यह लेख “पर्यावरणीय अध्ययन का क्षेत्र” विषय पर एक विस्तृत और समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसमें पर्यावरण की परिभाषा, स्वरूप, प्रमुख घटकों और इसके अध्ययन के विविध आयामों को विस्तारपूर्वक समझाया गया है। लेख में पर्यावरण को दो प्रमुख वर्गों—भौतिक (प्राकृतिक) पर्यावरण और सांस्कृतिक (मानव निर्मित) पर्यावरण—में विभाजित कर उनके बीच के अंतर्संबंधों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है। यह लेख बताता है कि पर्यावरणीय अध्ययन एक बहुविषयी विषय है, जो विज्ञान, भूगोल, समाजशास्त्र, राजनीति, विधिशास्त्र, अर्थशास्त्र, जनसांख्यिकी आदि क्षेत्रों से गहरे रूप से जुड़ा है।
इसमें पारिस्थितिकीय प्रणाली, स्थानिक विश्लेषण, प्रादेशिक विश्लेषण, जैवमंडल, प्राकृतिक आपदाएँ और मानवकृत परिवर्तनों की भविष्यवाणी जैसे समसामयिक विषयों को भी सम्मिलित किया गया है। पर्यावरणीय अध्ययन केवल प्रदूषण की समस्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित करने का मार्गदर्शन करता है। यह लेख छात्रों, शोधार्थियों, शिक्षकगणों तथा नीति निर्माताओं के लिए एक उपयोगी संदर्भ सामग्री है, जो पर्यावरण की जटिलता और इसके महत्व को समझने में मदद करता है। यदि आप पर्यावरण, सतत विकास और मानवीय हस्तक्षेप के प्रभावों को समग्र रूप से समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।
प्रस्तावना
आज के समय में पर्यावरणीय अध्ययन (Environmental Studies) का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है। मानव और उसके क्रियाकलापों का प्रभाव अब मात्र एक सीमित क्षेत्र तक नहीं रह गया है, बल्कि इसका विस्तार वैश्विक स्तर पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। पारिस्थितिक असंतुलन, प्राकृतिक आपदाएँ, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का ह्रास, वनों की कटाई, जल और वायु प्रदूषण जैसे समस्याएँ आज समस्त मानव जाति के समक्ष गंभीर चुनौती के रूप में उपस्थित हैं। इन्हीं समस्याओं की समझ, समाधान और संरक्षण की योजनाओं हेतु पर्यावरणीय अध्ययन का क्षेत्र अत्यंत आवश्यक एवं उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
पर्यावरण का अर्थ और स्वरूप
सामान्यतः ‘पर्यावरण’ शब्द सुनते ही हमारा ध्यान भौतिक और प्राकृतिक घटकों जैसे- वायु, जल, भूमि, वनस्पति और जीव-जन्तुओं की ओर जाता है। परंतु वास्तव में पर्यावरण एक बहुआयामी अवधारणा है, जिसमें न केवल प्राकृतिक अपितु सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक घटकों की भी सशक्त भूमिका होती है। अतः यह स्पष्ट है कि पर्यावरण न तो केवल भौतिक घटकों तक सीमित है और न ही केवल मानव-निर्मित संरचनाओं तक; बल्कि यह इन दोनों के समन्वय से निर्मित एक जटिल तंत्र है।
पर्यावरण के प्रमुख घटक
पर्यावरण को अध्ययन की दृष्टि से दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
(अ) भौतिक पर्यावरण (Physical Environment)
भौतिक पर्यावरण उन समस्त प्राकृतिक तत्वों का समूह है जो बिना मानव हस्तक्षेप के अस्तित्व में आए हैं। यह वह पर्यावरण है, जिस पर मनुष्य का निर्माण या नियंत्रण नहीं होता। यदि पृथ्वी से मनुष्य को हटा दिया जाए, तो जो भी तत्त्व अपने मूल स्वरूप में उपस्थित रहें, वे भौतिक पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं।
इसमें सम्मिलित हैं:
- सूर्य की ऊर्जा एवं ताप
- ऋतुओं में परिवर्तन
- भू-आकृतिक संरचनाएँ
- ज्वालामुखी, भूकंप
- खनिज संसाधन
- नदियाँ, समुद्र, झीलें
- जलवायु, वायुमंडल
- वनस्पतियाँ और वन्य जीव
भौतिक पर्यावरण प्रकृति का अनुपम उपहार है। यह एक ऐसा आधार है जिस पर समस्त जैविक गतिविधियाँ निर्भर करती हैं। इसका कोई विकल्प नहीं है और इसका संरक्षण मानव अस्तित्व के लिए अनिवार्य है।
(ब) सांस्कृतिक पर्यावरण (Cultural Environment)
सांस्कृतिक पर्यावरण वह पर्यावरण है जिसका निर्माण स्वयं मानव ने किया है। इसमें वह सब कुछ शामिल है जो मनुष्य की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी गतिविधियों से उत्पन्न हुआ है। यह पर्यावरण पूरी तरह से मानव-निर्मित है और इसके निर्माण एवं विकास पर मानव का पूर्ण नियंत्रण होता है।
इसमें शामिल हैं:
- सामाजिक संरचनाएँ और संबंध
- धर्म, दर्शन, परंपराएँ, मूल्य
- संविधान, कानून, न्याय व्यवस्था
- तकनीकी विकास, उद्योग
- भवन, सड़कें, पुल, बांध
- शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा तंत्र
- संचार और परिवहन सुविधाएँ
- शहर, गांव, आवास, मनोरंजन स्थल
सांस्कृतिक पर्यावरण भौतिक पर्यावरण से कहीं आंशिक और कहीं पूर्णतः प्रभावित होता है। जैसे-जैसे शहरीकरण और औद्योगीकरण बढ़ता है, वैसे-वैसे मानव अपने सांस्कृतिक पर्यावरण का विस्तार करता है, लेकिन इसके साथ-साथ भौतिक पर्यावरण में भी व्यापक परिवर्तन आता है।
भौतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण का अंतर्संबंध
भले ही भौतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण को दो पृथक श्रेणियों में विभाजित किया गया हो, लेकिन व्यवहार में यह दोनों आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। वास्तव में, सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण भौतिक पर्यावरण के विभिन्न तत्त्वों के साथ मानव की अनुक्रिया (interaction) से ही संभव हुआ है। उदाहरणतः मनुष्य ने नदी के किनारे बसावट की, कृषि के लिए भूमि का चयन किया, मौसम के अनुसार आवास निर्माण किया— ये सभी उसकी भौतिक पर्यावरण से अनुकूलन की प्रक्रियाएँ हैं।
परंतु यह भी देखा गया है कि जब सांस्कृतिक पर्यावरण अति रूप में पहुँचता है, तो वह भौतिक पर्यावरण को हानि पहुँचाने लगता है। अति शहरीकरण, अत्यधिक औद्योगीकरण, वनों की अंधाधुंध कटाई, प्रदूषण आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। अतः दोनों का संतुलन अत्यंत आवश्यक है।
पर्यावरणीय अध्ययन का विस्तार
पर्यावरणीय अध्ययन आज एक समेकित और बहुविषयी (multidisciplinary) विषय के रूप में स्थापित हो चुका है। यह विज्ञान, समाजशास्त्र, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, विधिशास्त्र, अर्थशास्त्र, जीवविज्ञान, चिकित्सा, जनसांख्यिकी, तथा अन्य अनेक विषयों से संबंधित है। यह अध्ययन हमें न केवल पर्यावरण की संरचना को समझने में सहायता करता है, बल्कि इसके संरक्षण और पुनर्स्थापन (restoration) के उपाय भी सुझाता है।
पर्यावरणीय अध्ययन के प्रमुख आयाम
1. पारिस्थितिक प्रणाली (Ecological System)
यह वह प्रणाली है जिसमें जीव (जैसे मनुष्य) और उनके पर्यावरण के बीच परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया होती है। इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि जीव किस प्रकार अपने परिवेश के साथ समायोजन करते हैं, और किस तरह पर्यावरण में परिवर्तन लाकर उसे अपने अनुकूल बनाते हैं।
2. पारिस्थितिकीय विश्लेषण (Ecological Analysis)
इसमें किसी क्षेत्र विशेष के पर्यावरणीय तत्वों और मनुष्य के बीच मौजूद जैविक, भौतिक एवं आर्थिक संबंधों का समेकित अध्ययन किया जाता है। उदाहरणस्वरूप कृषि में मिट्टी, जल और जलवायु की भूमिका, तथा मानव श्रम व तकनीक के योगदान का विश्लेषण किया जाता है।
3. स्थानिक प्रणाली (Spatial System)
यह प्रणाली बताती है कि किसी क्षेत्र का पर्यावरण पड़ोसी क्षेत्र के भूगोल और पर्यावरण से किस प्रकार प्रभावित होता है। उदाहरणस्वरूप, एक प्रदेश में वनों की कटाई से अन्य क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा पर प्रभाव पड़ सकता है।
4. स्थानिक विश्लेषण (Spatial Analysis)
इस विश्लेषण द्वारा किसी भू-प्रदेश में पर्यावरणीय विविधताओं को समझा जाता है। यह हमें यह जानने में मदद करता है कि पर्यावरणीय घटकों में स्थान के अनुसार कैसे भिन्नताएँ पाई जाती हैं और उनके कारण क्या हैं।
5. प्रादेशिक सम्मिश्र विश्लेषण (Regional Complex Analysis)
यह विश्लेषण स्थानिक एवं पारिस्थितिक दोनों प्रकार के विश्लेषणों का मिश्रण होता है। इसमें यह देखा जाता है कि किसी क्षेत्र में कौन-कौन से पर्यावरणीय घटक मौजूद हैं और वे मिलकर कैसे एक विशेष पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं।
6. जैवमण्डल का अध्ययन (Study of Biosphere)
जैवमण्डल पृथ्वी का वह भाग है जहाँ जीवन संभव है। इसका अध्ययन करते समय यह देखा जाता है कि वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल किस प्रकार एक-दूसरे से जुड़कर जीवन का पोषण करते हैं।
7. प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन (Study of Natural Disasters)
पर्यावरणीय अध्ययन में प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़, सूखा, चक्रवात आदि की भूमिका को विशेष रूप से स्थान दिया गया है। इन आपदाओं का न केवल पर्यावरणीय तंत्र पर बल्कि मानव जीवन, संसाधनों और संरचनाओं पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।
8. मानवकृत परिवर्तनों की भविष्यवाणी हेतु वैज्ञानिक प्रविधियों का विकास
पर्यावरणीय अध्ययन में अब यह भी शामिल किया जा रहा है कि वैज्ञानिक व भूगोलिक तकनीकों की सहायता से मनुष्य द्वारा लाए गए परिवर्तनों के दूरगामी प्रभावों की पूर्वानुमान की जा सके। रिमोट सेंसिंग, GIS, जलवायु मॉडलिंग आदि तकनीकों का प्रयोग कर यह समझने का प्रयास किया जाता है कि भविष्य में पर्यावरणीय परिदृश्य कैसा होगा।
बहुविषयी दृष्टिकोण और संबंधित विषय
पर्यावरणीय अध्ययन की विशेषता इसकी बहुविषयी प्रकृति में है। इसके अंतर्गत अनेक विषयों का समन्वय देखने को मिलता है:
- भौतिक शास्त्र: ध्वनि प्रदूषण, ऊर्जा का प्रवाह
- जल विज्ञान: जल संसाधनों का प्रबंधन, प्रदूषण
- मृदा विज्ञान: मृदा की गुणवत्ता, क्षरण
- जीवविज्ञान एवं वनस्पति शास्त्र: जैव विविधता, खाद्य श्रृंखला
- औषधि विज्ञान एवं विष शास्त्र: प्रदूषकों के जैविक प्रभाव
- अर्थशास्त्र: संसाधन उपयोग, ईकोमार्किंग, पर्यावरणीय बजट
- विधिशास्त्र: पर्यावरण संरक्षण कानून
- राजनीति विज्ञान: अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधियाँ
- समाजशास्त्र एवं जनसांख्यिकी: जनसंख्या वृद्धि, मानव व्यवहार
पर्यावरणीय अध्ययन आज की वैश्विक समस्याओं से निपटने हेतु एक महत्वपूर्ण उपकरण बन चुका है। यह न केवल हमें पर्यावरणीय संकटों की समझ प्रदान करता है, बल्कि उनके समाधान के लिए विभिन्न उपायों की ओर भी संकेत करता है। पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण न केवल सरकारों की जिम्मेदारी है, बल्कि प्रत्येक नागरिक का भी कर्तव्य है। जब तक हम प्राकृतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण के बीच संतुलन नहीं बनाएंगे, तब तक सतत विकास एक दूर का सपना ही बना रहेगा।
इस प्रकार, पर्यावरणीय अध्ययन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक, जटिल एवं महत्वपूर्ण है, जो आज के वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक संदर्भों में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
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इन्हें भी देखें –
- मुद्रा तथा आर्थिक जीवन | Money and Economic Life
- आधुनिक मुद्रा सिद्धांत (वर्तमान दृष्टिकोण) | Modern Monetary Theory
- मुद्रा की तटस्थता की आलोचना | एक समालोचनात्मक अध्ययन
- मुद्रा की तटस्थता | Neutrality of Money
- पर्यावरणीय अर्थशास्त्र की अवधारणा | Concept of Environmental Economics
- पर्यावरणीय अर्थशास्त्र: अर्थ एवं क्षेत्र | Environmental Economics: Meaning and Scope
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