राव बहादुर महादेव विश्वनाथ धुरंधर : भारतीय अकादमिक यथार्थवादी कला के महान स्तंभ

भारतीय आधुनिक कला के इतिहास में जिन कलाकारों ने पारंपरिक भारतीय संवेदना और यूरोपीय तकनीकी अनुशासन के बीच एक सशक्त सेतु का निर्माण किया, उनमें राव बहादुर महादेव विश्वनाथ धुरंधर का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। वे न केवल एक महान चित्रकार थे, बल्कि एक उत्कृष्ट शिक्षक, संस्थान निर्माता, आत्मकथाकार और भारतीय सामाजिक जीवन के संवेदनशील दस्तावेजकार भी थे।

हाल ही में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (NGMA), मुंबई द्वारा उनके जीवन और कला पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण पुस्तक का विमोचन किया जाना इस बात का प्रमाण है कि धुरंधर का योगदान आज भी भारतीय कला इतिहास में प्रासंगिक और अध्ययन योग्य बना हुआ है। संदीप दहिसरकर द्वारा लिखित पुस्तक —
“Rao Bahadur M. V. Dhurandhar: A Painter from the Bombay School of Art” — उनके बहुआयामी कला जीवन को नए संदर्भों में समझने का अवसर प्रदान करती है।

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प्रारंभिक जीवन और सामाजिक पृष्ठभूमि

महादेव विश्वनाथ धुरंधर का जन्म 18 मार्च 1867 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर नगर में हुआ। वे एक प्रतिष्ठित ‘पाथरे प्रभु’ परिवार से संबंधित थे, जो अपनी विद्वत्ता, सांस्कृतिक चेतना और प्रशासनिक सेवाओं के लिए जाना जाता था।

उनका पारिवारिक वातावरण परंपरा और आधुनिकता के संतुलन से युक्त था। यही कारण था कि बाल्यकाल से ही उनमें—

  • कला के प्रति संवेदनशीलता
  • इतिहास और पौराणिक कथाओं के प्रति आकर्षण
  • सामाजिक जीवन को देखने की गहरी दृष्टि

का विकास हुआ।

प्रारंभिक शिक्षा और कला की ओर झुकाव

धुरंधर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोल्हापुर के राजाराम हाई स्कूल से प्राप्त की। यहीं पर उनकी कला प्रतिभा स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आई। विद्यालयी जीवन में ही वे—

  • चित्र बनाना
  • दृश्य–अवलोकन
  • मानव आकृतियों का सूक्ष्म अध्ययन

जैसे गुणों में दक्ष होने लगे थे।

उनकी प्रतिभा को देखकर यह स्पष्ट हो गया था कि वे केवल एक सामान्य विद्यार्थी नहीं, बल्कि भविष्य के महान कलाकार हैं।

सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट और कलात्मक निर्माण

(क) प्रवेश और प्रशिक्षण

1890 में धुरंधर ने मुंबई के प्रतिष्ठित सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में प्रवेश लिया। यह संस्थान उस समय भारतीय कला शिक्षा का सर्वोच्च केंद्र था, जहाँ—

  • यूरोपीय अकादमिक परंपरा
  • यथार्थवादी तकनीक
  • शारीरिक रचना (Anatomy)
  • तेल चित्रण (Oil Painting)

पर विशेष बल दिया जाता था।

(ख) प्रेरणाएँ

धुरंधर की कला पर विशेष रूप से—

  • राजा रवि वर्मा की यथार्थवादी शैली
  • अबलाल रहमान के जलरंग प्रयोग

का गहरा प्रभाव पड़ा।
रवि वर्मा से उन्होंने भारतीय विषयों को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करने की कला सीखी, जबकि अबलाल रहमान से उन्होंने रंगों की कोमलता और भावात्मक गहराई ग्रहण की।

अकादमिक यथार्थवाद और धुरंधर की कला शैली

धुरंधर की कला शैली को Academic Realism (अकादमिक यथार्थवाद) कहा जाता है। यह शैली निम्न विशेषताओं से युक्त थी—

  • यूरोपीय चित्रण तकनीक का कठोर अनुशासन
  • मानव शरीर रचना का वैज्ञानिक अध्ययन
  • प्रकाश और छाया का संतुलित प्रयोग
  • भारतीय विषयवस्तु और भावभूमि

उनकी कला में पश्चिम केवल तकनीक के रूप में उपस्थित है, जबकि आत्मा पूरी तरह भारतीय है।

विषयवस्तु: समाज, इतिहास और पौराणिकता

धुरंधर की चित्रकला का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष उनकी विषयवस्तु है। उनके चित्रों को तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है—

(क) पौराणिक चित्रण

उनके अनेक चित्र हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं, जिनमें—

  • देव–देवियाँ
  • स्त्री पात्र
  • धर्म और आस्था

का भावनात्मक प्रस्तुतीकरण मिलता है।

(ख) ऐतिहासिक चित्र

विशेष रूप से छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित उनके चित्र अत्यंत प्रसिद्ध हैं।
इन चित्रों में—

  • मराठा गौरव
  • राष्ट्रबोध
  • वीरता और रणनीति

का सजीव चित्रण देखने को मिलता है।

(ग) सामाजिक जीवन का दस्तावेजीकरण

धुरंधर ने तत्कालीन मुंबई और महाराष्ट्र के—

  • मध्यम वर्गीय जीवन
  • स्त्रियों की स्थिति
  • वेशभूषा
  • सामाजिक रीति–रिवाज

को अत्यंत यथार्थवादी ढंग से चित्रित किया।

स्त्री चित्रण और समाजशास्त्रीय महत्व

धुरंधर के चित्र भारतीय समाज में स्त्री की स्थिति को समझने के लिए एक अमूल्य स्रोत हैं।

उनकी स्त्री आकृतियाँ—

  • गरिमामयी
  • भावपूर्ण
  • सामाजिक यथार्थ से जुड़ी

दिखाई देती हैं।
इसी कारण उनके चित्रों को प्राथमिक ऐतिहासिक स्रोत (Primary Source) माना जाता है।

शिक्षक और संस्थान निर्माता के रूप में धुरंधर

धुरंधर केवल कलाकार नहीं, बल्कि एक महान शिक्षक भी थे।

  • वे लंबे समय तक सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से शिक्षक के रूप में जुड़े रहे।
  • 1930 में वे इस संस्थान के पहले भारतीय निदेशक बने।

यह नियुक्ति औपनिवेशिक भारत में कला–शिक्षा के भारतीयकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम थी।

आत्मकथा: कला इतिहास का दस्तावेज

धुरंधर ने अपनी आत्मकथा —
“कलामंदिरातील एक्केचाळीस वर्षे” — लिखी।

यह केवल व्यक्तिगत संस्मरण नहीं, बल्कि—

  • औपनिवेशिक भारत की कला शिक्षा
  • कलाकारों की सामाजिक स्थिति
  • कला संस्थानों की कार्यप्रणाली

का दुर्लभ ऐतिहासिक दस्तावेज है।

पुस्तक चित्रण और अंतरराष्ट्रीय योगदान

धुरंधर ने कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की पुस्तकों के लिए चित्रांकन किया, जिनमें प्रमुख हैं—

(क) Women of India (1920) – ऑटो रोथफेल्ड

इस पुस्तक के लिए बनाए गए चित्र भारतीय स्त्रियों की—

  • विविध जातीय पहचान
  • पारंपरिक वेशभूषा
  • सामाजिक भूमिकाओं

का जीवंत चित्र प्रस्तुत करते हैं।

(ख) उमर खय्याम की रुबाइयात

फारसी काव्य की इस महान कृति के लिए किए गए उनके चित्र दर्शन, सौंदर्य और काव्यात्मकता का अनूठा संगम हैं।

प्रमुख पुरस्कार और सम्मान

(क) राव बहादुर (1927)

ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया यह सम्मान उनके कला–योगदान की आधिकारिक मान्यता था।

(ख) बॉम्बे आर्ट सोसाइटी गोल्ड मेडल (1895)

अपने प्रसिद्ध चित्र ‘Have You Come Laxmi?’ के लिए वे यह पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय बने।

(ग) फेलो ऑफ रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्स (1938)

लंदन की प्रतिष्ठित संस्था द्वारा उन्हें FRSA चुना जाना उनके अंतरराष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है।

NGMA की पुस्तक और समकालीन प्रासंगिकता

NGMA, मुंबई द्वारा प्रकाशित नई पुस्तक ने धुरंधर को—

  • केवल औपनिवेशिक कलाकार नहीं
  • बल्कि आधुनिक भारतीय कला के आधार–स्तंभ

के रूप में पुनः स्थापित किया है।

यह पुस्तक—

  • शोधार्थियों
  • कला इतिहासकारों
  • प्रतियोगी परीक्षा अभ्यर्थियों

के लिए अत्यंत उपयोगी है।

निष्कर्ष

राव बहादुर महादेव विश्वनाथ धुरंधर भारतीय कला इतिहास के ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने—

  • कला को सामाजिक दस्तावेज बनाया
  • भारतीय विषयों को यथार्थवादी गरिमा दी
  • कला शिक्षा को संस्थागत मजबूती प्रदान की

उनकी कला केवल सौंदर्य का साधन नहीं, बल्कि इतिहास, समाज और संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति है।

आज, जब भारतीय कला को वैश्विक मंच पर नए सिरे से पहचाना जा रहा है, धुरंधर का योगदान हमें यह याद दिलाता है कि आधुनिकता की जड़ें हमारी अपनी परंपराओं में गहराई से रची-बसी हैं।


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