राष्ट्रपति द्वारा केरल और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति

भारत का संविधान न्यायपालिका को स्वतंत्र, निष्पक्ष और सक्षम बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान करता है। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति इन्हीं संवैधानिक प्रावधानों और प्रक्रिया के तहत की जाती है। हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श कर, केरल और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में नए स्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की है। इन नियुक्तियों में अतिरिक्त न्यायाधीशों को पदोन्नत कर स्थायी न्यायाधीश बनाया गया है। यह कदम दोनों उच्च न्यायालयों की न्यायिक क्षमता को मजबूत करेगा और लंबित मामलों के बोझ को कम करने में मददगार साबित होगा।

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नियुक्तियों का संक्षिप्त परिचय

1. अरुण कुमार (वरिष्ठ अधिवक्ता)

  • नियुक्ति: न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय
  • अनुभव: बार में दीर्घकालिक प्रैक्टिस
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय, जो देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, वहाँ लंबे समय से मामलों का भारी दबाव है। अरुण कुमार जैसे अनुभवी अधिवक्ता की नियुक्ति से न्यायालय की कार्यकुशलता में वृद्धि होगी।

2. न्यायमूर्ति जॉनसन जॉन

  • पदोन्नति: अतिरिक्त न्यायाधीश → स्थायी न्यायाधीश
  • उच्च न्यायालय: केरल
  • न्यायमूर्ति जॉनसन जॉन ने अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उत्कृष्ट कार्य किया है। अब उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया है, जिससे न्यायिक कार्यों में निरंतरता बनी रहेगी।

3. न्यायमूर्ति जी. यू. गिरीश

  • पदोन्नति: अतिरिक्त न्यायाधीश से स्थायी न्यायाधीश
  • उच्च न्यायालय: केरल
  • न्यायमूर्ति गिरीश ने विभिन्न संवैधानिक और दीवानी मामलों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी स्थायी नियुक्ति से न्यायालय की संस्थागत मजबूती और न्यायिक दक्षता में बढ़ोतरी होगी।

4. न्यायमूर्ति सी. एन. प्रतिप कुमार

  • पदोन्नति: अतिरिक्त न्यायाधीश से स्थायी न्यायाधीश
  • उच्च न्यायालय: केरल
  • न्यायमूर्ति प्रतिप कुमार ने न्यायालय की कार्यप्रणाली को सुचारु बनाने में अहम भूमिका निभाई है। स्थायी नियुक्ति से वे और अधिक स्वतंत्र रूप से न्याय प्रदान कर सकेंगे।

संवैधानिक प्रावधान और नियुक्ति की प्रक्रिया

अनुच्छेद 217 (Article 217)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 217 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। इसके अनुसार –

  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • राष्ट्रपति, नियुक्ति से पूर्व परामर्श करते हैं:
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)
    • संबंधित राज्य के राज्यपाल
    • संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश

इस प्रकार यह प्रक्रिया केवल कार्यपालिका का निर्णय नहीं है, बल्कि इसमें न्यायपालिका और राज्य की भूमिका भी सुनिश्चित की जाती है।

कोलेजियम प्रणाली और न्यायिक नियुक्तियाँ

भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति कोलेजियम प्रणाली के माध्यम से होती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक समूह नियुक्तियों और स्थानांतरणों की अनुशंसा करता है।

  • सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम: भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से मिलकर बनता है।
  • हाई कोर्ट कोलेजियम: संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीश।

केरल और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हाल की नियुक्तियाँ भी कोलेजियम की अनुशंसाओं पर आधारित हैं।

अतिरिक्त न्यायाधीश और स्थायी न्यायाधीश में अंतर

भारत के उच्च न्यायालयों में दो प्रकार के न्यायाधीश होते हैं –

  1. स्थायी न्यायाधीश (Permanent Judges) – इन्हें नियमित नियुक्ति दी जाती है और ये सेवानिवृत्ति तक न्यायाधीश रहते हैं।
  2. अतिरिक्त न्यायाधीश (Additional Judges) – इन्हें अस्थायी रूप से एक निश्चित अवधि (आमतौर पर 2 वर्ष) के लिए नियुक्त किया जाता है, ताकि न्यायालय में मामलों का बोझ कम किया जा सके। बाद में योग्य और सक्षम अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी नियुक्ति दी जाती है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय – पृष्ठभूमि और महत्व

  • स्थापना: 1866 (पहले आगरा में, बाद में इलाहाबाद में स्थानांतरित)
  • क्षेत्राधिकार: उत्तर प्रदेश राज्य
  • विशेषता: यह भारत का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, जहाँ न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या सबसे अधिक है।
  • यहाँ लंबित मामलों की संख्या भी देश में सबसे अधिक रहती है। इसलिए हर नई नियुक्ति न्याय तक समय पर पहुँच सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाती है।

केरल उच्च न्यायालय – पृष्ठभूमि और महत्व

  • स्थापना: 1956
  • मुख्यालय: कोच्चि (Ernakulam)
  • क्षेत्राधिकार: केरल और लक्षद्वीप
  • यह उच्च न्यायालय तकनीकी सुविधाओं और ई-कोर्ट प्रणाली में देश के अग्रणी न्यायालयों में गिना जाता है।
  • यहाँ भी लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिसे संभालने में स्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति बहुत सहायक होगी।

नियुक्तियों का महत्व

  1. लंबित मामलों में कमी – इलाहाबाद और केरल उच्च न्यायालय में लाखों मामले लंबित हैं। नई नियुक्तियाँ निपटान की गति तेज करेंगी।
  2. न्यायिक शक्ति और क्षमता में वृद्धि – अधिक न्यायाधीश उपलब्ध होने से न्यायालय की कार्यक्षमता बढ़ेगी।
  3. न्याय तक समय पर पहुँच – न्याय पाने में देरी कम होगी और नागरिकों को शीघ्र राहत मिलेगी।
  4. न्यायिक निरंतरता – अतिरिक्त न्यायाधीशों की समय पर पदोन्नति से न्यायिक कार्य बाधित नहीं होगा।
  5. जन विश्वास में वृद्धि – जब अदालतें तेजी से और निष्पक्ष निर्णय देती हैं तो आमजन का न्यायपालिका पर विश्वास और गहरा होता है।

न्यायपालिका में नियुक्तियों को लेकर चुनौतियाँ

  • न्यायाधीशों की कमी: भारत के उच्च न्यायालयों में स्वीकृत पदों की तुलना में न्यायाधीशों की वास्तविक संख्या कम रहती है।
  • लंबित मामले: देशभर में करोड़ों मामले लंबित हैं, जिन्हें समय पर निपटाना बड़ी चुनौती है।
  • कार्यपालिका और न्यायपालिका का टकराव: कभी-कभी कोलेजियम की अनुशंसाओं और सरकार के निर्णयों में मतभेद देखने को मिलते हैं।
  • समयबद्ध प्रक्रिया का अभाव: नियुक्तियों और पदोन्नतियों में देरी न्यायिक दक्षता को प्रभावित करती है।

परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण तथ्य

  • नियुक्ति करने वाला प्राधिकारी: भारत के राष्ट्रपति
  • अनुच्छेद: 217
  • परामर्श लिया जाता है:
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)
    • संबंधित राज्य के राज्यपाल
    • संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
  • हाल की नियुक्तियाँ:
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय: अरुण कुमार
    • केरल उच्च न्यायालय: जॉनसन जॉन, जी. यू. गिरीश, सी. एन. प्रतिप कुमार

उच्च न्यायालयों की स्वीकृत और कार्यरत न्यायाधीशों की संख्या (2025 तक उपलब्ध आंकड़े)

उच्च न्यायालयस्वीकृत न्यायाधीशों की संख्याकार्यरत न्यायाधीश (2025)रिक्त पद
इलाहाबाद उच्च न्यायालय160~100~60
केरल उच्च न्यायालय47~35~12
दिल्ली उच्च न्यायालय60~45~15
बॉम्बे उच्च न्यायालय94~70~24
मद्रास उच्च न्यायालय75~55~20
कुल (सभी उच्च न्यायालय)1,114~800~314

👉 यह तालिका दिखाती है कि भारत के उच्च न्यायालयों में बड़ी संख्या में रिक्तियाँ बनी रहती हैं, जो लंबित मामलों की समस्या को और बढ़ाती हैं।

अतिरिक्त न्यायाधीश बनाम स्थायी न्यायाधीश – तुलना

पहलूअतिरिक्त न्यायाधीशस्थायी न्यायाधीश
नियुक्ति की अवधिआमतौर पर 2 वर्ष के लिएसेवानिवृत्ति तक (62 वर्ष की आयु तक)
नियुक्ति का उद्देश्यमामलों के अस्थायी बोझ को कम करनादीर्घकालिक न्यायिक कार्य सुनिश्चित करना
स्वतंत्रता का स्तरअपेक्षाकृत कम (भविष्य की नियुक्ति पर निर्भरता)अधिक स्वतंत्र, क्योंकि पद स्थायी है
पदोन्नति की संभावनाबाद में स्थायी नियुक्ति मिल सकती हैपहले से ही स्थायी, पदोन्नति की आवश्यकता नहीं
उदाहरणजॉनसन जॉन (केरल HC, 2025 तक)अरुण कुमार (इलाहाबाद HC, 2025 तक)

👉 यह तालिका स्पष्ट करती है कि क्यों अतिरिक्त न्यायाधीशों को समय पर स्थायी नियुक्त करना आवश्यक होता है।

निष्कर्ष

भारत की न्यायपालिका संविधान की आत्मा है और लोकतंत्र का सबसे अहम स्तंभ है। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि न्यायिक व्यवस्था की मजबूती और आम नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा का आधार है। राष्ट्रपति द्वारा इलाहाबाद और केरल उच्च न्यायालय में किए गए हालिया नियुक्तियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि न्यायपालिका की क्षमता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए सरकार और कोलेजियम निरंतर प्रयासरत हैं।

इन नियुक्तियों से न्याय तक समय पर पहुँच, न्यायिक पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों को और मजबूती मिलेगी।


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