भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 की तिथि एक ऐसे अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है जिसे आज भी देश का सबसे अंधकारमय कालखंड माना जाता है। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। 21 महीनों तक चले इस दौर में नागरिक अधिकारों का निलंबन, प्रेस पर सेंसरशिप, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, और आम जनता पर तरह-तरह की पाबंदियाँ लगाई गईं।
इस ऐतिहासिक घटना की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर 25 जून 2025 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक महत्वपूर्ण पुस्तक ‘The Emergency Diaries’ का विमोचन किया। यह पुस्तक विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आपातकाल के दौरान किए गए संघर्ष, उनके भूमिगत जीवन और लोकतंत्र की रक्षा में निभाई गई भूमिका पर केंद्रित है।
The Emergency Diaries | पुस्तक का विमोचन और उसका महत्व
25 जून 2025 को भारत ने अपने इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना — आपातकाल — की 50वीं वर्षगांठ मनाई। इसी अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम में ‘The Emergency Diaries’ नामक पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्तक विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आपातकालीन काल में भूमिगत रहते हुए किए गए संघर्ष, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में निभाई गई भूमिका और उस दौर की विभीषिकाओं का चित्रण प्रस्तुत करती है।
नई दिल्ली में आयोजित समारोह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘द एमरजेंसी डायरीज़’ का लोकार्पण करते हुए कहा,
“उस समय भारत एक जेल जैसा था। आपातकाल वंशवादी शासन को बचाने के लिए एक तानाशाही शासक द्वारा थोपा गया था।”
अमित शाह ने इस अवसर पर यह भी उल्लेख किया कि किस तरह पत्रकारों की आवाज को दबाया गया, नेताओं को जेलों में बंद किया गया और यहाँ तक कि रचनात्मक अभिव्यक्ति जैसे गीतों और फिल्मों पर भी प्रतिबंध लगा दिए गए। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक न केवल आपातकाल के दौर की घटनाओं का दस्तावेज है बल्कि लोकतंत्र की रक्षा में नागरिक सतर्कता और जागरूकता का संदेश भी देती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक धैर्य की परीक्षा बताया और कहा,
“आपातकाल एक सीखने का अनुभव था। उस समय तानाशाही के खिलाफ खड़े होने और सर्वदलीय एकता से जो प्रेरणा मिली, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक है।”
‘द एमरजेंसी डायरीज़’ का केंद्रबिंदु
‘द एमरजेंसी डायरीज़’ एक दस्तावेजी रचना है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारात्मक विकास और आपातकाल के दौरान उनके संघर्ष की कहानी को सामने लाती है। एक युवा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रचारक के रूप में मोदी का भूमिगत जीवन, उनके नेतृत्व में चले गुप्त अभियानों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में किए गए प्रयासों का इसमें विस्तार से वर्णन है।
‘The Emergency Diaries’ | पुस्तक की संरचना और विशेषता
पुस्तक का मूल उद्देश्य
‘द एमरजेंसी डायरीज़’ एक जीवंत दस्तावेज है, जो न केवल घटनाओं का ब्यौरा देती है, बल्कि उस समय के नायकों के संघर्षों को सामने लाती है। पुस्तक का उद्देश्य है:
- आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए लड़े गए संघर्षों को रेखांकित करना।
- नई पीढ़ी को आपातकाल की विभीषिका से परिचित कराना।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारात्मक विकास और लोकतंत्र के प्रति उनकी निष्ठा को सामने लाना।
- यह बताना कि लोकतंत्र को बचाने के लिए हर नागरिक की सक्रिय भूमिका अनिवार्य है।
The Emergency Diaries | स्रोत सामग्री
यह पुस्तक विभिन्न स्रोतों पर आधारित है, जिनमें शामिल हैं:
- पीएम मोदी के निकट सहयोगियों के प्रत्यक्ष अनुभव और संस्मरण
- गुप्त दस्तावेज और अभिलेखीय रिकॉर्ड
- आपातकाल के दौरान तैयार गुप्त साहित्य और समाचार पत्रक
मोदी की भूमिगत गतिविधियाँ
पुस्तक में वर्णित घटनाओं के अनुसार, नरेंद्र मोदी उस समय गुजरात में सक्रिय थे और आरएसएस प्रचारक के रूप में काम कर रहे थे। आपातकाल लागू होने के बाद वे भूमिगत हो गए और सरकार विरोधी आंदोलनों में भाग लेने लगे। उन्होंने गुप्त पत्रक तैयार किए, विपक्षी नेताओं के संदेश एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाए और विरोध सभाओं का संचालन करने में सहयोग दिया।
पुस्तक में विस्तार से वर्णित है कि किस प्रकार नरेंद्र मोदी ने आपातकाल के दौरान गुजरात में भूमिगत रहते हुए लोकतांत्रिक शक्तियों को संगठित किया। कुछ महत्वपूर्ण पहलू:
- भेष बदलकर सुरक्षा एजेंसियों की आँखों में धूल झोंकना।
- भूमिगत नेटवर्क के माध्यम से संदेशों और सूचना का आदान-प्रदान करना।
- गुप्त पत्रकों और समाचारों का वितरण।
- युवा कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना और आंदोलन की रणनीति तय करना।
पुस्तक के अनुसार, नरेंद्र मोदी ने साधु, मजदूर और साधारण ग्रामीण व्यक्ति जैसे रूप धारण कर पुलिस और खुफिया तंत्र से बचते हुए लोकतंत्र समर्थक अभियानों का संचालन किया।
The Emergency Diaries | पुस्तक का उद्देश्य
इस पुस्तक के प्रकाशन का उद्देश्य न केवल 1975-77 के आपातकाल की घटनाओं को युवा पीढ़ी तक पहुँचाना है, बल्कि यह भी बताना है कि किस तरह तानाशाही प्रवृत्तियों के विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष करना हर नागरिक का कर्तव्य है। यह पुस्तक लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा के महत्व को रेखांकित करती है।
पुस्तक में बताया गया है कि किस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल के दौरान जान जोखिम में डालकर विरोध आंदोलनों को संगठित किया, संदेशवाहक बने और भूमिगत रहते हुए विभिन्न क्षेत्रों में लोकतंत्र समर्थक गतिविधियों का संचालन किया।
आपातकाल: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
25 जून 1975 की रात देशवासियों के लिए एक साधारण रात नहीं थी। उस रात देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को एक झटके में तहस-नहस कर दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की अनुमति से आपातकाल की घोषणा कर दी। इसका कारण बताया गया — “आंतरिक उपद्रव और राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा”। किंतु व्यापक रूप से इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा अपनी सत्ता बचाने का प्रयास माना गया। मार्च 1977 तक चले इस दौर में भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएँ बुरी तरह प्रभावित हुईं।
आपातकाल की प्रमुख घटनाएँ
- नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन: मौलिक अधिकार जैसे बोलने की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया।
- प्रेस सेंसरशिप: समाचार पत्रों और मीडिया पर कड़े नियंत्रण लगाए गए। ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘स्टेट्समैन’ जैसे अखबारों ने अपने संपादकीय कॉलम खाली छोड़कर विरोध जताया।
- विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी: जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और सैकड़ों विपक्षी नेता जेल में डाल दिए गए।
- नसबंदी अभियान: जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर जबरन नसबंदी कराई गई। इसने ग्रामीण इलाकों में भय और असंतोष फैलाया।
- कर्फ्यू और दमनकारी आदेश: नागरिकों की आवाजाही पर पाबंदियाँ और असहमति जताने वालों पर कड़े दंड लगाए गए।
यह दौर भारतीय लोकतंत्र की कसौटी का समय बन गया, जिसमें सत्ता का केंद्रीकरण चरम पर पहुँच गया और नागरिक अधिकार हाशिये पर चले गए। आपातकाल के दौरान भारतवर्ष में भय, दमन और असहमति को कुचलने की कोशिशें हर स्तर पर की गईं।
अमित शाह और पीएम मोदी के दृष्टिकोण
अमित शाह ने पुस्तक विमोचन समारोह में कहा कि आपातकाल का समय ऐसा था जब भारत की आत्मा को कैद करने की कोशिश की गई थी। उन्होंने कहा कि
“यह पुस्तक भविष्य की पीढ़ियों को यह सिखाएगी कि लोकतंत्र की रक्षा में नागरिकों की जागरूकता और सतर्कता कितनी आवश्यक है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पुस्तक को न केवल अतीत की घटनाओं का दस्तावेज बताया बल्कि एक चेतावनी और मार्गदर्शक के रूप में इसकी महत्ता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आपातकाल ने यह दिखा दिया कि अगर जनता जागरूक न रहे तो लोकतंत्र कितनी जल्दी तानाशाही में बदल सकता है।
अमित शाह का वक्तव्य
पुस्तक विमोचन के अवसर पर अमित शाह ने कहा:
“आपातकाल का समय वह दौर था जब पूरे भारत को एक जेल में बदल दिया गया था। यह लोकतंत्र पर सबसे बड़ा आघात था, जिसे वंशवादी सत्ता को बचाने के लिए थोपा गया।”
अमित शाह ने युवाओं से आग्रह किया कि वे इस पुस्तक को पढ़ें ताकि लोकतंत्र के महत्व को समझें और यह जानें कि स्वतंत्रता की रक्षा में कितनी कीमत चुकानी पड़ी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री मोदी ने पुस्तक को लेकर कहा:
“आपातकाल मेरे लिए सीखने का काल था। मैंने देखा कि कैसे लोकतंत्र की रक्षा के लिए अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं के लोग एक मंच पर आ सकते हैं। यह पुस्तक आने वाली पीढ़ियों को लोकतंत्र की नाजुकता का एहसास कराएगी।”
उन्होंने यह भी कहा कि आपातकाल के दौर ने उनकी राजनीतिक और वैचारिक सोच को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।
आपातकाल की विरासत और सीख
आपातकाल का दौर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का ऐसा समय था जब संविधान का लगभग निलंबन हो गया था। लेकिन इसी दौर में भारतीय जनता ने यह भी दिखा दिया कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। मार्च 1977 में जब चुनाव हुए तो जनता ने तानाशाही के खिलाफ वोट दिया और पहली बार केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
आपातकाल की विरासत
आपातकाल भले ही समाप्त हो गया हो, लेकिन उसके दंश और सीख आज भी प्रासंगिक हैं। कुछ प्रमुख बिंदु:
- जनता की शक्ति: 1977 के आम चुनाव में जनता ने सत्ता से तानाशाही प्रवृत्तियों को उखाड़ फेंका। पहली बार केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
- संविधान में संशोधन: 44वां संविधान संशोधन हुआ, जिससे भविष्य में आपातकाल लगाने की प्रक्रिया को अधिक कठोर और न्यायिक समीक्षा के अधीन बनाया गया।
- लोकतांत्रिक चेतना: आपातकाल ने जनता में अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई और राजनीतिक सहभागिता को प्रोत्साहित किया।
आपातकाल की सीख
‘द एमरजेंसी डायरीज़’ हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र कोई स्थायी स्थिति नहीं है जिसे एक बार पा लेने पर सदा के लिए सुरक्षित मान लिया जाए। यह पुस्तक आने वाली पीढ़ियों को नागरिक स्वतंत्रताओं के प्रति जागरूक करती है और यह संदेश देती है कि हर नागरिक को लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सदैव सतर्क रहना चाहिए।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुस्तक का महत्व
आज जबकि दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से जूझ रही हैं — चाहे वह फेक न्यूज़ हो, सत्ता का केंद्रीकरण हो या जन-मत को गुमराह करने की कोशिशें — ‘The Emergency Diaries’ एक चेतावनी और प्रेरणा दोनों बनकर सामने आती है। यह पुस्तक बताती है कि लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि एक जीवंत चेतना है, जिसकी रक्षा करना हर नागरिक का धर्म है।
लोकतांत्रिक मूल्य और नागरिक कर्तव्य
पुस्तक हमें यह भी सिखाती है कि:
- लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए नागरिकों को सजग रहना आवश्यक है।
- असहमति और आलोचना लोकतंत्र की आत्मा हैं; इनका दमन लोकतांत्रिक पतन की शुरुआत होती है।
- सत्ता की निरंकुशता को चुनौती देने के लिए साहसिक नेतृत्व और जनसहयोग दोनों आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
‘The Emergency Diaries’ केवल एक पुस्तक नहीं है, यह लोकतंत्र के लिए हुए संघर्ष की गाथा है। यह उन हजारों-लाखों गुमनाम नायकों की कहानी है जिन्होंने अपनी आज़ादी और अधिकारों की रक्षा के लिए हर खतरे को मोल लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुभवों के माध्यम से यह पुस्तक इस बात को रेखांकित करती है कि किस तरह व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों से लोकतंत्र को बचाया जा सकता है।
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की इस महत्वपूर्ण दस्तावेजी कृति का विमोचन ऐसे समय पर हुआ है जब दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों पर नए प्रकार के खतरे मंडरा रहे हैं। यह पुस्तक हमें अतीत से सीख लेकर भविष्य की रक्षा करने की प्रेरणा देती है।
अमित शाह के शब्दों में,
“यह पुस्तक अतीत की चेतावनी भी है और भविष्य का पथप्रदर्शक भी।”
ऐसे समय में जब लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ विश्व स्तर पर चुनौतियों से जूझ रही हैं, यह पुस्तक हमें पुनः स्मरण कराती है कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए हर नागरिक को सजग प्रहरी बनना होगा।
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