आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली में वैज्ञानिक साक्ष्य (Scientific Evidence) की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। हत्या, बलात्कार, अपहरण या अन्य गंभीर अपराधों की जाँच में डीएनए (DNA) तकनीक सबसे सटीक और भरोसेमंद मानी जाती है। यह अपराध स्थल पर मिले नमूनों से अपराधी की पहचान करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। परंतु, इसकी विश्वसनीयता तभी बनी रह सकती है जब इसे वैज्ञानिक मानकों और न्यायिक प्रक्रियाओं के अनुरूप संभाला जाए।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने “कट्टावेल्लई देवकर बनाम तमिलनाडु राज्य” मामले में डीएनए साक्ष्य की शुचिता (Integrity) बनाए रखने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए। यह फैसला न केवल पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि न्यायपालिका और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा।
डीएनए क्या है? – एक वैज्ञानिक समझ
डीएनए (Deoxyribonucleic Acid) जीवन का मूलभूत आधार है। यह एक अणु है जिसमें सभी जीवित प्राणियों की आनुवंशिक जानकारी (Genetic Information) सुरक्षित रहती है।
- स्रोत: डीएनए हड्डी, रक्त, वीर्य, लार, बाल, त्वचा जैसी जैविक सामग्रियों से प्राप्त किया जा सकता है।
- विशेषता: हर व्यक्ति का डीएनए प्रोफ़ाइल अद्वितीय होता है, सिवाय समान जुड़वां (Identical Twins) के।
- महत्व: अपराध स्थल से प्राप्त डीएनए का मिलान संदिग्ध व्यक्ति के डीएनए से करने पर यह पता चलता है कि दोनों का स्रोत समान है या नहीं।
अपराध जांच में डीएनए का महत्व
डीएनए साक्ष्य अपराध की जाँच में निर्णायक भूमिका निभाता है।
- पहचान का साधन: बलात्कार, हत्या या अपहरण मामलों में अपराधी की पहचान सुनिश्चित करने का सबसे भरोसेमंद तरीका।
- झूठे आरोप से मुक्ति: कई मामलों में डीएनए परीक्षण ने निर्दोष व्यक्तियों को झूठे आरोपों से बचाया है।
- पुराने मामलों का समाधान: “कोल्ड केस” यानी वर्षों से लंबित मामलों को भी डीएनए तकनीक की मदद से सुलझाया गया है।
👉 उदाहरण: अमेरिका और यूरोप में “इनसेंस प्रोजेक्ट” (Innocence Project) जैसी पहलें डीएनए परीक्षण की मदद से सैकड़ों निर्दोषों को जेल से रिहा करा चुकी हैं। भारत में भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ डीएनए ने न्याय दिलाने में निर्णायक योगदान दिया।
कानूनी दृष्टिकोण से डीएनए साक्ष्य
भारत में डीएनए साक्ष्य को विशेषज्ञ की राय (Expert Opinion) के रूप में माना जाता है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) की धारा 45 – विशेषज्ञ की राय को स्वीकार करता है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 39 – नए कानून में भी यही व्यवस्था रखी गई है।
- सुप्रीम कोर्ट ने देवकर मामले में स्पष्ट कहा – डीएनए रिपोर्ट स्वयं में निष्कर्षात्मक (Substantive Evidence) नहीं है, बल्कि इसे अन्य साक्ष्यों के साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए।
इसका अर्थ यह है कि डीएनए रिपोर्ट को अंतिम सत्य नहीं माना जाएगा; न्यायालय इसे परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और गवाहों के बयानों के साथ जोड़कर ही निर्णय करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के सामने आई समस्याएँ
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि व्यवहार में डीएनए साक्ष्य के उपयोग में कई गंभीर समस्याएँ हैं –
- प्रक्रिया में देरी (Procedural Delays):
- अक्सर अपराध स्थल से नमूने लेने के बाद उन्हें फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) भेजने में हफ्तों या महीनों की देरी होती है।
- ऐसी देरी से नमूने दूषित या अप्रासंगिक हो सकते हैं।
- चेन ऑफ कस्टडी की समस्या:
- यह स्पष्ट नहीं होता कि अपराध स्थल से नमूना लेने से लेकर अदालत तक पहुँचने तक किसके पास और किस स्थिति में रखा गया।
- चेन ऑफ कस्टडी (Chain of Custody) न होने से सबूत की प्रामाणिकता संदिग्ध हो जाती है।
- समानता का अभाव:
- विभिन्न राज्यों और एजेंसियों के पास अलग-अलग प्रक्रिया है।
- कोई सर्वमान्य और बाध्यकारी राष्ट्रीय प्रोटोकॉल नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट के नवीन दिशानिर्देश
देवकर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने डीएनए साक्ष्य की शुचिता सुनिश्चित करने हेतु विस्तृत निर्देश जारी किए।
1. संग्रह (Collection)
- नमूने संग्रहित करते समय एक दस्तावेज़ तैयार किया जाएगा।
- इसमें चिकित्सक, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर और पदनाम अनिवार्य होंगे।
2. परिवहन (Transportation)
- डीएनए नमूनों को संबंधित पुलिस स्टेशन या अस्पताल तक सुरक्षित ले जाने की जिम्मेदारी जांच अधिकारी की होगी।
- नमूनों को 48 घंटे के भीतर संबंधित FSL तक पहुँचाना अनिवार्य होगा।
- देरी होने पर कारण लिखित रूप में दर्ज करना होगा।
3. संरक्षण (Preservation)
- ट्रायल या अपील लंबित रहने तक नमूने का पैकेज ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना न खोला जाएगा, न बदला जाएगा और न ही दोबारा सील किया जाएगा।
4. चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर (Chain of Custody Register)
- संग्रह से लेकर सजा या बरी होने तक चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर बनाए रखना अनिवार्य होगा।
- इसे ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड का हिस्सा बनाया जाएगा।
- किसी भी कमी के लिए संबंधित जांच अधिकारी को व्यक्तिगत स्पष्टीकरण देना होगा।
5. राज्य सरकारों की जिम्मेदारी
- सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशक नमूना प्रारूप तैयार करेंगे।
- इन्हें सभी जिलों में भेजकर सुनिश्चित करेंगे कि एकरूपता (Uniformity) बनी रहे।
दिशानिर्देशों का महत्व
- विश्वसनीयता में वृद्धि: अब अदालतों को भरोसेमंद डीएनए रिपोर्ट मिलेगी।
- झूठे आरोपों से सुरक्षा: निर्दोषों को गलत सबूतों के आधार पर फँसाने की संभावना कम होगी।
- जाँच प्रक्रिया में पारदर्शिता: हर कदम पर दस्तावेजी साक्ष्य रहेगा।
- राष्ट्रीय स्तर पर समानता: सभी राज्यों में एक जैसी प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
चुनौतियाँ और संभावित समाधान
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट दिशा–निर्देश जारी किए हैं, परंतु इन्हें व्यवहार में लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी: भारत में अभी भी FSL की संख्या सीमित है।
- तकनीकी प्रशिक्षण: पुलिस और मेडिकल अधिकारियों को डीएनए साक्ष्य के वैज्ञानिक मानकों की जानकारी होनी चाहिए।
- समयबद्धता: 48 घंटे की समय-सीमा व्यावहारिक रूप से तभी संभव है जब पर्याप्त लैब और परिवहन सुविधा उपलब्ध हो।
👉 समाधान के लिए – केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर अधिक FSL प्रयोगशालाएँ, आधुनिक उपकरण और विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने होंगे।
Quick Revision Table (सारांश तालिका)
विषय | विवरण |
---|---|
मामला | कट्टावेल्लई देवकर बनाम तमिलनाडु राज्य |
डीएनए (DNA) | आनुवंशिक जानकारी वाला अणु, हड्डी, रक्त, वीर्य, लार, बाल, त्वचा आदि से प्राप्त |
कानूनी आधार | भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 45, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 39 |
समस्याएँ | नमूनों में देरी, चेन ऑफ कस्टडी की कमी, समानता का अभाव |
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश | 48 घंटे में नमूना FSL भेजना, संग्रह/संरक्षण/परिवहन की लिखित प्रक्रिया, ट्रायल कोर्ट अनुमति के बिना पैकेज न खोलना, चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर अनिवार्य |
महत्व | साक्ष्य की विश्वसनीयता, पारदर्शिता, निर्दोषों की सुरक्षा, राष्ट्रीय एकरूपता |
चुनौतियाँ | FSL की कमी, तकनीकी प्रशिक्षण, समयबद्धता |
समाधान | अधिक प्रयोगशालाएँ, आधुनिक तकनीक, प्रशिक्षण कार्यक्रम |
निष्कर्ष
डीएनए साक्ष्य आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली की रीढ़ है। लेकिन इसकी प्रामाणिकता तभी बनी रह सकती है जब इसे वैज्ञानिक, पारदर्शी और समान प्रक्रिया से संभाला जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि इससे डीएनए साक्ष्य की विश्वसनीयता मजबूत होगी और न्यायपालिका को निष्पक्ष निर्णय लेने में सहायता मिलेगी।
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