएँ एक-दूसरे में विलीन हो रही हैं।
अंततः, 2025 का यह नोबेल पुरस्कार उस पीढ़ी के नाम है जो ब्रह्मांड की सूक्ष्मतम ऊर्जा को समझने और उसे तकनीकी चमत्कारों में बदलने का साहस रखती है।
क्लार्क, डेवोरेट और मार्टिनिस ने दिखा दिया है कि भविष्य उन्हीं का है जो “अदृश्य” को “साकार” करने का साहस रखते हैं — और यही विज्ञान की सच्ची विजय है।
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