सर एम. विश्वेश्वरैया: भारतीय इंजीनियरिंग के जनक और राष्ट्र निर्माण के प्रेरणास्तंभ

भारत जैसे विशाल और विविधताओं से परिपूर्ण देश में वैज्ञानिक सोच, तकनीकी प्रगति और आधुनिक अवसंरचना का जो मजबूत आधार है, उसमें कई महान व्यक्तित्वों का योगदान रहा है। उन महान विभूतियों में एक नाम विशेष रूप से स्मरणीय है – सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, जिन्हें हम संक्षेप में सर एम. विश्वेश्वरैया के नाम से जानते हैं। वे न केवल एक अद्वितीय सिविल इंजीनियर थे, बल्कि दूरदर्शी प्रशासनिक नेता, शिक्षाविद्, विचारक और समाज सुधारक भी थे। 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के मड्डेनहल्ली गाँव में जन्मे सर विश्वेश्वरैया का जीवन देश के निर्माण, तकनीकी नवाचार, जल प्रबंधन और शिक्षा सुधार में समर्पित रहा। आज भी उनका जीवन इंजीनियरों, युवाओं और नीति निर्माताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। भारत में प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है।

इस लेख में हम उनके जीवन, कार्यों, पुरस्कारों, तकनीकी योगदानों, राष्ट्र निर्माण में भूमिका, युवाओं के लिए प्रेरणा तथा आधुनिक भारत में उनकी प्रासंगिकता का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सर एम. विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के मड्डेनहल्ली गाँव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता मोक्षगुंडम श्रीनिवास शास्त्री एक विद्वान व्यक्ति थे और माताजी वेंकटलक्ष्मी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। आर्थिक सीमाओं के बावजूद उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने की ठानी और अपने परिश्रम व मेधा से उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने बेंगलुरु और पुणे से शिक्षा ली और आगे चलकर सिविल इंजीनियरिंग में महारत हासिल की।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा में गणित और विज्ञान के प्रति विशेष रुचि दिखाई दी। इंजीनियरिंग में करियर बनाने का उनका निर्णय उस समय असामान्य था, लेकिन उन्होंने समाज की जरूरतों को समझते हुए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में योगदान देने का लक्ष्य तय किया। वे हमेशा कहते थे –
“कठिनाइयाँ सफलता की पहली सीढ़ी हैं। निरंतर प्रयास से ही लक्ष्य प्राप्त होता है।”

इंजीनियरिंग क्षेत्र में उनका योगदान

सर एम. विश्वेश्वरैया का नाम भारत में आधुनिक जल प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण और औद्योगिक विकास से जुड़ा हुआ है। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग को एक सेवा क्षेत्र के रूप में देखा, जहाँ तकनीकी समाधान समाज की भलाई में बदल सकते हैं। उनके योगदानों को निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है:

कृष्णराज सागर (KRS) बाँध

मैसूर राज्य में कृषि के लिए सिंचाई की व्यवस्था एक बड़ी चुनौती थी। सर विश्वेश्वरैया ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर कृष्णराज सागर (KRS) बाँध का निर्माण कराया। यह एशिया के सबसे बड़े जलाशयों में से एक है। इसकी वजह से मैसूर के मंड्या जिले की कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। जल संरक्षण, फसलों को पर्याप्त पानी, और कृषि उत्पादन में वृद्धि ने न केवल क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दी, बल्कि पूरे दक्षिण भारत में जल प्रबंधन का आदर्श प्रस्तुत किया।

बाढ़ नियंत्रण – मूसी नदी की त्रासदी के बाद

1908 में हैदराबाद में मूसी नदी की बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी। हजारों लोग प्रभावित हुए। सर विश्वेश्वरैया ने तत्कालीन निज़ाम प्रशासन के साथ मिलकर बाढ़ नियंत्रण की वैज्ञानिक योजना तैयार की। उन्होंने जल निकासी, तटबंध निर्माण और नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने के उपाय सुझाए। इस योजना ने शहर की जल आपदा से सुरक्षा प्रदान की और बाद में भारत के अन्य हिस्सों में भी ऐसी योजनाओं के लिए मार्गदर्शन किया।

विशाखापट्टनम बंदरगाह की सुरक्षा

समुद्री कटाव की समस्या का समाधान करने के लिए उन्होंने विशाखापट्टनम बंदरगाह के संरक्षण हेतु अभिनव तकनीक विकसित की। समुद्री लहरों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए उन्होंने तटबंधों और समुद्री ढाँचों के डिजाइन पर काम किया, जिससे बंदरगाह की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित हुई।

मैसूर के दीवान के रूप में योगदान (1912–1918)

सर विश्वेश्वरैया 1912 से 1918 तक मैसूर के दीवान (प्रधानमंत्री) रहे। इस दौरान उन्होंने शिक्षा, औद्योगिक विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, जल आपूर्ति, नगर नियोजन और प्रशासन में कई महत्वपूर्ण सुधार किए। उन्होंने तकनीकी शिक्षा के प्रसार के लिए संस्थान स्थापित किए और युवाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था –
“विकास केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि विज्ञान, अनुशासन और कार्यशीलता से आता है।”

सम्मान और पुरस्कार

सर विश्वेश्वरैया को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इनमें प्रमुख हैं:

भारत रत्न (1955)

भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न उन्हें 1955 में प्रदान किया गया। यह पुरस्कार उनकी वैज्ञानिक दृष्टि, इंजीनियरिंग कौशल और राष्ट्र सेवा के लिए दिया गया।

नाइट कमांडर ऑफ़ द ब्रिटिश इंडियन एम्पायर (KCIE) – 1915

ब्रिटिश शासन के दौरान उन्हें नाइट कमांडर ऑफ़ द ब्रिटिश इंडियन एम्पायर (KCIE) की उपाधि किंग जॉर्ज पंचम द्वारा प्रदान की गई। यह उनके इंजीनियरिंग योगदान और प्रशासनिक सेवा के लिए एक अंतरराष्ट्रीय मान्यता थी।

इसके अतिरिक्त, देशभर के विभिन्न संस्थानों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान कीं। उनका व्यक्तित्व अनुशासन, ईमानदारी और वैज्ञानिक सोच का प्रतीक बन गया।

इंजीनियर्स डे का महत्व

भारत में हर वर्ष 15 सितंबर को उनके जन्मदिन पर इंजीनियर्स डे मनाया जाता है। यह केवल औपचारिक उत्सव नहीं, बल्कि तकनीकी प्रतिभा को सम्मानित करने और नई पीढ़ी को विज्ञान और नवाचार की ओर प्रेरित करने का अवसर है।

इंजीनियर्स डे के उद्देश्य:

  1. इंजीनियरों का सम्मान – देश के निर्माण में उनके योगदान की सराहना करना।
  2. युवाओं को प्रेरित करना – विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए उत्साहित करना।
  3. नवाचार का उत्सव – नए विचारों, शोध, तकनीकी समाधान और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करना।
  4. राष्ट्र निर्माण में भूमिका – इंजीनियरिंग को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय विकास का साधन बनाना।
  5. सतत विकास की सोच – जल संरक्षण, ऊर्जा प्रबंधन, स्वच्छता और आधारभूत संरचना में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार करना।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक नेताओं ने 15 सितंबर 2025 को इंजीनियर्स डे पर सर विश्वेश्वरैया को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि “इंजीनियर ही वह शक्ति हैं जो विकसित भारत का निर्माण कर सकते हैं। नवाचार, विज्ञान और तकनीक के बिना आत्मनिर्भर भारत की कल्पना अधूरी है।”

सर विश्वेश्वरैया की दूरदृष्टि: तकनीक और समाज का संगम

उनकी दृष्टि केवल इमारतें और बाँध बनाने तक सीमित नहीं थी। वे मानते थे कि तकनीक तभी सार्थक है जब उसका लाभ समाज तक पहुँचे। उनके विचारों को निम्न बिंदुओं में समझ सकते हैं:

शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण

उन्होंने तकनीकी संस्थानों की स्थापना पर ज़ोर दिया। उनका मानना था कि विज्ञान और गणित की शिक्षा बच्चों को न केवल रोजगार देती है, बल्कि देश की समस्याओं का समाधान भी खोजने की क्षमता प्रदान करती है।

जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण

वे जल संसाधनों के कुशल उपयोग के पक्षधर थे। उन्होंने जल संचयन, सिंचाई, और बाढ़ नियंत्रण को भविष्य की प्राथमिकताओं में शामिल किया। उनके विचार आज भी जल संकट से जूझते क्षेत्रों के लिए मार्गदर्शक हैं।

उद्योग और आर्थिक विकास

उन्होंने छोटे और बड़े उद्योगों के लिए तकनीकी आधार तैयार करने पर काम किया। उनका विश्वास था कि विज्ञान आधारित उत्पादन और स्थानीय संसाधनों का उपयोग आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर ले जा सकता है।

अनुशासन और नैतिकता

उन्होंने प्रशासन में पारदर्शिता, कार्य में अनुशासन और ईमानदारी पर बल दिया। उनके लिए तकनीकी प्रगति तभी संभव है जब नैतिकता और सार्वजनिक सेवा की भावना मौजूद हो।

आधुनिक भारत में उनकी प्रासंगिकता

आज जब भारत वैश्विक तकनीकी केंद्र बनने की ओर अग्रसर है, तब सर विश्वेश्वरैया के विचार और कार्य पहले से अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा संकट, शहरीकरण, जल प्रबंधन और औद्योगिक विकास जैसी चुनौतियों के समाधान में उनकी सोच उपयोगी है।

स्मार्ट सिटी और सतत विकास

भारत के स्मार्ट सिटी मिशन में जल संरक्षण, स्वच्छ ऊर्जा, कचरा प्रबंधन और हरित अवसंरचना जैसी योजनाएँ उनके विचारों से मेल खाती हैं।

स्टार्टअप संस्कृति और नवाचार

नई पीढ़ी द्वारा विज्ञान आधारित स्टार्टअप्स, रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयास सर विश्वेश्वरैया की प्रेरणा का आधुनिक रूप हैं।

ग्रामीण विकास

सिंचाई व्यवस्था, जल संरक्षण और स्थानीय संसाधनों का वैज्ञानिक उपयोग ग्रामीण भारत के आर्थिक सशक्तिकरण में मदद कर रहा है।

युवाओं के लिए प्रेरणा

सर विश्वेश्वरैया का जीवन संघर्ष, परिश्रम और वैज्ञानिक दृष्टि का उदाहरण है। उन्होंने दिखाया कि संसाधनों की कमी सफलता में बाधा नहीं बनती। वे युवाओं से कहते थे:

  • लक्ष्य तय करो और पूरी निष्ठा से काम करो।
  • विज्ञान को समाज की सेवा में लगाओ।
  • समस्या देखकर भागो मत, उसका समाधान खोजो।
  • अनुशासन, ईमानदारी और निरंतर प्रयास ही सफलता की कुंजी है।

इंजीनियरिंग केवल एक पेशा नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक जिम्मेदारी है – यही उनका संदेश था।

राष्ट्र निर्माण में योगदान का विश्लेषण

भारत की आधारभूत संरचना का विकास, जल आपूर्ति की योजना, औद्योगिकरण, शिक्षा और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में उनका योगदान अनमोल है। उनके कार्यों से निम्न लाभ हुए:

  1. कृषि उत्पादन में वृद्धि – सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से किसानों की आय बढ़ी।
  2. शहरी सुरक्षा – बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी से लाखों लोगों की जान बची।
  3. समुद्री व्यापार का विस्तार – बंदरगाहों की सुरक्षा से निर्यात और आयात में वृद्धि हुई।
  4. तकनीकी शिक्षा का प्रसार – इंजीनियरिंग कॉलेजों और प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना से वैज्ञानिक सोच विकसित हुई।
  5. औद्योगिक विकास – छोटे और बड़े उद्योगों को तकनीकी सहयोग मिला।
  6. सामाजिक कल्याण – स्वास्थ्य, स्वच्छता और नगर नियोजन से जीवन की गुणवत्ता में सुधार आया।

इंजीनियर्स डे मनाने की परंपरा

भारत में 1968 से इंजीनियर्स डे मनाया जा रहा है। यह दिन वैज्ञानिक सोच को सम्मान देने के साथ-साथ शिक्षा संस्थानों में सेमिनार, कार्यशाला, प्रतियोगिता, नवाचार प्रदर्शनी और प्रेरक व्याख्यानों का आयोजन कर युवाओं को जागरूक करता है। सरकारी और निजी संस्थान इस दिन जल संरक्षण अभियानों, स्वच्छता अभियानों, तकनीकी नवाचार प्रतियोगिताओं और विज्ञान आधारित सामाजिक पहल की शुरुआत करते हैं।

विज्ञान, सेवा और राष्ट्र निर्माण का प्रतीक

सर एम. विश्वेश्वरैया का जीवन हमें सिखाता है कि तकनीक का उपयोग केवल भौतिक निर्माण के लिए नहीं, बल्कि समाज की सेवा, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने कार्यों से यह सिद्ध किया कि इंजीनियरिंग में नवाचार, अनुशासन और दूरदृष्टि का समावेश करके समाज को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया जा सकता है।

आज जब भारत विज्ञान, तकनीक, स्टार्टअप, अवसंरचना और सतत विकास की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, तब सर विश्वेश्वरैया की विचारधारा और भी प्रासंगिक हो गई है। इंजीनियर्स डे पर उन्हें याद करना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि यह संकल्प है कि हम विज्ञान और नवाचार के बल पर एक समृद्ध, सुरक्षित और विकसित भारत का निर्माण करेंगे।

Quick Revision Table (सारांश तालिका) – सर एम. विश्वेश्वरैया

क्रमांकबिंदुविवरण
1पूरा नामसर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (Sir M. Visvesvaraya)
2जन्म15 सितम्बर 1861, मड्डेनहल्ली गाँव, कर्नाटक
3पेशासिविल इंजीनियर, राजनेता, शिक्षाविद्, समाज सुधारक
4प्रमुख पुरस्कारभारत रत्न (1955), नाइट कमांडर ऑफ़ द ब्रिटिश इंडियन एम्पायर (KCIE, 1915)
5प्रमुख परियोजनाएँकृष्णराज सागर (KRS) बाँध, मूसी नदी बाढ़ नियंत्रण, विशाखापट्टनम बंदरगाह सुरक्षा
6प्रशासनिक भूमिकामैसूर के दीवान (1912–1918), शिक्षा, उद्योग और सार्वजनिक कल्याण में सुधार
7इंजीनियर्स डेहर वर्ष 15 सितम्बर को मनाया जाता है – इंजीनियरों के योगदान का सम्मान
8उद्देश्यइंजीनियरों का सम्मान, युवाओं को प्रेरित करना, नवाचार को प्रोत्साहित करना, सतत विकास पर ध्यान देना
9विचारअनुशासन, ईमानदारी, तकनीक को समाज की सेवा में लगाना
10आधुनिक प्रासंगिकतास्मार्ट सिटी, जल संरक्षण, स्टार्टअप संस्कृति, ग्रामीण विकास, आर्थिक आत्मनिर्भरता
11प्रेरणा संदेशकठिनाइयाँ सफलता की पहली सीढ़ी हैं; विज्ञान से राष्ट्र निर्माण संभव है
12प्रमुख सीखतकनीकी ज्ञान + सेवा भावना = प्रगतिशील और समृद्ध भारत

निष्कर्ष

सर एम. विश्वेश्वरैया की उपलब्धियाँ इंजीनियरों के लिए आदर्श हैं। उन्होंने जल संकट से लेकर औद्योगिक विकास तक हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए। वे अनुशासन, परिश्रम, वैज्ञानिक सोच और सेवा भावना का उदाहरण हैं। 15 सितंबर को मनाया जाने वाला इंजीनियर्स डे उनके योगदान को याद करने का दिन है, साथ ही यह युवाओं को विज्ञान आधारित समाधान तलाशने, तकनीकी शिक्षा अपनाने और राष्ट्र निर्माण में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है।

उनकी जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि सीमित संसाधनों के बावजूद यदि दृष्टि स्पष्ट हो, मन में सेवा की भावना हो और ज्ञान को समाज की भलाई में लगाया जाए, तो असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं। विकसित भारत की ओर बढ़ते कदमों में सर एम. विश्वेश्वरैया का नाम हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेगा।

जय विज्ञान, जय इंजीनियरिंग, जय भारत।


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